संतोष शर्मा

आधुनिक तकनीक व विज्ञान के इस युग में भी शिक्षित-अशिक्षित हर वर्ग के लोगों के मन में भूत-प्रेत का विश्वास बना हुआ है। भूत-प्रेत से जुड़ी बातें या कहानियां हमें रोमांचित करती हैं।
भूत-प्रेत की ऐसी ही एक सत्य घटना है जिसमें एक गांव में पंचायत बुलाकर एक परिवार पर भूत पालने का दोष लगाकर उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था और हुक्का पानी बंद कर दिया गया था। घटना पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले के भीमशोल गांव की है। 

आदिवासी बहुल भीमशोल गांव में किसान मानिक महतो अपने परिवार के साथ खेती-बाड़ी करता है। तंग आर्थिक स्थिति के कारण मानिक का बेटा रमेश महतो कक्षा 10वीं तक ही पढ़ा है और खेती-बाड़ी में हाथ बंटाता है। अच्छी फसल के लिए उसने खेती-बाड़ी से जुड़ी कई वैज्ञानिक किताबें पढ़ीं। वैज्ञानिक उपायों से खेती की तो ज़मीन में बेहतरीन फसल हुई। परिवार में खुशियां झूमने लगीं।
महतो की ज़मीन में अच्छी फसल देखकर गांव के कुछ लोग ईष्र्या करने लगे। लोग आपस में कानाफूसी करने लगे, “गांव में ऐसी फसल तो पहले कभी नहीं देखी। शायद इसके पीछे किसी चमत्कार या भूत-प्रेत का हाथ है। महतो ने अपने घर में कोई भूत तो नहीं पाल रखा है?”

महतो के घर में पालतू भूत का पता लगाने के लिए भीमशोल गांव में लोगों ने एक सालिशी सभा (पंचायत) बुलाई। सभा में एक जानगुरु को भी बुलाया गया। आदिवासी समाज में ओझा या तांत्रिक को जानगुरु कहा जाता है। जानगुरु ने तंत्र-मंत्र कर कहा, “मुझे तो मानिक महतो की ज़मीन में हुई भारी खेती के पीछे कोई चमत्कार या भूत का हाथ दिख रहा है। महतो के घर में कोई पालतू भूत है।”

जानगुरु की बातों का विरोध करते हुए रमेश ने कहा, “मैंने वैज्ञानिक उपायों से खेती की तो यह बेहतरीन फसल हुई है। कोई भूत-प्रेत या चमत्कार नहीं है।”
इस पर जानगुरु ने कहा, “किन्तु मुझे तो लग रहा है कि गांव में एक के बाद एक मवेशियों की मौत के पीछे भी तुम्हारे पालतू भूत का हाथ है।”
जानगुरु की इस बात से मानिक के परिवार की मुश्किलें और बढ़ गर्इं। गांव वाले कहने लगे, “मानिक के घर में ज़रूर भूत का वास है। उसकी मदद से ही मानिक ने इतनी अधिक उपज की खेती की है। उसी पालतू भूत ने मवेशियों की जान ली है।” मानिक ने गांव वालों को लाख समझाने की कोशिश की किंतु उन्होंने तय किया कि, “मानिक के घर में भूत की जांच किसी अन्य जानगुरु से करवानी पड़ेगी।”

तब मानिक और रमेश को लेकर भीमशोल गांव के लोग ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले में पटीपुर गांव में विधातासम नामक एक जानगुरू के पास गए। जानगुरु ने सबकी हथेली पर दो-दो बूंद सरसों का तेल देकर मुट्ठी बंद करवा दी। कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद उसने एक-एक व्यक्ति की मुट््ठी खोलकर देखना शुरू किया।
अचानक रमेश की हथेली को देखकर विधातासम ने कहा, “गांव वालों यह देखो, रमेश की हथेली पर सरसों के तेल में बाल का एक टुकड़ा है! रमेश के घर में भूत है। यह भूत मानिक को लाभ पहुंचाता है। चिंता की बात यह है इस भूत के हाथों भीमशोल गांव का भारी नुकसान होने की आशंका है। भूत को जितना जल्द हो सके महतो के घर, गांव से खदेड़ देने में ही गांववालों की भलाई है। जब तक मानिक भूत को बाहर नहीं निकाल फेंकता है तब तक उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाए।” जानगुरु ने लोगों से मोटी रकम भी ली।

गांव लौटने के बाद लोगों ने फिर पंचायत बुलाई और फरमान जारी किया कि, “जब तक मानिक अपने घर से भूत को खदेड़ नहीं देता है तब तक उसका पूरा परिवार समाज से बहिष्कृत रहेगा। गांव का कोई भी आदमी मानिक के घर के पास से नहीं गुज़रेगा। उसकी ज़मीन में खेती करने कोई नहीं जाएगा। यदि किसी ने भी पंचायत के फरमान का उल्लंघन करने की कोशिश की तो उसका भी हश्र मानिक महतो जैसा होगा।”

