दुनिया में हर मिनट तीन लोगों के अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित होने की संभावना होती है। और इन तीन में से दो महिलाएं होती हैं। यूएस में 57 लाख लोग अल्ज़ाइमर से ग्रस्त हैं। 2050 तक यह संख्या बढ़कर 140 लाख तक हो सकती है। और, पुरुषों के मुकाबले अल्ज़ाइमर पीड़ित महिलाओं की संख्या दुगनी होगी। एक अनुमान के मुताबिक भारत में अल्ज़ाइमर से पीड़ित लोगों की संख्या करीब 16 लाख है।  
अल्ज़ाइमर के बारे में पूर्व धारणा यह थी कि यह बुरे जीन्स, बुढ़ापे या दोनों के मिले-जुले असर के कारण होता है। लेकिन आज हम जानते हैं कि अल्ज़ाइमर के कारण कई सारे हैं - उम्र, आनुवंशिकी, उच्च रक्त चाप, खानपान और व्यायाम वगैरह। वैज्ञानिकों का मानना है कि अल्ज़ाइमर हमेशा बुढ़ापे की बीमारी नहीं होती है बल्कि यह 40-50 की उम्र में ही मस्तिष्क में शुरू हो सकती है।

पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात है प्रजनन क्षमता। स्त्री-स्त्री में अंतर होते हैं लेकिन सभी ने प्रजनन में गिरावट और रजोनिवृत्ति की शुरुआत को महसूस किया है। पता चला है कि रजोनिवृत्ति प्रजनन शक्ति के अलावा कई अन्य बातों को प्रभावित करती है। रात में पसीना आना, गर्मी लगना और अवसाद जैसे रजोनिवृत्ति के लक्षण अंडाशय में नहीं बल्कि मस्तिष्क में पैदा होते हैं। ये सारे लक्षण एस्ट्रोजन में कमी के कारण होते हैं। हाल के शोध से पता चला है कि एस्ट्रोजन स्त्री मस्तिष्क को बुढ़ाने से बचाता है। यह तंत्रिका गतिविधि को बढ़ाता है और अल्ज़ाइमर रोग की शुरुआत से जुड़े प्लाक को बनने से रोकने में मदद करता है। लेकिन रजोनिवृत्ति के साथ जब एस्ट्रोजन के स्तर में गिरावट आती है तो महिला मस्तिष्क कमज़ोर हो जाता है।

वील कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज की डॉ. लिसा मोस्कोनी ने पीईटी नामक तकनीक से रजोनिवृत्ति के बाद और रजोनिवृत्ति के पहले के महिलाओं के मस्तिष्कों की तुलना की। इससे प्राप्त तस्वीरों से पता चलता है कि दिमाग के कौन-से हिस्से सक्रिय हैं और कौन-से हिस्से निष्क्रिय। वे यह देखना चाहती थीं कि महिलाओं और पुरुषों में अधेड़ावस्था में किस तरह की भिन्नताएं दिखाई देती हैं। यह तकनीक तंत्रिका गतिविधि और अल्ज़ाइमर सम्बंधी प्लाक की उपस्थिति उजागर करती है। शोध से पता चला कि रजोनिवृत्ति के बाद वाली महिलाओं में कम मस्तिष्क गतिविधि थीं और अल्ज़ाइमर प्लाक की संख्या भी ज़्यादा थी। और तो और, जिन महिलाओं को रजोनिवृत्ति की शुरुआत ही हुई थी उनमें भी ये लक्षण पाए गए। शोधकर्ताओं ने इस समूह की महिलाओं के मस्तिष्क और समान उम्र के स्वस्थ पुरुषों के मस्तिष्क में भी बहुत फर्क पाया।

अच्छी बात यह है कि इस शोध से पता चलता है कि 40-50 की उम्र की महिलाओं में इस तकनीक के ज़रिए अल्ज़ाइमर के शुरुआती संकेतों का पता लगाया जा सकता है और इस बीमारी के जोखिम को कम किया जा सकता है। इस बात के काफी प्रमाण हैं कि महिलाओं को एस्ट्रोजन पूरक देना मददगार साबित हो सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसके लिए हार्मोन क्षतिपूर्ति चिकित्सा की प्रभाविता और सुरक्षा पर और शोध करने की ज़रूरत है क्योंकि कुछ मामलों में यह ह्मदय रोग, रक्त का थक्का और स्तन कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है। हो सकता है कि जल्द ही अधेड़ महिलाओं के लिए अल्ज़ाइमर रोग की जांच के लिए मानक तय हो जाएं जैसे कि आज स्तन परीक्षा के लिए हैं। (स्रोत फीचर्स)