सुशील जोशी

आवर्त सारणी के बारे में हम सब पता नहीं कब से पढ़ते आए हैं और औरों को समझाते भी रहे हैं। परन्तु शायद ही इस बात की तरफ कभी ध्यान जाता है कि तत्वों के इस तरह से जमाए जाने को भला आवर्त सारणी क्यूं कहते हैं।

आवर्ती यानी किसी चीज़ का बार-बार होना/घटना।

काफी समय पहले से वैज्ञानिकों को कई तत्वों में कुछ समानताएं नज़र आने लगी थीं। न सिर्फ तत्वों में समानताएं मिली परन्तु धीरे-धीरे यह भी अहसास होने लगा कि अगर तत्वों को उनके परमाणु भार के क्रम में जमाया जाए तो समान गुणों वाले तत्वों में एक नियमितता भी दिख रही है। बस, तबसे खूब सारे वैज्ञानिक उस धुंधले से अहसास को एक नियम के सांचे में बांधने की कोशिश में लग गए।

जैसे-जैसे परमाणु भार की समझ और बेहतर बनी वैसे-वैसे बहुत से वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के प्रयास किए और आखिर में मेण्डेलीव ने 1889 में एक ढांचा दिया जिसने न सिर्फ तब तक की जानकारी को समेटा, परन्तु आगे के लिए कई भविष्यवाणियां भी कीं।

उसके द्वारा बताई हुई तत्वों की आवर्त सारणी आज तक बरकरार है - और उसे आवर्त सारणी इसलिए कहा गया क्योंकि उसमें समान गुणों वाले परमाणु एक नियमित अंतराल के बाद मिलते चले जाते हैं - और इन्हीं गुणों को ध्यान में रखते हुए सब तत्वों को एक क्रम, एक ढांचे में जमाया गया है।

विज्ञान में ऐसी स्थिति काफी रोचक होती है जब आपको मालूम हो कि यहां कुछ है, लेकिन क्या है यह नहीं मालूम। कुछ ऐसी ही स्थिति में बनाई थी मेण्डेलीव ने आवर्त सारणी, जब वो अन्य तत्वों को एक नियम के अनुसार एक क्रम में जमाते हुए बीच में खाली स्थान छोड़ता गया कि यहां कोई अन्य तत्व है, जिसे अभी खोजा नहीं गया है। पूर्वानुमान के आधार पर हुए आवर्त सारणी के विकास की कहानी।

कई बार विज्ञान में ऐसे निर्णायक मोड़ आए हैं जब ज्ञान से ज़्यादा महत्व अज्ञान का रहा। मगर अज्ञान का महत्व तभी है जब आपको यह पता हो कि आप ‘क्या नहीं जानते’। जब आप मानकर बैठ जाएं कि जानने योगय सब कुछ हम जानते हैं ऐसी स्थिति विज्ञान के विकास के लिए काफी खतरनाक होती है। यह बात काफी खतरनाक होती है। यह काफी पेचीदा नज़र आती है मगर यहां मैं एक ठोस उदाहरण के ज़रिये इसे प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा। यह उदाहरण है पदार्थो के वर्गीकरण से संबंधित और हम बात करेंगे सुप्रिसद्ध आवर्त सारणी की।

यह तो सब जानते ही हैं कि रसायन शास्त्र को एक ठोस सैद्धांतिक बुनियाद देने में आवर्त सारणी की भूमिका सर्वोपरि नहीं, तो निहायत महत्वपूर्ण अवश्य रही है। दरअसल 19वीं सदी के अंत में आवर्त नियम व आवर्त सारणी की रचना ने पदार्थों की संरचना संबंधी अनुसंधान को नई दिशा दी। परन्तु कहानी आवर्त सारणी से काफी पहले शुरू होती है। इस कहानी को, आवर्त नियम के रचयिता मेण्डेलीव ने निम्ब शब्दों में समेटा है:

"आवर्त नियम दरअसल उन तथ्यों व सामान्यीकरण का सीधा नतीजा था जो 1860-70 के दशक के अन्त तक एक एकत्रित हो चुके थे। यह (आवर्त नियम) उस सारी जानकारी की कमोवेश व्यवस्थित अभिव्यक्ति ही है।"

