जैक्स डबोकेट, जोकिम फ्रैंक और रिचर्ड हेंडरसन को “जीवन के अणुओं की त्रि-आयामी छवियां निर्मित करने की तकनीक का विकास करने” के लिए 2017 के रसायन विज्ञान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का प्रयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने गतिशील अणुओं को स्थिर करके उनकी परमाणु स्तर की छवियां प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है।
पूर्व में सूक्ष्म अवलोकनों के लिए सामान्य प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता रहा है, जिनमें लेंस का उपयोग करके चीज़ों को बड़ा करके देखा जा सकता है। परन्तु प्रकाश की तरंग लम्बाई अधिक होने के कारण इन सूक्ष्मदर्शियों में आवर्धन की सीमा आ जाती है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार ने इस सीमा को पार करने में मदद की क्योंकि इनमें प्रकाश के बजाय इलेक्ट्रॉन पुंज का उपयोग किया जाता है और इलेक्ट्रॉन की तरंग लम्बाई साधारण प्रकाश से काफी कम होती है।
लेकिन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से देखने के लिए सैम्पल को जिस ढंग से तैयार करना पड़ता है उसमें जीवन के अणुओं की रचना नष्ट हो जाती है। अच्छे रिज़ॉल्यूशन वाली छवि प्राप्त करने के लिए अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन पुंज का उपयोग करना पड़ता है जो जैविक सामग्री को नष्ट कर देता है। अगर कम ऊर्जा वाले पुंज का इस्तेमाल करें तो छवि धुंधली मिलती है।
नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने इसी समस्या पर शोध किया और कम तापमान पर इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी तकनीक का विकास किया। क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में नमूने का अध्ययन बहुत कम तापमान (आम तौर पर तरल-नाइट्रोजन तापमान) पर किया जाता है। इस विधि में नमूने को इस प्रकार से तैयार किया जाता है जिससे तीव्र इलेक्ट्रॉन पुंज से जैविक पदार्थ को नष्ट होने से बचाया जा सके।
एक समस्या यह भी थी कि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में अवलोकन के लिए नमूने को निर्वात में रखना पड़ता है। निर्वात के कारण नमूने में उपस्थित सारा पानी वाष्पित हो जाता है और अणुओं की रचना बरबाद हो जाती है।
इसके लिए नमूने को -190 डिग्री सेल्सियस पर एक पतली फिल्म के रूप में व्यवस्थित किया जाता है और यह काम बहुत तेज़ी से किया जाता है। ऐसा करने पर पानी बर्फ नहीं बन पाता बल्कि कांच के रूप में जम जाता है, जिसे विट्रिफाइड पानी कहते हैं। इस नमूने की सूक्ष्मदर्शी छवियां विभिन्न कोणों पर प्राप्त करके कंप्यूटर मॉडलिंग द्वारा एक सम्मिलित चित्र बनाया जाता है जो त्रि-आयामी होता है।
इस तकनीक की मदद से कोशिका के प्रत्येक उपांग को परमाणु स्तर तक देखा जा सकता है। इस तकनीक की बदौलत जैव रसायन विज्ञान एक रोमांचक युग में प्रवेश कर गया है जहां हम विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाओं को गतिमान अवस्था में देख सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)