पिछले अंक में सवालीराम ने पूछा था कि चिड़िया के बच्चे को घोंसला बनाना कौन सिखाता है। इस सवाल के लिए एकलव्य की प्रकाशन टीम के साथी रुद्राशीष द्वारा तैयार किए गए जवाब को पेश कर रहे हैं।

सवाल: चिड़िया के बच्चे को घोंसला बनाना कौन सिखाता है?

जवाब: मुझे लगता है कि यह सवाल जवाब तलाशने के लिए बड़ा ही  दिलचस्प है। इसके दो कारण हैं:
1.    यह एक ऐसी अद्भुत घटना है जो समय-समय पर हमारे सामने घटती है, लेकिन हम अक्सर इस पर ध्यान नहीं देते और रुककरइसके बारे में विचार तक नहीं करते।
2.    अभी तक इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है।
वे लोग जिन्होंने छोटेपक्षियों द्वारा घोंसला बनाने के व्यवहार के बारे में कभी गम्भीरता से सोचा नहीं है - और आज तक मैं भी ऐसे ही लोगों में शामिल था - इस सवाल के जवाब में बहुत आसानी-से इन दो में से कोई एक बात कह सकते हैं: 1) अरे यार, सीधी-सी बात है, पक्षियों में तो यह गुण पैदाइशी होता है, है कि नहीं? उनको यह सिखाने की ज़रूरत नहीं होती  कि  घोंसला  कैसे  बनाना  है; 2) इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए तो आज तक कई शोध हो चुके होंगे, है कि नहीं?
जहाँ तक घोंसला बनाने की पैदाइशी योग्यता या उसे सिखाने की बात है तो यह कई बातों पर निर्भर करता है, खास तौर पर यह कि आप किस प्रजाति के पक्षी की बात कर रहे हैं। और जहाँ तक शोध की बात है, तो हकीकत यह है कि इस बारे में बहुत ज़्यादा शोध हुए ही नहीं हैं।

जन्मजात बनाम सीखा गया
पक्षियों के घोंसला बनाने के व्यवहार को समझने के लिए 1960 और 1970 के दशकों में दो तरह के महत्वपूर्ण प्रयोग किए गए थे, हालाँकि इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं था। उस समय तक हुए अध्ययन विभिन्न प्रजातियों के कैद में रखे पक्षियों पर किए गए थे। कुछ प्रजातियों में यह देखने को मिला था कि वयस्क पक्षियों की मौजूदगी के बगैर और घोंसलों के बिना जिन पक्षियों को पाला गया, उन्हें घोंसला बनाने की सामग्री दिए जाने के बावजूद, वे घोंसला नहीं बना सके, हालाँकि उन्होंने अण्डे तो दिए। लेकिन कुछ अन्य प्रजातियों के पक्षी ऐसे थे जो घोंसला बनाने की सामग्री के अभाव में पले थे लेकिन फिर भी उन्होंने घोंसले बना लिए। दो अध्ययन दिखाते हैं कि कुछ प्रजातियों में घोंसला बनाने की क्रिया में सीखने और याद रखने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक अध्ययन में यह देखने को मिला कि वे पक्षी जो घोंसलों में पले थे, उनके बनाए घोंसले बक्सों में पले पक्षियों द्वारा बनाए गए घोंसलों से ‘बेहतर’ थे। एक अन्य प्रजाति के अवयस्क नर पक्षियों ने वयस्क पक्षियों की तुलना में बेतरतीब और ढीले-ढाले बुने हुए घोंसले बनाए। लेकिन इन अध्ययनों ने जो ठोस बुनियाद बना दी थी, उसके बाद अगले कई दशकों के दौरान इस बारे में और खोजबीन के लिए कोई खास व्यवस्थित प्रयास नहीं किए गए।
और फिर, अभी हाल ही में यानी 2011, 2014 और 2016 में, तीन अलग-अलग शोध-अध्ययनों से यह ठोस संकेत मिले कि पक्षी दरअसल अपने अनुभवों से, और एक-दूसरे को देखकर, घोंसला बनाना सीखते हैं।

2011 में, एडिनबर्ग, सेंट एंड्रयूज़, ग्लासगो  और  बोट्सवाना  विश्व-विद्यालयों के वैज्ञानिकों ने बोट्सवाना (दक्षिणी अफ्रीका) में सदर्न मास्क्ड वीवर प्रजाति के नर पक्षियों (चित्र-1) को घोंसला बनाते हुए फिल्माया। अध्ययन के लिए इस रंग-बिरंगे पक्षी को इसलिए चुना गया क्योंकि ये पक्षी अक्सर एक ही ऋतु में कई जटिल, अक्सर दर्जनों घोंसले बनाते हैं जिसके कारण अध्ययन टीम को मौका मिला कि वे एक ही पक्षी द्वारा बनाए गए घोंसलों के अन्तरों को ध्यान से देख सकते थे।
उन्होंने पाया कि पक्षियों ने अपने हर घोंसले को अलग-अलग ढंग से बनाया था। कुछ पक्षी अपने घोंसले बाईं ओर से शु डिग्री करके, दाईं ओर को बनाते हैं जबकि कुछ दाईं से बाईं ओर। जब पक्षियों को घोंसला बनाने का अच्छा-खासा अनुभव हो गया तो उन्होंने घास के टुकड़ों को नीचे गिराना कम कर दिया, जिससे यह समझ में आता है कि इस कौशल को भी बाकी किसी भी कौशल की तरह सीखने की ज़रूरत होती है।

