एस. अनंतनारायण

आधुनिक जीवन और विज्ञान में वक्त का हिसाब सटीकता से रखना बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान मानक घड़ियां अत्यंत सटीकता से समय बता सकती हैं। यह घड़ी परमाणु के ऊर्जा स्तरों में अंतर पर आधारित है। किंतु परमाणु के ऊर्जा स्तर वातावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं। इस मामले में परमाणु नाभिक ज़्यादा महफूज़ होते हैं। यदि परमाणु नाभिक के अंदर के ऊर्जा स्तर में भी इसी तरह के अंतर हों तो ज़्यादा दृढ़ घड़ी बनाई जा सकती है। 

जर्मनी के मयूनिख, डैमस्टैड और मैन्स स्थित संस्थान के शोधकर्ताओं ने नेचर पत्रिका में बताया है कि उन्होंने थोरियम तत्व के नाभिक में एक संक्रमण का पता लगाया है। थोरियम परमाणु का नाभिक अपने संक्रमण के दौरान अल्ट्रावायलेट प्रकाश का फोटॉन उत्सर्जित करता है। सिद्धांतों के आधार पर दशकों से ये अनुमान था कि परमाणु नाभिक के ऐसे संक्रमण के आधार पर घड़ी बनाई जा सकती है पर अब तक इसे प्रायोगिक तौर पर नहीं किया जा सका था।

समय का सटीक हिसाब रखने का अर्थ है कि कोई ऐसी चीज़ जिसकी लय अपरिवर्तित रहे या निश्चित अंतराल पर टिक-टिक करती रहे। ताकि यह कहा जा सके जितने बार टिक-टिक हुई उतना समय बीत गया। समय मापने के लिए शुरुआत में दिन की लंबाई या एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक की अवधि का उपयोग किया जाता था, और माना जाता था कि इसमें बदलाव नहीं होता। इसके बाद सुविधा के लिए समय को 24 बराबर घंटों में बांटा गया। जैसे-जैसे और भी परिष्कृत उपकरणों के आविष्कार होते गए समय को और भी छोटी इकाइयों, जैसे मिनट, सेंकड वगैरह में मापा जाने लगा। समय मापने के लिए शुरुआत में सूर्य घड़ी, जल घड़ी, रेतघड़ी आदि का उपयोग किया गया। इस क्रम में पेंडुलम का विकास काफी महत्वपूर्ण था। सरल गियर के आविष्कार के साथ घड़ी बनाने के काम में और परिष्कार हुआ और इसने एक कला का रूप ले लिया।

इलेक्ट्रॉनिक्स और क्वार्टज़ क्रिस्टल का कंपन एक अहम मोड़ साबित हुआ। इन क्रिस्टलों का कंपन न केवल एक सेकंड के हज़ारवे बल्कि लाखवें भाग के निश्चित अंतराल को भी दर्शा सकता है। क्रिस्टल को एक इलेक्ट्रॉनिक दोलक (ऑसीलेटर) से जोड़ा जाता है और इस क्रिस्टल के कंपन इलेक्ट्रॉनिक दोलक की आवृत्ति को नियंत्रित करते हैं। क्रिस्टल घड़ी 1930 में विकसित हुई और जल्दी ही व्यापक रुप से अलग-अलग जगहों पर और कामों के लिए उपयोग की जाने लगी। क्वार्टज़ घड़ियां जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय समय की मानक बन गईं। साथ ही रेडियो तरंगों और दूरदर्शन संचार की आवृत्ति की भी मानक हो गईं। इनके विकास से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नए रास्ते खुले। खगोलीय अवलोकन शुद्धता से करना संभव हो गया। दिन की लंबाई में उतार-चढ़ाव का पता महीनों-सालों के अवलोकन की जगह अब कुछ दिनों या हफ्तों के अवलोकन से करना संभव हो गया।

क्रिस्टल घड़ी के बाद परमाणु घड़ी विकसित हुई। यह घड़ी परमाणुओं से उत्सर्जित माइक्रोवेव विकिरण की आवृत्ति का उपयोग करती है और इसे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट से जोड़ दिया जाता जो माइक्रोवेव उत्पन्न करता है। सीज़ियम तत्व का एक स्थिर समस्थानिक सीज़ियम -133 है। इसके परमाणु में विभिन्न कक्षकों में 55 इलेक्ट्रॉन परिक्रमा करते हैं। इन इलेक्ट्रॉन के दो ऊर्जा स्तर होते हैं। इन ऊर्जा स्तरों का अंतर प्रकाश की आवृत्ति (9,19,26,31,770 चक्कर प्रति सेकंड) के बराबर होता है। इस विकिरण की तरंगदैध्र्य 3.26 सें.मी के लगभग होती है जो माइक्रोवेव की सीमा में आती है और इलेक्ट्रॉनिक ऑसिलेटर की क्षमता से मेल खाती है। चूंकि सीज़ियम ऐसी आवृत्ति का प्रकाश अवशोषित कर सकता है जो उपलब्ध तकनीक के अनुकूल है, इसलिए सीज़ियम समय का एक मानक बन गया है। 

