यह काफी समय से पता रहा है कि मलेरिया परजीवी (प्लाज़्मोडियम) शरीर में हो तो व्यक्ति मच्छरों के लिए ज़्यादा आकर्षक हो जाता है। प्लाज़्मोडियम आपकी गंध को बदल देता है। यह तो तय है कि यदि मलेरिया संक्रमित व्यक्ति मच्छरों को ज़्यादा लुभाएगा तो प्लाज़्मोडियम का प्रसार ज़्यादा होगा।
अब प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ में प्रकाशित एक शोध में इस बदली हुई गंध के लिए ज़िम्मेदार रसायनों की पहचान करने में सफलता प्राप्त की है। लंदन स्कूल ऑफ हायजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के चिकित्सा कीट वैज्ञानिक जेम्स लोगन और उनके साथियों ने बताया है कि बदली हुई गंध मूलत: एल्डीहाइड नामक यौगिकों की वजह से पैदा होती है।

इस अनुसंधान के लिए शोधकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर मलेरिया पीड़ित व अन्य व्यक्तियों की गंध का गहन विश्लेषण किया है। उदाहरण के लिए कीन्या के 45 स्कूली बच्चों की जुराबें इसमें बहुत मददगार साबित हुईं। शोधकर्ताओं ने जुराबें दो डिब्बों में रखीं। ये डिब्बे एक नली के ज़रिए आपस में जुड़े हुए थे।
अब मच्छरों को इस नली में छोड़ा गया। शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि क्या मच्छर उन जुराबों को ज़्यादा पसंद करते हैं जिन्हें किसी मलेरिया ग्रस्त बच्चे ने पहना था। मच्छरों ने साफ तौर पर मलेरिया ग्रस्त बच्चों की ज़ुराबों को तरजीह दी।

और तो और, शोधकर्ताओं ने एक और प्रयोग किया। एक डिब्बे में ऐसे बच्चों की ज़ुराबें रखी गईं जो वर्तमान में मलेरिया से पीड़ित थे और दूसरे डिब्बे में ऐसे बच्चों की जुराबें रखी गईं जिन्हें तीन सप्ताह पहले मलेरिया हुआ था किंतु दवाइयों से मलेरिया साफ कर दिया गया था। 60 प्रतिशत मच्छरों ने वर्तमान में संक्रमित बच्चों की जुराबों को पसंद किया।

इसके बाद शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि इन जुराबों में ऐसी क्या बात है कि मच्छर इन पर लपकते हैं। इसके लिए उन्होंने 56 बच्चों के पैरों की गंध के नमूने लिए और उनका विश्लेषण करके पता किया कि उनमें कौन-कौन से रसायन हैं। फिर एक-एक रसायन को मच्छर के एंटीना (स्पर्शक) पर लगाया गया। उनके एंटीना पर एक इलेक्ट्रोड भी लगा हुआ था जो यह बता देता था कि कौन-सा रसायन लगाने पर एंटीना सक्रिय हो उठता है। यह देखा गया कि ये वही रसायन थे जो मलेरिया संक्रमित बच्चों के पैरों की गंध में ज़्यादा थे।

अब बात थोड़ी स्पष्ट हुई। शोधकर्ताओं का कहना है कि मूलत: एल्डीहाइड समूह के यौगिक हैं जो मच्छरों को लुभाते हैं। इनमें भी खास तौर से हेप्टानल, ऑक्टानल और नौनानल हैं। ये आसानी से वाष्पीकृत हो जाते और कई परफ्यूम्स में भी डाले जाते हैं।
इन प्रयोगों के परिणामों के आधार पर मलेरिया की जांच का तरीका तैयार किया जा सकता है और मच्छरों को दूर रखने के उपाय भी किए जा सकते हैं। कुछ लोगों को तो लगने लगा है कि कुत्तों को प्रशिक्षित किया जा सकता है कि वे मलेरिया पीड़ित व्यक्ति का पता सूंघकर लगा लें।

मगर अभी कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं। पहला सवाल तो यह है कि क्या ये एल्डीहाइड रसायन प्लाज़्मोडियम पैदा करता है या हमारे शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं कि ये रसायन पैदा होने लगते हैं। यह सवाल भी देखना होगा कि क्या यह गंध और ये रसायन मलेरिया के लिए खास हैं या अन्य परिस्थितियों में ऐसे रसायन बनते हैं।
मनुष्यों पर प्रयोगों के साथ-साथ शोधकर्ता यह भी देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या प्लाज़्मोडियम मच्छरों में भी परिवर्तन करता है। (स्रोत फीचर्स)