तो वे तथ्य और सामान्य सिद्धांत क्या थे, जिनकी ओर मेण्डेलीव ने इशारा किया है। 

तत्वों की तिकड़ियां  
1817 में जर्मन वैज्ञानिक डॉबराइनर ने तत्वों का एक तरह का वर्गीकरण करने का प्रयास किया। (गौरतलब है कि 1817 में तत्वों के परमाणु भार सही-सही आंके नहीं गए थे। दरअसल तत्वों के परमाणु भार आंकने की पद्धति पर सर्वसम्मति तो कैनिज़रों के प्रयासों से 1850 के बाद ही संभव हुई।) बहरहाल डॉबराइनर ने दिखाया था कि स्ट्रॉन्शियम का परमाणु भार कैल्शियम व बेरियम के परमाणु भारों का औसत है:

कैल्शियम 20
स्ट्रॉन्शियम 43.5
बेरियम 68.5

ध्यान रखने की बात कि 1817 में उपरोक्त परमाणु भार ही मान्य थे। आगे चलकर 1829 में डॉबराइनर ने इस तरह की कई अन्य ‘तिकड़ियों’ की खोज की।

डॉबराइनर के काम को 1827 से 1858 के बीच ड्यूमास, ग्मेलिन, लेन्सन, पेटनफोकर तथा कुक ने आगे बढ़ाया। इन रसायनविदों ने बताया कि समान तत्वों के समूहों को ‘तिकड़ियों’ तक सीमित रखना ज़रूरी नहीं है। ऐसे समूह तिकड़ी से बड़े भी हो सकते हैं। मसलन डॉबराइनर की ‘तिकड़ी’ क्लोरीन-ब्राोमीन-आयोडीन (हैलोजन) के साथ फ्लोरीन को रखा जा सकता है। इसी प्रकार कैल्शियम-बेरियम-स्ट्रॉन्शियम के साथ मेग्नीशियम को भी रखा जा सकता है। ऐसे कई अन्य समूह भी बनाए गए।

मुख्य बात यह थी कि समान तत्वों के समूह बनाकर उनके परमाणु भारों के बीच में संबंध पहचाने जा रहे थे। खासतौर से ड्यूमास ने इस तरह के संबंधों की खोज में काफी योगदान दिया। उसने समान तत्वों के परमाणु भारों के बीच के इन संबंधों को काफी पेचीदा समीकरणों के रूप में व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की।

लगभग इसी समय आर.स्ट्रेकर ने तत्वों के परमाणु भारों के आकड़ों को एक स्थान पर रखा और विश्लेषण के बाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही - “यह संभव नहीं लगता कि समान गुणों वाले तत्वों के बीच परमाणु भारों में दिखने वाले ये संबंध मात्र संयोग हैं। बहरहाल इन संबंधों के नियम की खोज को भविष्य पर ही छोड़ना होगा।”

मतलब यह बात पहचानी जाने वाली थी कि समान गुणों वाले तत्वों के परमाणु भारों के बीच कोई संबंध अवश्य है और इस संबंध को किसी नियम के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। अलबत्ता इस नियम का ओर-छोर पता नहीं चल रहा था।

इसी तारतम्य में चानकुट्र्वाइज़ तथा न्यूलैण्ड्स का उल्लेख भी ज़रूरी है।

राज़ क्या संख्याओं में है?  
चानकुट्र्वाइज़ ने एक बेलन लिया। उसकी परिधि को 16 बराबर भागों में बांट लिया और लम्बाई में भी बराबर दूरी पर निशान लगा लिए। अब उसने तत्वों के परमाणु भारों को क्रम से इन चौखानों पर ‘प्लॉट’ किया। उसने पाया कि इस तरह ‘प्लॉट’ करने पर जो सर्पिलाकार आकृति मिलती है उसमें समान गुणों वाले तत्व ठीक एक-दूसरे के ऊपर या नीचे स्थित होते हैं। चानकुर्ट्वाइज़ ने इस आधार पर 1862 में निष्कर्ष दिया, “तत्वों के गुण दरअसल संख्या के गुण हैं। कितना दूरगामी निष्कर्ष था यह। इसमें भी एक नियम की उपस्थिति का पूर्वाभास मिलता है।