सीज़ियम घड़ी में निर्वात से बने चेम्बर में सीज़ियम की वाष्प को सघन माइक्रोवेव क्षेत्र से गुज़ारा जाता है। माइक्रोवेव क्षेत्र में प्रवेश करने के पहले सीज़ियम परमाणुओं को एक चुंबकीय क्षेत्र से गुज़ारा जाता है, जहां उन परमाणुओं को चुना जाता है जो सही अंतर वाले ऊर्जा स्तर कीनिचली पायदान पर होते हैं। माइक्रोवेव क्षेत्र को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि वह सही आवृत्ति के करीब रहे और वह आवृत्तियों के एक संकरे परास में बदलता रहे ताकि वह निश्चित अंतराल पर सही आवृति पर रहे। जैसे ही आवृत्ति सीज़ियम परमाणु के ऊर्जा स्तर से मेल खाती है सीज़ियम के परमाणु ऊर्जा का अवशोषण कर लेते हैं और उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तर पर चले जाते हैं। माइक्रोवेव चेंबर के निकास में परमाणु पुंज को एक बार फिल्टर कर देखा जाता है कि कितने परमाणु़ उच्च ऊर्जा स्तर पर हैं।

उच्च ऊर्जा स्तर के परमाणुओं की अधिकतम संख्या के आधार पर ऑसिलेटर को समायोजित किया जाता है। यह तब तक किया जाता है जब तक आवृत्ति सही नहीं हो जाती है और उच्च ऊर्जा स्तर पर सीज़ियम परमाणु संख्या अधिकतम रहे। इस वक्त आवृत्ति ठीक 9,19,26,31,770 चक्र प्रति सेंकड होती है। इस आवृत्ति पर ऑसीलेटर को लॉक कर लिया जाता है। इसके बाद आवृत्ति को प्रति चक्र के हिसाब से विभाजित किया जाता है ताकि हर सेंकड पर कंपन की संख्या की गणना की जा सके।

आजकल परमाणु घड़ियां सेंकड के अरबवें भाग तक एकदम सटीक हैं। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु समय दुनिया भर की 400 परमाणु घड़ियों का औसत है। यह मानक समन्वित वै·िाक समय अर्थात यूटीसी का आधार है। यूटीसी का उपयोग हवाई जहाज़ों की उड़ानों में, इंटरनेट, अंतरिक्ष और ब्राहृांड विज्ञान में किया जाता है।

नाभिकीय विकल्प
इतनी सटीकता के बावजूद परमाणु घड़ी में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉन ऊर्जा स्तर विद्युत क्षेत्र से या आसपास मौजूद विकिरण से प्रभावित होते हैं। सीज़ियम या अन्य गैसों को अति निम्न तापमान पर ठंडा करके परमाणुओं की गतियां नियंत्रित करने के बावजूद बाहरी प्रभाव देखा जाता है। चूंकि परमाणु का नाभिक बाहरी कारकों से प्रभावित नहीं होता इसलिए इलेक्ट्रॉन कक्षकों के ऊर्जा स्तर की जगह नाभिक के ऊर्जा स्तरों का उपयोग बेहतर होगा।