इस फरमान के बाद परिवार का गांव में जीना मुश्किल हो गया। खुद को गांव के मुखिया कहने वाले मस्तान किस्म के लोग मानिक को जान से मारने की धमकी भी देने लगे। अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मानिक ने पुलिस व प्रशासन से मदद की गुहार लगाई। इस पर पुलिस ने गांव वालों को सचेत भी किया। इसके बाद तो महतो परिवार की मुश्किलें और भी बढ़ गईं।
अंतत: भूत पालने के आरोप से मुक्ति दिलवाने के लिए मानिक महतो ने भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (साइंस एंड रेशनालिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) को लिखित रूप से आवेदन किया।

उपरोक्त बातों का ज़िक्र करते हुए युक्तिवादी समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ने युक्तिवादी कार्यकर्ताओं का दल भीमशोल गांव भेजा। जिन्हें लौकिक तरीके से इस अंधविश्वास को दूर करना था। दल के गांव की ओर रवाना होने की तैयारी में मीडिया में यह खबर प्रचारित की गई कि युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ता मानिक महतो से मुलाकात करने के लिए भीमशोल गांव में आ रहे हैं।

गांव पहुंचने से पहले मिदनापुर शहर के अनिंद्य सुंदर मंडल के गेस्ट हाउस में समिति के कार्यकर्ताओं की बैठक हुई। गेस्ट हाउस की मालकिन ने कहा, “सुना है आप सब भीमशोल गांव जाने वाले हो। आप लोग मेरे बेटे जैसे हो। मेरी बात मानो, भीमशोल गांव मत जाओ, वहां बहुत खतरा है।” मैंने कहा, “आंटी ज़्यादा चिंता न करें, हम सुरक्षित लौट आएंगे।” मैं, सुमन, अनिंद्य समेत कुल 8 दोस्त भीमशोल गांव के लिए रवाना हो गए। लगभग 3 घंटे बाद शालबनी की सातपाटी ग्राम पंचायत पहुंचकर हमने पंचायत प्रधान आरती बास्के और उप-प्रधान परिमल धर से मुलाकात की और कहा, “हम भीमशोल गांव में भूत पालने के आरोप में समाज से बहिष्कृत मानिक महतो के घर पर जा रहे हैं। साथ ही हम गांव में अंधविश्वास के खिलाफ गांववालों को जागरुक करने के लिए ‘अलौकिक नहीं, लौकिक’ कार्यक्रम भी करने वाले हैं। आप हमें गांव पहुंचाने की व्यवस्था कर दें और आप भी हमारे कार्यक्रम में उपस्थित रहें।” पंचायत प्रधान ने हमें भीमशोल गांव ले जाने के लिए एक छोटी गाड़ी और साउंड सिस्टम की व्यवस्था कर दी। पूरी खबर कवर करने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कई पत्रकार भी हमारे साथ भीमशोल गांव के लिए रवाना हुए।

गाड़ी मानिक महतो के घर से करीब 2 सौ मीटर दूर थी कि अनिंद्य मानिक महतो के घर जाने हिचकने लगे। मैंने कहा, “ठीक है। तुम यहीं रहो। मैं और सुमन मानिक के परिवार से मुलाकात कर उनके घर के सामने ही कार्यक्रम करेंगे। यदि हमने महतो परिवार से मुलाकात नहीं की तो हमारा भीमशोल आने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।” अंतत: अनिंद्य मानिक के घर चलने के लिए तैयार हो गया।
हम सब मानिक के घर पर पहुंचे। हमें घर में आते देख मानिक महतो खड़े हो गए “आज करीब छ: महीने बाद कोई हमारे घर पर आया है। यह देख हमें जो खुशी हो रही है वह बयां नहीं कर सकता हूं।”
तभी रमेश बाहर आया। रमेश से हाथ मिलाते हुए मैंने कहा,“हम युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ता हैं। हम आपके घर के सामने ‘अलौकिक नहीं, लौकिक’ कार्यक्रम करने वाले हैं। आपकी थोड़ी मदद की ज़रूरत है।”

