प्रयोगशाला में

4o से. तापमान पर पानी सबसे अधिक भारी होता है। बर्फ बनने की प्रक्रिया इसके बाद शुरू होती है। कुछ समय पहले तक प्रयोगशालाओं में पानी के इस गुण को जांचने वाला एक सरल-सा उपकरण हुआ करता था, होप उपकरण। इसके बारे में बता रहे हैं मंगल सिंह रघुवंशी।

पिछले अंक में कब जमेगी झील शीर्षक से प्रकाशित लेख में पानी के इस विशेष गुण पर चर्चा की गई थी कि 4o से. पर पानी का आपेक्षिक घनत्व सबसे अधिक होता है। यह गुण नहीं पाया जाता। लेकिन इस गुण का क्या अर्थ निकलता है? क्या कोई तरीका है जिससे इस गुण को जांचा जा सके।

भौतिक शास्त्र की पुरानी किताबों में पानी के इस विलक्षण प्रसार गुण को जांचने का एक प्रयोग उपलब्ध है। इसके लिए ‘होप उपकरण’ से प्रयोग किया जाता था। पुरानी प्रयोगशालाओं में कोनों की धूल झाड़ने पर अभी भी शायद कहीं ये उपकरण मिल सकता है।

‘होप उपकरण’ में तांबे का लम्बा खोखला बेलन होता है जिसके ऊपर एवं नीचे के भागों में कॉर्क द्वारा दो तापमापी लगाने के लिए दो छेद बने होते हैं। इसके बीच वाले हिस्से में लंबे बेलन को घेरे हुए एक बड़ा-सा खोखला कटोरा जुड़ा होता है जिसके निचले भाग में एक नली लगी रहती है।

उपकरण के दोनों छेदों में एक छेद वाले कार्क की सहायता से तापमापी लगाकर लंबे बेलन में साफ पानी भर देते हैं। बीच वाले बड़े कटोरे में हिम मिश्रण भर देते हैं। हिम मिश्रण यानी बर्फ और नमक का मिश्रण। का ताप 00 से. से कम होता है। इसे पानी को बर्फ बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। आइसक्रीम या कुलफी वाले इसका उपयोग खूब करते हैं।

होप का उपकरण: 4o से. पर पानी का आपेक्षिक घनत्व सबसे ज़्यादा होता है यानी वह सबसे भारी होता है, यह इस उपकरण की सहायता से समझा जा सकता है। बीच के कटोरे जैसे बर्तन में भरे बर्फ-नमक के मिश्रण के संपर्क में आने वाली पानी की सतह ठंडी होने लगती है। ठंडी होने पर अन्य सतहों से भारी हो जाने के कारण यह नीचे की ओर बैठने लगती है। नीचे जाने की प्रक्रिया में ये संपर्क में आने वाली सतहों को तो ठंडा करती ही जाती है, साथ ही नीचे का पानी भी ऊपर आने लगता है और मिश्रण के संपर्क में आकर ठंडे होने की प्रक्रिया उसके साथ भी शुरू हो जाती है। इस तरह नीचे की ओर ठंडा पानी जाने के कारण नीचे के तापमापी का ताप गिरने लगता है। ओर तब तक गिरता रहता है जब तक कि पारा 4o से. पर नहीं आ जाता। अंदर के पानी का तापमान 40 से. और कम होने के ऊपर वाले तापमापी का तापमान गिरने लगता है।

हिम मिश्रण से घिरे लम्बे बेलन के बीच वाले हिस्से का पानी ठंडा होने लगता है। शुरुआत में दोनों तापमानी समान ताप (पानी के ताप के बराबर) तापमापी का पारा गिरने लगता है यानी कि नीचे वाले तापमापी का तापमान कम होने लगता है। यह ताप कम होते-होते 40 से. तक गिर जाता है। इसके बाद नीचे वाले तापमापी का पारा गिरना बंद हो जाता है मतलब कि उसका तापमान स्थिर हो जाता है।

ऐसा होने के कुछ समय पश्चात ऊपर वाले तापमापी का पारा भी गिने लगता है। एक समय ऐसा आता है जब इस ऊपर वाले तापमापी का ताप भी 4o से. तक गिर जाता है।

इसके बाद और ठंडा करने के ऊपर वाले तापमापी का ताप 0o से. तक गिर जाता है, परन्तु नीचे वाले तापमापी का ताप 4o से. कम नहीं होता।

इस समय यदि एक तापमापी लंबे बेलन के ऊपर से नीचे ले जाए तो पता चलता है कि ऊपरी भाग में पानी का तापमान 0o से. है जो गहराई के साथ क्रमश: बढ़ते-बढ़ते 4o से.  तक पहुंच जाता है। उससे भी और नीचे जाने पर पानी का तापमान 4o से.  तक पहुंच जाएं।

ताप परिवर्तन की इन क्रियाओं का ग्राफ बनाएं तो कुछ ऐसा बनता है।

अब देखें कि इन अवलोकनों का अर्थ क्या निकलता है, उनसे पानी पर ताप के असर के बारे में क्या पता चलता है:

  1. बेलन के बीच वाले हिस्से में ठंडा होने वाला पानी घनत्व बढ़ने के कारण नीचे जाता है और नीचे का अधिक ताप वाला हल्का पानी (कम घनत्व वाला) ऊपर आने लगता है। यह क्रिया उस समय तक चलती है जब तक नीचे वाले पानी का ताप 4o से. तक न गिर जाए।
  2. 4 से. से कम ताप का पानी 4o से. वाले पानी की तुलना में कम घनत्व का रहता है, इसीलिए और ठंडा करने पर पानी ऊपर की तरफ जाता है और ऊपरी भाग का ताप 00 से. तक गिर जाता है।
  3. 4 से. पर पानी का घनत्व अधिकतम होता है।

मंगत सिंह रघुवंशी - होशंगाबाद ज़िले के सिवनी मालवा कस्बे शास.उ.मा. विद्यालय में व्याख्याता।

'कब जमेगी झील' - संदर्भ के पांचवें अंक में प्रकाशित लेखक - अजय शर्मा।