भारत डोगरा

वनों के एक महत्वपूर्ण पक्ष को प्राय: उपेक्षित किया गया है। वह यह है कि वनों में बहुत से पौष्टिक खाद्य मिलते हैं। ये पौष्टिक खाद्य आसपास रहने वाले आदिवासियों को सबसे सहजता से उपलब्ध हो सकते हैं व उन्हें इनकी ज़रूरत भी है।
वनों की इस महत्वपूर्ण देन की उपेक्षा करते हुए ऐसी नीतियां अपनाई जा रही हैं जिनसे वनों से मिलने वाले पौष्टिक खाद्यों का बहुत ह्यास हो रहा है। इनमें एक मुख्य नीति है प्राकृतिक वनों के स्थान पर व्यापारिक महत्व के पेड़ों के प्लांटेशन लगाना व पनपाना।

ऐसी हानिकारक नीतियों पर रोक लग सके इसके लिए कुछ संस्थाएं व विशेषज्ञ पोषण की दृष्टि से वनों के महत्व की ओर बार-बार ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है लिविंग फर्म्स। यह संस्था ओड़िशा के रायगढ़ा ज़िले के आदिवासियों के बीच विभिन्न मुद्दों पर कार्यरत है।

इस संस्था ने हाल ही में अन्य संस्थाओं के सहयोग से एक महत्वपूर्ण अनुसंधान रिपोर्ट तैयार की है जिसका शीर्षक है “खाद्य उत्पादक स्थान के रूप में वन”। ओड़िशा के रायगढ़ा व सुन्दरगढ़ ज़िले में यह अध्ययन तीन अन्य सस्थाओं ‘आशा’, ‘दिशा’ व ‘शक्ति’ के सहयोग से किया गया है।
इस अध्ययन में वनों से प्राप्त होने वाले 121 खाद्यों की जानकारी प्राप्त की गई। कोई आदिवासी खाद्यों के लिए एक बार जंगल जाता है तो एक चक्कर में औसतन 4.56 कि.ग्रा. खाद्य प्राप्त होते हैं। आदिवासियों के दृष्टिकोण से यह खाद्य बहुत महत्वपूर्ण बताए गए हैं। वे इन्हें आपस में मिल-बांट कर खाते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व देने में इन खाद्यों का विशेष महत्व है।

प्रतिकूल मौसम व सूखे के वर्ष में व सस्ता राशन समाप्त हो जाने पर इन वनों से प्राप्त होने वाले खाद्य की भूमिका आदिवासियों के लिए और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। जिन वनों में प्राकृतिक विविधता बची हुई है, वहां वर्ष भर कोई न कोई उपयोगी खाद्य वनों से मिलते ही रहते हैं। पोषण के अतिरिक्त इनकी बिक्री से आदिवासियों को कुछ आय भी प्राप्त होती है।
जलवायु बदलाव के दौर में पोषण के इस स्थायी स्रोत का महत्व और बढ़ जाएगा। ये खाद्य स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर व सुरक्षित हैं। इनसे ज़हरीली दवाओं व हानिकारक रसायनों का खतरा नहीं है।

वन खाद्य सम्बंधी आदिवासी समुदायों के पास मूल्यवान ज्ञान का भंडार है जिसका संरक्षण होना चाहिए।
इस सम्बंध में अध्ययन ने ओड़िशा सरकार को अपनी संस्तुति में कहा है कि सरकार इनके महत्व को समझे तथा इसके लिए समुचित अनुसंधान व अध्ययन करवाए। प्लांटेशन जैसी जिन नीतियों से पौष्टिक खाद्यों के इस भंडार की क्षति हो रही है उन नीतियों को छोड़कर प्राकृतिक वनों की रक्षा की नीतियां अपनानी चाहिए। इन प्रयासों से आदिवासी समुदायों को जोड़ना चाहिए ताकि वनों की भली-भांति रक्षा भी हो व यहां से पौष्टिक खाद्य इन समुदायों को उपलब्ध भी होते रहें। (स्रोत फीचर्स)