या सरगम में?  
न्यूलैण्ड्स ने जो प्रयास किया वह भी उतना ही महत्वपूर्ण था। न्यूलैण्ड्स ने संगीत सरगम से प्रेरणा लेकर तत्वों को आठ-आठ के समूहों में रखा। उसने पाया कि परमाणु भार के क्रम में जमाने पर हर आठवां तत्व पहले तत्व के समान होता है। यानी सात स्तम्भ बनाने पर ऊपर-नीचे एक समान गुणों वाले तत्व आते हैं।

न्यूलैण्ड्स ने जब लंदन की केमिकल सोसायटी की मिटिंग में 1866 में अपना पर्चा पढ़ा तो उसकी काफी आलोचना हुई। एक सदस्य ने तो यहां तक पूछ लिया कि क्या न्यूलैण्ड्स ने तत्वों को वर्णमाला के क्रम में जमाकर देखा है? हो सकता है कि उससे भी कुछ पैटर्न निकल आए।

मज़ाक की बात अलग, मगर न्यूलैण्ड्स के पर्चे की काफी संजीदा आलोचना भी हुई। परन्तु उस अलोचना में जाने से पहले अब तक की प्रगति का जायज़ा लेना लाभप्रद होगा क्योंकि इसमें एक महत्वपूर्ण बात छिपी है।

हमने देखा कि डॉबराइनर, ड्यूमास, ग्मेलिन, लेन्सन, पेटनफोकर, कुक, स्ट्रेकर आदि रसायनविदों ने समान गुणों वाले तत्वों के बीच परमाणु भार संबंधी पैटर्न खोजने की कोशिश की। तरह-तरह की जमावट देखकर वे इतना तो समझ पाए कि परमाणु भार का तत्वों के गुणों से कुछ संबंध ज़रूर है।

फिर हमने चानकुर्ट्वाइज़ और न्यूलैण्ड्स के प्रयासों को देखा। पूर्व के प्रयासों और इन दो रसायनों के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण अंतर है। पूर्व के रसायनज्ञ मात्र समान तत्वों के आपसी संबंधों पर गौर कर रहे थे जबकि चानकुर्ट्वाइज़ तथा न्यूलैण्ड्स ने सारे ज्ञात तत्वों को परमाणु भार के क्रम में जमाकर फिर तत्वों में गुणों की पुरावृत्ति को देखने का प्रयास किया। यानी ये दो लोग एक अनजाने नियम को लागू करने व उसकी पुष्टि करने की कोशिश में लगे हुए थे।

खासतौर से न्यूलैण्ड्स ने इसे एक ठोस नियम के रूप में व्यक्त भी कर दिया था - यह बात उसके ऊपर बताए गए पर्चे के शीर्षक से ही स्पष्ट है: ‘अष्टक का नियम और परमाणु भारों के बीच संख्यात्मक संबंधों के कारण’। केमिकल सोसायटी की उस दिन की रिपोर्टिंग में कहा गया था कि “लेखक एक नियम की खोज का दावा करता है जिसके मुताबिक.....”।

अष्टक’ की आलोचना:  
इस संदर्भ में न्यूलैण्ड्स के प्रस्ताव की आलोचना विशेष महत्व रखती है। शायद इसी आलोचना में भावी प्रगति के बीज छिपे थे। न्यूलैण्ड्स के पर्चे की आलोचना तीन मुद्दों पर की गई थीं:

  1. कि इसमें मान लिया गया है कि सारे तत्वों की खोज हो चुकी है। इशारा यह था कि जब नए तत्व खोजे जाएंगे तो उनका क्या हो - सरगम में वे कहां रखे जाएंगे? इस आलोचना का एक ठोस कारण यह था कि न्यूलैण्ड्स द्वारा यह प्रस्ताव दिए जाने से पूर्व के चंद वर्षो में चार नए तत्व (थैलियम, इण्डियम, रीज़ियम और रूबिडियम) खोजे गए थे।
  2. हर आठवें तत्व पर गुणों की पुनरावृत्ति की दृष्टि से न्यूलैण्ड्स को कुछ जुगाड़ भी जमाने पड़े थे। मसलन उसने कोबाल्ट व निकल को एक ही स्थान पर रख दिया था। यदि इन्हें अलग-अलग रखा जाता तो क्लोरीन के बाद आठवें स्थान पर ब्राोमीन नहीं आ पाती। ऐसी कई विसंगतियां थीं।
  3. कई सारे असमान तत्व एक ही समूह में आ गए थे। यह आप तालिका में भी देख सकते हैं।

वास्तव में न्यूलैण्ड्स के अष्टक नियम को सर्वाधिक धक्का पहुंचाने वाली आलोचना की दिक्कतों से तो थोड़ा रद्दोबदल करके निपटा जा सकता था। मगर पहली आलोचना का क्या जवाब दिया जाता?