इस अध्ययन में शामिल एक सदस्य का कहना था, “अगर पक्षी किसी खास आनुवंशिक साँचे के अनुसार अपने घोंसले बनाते होते तो आप यह अपेक्षा कर सकते थे कि सभी पक्षी हर बार एक ही तरह से अपने घोंसले बनाएँगे। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था। सदर्न मास्क्ड वीवर बर्ड अलग-अलग ढंग से घोंसला बना रही थीं जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि घोंसला बनाने की प्रक्रिया में अनुभव की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए यह बात पक्षियों के लिए भी सही है कि अभ्यास करने से ही सफलता मिलती है।”

इसके तीन साल बाद, यानी 2014 में, सेंट एंड्रयूज़ विश्वविद्यालय और रॉसलिन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने रस्सी के टुकड़ों की मदद से बहुत सारे घोंसले बनाते ज़ेब्रा फिंच प्रजाति  के नर पक्षियों की फिल्म बनाई। कुछ समय तक अपेक्षाकृत लचीली रस्सियों से घोंसले बनाने के बाद ये पक्षी कड़क रस्सियों से घोंसले बनाने लगे, और वे पक्षी जिन्होंने पहले ही कड़क रस्सियों से घोंसले बनाए थे, वे रस्सी के प्रकार पर कोई ध्यान नहीं दे रहे थे। लेकिन यह देखने को मिला कि पूरा घोंसला बन जाने के बाद सभी पक्षियों ने कड़क रस्सियों को ही पसन्द किया, भले ही उन्होंने अपना घोंसला किसी भी रस्सी से बनाया हो। ऐसा लगा कि कड़क रस्सी घोंसला बनाने के लिए ज़्यादा बेहतर सामग्री है क्योंकि पक्षियों को गुम्बददार घोंसले बनाने के लिए लचीली रस्सी की अपेक्षा कड़क रस्सी के कम टुकड़े लगे। घोंसला बनाने की सामग्री को लेकर पक्षियों की पसन्द न तो उनके पिता की पसन्द से मेल खा रही थी और न ही भाई-बहनों की पसन्द से। लेकिन एक दिलचस्प बात देखने को मिली कि बचपन में उन्हें रस्सी से जिस भी प्रकार का अनुभव प्राप्त हुआ हो, उस अनुभव की वजह से भविष्य में वे घोंसला बनाने के लिए कड़क रस्सी को तरजीह देने लगे। इसलिए शोधकर्ताओं को यह बात समझ में आई कि घोंसला बनाने में किस सामग्री का प्रयोग करना है, यह पूरी तरह से आनुवंशिक रूप से तय नहीं रहता क्योंकि पक्षियों की पसन्द पर इस बात का बहुत गहरा असर पड़ता है कि घोंसला बनाने के उनके अनुभव कैसे रहे, और कितनी बार हुए।
इस प्रकार से सीखने की योग्यता जंगली पक्षियों के लिए वाकई उपयोगी होती है क्योंकि वे घोंसले बनाने के लिए ऐसी सामग्री चुन सकते हैं जो उनके निवास स्थान के उपयुक्त हो।

समुदाय से सीखना
सेंट एंड्रयूज़ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ही फिर, पिछले साल, यह जानकारी दी कि पक्षी अन्य पक्षियों को देखकर यह सीख सकते हैं कि किस प्रकार का घोंसला बनाना है, हालाँकि  वे  अजनबी  पक्षियों  को नज़रअन्दाज़ कर देते हैं। एक बार फिर ज़ेब्रा फिंच पक्षियों की मदद ली गई ताकि वैज्ञानिक यह जान सकें कि हमारे इन पंखों वाले मित्रों के दिमाग में आखिर क्या चलता है।
एक नर ज़ेब्रा फिंच, जिसने इससे पहले कभी घोंसला नहीं बनाया था, की जोड़ी एक मादा के साथ बना दी गई। इस जोड़े ने किसी दूसरे जोड़े के नर को गुलाबी या नारंगी रस्सी के साथ घोंसला बनाते देखा। ये ऐसे रंग हैं जिनका उपयोग आम तौर पर ये पक्षी घोंसला बनाने के लिए नहीं करते। फिर पहली जोड़ी के नर को, जो दूसरे नर को घोंसला बनाते देख रहा था, मौका दिया गया कि वह अपना पहला घोंसला बनाए। इस नर ने अपना घोंसला बनाने में, दूसरी जोड़ी के नर द्वारा इस्तेमाल किए गए रंग की नकल तभी की यदि वह उस नर से परिचित था। जब नर पक्षियों ने ऐसे नरों को घोंसला बनाते देखा, जिन्हें वे नहीं जानते थे तो उन्होंने इस तरह की नकल नहीं की।

यह ऐसा पहला अध्ययन था जिसने दिखाया कि पक्षी अन्य पक्षियों को देखकर यह सीख सकते हैं कि किस प्रकार का घोंसला बनाना है। इसे ‘सोशल लर्निंग’ (समुदाय से सीखना) कहते हैं, और इससे पहली बार घोंसला बनाने वाले पक्षियों का समय और श्रम, दोनों बच सकते हैं क्योंकि वे दूसरों की सफलता से लाभ उठा सकते हैं और खुद गलती करने से बच सकते हैं।
जन्मजात और सीखा हुआ!
इसलिए यह निष्कर्ष और मज़बूत होता जा रहा है, मानो इन पक्षियों के पास  जन्म  से  ही  ‘कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग’ की कोई डिग्री तो होती ही है, पर साथ ही कुछ प्रजातियों में परिपक्व होते पक्षी न सिर्फ अपने अनुभव के द्वारा अपने इस कौशल को और निखारना सीखते हैं, बल्कि अपने आसपास के अन्य पक्षियों से भी कुछ-न-कुछ सीख हासिल करते हैं।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।