रमेश हमें एक कमरे में ले गया। जहां हमने कार्यक्रम के लिए लाई सामग्री रखी। घर से एक टेबल और 2 कुर्सी लाकर घर के सामने रखी। कुछ ही देर में एक अस्थायी कार्यक्रम मंच बनकर तैयार हो गया। हमने लाउडस्पीकर पर आवाज़ लगाई, “हम युक्तिवादी समिति के कार्यकर्ता हैं। कोलकाता से आए हैं। आपके सामने एक कार्यक्रम पेश करने वाले हैं। आप आकर देखें।” लोग मंच के सामने इकट्ठे होने लगे।
सुमन ने टेबल पर मिट्टी की एक कटोरी में थोड़ी-सी सूखी लकड़ी रखी और एक बोलत से पानी जैसा तरल चम्मच में लेकर कटोरी में रखी सूखी लकड़ी पर बूंद-बूंद गिराते हुए ओंम-हिंग-किं्रग..मंत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ ही पल में कटोरी से धुआं निकलने लगा और आग जल उठी। उपस्थित लोग आश्चर्यचकित रह गए।

अब एक खाली सूपड़ा और एक गमछा लेकर मंच पर पहुंचे अनिंद्य ने दर्शकों से कहा, “क्या आप में से 2 लोग मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं?” दो लोग सामने आए। उनके हाथों में गमछा देकर अनिंद्य ने कहा, “आप दोनों गमछे को दोनों किनारों से पकड़ें।” फिर अनिंद्य ने एक मुट्ठी चावल लेकर पूछा, “चावल से मुरमुरा बनाने के लिए क्या-क्या लगता है?” दर्शकों से जवाब आया, “कढ़ाई, आग और बालू।”
एक मुट्ठी चावल सूपड़े पर फैलाकर अनिंद्य ने सूपड़े को गमछे के ऊपर हिलाते हुए मंत्र पढ़ना शुरू किया। देखते ही देखते सूप मुरमुरा से भर गया। लोग पूछने लगे, “यह कैसे हुआ? चमत्कार या जादू से चावल मुरमुरा बन गया?”

कार्यक्रम के बीच में एक पत्रकार ने मेरे कानों में कहा, “आप युक्तिवादी भीमशोल गांव में कार्यक्रम कर रहे हैं, यह खबर गांव के मस्तानों तक पहुंच गई है। वे लोग किसी भी समय आप पर हमला कर सकते हैं। गांव के कुछ मस्तानों ने ही साज़िश रचकर मानिक महतो के परिवार पर भूत पालने का आरोप लगाया है। वे चाहते हैं कि गांव के लोग भूत पालने के आरोप में मानिक महतो के परिवार की हत्या कर दें। इसके बाद वे महतो के घर-ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेंगे। इसलिए कार्यक्रम को बंद कर देने के लिए मस्तान के लोग आप पर हमला कर सकते हैं। यदि आप कहें तो मैं पुलिस को खबर दे सकता हूं।”
मैंने कहा, “पुलिस को गांव आने के लिए कह दें।”
जल्दी ही पुलिस बल पहुंच गया। कुछ ही देर में पंचायत प्रधान आरती बास्के और उप-प्रधान परिमल धर भी यहां पहुंच गए। 

अब मंच पर कांच का एक गिलास, एक बरतन में पानी और थोड़ा आटा रखा गया। पानी से आटा गूंथा गया और छोटी-छोटी कई गोलियां बनाकर एक पत्तल में रखी गर्इं। मैंने दर्शकों से कहा, “भूत-प्रेत का पता लगाने के लिए जानगुरु कुछ कारनामे दिखाते हैं। आज मैं भी ऐसा ही करने वाला हूं।” 

आटे की एक गोली हाथ में लेकर मैंने कहा, “गोली में मंत्र पढ़ा हुआ है। मैं एक-एक युवक का नाम लूंगा और उसके नाम पर गोली गिलास के पानी में डालूंगा। जिसके नाम की गोली पानी में नहीं डूबी तो यह साबित होगा कि उसके घर में भूत बसा हुआ है।”
मैंने एक गोली हाथ में ली। उसमें फूंक मारी और गिलास में डाल दिया। गोली पानी में डूब गयी। सुमन के नाम की गोली भी पानी में डूब गई। लेकिन जब अनिंद्य के नाम पर गिलास में गोली डाली तो वह पानी में तैरने लगी। “यानी अनिंद्य के घर में भूत बसा हुआ है।”

दर्शकों में से एक वयस्क आदमी बोल पड़ा, “रमेश के घर में भूत है। ”
“कौन कहता है? ”
मेरे प्रश्न पर कई लोगों ने एक साथ बोलना शुरू कर दिया, “जानगुरु ने तंत्र-मंत्र से यह साबित कर दिखाया है कि रमेश के घर में भूत है।”
मैंने चुनौती दी, “क्या आप लोग जानगुरु को कार्यक्रम में हाज़िर कर सकते हैं? यदि वह हमारे सामने दोबारा साबित कर दे कि रमेश के घर में भूत है, तो हम उसे 25 लाख इनाम देंगे।”

