लुढ़कता सिक्का क्यों चला जाए?

पांचवें अंक में हमने आपसे एक सवाल पूछा था कि जब किसी सिक्के को सतह पर सीधा खड़ा करने की कोशिश करते हैं तो वो आसानी से खड़ी नहीं रहता। पर अगर सिक्के को हल्का-सा धक्का लगाकर लुढ़काते हैं तो वो असानी से खड़ा-खड़ चलने लगता है, ऐसा क्यों होता है? यहां हम दे रहे हैं इस सवाल का जवाब और साथ ही एक नया सवाल।

मुमकिन है इस सवाल को पढ़कर आप कहें - हजूर, सिक्का तो आखिर सिक्का ही रहता है चाहे आप उसे एक जगह खड़ा करने की कोशिश में जुटे रहें या फिर उसे लुढ़काकर चलता कर दें। हां, अगर कुछ फर्क है तो सिर्फ उसकी गति में। आप शायद यह भी सोचें कि - हो न हो, लुढ़कते सिक्के के खड़े रह पाने का राज़ ज़रूर उसकी गति से जुड़ा है। तभी तो लुढ़कते सिक्के की जैसे-जैसे कम होती जाती है, जनाब लड़खड़ाने लगते हैं और कुछ ही देर में चारों खाने चित नज़र आते हैं। आपका ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है और वाजिब भी।

दरअसल सिक्के को खड़ा तो किया जा सकता है। पर खड़े हुए स्थिर सिक्के का संतुलन बड़ा ही कमज़ोर और अस्थिर होता है। सिक्के के संतुलन से हमारा तात्पर्य सिक्के पर (और उसके द्वारा) लगने वाले बलों के संतुलन से है। खड़े हुए सिक्के को ज़रा-सा धक्का, जैसे हवा का हल्का5सा झोंका या फिर ज़मीन का क्षणिक कंपन, मिलते ही उससे जुड़े बलों का संतुलन बिगड़ जाता है। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे धक्कों का प्रभाव लुढ़कते हुए सिक्के पर क्यों नहीं पड़ता? आखिर लुढ़कते हुए सिक्के पर भी वे सब बल उन्हीं दिशाओं में लग रहे हैं जो स्थिर खड़े सिक्के पर लगते हैं। जनाब, इसका राज़ है- लुढ़कते हुए सिक्के का घूर्णन वेग (Angular Momentam)।

घूर्णन वेग के कमाल की चर्चा करने से पहले क्यों न हम इस प्रश्न से जुड़े एक मूलभूत सिद्धांत पर गौर फरमा लें।

वैसे यह ज़रूरी तो नहीं कि  हमारा अनुभव हमेशा इस बात की गवाही दे, पर भौतिकी के एक मूलभूत सिद्धांत (न्यूटन का गति का प्रथम नियम) के अनुसार - कोई भी वस्तु अगर स्थिर है तो स्थिर ही रहती है, और अगर चलायमान है तो उसी गति से उसी दिशा में चलती रहती है, जब तक की उस पर कोई अन्य बल नहीं लगता। यानी वस्तु की गतीय स्थिति (State Of  Motion) बदलने के लिए उस पर किसी बल का लगना ज़रूरी है।

हां, पर यह कदापि ज़रूरी नहीं है कि बल लगने पर किसी वस्तु की चाल में परिवर्तन हो ही जाए या फिर इतना परिवर्तन हो कि आप उसे महसूस कर सकें। यह इसलिए कि, एक वस्तु पर लगने वाला कुल बल उस की चाल में बदलाव लाने में कितना सक्षम है वह इन दोनों बातों पर निर्भर करता है -

अ : उस बल की मात्रा और दिशा क्या है,

ब : और साथ-साथ इस पर भी निर्भर करता है कि - उस चीज़ का जड़त्व और वेग कितना है।

एक वस्तु का जड़त्व और वेग जितना अधिक होगा उसकी गतीय स्थिति में परिवर्तन लाना उतना ही कठिन होता है, यानी उसकी स्थिति में बदलाव लाने के लिए उतने ही अधिक बल की ज़रूरत पड़ेगी। वैसे एक कंचे के माध्यम से यह बात आप खुद परख सकते हैं। एक रुके हुए कंचे को फूंक मारकर लुढ़काइए। यकीनन आप ऐसा कर पाएंगे। अब उसी कंचे को तेज़ी से लुढ़काकर फूंक मारकर देखिए।

अब यह बात सिर्फ वस्तुओं की रेखीय गति से जुड़ी हुई नहीं है। किसी धुरी पर घूमती चीज़ों पर भी यह बंदिश लागू होती है। यानी एक वस्तु जितनी तेज़ गति से घूमेगी उसके घूर्णन वेग को बदलना उतना ही कठिन होगा।

यहां यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी हो जाता हैं। एक दिशा का और दूसरा मात्रा का। वेग में किसी भी प्रकार की तबदीली के लिए बल की आवश्यकता होती है।

चलिए अब वापस जा जाते हैं सिक्के पर। एक लुढ़कता हुआ सिक्का जब डगमगाता है या गिरने लगता है, तो उसके घूर्णन वेग में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन मुख्यत: दिशा का ही होता है। अब एक रुके हुए खड़े सिक्के का घूर्णन वेग तो शून्य ही होगा, जबकि एक तेज़ी से लुढ़कते हुए सिक्के का एक अच्छा-खासा घूर्णन वेग होगा ऐसा माना जा सकता है। इसलिए ज़ाहिर है कि एक खड़े हुए सिक्के को गिराने के लिए जितने बल की ज़रूरत पड़ेगी, उतना बल संभवत: एक तेज़ी से लुढ़कते सिक्के को डगमगाने में भी सक्षम न हो। यानी जिन हल्के हवा के झोकों को रुका हुआ सिक्का झेल नहीं पाता और फर्श का ढेर हो जाता है, उन्हीं हवा के झोकों से बेखबर लुढ़कता हुआ सिक्का चलता रहेगा।

लेकिन कब तक? जी हां, हमेशा के लिए तो नहीं क्योंकि लुढ़कते सिक्के का समय के साथ, घर्षण के कारण, वेग भी क्षीण होता जाएगा और साथ ही साथ छोटे-मोटे धक्कों को झेलने की कुव्वत भी। इसलिए तो हम देखते हैं कि जैसे-जैसे सिक्के की गति धीमी होने लगती है और अंतत: पस्त होकर गिर पड़ता है।

अब तक आपको शायद यह भी अंदाज़ा लग गया होगा कि लट्टू एक पतली-सी नोक पर कैसे घूम पाता है? जी हां, सिर्फ लट्टू या चकरी ही नहीं, अनेक अन्य चीज़ें भी अपने संतुलन और गतिज स्थिति को कायम रखने के लिए घूर्णन वेग की मदद लेती हैं।

अब चूंकि इतनी बात हो ही चुकी है तो क्यों न एक छोटा-सा प्रयोग भी कर लिया जाए। आखिर, हाथ कंगन को आरसी क्या...। एक साइकिल के पहिए को एक एक्सल पर फिट कर लीजिए। केवल पहिए। की रिम हो तो भी चलेगा। एक्सल पकड़कर बिना घूमते हुए, स्थिर पहिए की दिशा बदलना तो आसान है, की कोशिश करके देखें। क्या हुआ? काफी मेहनत करनी पड़ी! भई, आखिर घूर्णन वेग का कमाल है, थोड़ा-बहुत चक्कर खाएंगे ही।


इस बार का ज़रा सिर तो खुजलाइए का सवाल पेज नंबर 79 पर