डॉ. अरविंद गुप्ते
प्राचीन काल से चिकित्सक बीमारियों का इलाज करते रहे हैं। इसमेंे देवी-देवताओं के पूजन से ले कर झाड़फूंक तक की विधियां शामिल थीं। किंतु वैज्ञानिक विधि से उपचार करने वाले चिकित्सक इस तथ्य से परिचित थे कि मानव शरीर की और उसके आंतरिक अंगों की विस्तृत जानकारी के बिना सही इलाज संभव नहीं है। अत: प्राचीन काल में भी मिरुा, भारत और यूनान के चिकित्सकों ने जानवरों और मृत मनुष्य की देहों का विच्छेदन करके शरीर रचना के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया।
मध्य युग में युरोप के कई देशों में शव विच्छेदन से मानव शरीर रचना के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। इस जानकारी के आधार पर रोगग्रस्त अंग की पहचान करना और उसे शरीर से काट कर निकाल देना संभव हो पाया। किंतु इस प्रकार की सर्जरी में दो बड़ी कठिनाइयां थीं। पहली यह थी कि ऑपरेशन के दौरान मरीज़ होश में होता था। स्वाभाविक है, उसे असहनीय दर्द होता था। एक घटना का उल्लेख मिलता है जिसमें मरीज़ को बेहोश किए बिना उसकी आंख निकालनी पड़ी थी। कई बार सर्जरी से पहले प्राय: मरीज़ को शराब पिला कर या सिर पर चोट मार कर बेहोश कर दिया जाता था। एक तरीका था कि कुछ हट्टे-कट्टे व्यक्ति मरीज़ के हाथ-पैर पकड़ कर रखते थे और डॉक्टर मरीज़ की चीखों को अनसुना करके काम करता रहता था।
इस बीच अमेरिका से खबर आई कि दांतों के एक डॉक्टर विलियम मॉर्टन ने ईथर नामक रसायन सुंघाकर एक मरीज़ को बेहोश किया और उसका दांत बिना दर्द के उखाड़ दिया। ब्रिाटिश डॉक्टर रॉबर्ट लिस्टन ने सर्जरी के दौरान ईथर का उपयोग करने का निर्णय लिया।
दिसम्बर 1846 में एक दिन इस चमत्कार को देखने के लिए ऑपरेशन थियेटर दर्शकों से खचाखच भरा था। डॉ. लिस्टन के आने से पहले उनके सहायक ने दर्शकों से पूछा कि क्या कोई ईथर सूंघने के लिए आगे आना चाहेगा? कोई तैयार नहीं हुआ। तब चौकीदार को टेबल पर लिटाया गया। किंतु जैसे ही उसने ईथर सूंघा, वह टेबल पर से कूद कर भाग खड़ा हुआ।
इसके बाद एक अन्य मरीज़ को ऑपरेशन थियेटर में लाया गया। चर्चिल नामक यह व्यक्ति कई वर्षों से घुटने की बीमारी से पीड़ित था और उसके पैर को घुटने के ऊपर से काट देना ही एकमात्र इलाज था। चर्चिल को मेज़ पर लिटाया गया। दो व्यक्तियों को उसके पास खड़ा किया गया ताकि यदि ईथर का असर न हो तो सर्जरी के समय वे उसे पकड़ कर रखें। डॉ. लिस्टन के सहायक ने हुक्के जैसे एक उपकरण से उसे ईथर सुंघाया और वह बेहोश हो गया। इसके बाद उसकी नाक पर ईथर में भीगा हुआ एक रुमाल रख दिया गया। डॉक्टर लिस्टन ने महज़ 28 सेकंड में उसकी टांग काट दी। इसके बाद घाव को टांके लगा कर बंद कर दिया गया। ऑपरेशन के दौरान मरीज़ बेहोश रहा और जब उसे होश आया तब उसने डॉक्टर से पूछा कि ऑपरेशन कब शुरू करेंगे। इस ऑपरेशन ने सर्जरी के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। इसके बाद बेहोश करने वाले अनेक रसायनों का आविष्कार हुआ और निश्चेतना विज्ञान चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया।
उस समय यह मान्यता थी कि मरीज़ों में संक्रमण दूषित हवा के कारण होता है। वॉर्ड्स को दोपहर के समय खोल कर ताज़ी हवा को अंदर आने दिया जाता था, किंतु डॉक्टरों के लिए हाथ धोने की कोई सुविधा नहीं होती थी। हंगरी में इग्नाज सेमलवाइस के काम के बावजूद सर्जरी बहुत गंदी परिस्थितियों में की जाती थी। ऑपरेशन थिएटर की बदबू को ‘सर्जिकल बदबू’ कहा जाता था। डॉक्टर अपने बिना धुले एप्रन्स पर पड़े धब्बों पर गर्व करते थे - जितने अधिक धब्बे उतना अधिक अनुभवी डॉक्टर। |
सर्जरी के मरीज़ों को दर्द से तो छुटकारा मिल गया किंतु दूसरी कठिनाई फिर भी बनी रही। सर्जरी के बाद काफी मरीज़ संक्रमण से मर जाते थे। ईथर की शोहरत फैलने के बाद अधिक से अधिक डॉक्टर सर्जरी करने लगे किंतु ऑपरेशन के बाद संक्रमण से मरने वाले मरीज़ों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी। जो मरीज़ जीवित रह जाते थे वे अपनी शेष जिंदगी के लिए अपाहिज़ हो जाते थे। बाहरी अंगों को काट देने के अलावा यदि शरीर के अंदर (पेट या सीना काट कर) सर्जरी की जाती तो संक्रमण से मरीज़ की मृत्यु लगभग निश्चित होती थी। इसका कारण यह था कि उस समय ऑपरेशन थिएटर में सफाई की कोई अवधारणा ही नहीं थी। सर्जरी के उपकरणों को बिना धोए बार-बार उपयोग में लाया जाता था। और ना ही डॉक्टर सर्जरी करने से पहले अपने हाथों को धोया करते थे। ऑपरेशन्स की संख्या बढ़ती गई, ऑपरेशन थिएटर और अधिक गंदे होते गए।