सैद्धांतिक तौर पर इसे स्वीकार किया गया है। किंतु इसमें दिक्कत यह है कि नाभिक के अंदर कण ज़्यादा मज़बूती से बंधे होते हैं बनिस्बत नाभिक के बाहर इलेक्ट्रॉनों के। और इलेक्ट्रॉन कक्षकों के मुकाबले नाभिक में ऊर्जा स्तर में अंतर हज़ारों-लाखों गुना ज़्यादा होता है। इसलिए इन ऊर्जा स्तरों के बीच संक्रमण की ऊर्जा गामा-किरण फोटॉन या एक्स-रे फोटॉन की आवृत्ति पर होगी। चूंकि हमारे पास इस आवृत्ति पर कोई ऑसिलेटर या लेज़र नहीं है, इसलिए समय की गणना के लिए नाभिकीय ऊर्जा स्तरों का उपयोग करना मुश्किल लगता है। सैद्धांतिक तौर पर सिर्फ थोरियम-229 के नाभिक के अंदर ऊर्जा के दो ऐसे स्तर हैं जिनके बीच अंतर अल्ट्रा-वायलेट फोटॉन के बराबर है। किंतु इसके उच्च ऊर्जा स्तर ‘अति-स्थायी’ होते हैं या संक्रमण लंबे समय बाद करते हैं। और तरंगदैध्र्य 150 से 170 नैनोमीटर है जो लेज़र की पहुंच के बाहर नहीं है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि थोरियम के नाभिक संक्रमण का विचार 1976 में दिया गया था किंतु 1996 और 2007 में कुछ प्रगति के बावजूद थोरियम नाभिक की उत्तेजित अवस्था सिर्फ अनुमानित थी, इसे कभी देखा नहीं गया था। पर संभावना है कि “यह परमाणु भौतिकी और नाभिकीय भौतिकी के बीच एक कड़ी होगी, क्योंकि इसमें अवधारणात्मक रूप से नाभिक के संक्रमण को प्रकाशीय लेज़र की मदद से उत्तेजित किया जा सकेगा। इस संभावना ने इस विचार को जन्म दिया है कि इलेक्ट्रॉन कक्षकों के साथ लेज़र खिलवाड़ के समान नाभिकीय तंत्र के साथ भी किया जा सकेगा। इसके परिणामस्वरूप नाभिकीय लेज़र, नाभिकीय क्वांटम ऑप्टिक्स और नाभिकीय घड़ी का विकास संभव है।”

शोधकर्ताओं ने युरेनियम-233 के विघटन से बने थोरियम-229 परमाणु के साथ प्रयोग किए। युरेनियम के विघटन से बने थोरियम के परमाणु आयनित अवस्था में होते हैं जिनमें इसके परमाणु अपने कक्ष से दो-तीन इलेक्ट्रॉन गंवा चुके होते हैं। हालांकि नाभिक ऊर्जा की उत्तेजित अवस्था में होता है लेकिन ऐसा परमाणु एक और इलेक्ट्रॉन गंवाकर अपनी ऊर्जा नहीं खो सकता। अत: इस विघटन से नाभिक में रेडियोएक्टिव बदलाव होता है। इसके विपरीत उदासीन थोरियम-229 परमाणु आसानी से अपने इलेक्ट्रॉन गंवाकर ऊर्जा खो देते हैं।

प्रयोग में व्यवस्था यह की गई थी कि युरेनियम विघटन से बने अन्य अवयव हटा दिए जाएं और थोरियम आयन का उदासीनीकरण किया जाए और फिर उसका अध्ययन किया जाए। इस उदासीन थोरियम में से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन देखने की व्यवस्था की गई थी। शोधकर्ता पीटर जी. थिरोल्फ का कहना है कि  इस तरह से“हम उत्तेजित अवस्था के परमाणु को अपनी मूल अवस्था में वापस लौटने का मापन कर पाए।”
अल्ट्रा वायलेट किरणों की आवृत्ति पर नाभिकीय संक्रमण करने के लिए अभी और काम करने की ज़रूरत है। नाभिकीय घड़ी के लिए ज़रूरी अनुनाद उत्पन्न करने के लिए विघटन के चलते होने वाले प्रभावों के बारे में और भी अध्ययन ज़रूरी हैं। परंतु इस प्रक्रिया पहला चरण तो स्थापित हो गया है कि ऐसे नाभिकीय संक्रमण का अस्तित्व है।

बेहतर घड़ियों की ज़रूरत
थोरियम 229 की नाभिकीय घड़ी परमाणु घड़ी से कहीं बेहतर और सटीक होगी। यदि परमाणु घड़ियां अत्यंत सटीक हैं तो क्या नाभिकीय घड़ी पर काम करना फायदेमंद होगा। डेलावेयर विश्वविद्यालय की सेफ्रेनोवो का कहना है कि “जब भी घड़ियां परिष्कृत हुई हैं नए-नए अप्रत्याशित उपयोग उभरे हैं।”  इसके अलावा ऐसी घड़ियों की मदद से बुनियादी स्थिरांकों में उतार-चढ़ाव की जांच की जा सकती है।

अति परिष्कृत घड़ियां ब्राहृांड के द्रव्यमान के लिए ज़िम्मेदार ‘डार्क मैटर’ की गुत्थी को सुलझाने में मदद कर सकती हैं। ज़्यादा सटीक घड़ियां जीपीएस सिस्टम को बेहतर करेंगी। एक अहम मदद सर्वेक्षण और संसाधन-खोज में होगी। गुरुत्व बल समय की गति को प्रभावित करता है तो ज़्यादा सटीक घड़ियां सर्वेक्षण की मदद से उस जगह का त्रि-आयामी नक्शा बनाने और भूमिगत खान या तेल के स्रोत पता करने में मदद कर सकती है। (स्रोत फीचर्स)