इस आलोचना का जवाब देने के लिए अवधारणा के स्तर पर और वैज्ञानिक विधि के स्तर पर एक सर्वथा नई सोच की ज़रूरत थी। यहीं मेण्डेलीव का पदार्पण होता है।

उसकी अपनी नज़र में:   
मेण्डेलीव ने 1889 में लिखे एक पर्चे में उन परिस्थितियों का ज्रि़क किया है जिनमें वह आवर्त सारणी और आवर्त नियम की रचना कर पाया था। एक उम्दा वैज्ञानिक की तरह मेण्डेलीव ने अपने से पहले के सारे वैज्ञानिकों के कार्य को उचित सम्मान दिया है। साथ ही उसने उनके प्रयासों की बुनियादी त्रुटि का भी स्पष्ट उल्लेख किया है। मेण्डेलीव के उसी पर्चे का निम्न अंश इन दो चीज़ों (पूर्ववर्तियों के काम का सम्मान और सकारात्मक आलोचना) का सुन्दर मिश्रण है:

“जमावट के ऐसे प्रयासों और ऐ नज़रियों में ही आवर्त नियम की सच्ची पहल देखी जा सकती है। इसकी बुनियाद 1860 व 1870 के बीच बन चुकी थी और इस दशक के अंत तक इसकी (आवर्त नियम की) निश्चित अभिव्यक्ति न हो पाने का कारण, मेरी राय में, यह है कि मात्र समान तत्वों के परमाणु भारों के बीच संबंध खोजने का विचार उस दौर में प्रचलित विचारों के लिए अनजाना था और इसीलिए न तो चानुकुर्ट्वाइज़ का बेलन और न ही न्यूलैण्ड्स का अष्टक किसी का ध्यान खींच सका। मगर चानुकुर्ट्वाइज़ और न्यूलैण्ड्स......दोनों ही आवर्त नियम के काफी करीब थे और इसके सबक चुके थे।”

संक्षेप में, मेण्डेलीव ने अपने पहले के सारे प्रयासों का अध्ययन करके तीन महत्वपूर्ण सबक सीखे थे:

  1. कि जब तक सारे तत्वों को शामिल नहीं किया जाता, तब तक कोई नियम नहीं बनाया जा सकता।
  2. पहले के सभी प्रयासों में सर्वोपरि चीज़ नियम नहीं बल्कि तथ्य थे। मतलब यह कि एक नियम बनाकर उसके आधार पर तथ्यों को व्यर्वस्थित करने की कोशिश नहीं की गई थी। कोशिश यह की गई थी कि उपलब्ध तत्वों को व्यवस्थित करके नियम ढूंढा जाए।
  3. इन सब प्रयासों का एक सबक यह भी था कि इनमें नए खोजे जाने वाले तत्वों के लिए कोई स्थान न था। मेण्डेलीव को यकीन हो चुका था कि भविष्य में कई तत्व खोजे जाएंगे।