यूरोप में प्रसूति का काम दाइयां भी करती थीं और डॉक्टर भी। हंगरी के डॉक्टर इग्नाज सेमलवाइस ने देखा कि डॉक्टरों द्वारा की गई प्रसूतियों के बाद माताओं की बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती थी जबकि दाइयों द्वारा प्रसूति के बाद महिलाओं की मृत्यु दर काफी कम होती थी। इसका कारण खोजने पर उन्हें पता चला कि प्रसूति करवाने वाले डॉक्टर हाथ नहीं धोते थे। वे प्राय: शव विच्छेदन करने के बाद या मरीज़ों का उपचार करने के बाद सीधे आकर बिना हाथ धोए प्रसूति करवा देते थे और जच्चा को संक्रमित कर देते थे। दाइयों के हाथ इतने अधिक गंदे नहीं होने के कारण माताओं में संक्रमण कम होता था। शुरुआत में डॉॅक्टरों ने इस सुझाव को अपना अपमान माना और सेमलवाइस को काफी प्रताड़ित किया गया। उन्हें पागल बताकर पागलखाने भेज दिया गया जहां सुरक्षाकर्मियों द्वारा बुरी तरह पीटे जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के कई वर्षों के बाद पाश्चर के कार्य के फलस्वरुप उनकी बात को माना गया और उन्हें शोहरत मिली। |
डॉ. लिस्टन के ‘चमत्कार’ को देखने वालों में जोसफ लिस्टर नाम का एक युवा मेडिकल विद्यार्थी था। उसने निश्चय किया कि वह सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण के कारण का पता लगा कर उसकी रोकथाम का कोई उपाय खोजेगा।
ग्लासगो मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्य करते हुए लिस्टर ने फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर का शोध पत्र पढ़ा जिसमें पाश्चर ने यह दिखाया था कि वायुरहित परिस्थितियों में भी सूक्ष्मजीव खाद्य पदार्थों में पनप कर सड़न पैदा कर सकते हैं। इन सूक्ष्मजीवों को समाप्त करने के लिए पाश्चर ने तीन विधियां सुझाई थीं - छानना, गरम करना और रसायनों का उपयोग। लिस्टर ने स्वयं कुछ प्रयोग किए जिनसे उन्हें विश्वास हो गया कि ऑपरेशन के बाद सूक्ष्मजीवों के कारण ही मरीज़ों में संक्रमण होता था। अत: उन्होंने सूक्ष्मजीवों को समाप्त करने के लिए पाश्चर द्वारा सुझाई गई तीसरी विधि आज़माने का विचार किया। 1834 में जर्मन रसायन शास्त्री रुंगे ने कार्बोलिक एसिड की खोज की थी। शुरुआत में इस रसायन को खेतों को खाद की बदबू से मुक्त करने के लिए छिड़का जाता था। तब लिस्टर ने इसे सूक्ष्मजीवों के सफाए के लिए उपयोग में लाने का निश्चय किया और सर्जरी के उपकरणों तथा मरीज़ों के घावों को इससे साफ करना शुरू किया। उन्होंने अपने सहायकों को निर्देश दिया कि वे सर्जरी से पहले और बाद में कार्बोलिक एसिड के घोल से हाथ धोएं और सर्जरी के समय साफ दस्ताने पहनें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सर्जरी के लिए उपयोग में लाए जाने वाले उपकरण लकड़ी के सामान से न बनाएं जाएं क्योंकि इनके सूक्ष्म छेदों में रोगाणु पनप सकते हैं। उन्होंने ऑपरेशन थिएटर में कार्बोलिक एसिड के घोल का छिड़काव करना शुरू किया। इसमें उन्हें सफलता मिली और सर्जरी के बाद संक्रमण से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी आई। हालांकि लिस्टर को बाद के जीवन में बहुत अधिक शोहरत मिली, शुरुआती दौर में चिकित्सा जगत ने उनके विचारों का मज़ाक उड़ाया गया। सन 1873 में शोध पत्रिका लैन्सेट ने डॉक्टरों को चेतावनी दी थी कि वे लिस्टर के ‘प्रगतिशील’ विचारों से सावधान रहें।
इस सफलता के बाद लिस्टर पर ब्रिाटिश राजघराने ने एक के बाद एक सम्मानों की बौछार कर दी। उन्हें जर्मनी और स्वीडन ने भी सम्मानित किया। मुंह की सफाई करने वाले माउथवॉश लिस्टरीन का नाम लिस्टर के नाम पर ही रखा गया है। (स्रोत फीचर्स)