जीव विज्ञान में एक महत्वपूर्ण सवाल यह रहा है कि एक कोशिका से शुरू करके पूरा जीव कैसे बनता है। अंडे के निषेचन के बाद निषेचित अंडा एक कोशिका से ही बना होता है। इसके विभाजन से बनी सारी कोशिकाएं एक जैसी होती हैं - कहने का मतलब है कि इन सबमें आनुवंशिक सूचना एक ही होती है। सवाल है कि फिर कैसे अलग-अलग कोशिकाएं अलग-अलग ढंग से विकसित होती हैं और अलग-अलग ऊतक व अंग का रूप ले लेती हैं।

इस सवाल का जवाब पाने की कोशिश में दो शोध समूहों ने एक नया तरीका आज़माया है। इन दो समूहों ने विकसित होते भ्रूणों की एक-एक कोशिका में जेनेटिक सूचना की अभिव्यक्ति की पड़ताल की। दरअसल, जब किसी कोशिका में जेनेटिक सूचना का उपयोग होता है, तो कोशिका के केंद्रक में उपस्थित जेनेटिक पदार्थ डीएनए के ज़रूरी हिस्से की प्रतिलिपि कोशिका द्रव्य में पहुंचती है। इसे संदेशवाहक आरएनए (mRNA) कहते हैं। यदि कोशिका द्रव्य में कोई mRNA उपस्थित है, तो माना जा सकता है कि जेनेटिक सूचना के उस हिस्से का उपयोग हो रहा है। तो इन दोनों समूहों ने दो अलग-अलग जीवों (ज़ेब्राा मछली और एक मेंढक) के विकसित होते भ्रूण का शुरुआती अवस्था में अध्ययन किया।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक टीम ने ज़ेब्राा मछली के विकसित होते भ्रूण का अध्ययन निषेचन के बाद 4 घंटे से 24 घंटे की अवधि में सात अलग-अलग समय पर किया। इस दौरान उन्होंने कुल मिलाकर 92,000 कोशिकाओं का अध्ययन किया। निषेचन के 24 घंटे बाद लगभग सारे बुनियादी अंग बनना शुरू हो जाते हैं। हर कोशिका के जीन्स की सक्रियता से पता चलता है कि उसने विकास की कौन-सी राह अख्तियार की है और अंतत: उसकी मंज़िल क्या होगी।
एक-एक कोशिका में जीन-सक्रियता को देखना आसान नहीं है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने एक कोशिका वाले भ्रूण के कोशिका द्रव्य में डीएनए के कुछ विशेष खंड प्रविष्ट करा दिए। कोशिका विभाजन के समय इनमें से कुछ टुकड़े केंद्रक में भ्रूण कोशिका के डीएनए में जुड़ गए। इन खंडों की मदद से शोधकर्ता यह देख पाए कि कौन-सी कोशिका क्या बन रही है।

एलेक्ज़ेंडर शियर के नेतृत्व में एक अन्य समूह ने ज़ेब्राा मछली के भ्रूण में अलग-अलग कोशिकाओं की नियति को देखने के लिए कंप्यूटेशन की एक विधि का सहारा लिया। इस समूह ने 9 घंटे तक हर 45 मिनट में विकसित होते भ्रूण की एक-एक कोशिका में mRNA का विश्लेषण किया और फिर एक कंप्यूटर की मदद से उल्टी दिशा में बढ़ते हुए कोशिकाओं के विकास-मार्ग का पता लगाया। उनके विश्लेषण से पता चला कि शुरुआती भ्रूण कोशिका 25 अलग-अलग किस्म की कोशिकाओं को जन्म देती है। यही प्रयोग एक मेंढक ज़ीनोपस ट्रॉपिकेलिस के साथ भी दोहराया गया। इस प्रयोग में निषेचन के बाद 5 से 22 घंटों तक भ्रूण की 10 अवस्थाओं की 1,37,000 कोशिकाओं का अध्ययन किया गया था।

इन दोनों अध्ययनों से एक आश्चर्यजनक बात पता चली है। आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि जब कोई कोशिका विकास के एक रास्ते पर चल पड़ती है तो फिर वह भटकती नहीं है, मंज़िल तक पहुंचने पर ही रुकती है। किंतु उपरोक्त अध्ययनों का निष्कर्ष है कि कई मर्तबा कोशिकाएं अपनी यात्रा के बीच में रास्ता बदल देती हैं। यह बात उनकी जीन गतिविधि के विश्लेषण में उजागर हुई है। यह भी पता चला है कि कोशिकाओं का भविष्य तभी तय होने लगता है जब भ्रूण कोशिकाओं से बने एक लोंदे जैसा ही होता है। इस दौरान शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं में उत्परिवर्तन के असर को भी परखा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका यह शोध कार्य स्टेम कोशिका सम्बंधी अनुसंधान में काफी सहायक होगा। (स्रोत फीचर्स)