मेण्डेलीव ने अपना काम इन तीन बातों को ध्यान में रखकर शुरू किया।

संख्या और गुण जब एक साथ देखे  
इस काम के लिए मेण्डेलीव ने हर तत्व का एक कार्ड बनाया जिस पर उसका परमाणु भार तथा प्रमुख गुणधर्म लिख लिए। अब इन्हें परमाणु भार के क्रम में जमाना शुरू किया। यह काम खासा मुश्किल साबित हुआ। कई तत्वों के परमाणु भारों को लेकर विवाद थे। (वैसे तब तक परमाणु भारों के निर्धारण को लेकर क्या तरीके अपनाए जाएं इसके बारे में एकराय बनने लगी थी। परमाणु भार के निर्धारण में तुल्यांकता का महत्व स्थापित हो चुका था। मेण्डेलीव ने इन दोनों बातों का फायदा उठाया।) मेण्डेलीव को कई मर्तबा यह तय करना पड़ा कि वह कौन-सा परमाणु मानें। मसलन बेरिलियम को लेकर दो मत थे - एक था कि उसका परमाणु भार 9 है और दूसरा था कि परमाणु भार 14 है। मेण्डेलीव ने तय किया कि 9 का आंकड़ा ठीक है! यह निर्णय उसने कैसे लिया? निर्णय लेने की वजह यह थी कि मेण्डेलीव सिर्फ परमाणु भार नामक एक अमूर्त संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि तत्वों के रासायनिक गुणों की जानकारी के आधार पर भी समूहीकरण कर रहा था। अत: उसके लिए यह कोई मशीनी क्रिया नहीं थी कि मेण्डेलीव को एक नियम की उपस्थिति पर पूरा भरोसा था।

बेरिलियम का फैसला कर लेने के बाद कार्डों की जमावट कुछ इस तरह बनी:

इससे स्पष्ट है कि मेण्डेलीव ने तत्वों को मात्र परमाणु भार के क्र में जमाने का मशीनी कार्य नहीं किया। जहां उसे लगा कि परमाणु भार के क्रम में जमाने से समान तत्व ऊपर-नीचे नहीं आ रहे हैं वहां उसने परमाणु भार पर संदेह किया। यदि वह ऐसा न करता तो आवर्त नियम कभी न उभरता।

उदाहरण के लिए मात्र परमाणु भार के आधार पर तत्वों की अगली कतारें निम्नानुसार बनतीं (नीचे दूसरी टेबल):

पोटेशियम तो सोडियम के नीचे और कैल्शियम, मेग्नीशियम  के नीचे ठी ही आ गए। मगर वैनेडियम को बोरॉन-एल्युमिनियम के नीचे रखना मेण्डेलीव को ठीक नहीं जंचा। उसने वैनेडियम का कार्ड अलग करके उसकी जगह प्रश्न चिन्ह वाला एक कार्ड रख दिया।

चलिए, हो गया। अब वैनेडियम का  कार्ड अगले स्थान पर यानी कार्बन-सिलिकॉन के नीचे आना था। मेण्डेलीव ने वह भी नहीं किया। उसकी जगह टाइटेनियम का कार्ड रख दिया। यानी उसने मनमर्ज़ी से टाइटेनियम का परमाणु भार 52 से बदलकर 48 कर दिया।

इसका अर्थ यही है कि मेण्डेलीव को दृढ़ विश्वास था कि रासायनिक गुण परमाणु भार के अनुसार एक आवर्त चक्र में बदलते हैं। उसे यह भी भली भांति पता था कि उस समय की पदार्थो के रासायनिक गुणों से संबंधित जानकारी ज़्यादा भरोसेमंद थी। परमाणु भारों को लेकर तो कई विवाद थे, दुबिधाएं थीं। अत: उसने इस दुविधा के मद्देनज़र निर्णय किया कि यदि बदला जाएगा, तो परमाणु भार! यह काफी दु-साहसी निर्णय कहा जाएगा।

बहरहाल प्रश्न चिन्हों के साथ तत्वों की कतारें कुछ यों बनीं:

और बनने लगे पूर्वानुमान
इन प्रश्न चिन्हों वाले कार्डों का महत्व क्या था? इनका अर्थ था कि ये तत्व अभी खोजे जाने हैं। मसलन कैल्शियम (40) और टाइटेनियम (48) के बीच एक तत्व अवश्य ही मौजूद होगा जो तब तक खोजा नहीं गया था। प्रकृति के एक नियम के प्रति विश्वास का यह उम्दा नमूना है। मेण्डेलीव ने अपने पर्चे में सबसे पहली ‘भविष्यवाणी’ यह थी कि इस तत्व का परमाणु भारों का औसत यानी लगभग 44 होगा। इसके गुणों का भी उसने पूर्वानुमान किया था।