मैंने आगे कहा, “रमेश के घर में भूत बताने के लिए जानगुरु ने जो कारनामा दिखाया था, वह सिर्फ और सिर्फ धोखाधड़ी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आत्मा का अर्थ चिन्ता, चेतना, चैतन्य या मन होता है। आज आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं की क्रिया-प्रतिक्रिया ही मन या चिंता है। तंत्रिका कोशिकाओं के बिना चिंता, मन या आत्मा का अस्तित्व असंभव है। शरीर की मौत के साथ ही मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं का भी अंत हो जाता है। ऐसे में इनकी क्रिया-प्रतिक्रिया भी समाप्त हो जाती है और साथ में आत्मा भी। बात रही भूत-प्रेत की तो यह बकवास है। वास्तव में अतृप्त आत्माओं या भूत-प्रेत का वजूद ही नहीं होता है। किन्तु जानगुरु जैसे पाखंडी अपना उल्लू सीधा करने के लिए भूत-प्रेत के नाम का डर दिखाकर लोगों को लूटते हैं।”
गांव वाले पूछने लगे, “तो आपने मंच पर जो कारनामे दिखाए, उनके पीछे तंत्र-मंत्र नहीं है? बिना माचिस के लकड़ी में आग कैसे लग गई? सूपड़े के चावल मुरमुरा कैसे बन गए?”

इन कारनामों के पीछे लौकिक रहस्यों का खुलासा करते हुए मैंने कहा, “आपने देखा होगा, सुमन ने एक चम्मच से पानी जैसा तरल कटोरी में गिराया था। वह पानी नहीं बल्कि ग्लिसरीन था और कटोरी में पहले से ही लकड़ी के साथ पोटेशियम परमैंग्नेट रखा हुआ था। पोटेशियम परमैंग्नेट में ग्लिसरीन घुलते ही इनमें रासायनिक क्रिया हुई और आग जल उठी।” चावल से मुरमुरा बनने का भी खुलासा किया गया।
दर्शक पूछने लगे, “आटे की गोली पानी में कैसे तैरने लगी?”

मैंने कहा, पत्तल में रखी गोलियों में से कुछ में थर्माकोल का टुकड़ा भरा हुआ था। ऐसी गोली पानी में डूबने की बजाय तैरने लगी। जानगुरु, तांत्रिक, बाबाओं के पास कोई भी अलौकिक शक्ति नहीं होती है। ये लौकिक तरकीब से कारनामा दिखाते हैं, जिसे देख लोग समझने लगते हैं कि उनके पास अलौकिक शक्ति है।”
युक्तिवादी समिति द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम देखने के बाद गांव वाले एक साथ कहने लगे, “जानगुरु ने गांव वालों से छल किया है। क्या उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती?”

मैंने बताया कि कार्रवाई ज़रूर कर सकते हैं। भारतीय कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ताबीज, कवच, ग्रहरत्न, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक, चमत्कार, दैवी औषधी आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का दावा तक करना जुर्म है। तंत्र-मंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ज्योतिषी, ओझा, जानगुरु, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई जा सकती है।

इसी तरह, ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत किसी भी रोग से मुक्ति दिलवाने के नाम पर दिए जाने वाले ताबीज, कवच, मंत्र युक्त जल आदि को औषधि मानकर बिना लाइसेंस के औषधि के निर्माण, बिक्री तथा विपणन को जुर्म माना जाएगा। मरीज़ की मृत्यु होने पर भारतीय दंड संहिता की धारा एस-320 के तहत दोषी को सज़ा होगी।
इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत कपट पूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित कर आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति सम्बंधी क्षति पहुंचाना शामिल है।   

मैंने कहा, “आप जानगुरु के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराएं। युक्तिवादी समिति आप को हर संभव सहयोग देगी।”
पास खड़े रमेश ने कहा, “मुझे अब भी डर लग रहा है क्योंकि जिस बदमाश मस्तान के इशारे पर सब किया गया, वह यहीं है। मुझे डर है कि आप युक्तिवादियों, पत्रकारों और पुलिस के गांव से चले जाने के बाद मस्तान के लोग मेरे परिवार पर जानलेवा हमला कर सकते हैं। कृपया आप कुछ कीजिए।” यह कहते हुए रमेश ने उस मस्तान की ओर इशारा किया।

मैंने पुलिस को रमेश की बताई बात बताई। पुलिस कप्तान ने आवाज़ लगाकर उस मस्तान को अपने पास बुलाया और जमकर फटकार लगाई। पुलिस की फटकार खाते ही मस्तान ने सिर हिलाते हुए कहा, “सर, वादा करता हूं कि आगे से भीमशोल गांव में किसी भी व्यक्ति या परिवार पर भूत-प्रेत के नाम पर जुल्म नहीं होगा।”
अंतत: मानिक महतो परिवार को भूत पालने के आरोप से मुक्ति मिली। वह एक बार फिर गांव के साथ एक हो गया। (स्रोत फीचर्स)