स्मृति-लोप से पीड़ित व्यक्तियों को नौजवान व्यक्तियों का खून देने का क्या असर होगा? इस सवाल का जवाब पाने के लिए हाल ही में एक छोटा-सा परीक्षण किया गया है। परीक्षण का एक निष्कर्ष तो यह है कि यह प्रक्रिया सुरक्षित है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि शायद अल्ज़ाइमर से पीड़ित व्यक्तियों को इससे अपने रोज़मर्रा के कामकाज में थोड़ी मदद मिल सकती है।
यह परीक्षण स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के तंत्रिका वैज्ञानिक टोनी वाइस-कोरे के नेतृत्व में उनके द्वारा शुरू की गई स्टार्ट-अप कंपनी अल्काहेस्ट द्वारा आयोजित किया गया था। इस परीक्षण में कुल मिलाकर 18 व्यक्तियों ने हिस्सा लिया था। ये लोग 54 से लेकर 86 वर्ष तक के थे और इनमें हल्के अल्ज़ाइमर के लक्षण उपस्थित थे। इन 18 व्यक्तियों को लगातार चार सप्ताह तक प्रति सप्ताह खून दिया गया। यह खून 18-30 वर्ष के व्यक्तियों का था। इन 18 व्यक्तियों में से कुछ लोगों को मात्र सलाइन दिया गया था जबकि कुछ लोगों को प्लाज़्मा दिया गया। प्लाज़्मा खून का वह हिस्सा होता है जिसमें से लाल रक्त कोशिकाएं हटा दी गई हों।
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने सारे मरीज़ों की संज्ञान क्षमताओं, सामान्य मिज़ाज और अन्य क्षमताओं का निरीक्षण किया। अध्ययन के दौरान कोई साइड इफेक्ट नहीं देखा गया। इन मरीज़ों को कुछ अन्य परीक्षण भी दिए थे ताकि यह जाना जा सके कि क्या उन्हें रोज़मर्रा के कामकाज में मदद मिलेगी। इस मामले में ‘उल्लेखनीय सुधार’ देखा गया। वैसे सामान्य संज्ञान क्षमता पर कोई असर नहीं हुआ।
इस प्रयोग की प्रेरणा पूर्व में चूहों पर किए गए प्रयोगों से मिली थी। उनमें बूढ़े चूहों और युवा चूहों के रक्त संचार को आपस में जोड़ दिया था। ऐसा करने पर बूढ़े चूहों की सामान्य सेहत और संज्ञान क्षमता में सुधार देखा गया था। इस प्रयोग के आधार पर एक मान्यता यह भी बनी थी कि मात्र प्लाज़्मा देने से पूर्ण रक्त देना बेहतर है।
वाइस-कोरे अब इस अध्ययन को बड़े समूह पर करना चाहते हैं और यह भी जांचना चाहते हैं कि क्या संपूर्ण प्लाज़्मा देने की बजाय ऐसा प्लाज़्मा देना बेहतर होगा जिसमें से कुछ प्रोटीन्स वगैरह हटा दिए गए हों। मगर उससे पहले इस अध्ययन को लेकर विवाद छिड़ गया है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह के प्रयोगों का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि अभी यह तक पता नहीं है कि प्लाज़्मा के कौन-से अणु उपरोक्त असर पैदा कर रहे हैं। चूहों पर किए गए प्रयोगों में तो युवा और बूढ़े चूहों के पूरे रक्त संचार को आपस में जोड़ा गया था और बूढ़े चूहों के कई ऊतकों में सुधार देखा गया था। मगर यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि रक्त का कौन-सा भाग इस सुधार के लिए ज़िम्मेदार है। इसके अलावा एक समस्या यह भी है कि एकाध बार रक्तदान करना सुरक्षित हो सकता है किंतु यदि ऐसा कई बार किया गया तो प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिक्रिया देगा। (स्रोत फीचर्स)