बाएं - अपने आवर्त नियम को लेकर 1 मार्च 1869 को मेण्डेलीव द्वारा अलग-अलग वैज्ञानिकों को भेजा गया पर्चा: इस पर्चे में जहां-जहां प्रश्नवाचक चिन्ह दिख रहे हैं मेण्डेलीव का कहना था वहां कोई तत्व आएंगे, जिनको खोजा जाना बाकी है।

दाएं - मेण्डेलीव की आवर्त सारणी पर आधारित आवर्त सारणी जो अभी उपयोग में लाई जाती है।

यहां तक कि इस तत्व के लगभग आपेक्षिक घनत्व की ‘भविष्यवाणी’ भी मेण्डेलीव ने कर दी थी। उसने यह भी बताया था कि प्रकृति में यह तत्व किस अवस्था में मिलेगा। यह तत्व (स्कैण्डियम) सन् 1879 में मेण्डेलीव के जीते जी ही खोजा गया1 इसके गुण भविष्यवाणी के अनुरूप ही पाए गए। ‘खाली स्थानों’ ने ‘भविष्यवाणी’ की जो संभावना प्रस्तुत की उसने आवर्त नियम व मेण्डेलीव की सारणी को व्यापक मान्यता दिलवाने में बहुत मदद की। इसके अलावा नए तत्वों की खोज को गति भी मिली।

खाली स्थानों वाली आवर्त सारणी  
मेण्डेलीव की पहली आवर्त सारणी (1871) में 35 खाली स्थान थे। उसके द्वारा बनाई गई अंतिम सारणी (1906) में 25 खाली स्थान रह गए थे। इसमें शून्य समूह आ चुका था (यानी आजकल की आर्वत सारणी में जो सबसे पहली खड़ी लाईन होती है)। मेण्डेलीव ने कुल 17 तत्वों के परमाणु भार बदलने की गुस्ताखी की थी। यह काम पूरा करने के बाद 1871 में मेण्डेलीव ने आवर्त नियम को प्रस्तुत किया:

"तत्वों के गुण और तद्नुसार उनके द्वारा बने सरल उभरकर आता हे कि प्रकृति बाबत हमारे ज्ञान के ‘खाली स्थान’ प्रगति के पथ प्रदर्शक होते हैं।"


लोथर मेयर

इस कहानी में लोथर मेयर के महत्वपूर्ण योगदान की बात छूट गई है। कई वैज्ञानिक आवर्त सारणी  व नियम की स्वतंत्र खोज का श्रेय लोथर मेयर को भी देते हैं। इस पर कोई टिप्पणी करना यहां ज़रूरी नहीं है। बस इतना कहना पर्याप्त होगा कि लोथर मेयर का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था। मगर यहां उसे बीच में डालने से तर्क का सिलसिला टूट जाता। इसी प्रकार से विलियम ऑडलिंग ने भी आवर्त सारणी के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।


आवर्त के तर्क की तलाश  
एक आवर्त सारणी का निर्माण हो जाने पर उसकी गहराई से छानबीन शुरू हुई। सबसे पहले तो इसकी विसंगतियों की ओर ध्यान गया। मसलन टेलुरियम का परमाणु भार 127.6 है और आयोडीन का 126.9 है। इस लिहाज़ से आयोडीन को टेलुरियम से पहले आना चाहिए मगर मेण्डेलीव की सारणी में उसे बाद में स्थान दिया गया था, जो उसे रासायनिक गुणों के उपयुक्त था। ऐसी विसंगतियां हल होने में अभी वक्त था। तत्वों की परमाणु संरचना की समझ बनने के बाद ही यह समस्या सुलझ पाई।

दरअसल आवर्त सारणी की वजह से यह प्रश्न उठा कि आखिर तत्वों के गुणों में यह आवर्तता क्यों है? तथा इसका परमाणु भार से संबंध किस वजह से है? जैसे-जैसे इस सवाल का जवाब मिलता गया, सारणी सुधरती गई।

इसी प्रकार से नए तत्वों की खोज ने भी आवर्त सारणी के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी कीं। फिर चल पड़ा आवर्त सारणी में बदलाव और बदलावों का सिलसिला। खैर आवर्त सारणी बन जाने के बाद की रोचक दास्तान तो अभी यहां सुनाना संभव नहीं है।


सुशील जोशी - होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध, पर्यावरण एवं विज्ञान विषयों में सतत लेखन।