नवनीत कुमार गुप्ता

विश्व मौसम संगठन के अनुसार 2011 से 2012 के दौरान विश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि देखी गई है। तापमान का बढ़ना समाज को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है। तापमान बढ़ने से प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, असामान्य बारिश, खेती आदि पर प्रभाव होता है। यह हम जानते ही हैं कि कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारी पूरी अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है।

लगभग एक अरब बत्तीस करोड़ की आबादी के साथ भारत आबादी के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31 प्रतिशत आबादी शहरों और 69 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। रुझानों के मुताबिक शहरी आबादी में निरंतर वृद्धि हो रही है। सामान्यत: शहरों में हरियाली और पानी की कमी अधिक देखी गई है। ऐसे में प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भारत को अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है।

जलवायु में परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव से हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में गर्मी के मौसम में लू लगने की घटनाएं काफी देखने को मिलती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले सालों में लू की घटनाओं और उनकी तीव्रता में वृद्धि होने की आशंका व्यक्त की गई है। ऐसे में बचाव की जानकारी ही हमें इससे बचा सकती है।

लू क्या है
लू गर्मियों में उत्तर-पूर्व तथा पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली गर्म और शुष्क हवा है। गर्मियों में दिन का अधिकतम तापमान लगातार तीन दिनों तक सामान्य तापमान से 3 डिग्री अधिक हो तो लू चलती है। विश्व मौसम संगठन के अनुसार लगातार पांच दिनों तक तापमान का सामान्य तापमान से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक होने से भी लू चलती है। यदि किसी स्थान का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है तो वहां लू चल सकती है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में 46 से अधिक तापमान लू को जन्म देता है।

यदि वायुमंडलीय तापमान 37 डिग्री सेल्सियस रहता है तो मानव शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन इससे अधिक तापमान पर शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ‘लू’ लगने का प्रमुख कारण शरीर में लवणों और पानी की कमी होना है। पसीने के रूप में लवण और पानी का बड़ा हिस्सा शरीर से निकलकर खून की गर्मी को बढ़ा देता है। सिर में भारीपन मालूम होने लगता है, नाड़ी की गति बढ़ने लगती है, खून की गति भी तेज़ हो जाती है। सांस की गति भी ठीक नहीं रहती तथा शरीर में एंठन-सी लगती है। बुखार काफी बढ़ जाता है। हाथ और पैरों के तलुओं में जलन-सी होती है। आंखें भी जलती हैं। इससे अचानक बेहोशी व अंतत: रोगी की मौत भी हो सकती है।

लू एक प्राकृतिक आपदा
भारत में आम तौर पर मार्च से जून के दौरान लू चलती है और कुछ मामलों में तो यह जुलाई तक जारी रहती है। इसके परिणामस्वरूप निर्जलन, लू लगना, थकान और यहां तक कि घातक हीट स्ट्रोक भी हो सकता है। लू लगने के कारण देश में 2015 में लगभग ढाई हज़ार और वर्ष 2016 में करीब 1600 लोगों की मौत हुई थी।

15 से 16 जून, 2017 के दौरान नई दिल्ली में संपन्न आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय मंच की दूसरी बैठक में लू के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी दी गई। इसके अंतर्गत लू को भी प्राकृतिक आपदा माना गया है। देश में लू की तीव्रता को देखते हुए एनडीएमए ने इसकी रोकथाम और प्रबंधन के लिए पिछले साल एक कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए थे। इसी के अंतर्गत इस वर्ष के आरंभ से ही इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन आरंभ किया गया था। मार्च के पहले से ही देश के अनेक स्थानों पर लू से बचाव के सर्वोत्तम तरीकों पर कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था।

ऐसी कार्यशालाओं का मुख्य उद्देश्य लू से बचने के लिए राज्यों को जागरूक करना और इससे बचाव के तरीकों को प्रसारित करना रहा। कुछ राज्यों ने लू से बचाव के तरीकों को लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए और अपने अनुभवों और योजनाओं को दूसरों के साथ साझा भी किया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने लू से सम्बंधित कार्य योजना और जोखिम न्यूनीकरण, लू से प्रभावित राज्यों के साथ अनुभव साझा करने और इससे निपटने के उपायों तथा लू के बारे में पूर्वानुमान आदि कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया। इसके अलावा भारतीय मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर तापमान की सटीक जानकारी से भी लोग सचेत हो जाते हैं।

सरकार एवं विभिन्न संगठनों के प्रयासों के साथ लोगों की जागरूकता का ही नतीजा रहा है कि अभी तक इस वर्ष लू से मरने वालों का आंकड़ा काफी कम रहा है। आशा है आने वाले समय में अधिक लोग जागरूक होंगे।

लू से बचने के उपाय
लू से बचने के लिए तेज़ घूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए। अगर बाहर जाना ही पड़े तो सिर व गर्दन को तौलिए या अंगोछे से ढंक लेना चाहिए।
गर्मी के दिनों में हल्का भोजन करना चाहिए। बाहर जाते समय खाली पेट नहीं जाना चाहिए।
गर्मी के दिनों में बार-बार पानी पीते रहना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी नहीं हो।  
गर्मी के दौरान नरम, मुलायम, सूती कपड़े पहनना चाहिए। ऐसे कपड़े जो शरीर के पसीने को सोखते रहें और उसे हवा में बिखराते रहें।
गर्मी में मौसमी फलों, जैसे खरबूज़, तरबूज़, अंगूर इत्यादि एवं छाछ, दही का सेवन नियमित करना चाहिए।
गर्मी के दिनों में प्याज़ का सेवन भी अधिक करना चाहिए।

लू लगने पर क्या करें
लू लगने पर तत्काल योग्य डॉक्टर को दिखाना चाहिए। डॉक्टर को दिखाने के पूर्व कुछ प्राथमिक उपचार करने पर भी लू के रोगी को राहत महसूस होने लगती है।
बुखार तेज़ होने पर रोगी को ठंडी खुली हवा में आराम करवाना चाहिए।
तेज़ बुखार होने पर बर्फ की पट्टी सिर पर रखना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)