डोमितिला चुन्गारा
प्रस्तुति - माधव केलकर

पुस्तक अंश                                                                                                                                  शिक्षकों के लिए संवर्धन सामग्री

भूगोल की पढ़ाई में अपने देश के अलावा दूसरे देशों के बारे में भी पढ़ाया जाता है। इसकी शुरुआत माध्यमिक कक्षाओं से ही हो जाती है। भूगोल की पारम्परिक किताबों में किसी दूर के महाद्वीप या देश के बारे में तथ्यात्मक जानकारियाँ बहुतायत में होती हैं। मसलन, उस देश की नदियाँ, पहाड़, फसलें, उद्योग, प्रमुख शहर आदि। लेकिन लोगों के बारे में लगभग नहीं के बराबर लिखा होता है। कुछ नवाचारी तरीकों में यात्रा वृत्तान्तों या संस्मरणों के माध्यम से अन्य देशों के लोगों को पाठ का हिस्सा बनाया जाता है।

आम तौर पर पाठ्य पुस्तकों में लेटिन अमरीकी देशों के बारे में बहुत कम चर्चा होती है। पिछले कुछ दशकों से खनिजों की प्रचुरता, गरीबी-बेकारी, अस्थिर सरकारें, फौजी शासन, इंफ्रा-स्ट्रक्चर की खस्ता हालत, विदेशी कर्ज़ में डूबी अर्थव्यवस्था, नशीले पदार्थों की तस्करी - लेटिन अमरीकी देशों की मिली-जुली पहचान बनते जा रहे हैं। लेकिन यही वे देश भी हैं जहाँ समाजवादी विचारधारा ने ज़ोर पकड़ा था। यहाँ हम बोलीविया की चर्चा करने वाले हैं। बोलीविया टिन, चाँदी, जस्ता जैसे खनिजों का दुनिया का प्रमुख निर्यातक है। खनिज अयस्क का खनन; यहाँ का एक प्रमुख उद्योग है। एक बड़ा जन समूह खदानों में खनिकों के रूप में काम कर रहा है।  

यहाँ बोलीविया के खनन उद्योग की एक बानगी पेश करने के लिए  डोमितिला बारिओस डि चुन्गारा की आपबीती को कथानक बनाया जा रहा है। डोमितिला की किताब let me speck पहली बार 1978 में प्रकाशित हुई। इसके हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन म.प्र. महिला मंच ने 2011 में किया है। भूगोल के शिक्षकों को ऐसी पुस्तकों से दुनिया के संसाधन व उनसे जुड़े लोगों का जीवन, छात्रों के साथ साझा करने में मदद मिलेगी। डोमितिला ‘लेट मी स्पीक’ में बोलीविया की एक टिन खदान ‘सिगलो XX’ के बारे में काफी विस्तार से बताती हैं। वे यहाँ काम के हालात एवं मज़दूर बस्तियों की सच्चाई से वाकिफ करवाती हैं। 

यहाँ बोलीविया से सम्बन्धित जो सामग्री दी जा रही है, उसका ढाँचा कुछ इस प्रकार है। पहले बोलीविया से परिचय और डोमितिला के ‘सिगलो XX’  खदान इलाके के अनुभवों को दिया गया है। अन्त में बोलीविया के बारे में कुछ अपडेट्स दिए गए हैं। बीच-बीच में भारतीय सन्दर्भ में कुछ सवाल पूछे गए हैं। बोलीविया से परिचय के लिए आप एटलस का उपयोग भी कर सकते हैं। 

बोलीविया से परिचय
यहाँ दिया गया नक्शा देखिए। नक्शा देखकर आप जान लेंगे कि बोलीविया दक्षिणी अमरीका में कहाँ स्थित है, उसके पड़ोसी देश कौन-कौन से हैं, उसकी कोई सीमा समुद्र से छूती है क्या? बोलीविया ने समुद्री मार्ग से निर्यात के लिए क्या बन्दोबस्त किया होगा? बोलीविया का कुछ हिस्सा पहाड़ों से घिरा है, ये कौन-सी पर्वतमाला का भाग हैं? ये सवाल बोलीविया से परिचय बढ़ाने के लिहाज़ से महत्व के हैं। आप भी ऐसे कुछ सवाल सोचकर पूछ सकते हैं।

बोलीविया की टिन खदानें
बोलीविया से मोटे-मोटे परिचय के बाद अब हम डोमितिला द्वारा दिए गए ब्यौरों की ओर आते हैं। डोमितिला ‘लेट मी स्पीक’ में बताती हैं -
“.....दुर्भाग्य से हम बोलीवियाई बहुत कम हैं। तमाम दक्षिण अमरीकियों की तरह ही हम भी स्पेनी भाषा बोलते हैं। लेकिन हमारे पुरखों की भाषा दूसरी थी। उनकी दो भाषाएँ थीं - क्वेचुआ और आइमारा। ये दोनों भाषाएँ आज भी बहुत सारे किसानों एवं खनिकों के बीच बोली जाती हैं। कुछ शहरों में भी थोड़ी-बहुत बची हैं। खासतौर से कोचाबाम्बा और पोटासी में जहाँ बहुत-से लोग क्वेचुआ और लापास में आईमारा बोलते हैं।

...हमारा देश बहुत सम्पन्न है। विशेषतौर से खनिज  - टिन, चाँदी, सोना, बिस्मिथ, ज़िंक, लोहा - यहाँ मिलते हैं। तेल और गैस के भी यहाँ प्रमुख स्रोत हैं। पूर्वी क्षेत्र में पशुपालन किया जाता है। हमारे पास लकड़ियाँ, फल, और ढेर सारे कृषि उत्पाद हैं।
वस्तुत: इन सम्पदाओं पर बोलीविया के लोगों का स्वामित्व है। उदाहरण के लिए - खदानों, विशेषतौर पर बड़ी खदानों पर राज्य का स्वामित्व है। उनका राष्ट्रीकरण किया जा चुका है और उन्हें मालिकों से ले लिया गया है।

इन खदान मालिकों ने हमारा सारा टिन दूसरे देशों को बेच दिया और हमें तंगहाली में छोड़ दिया; क्योंकि उन्होंने अपनी सारी पूँजी विदेशों में, बैंकों में, उद्योगों में, होटलों में और ऐसी ही सारी चीज़ों में निवेशित कर दी। अत: जब उन खदानों का राष्ट्रीकरण किया गया तो बोलीविया में वास्तव में, बहुत कम धन बचा था। इसके बावजूद इन खान मालिकों को मुआवज़ा दिया गया। इस तरह इन्हें और अमीर बनाया गया और राष्ट्रीकरण का फायदा आम जनता को बिलकुल नहीं मिला।

बोलीविया के बहुसंख्य लोग किसान हैं। लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँव में रहती है और वे बहुत ही भयंकर गरीबी में रहते हैं, हम खनिकों से भी ज़्यादा खराब स्थिति में। बावजूद इसके कि हम अपनी भूमि पर बंजारों की तरह रहते हैं, क्योंकि हमारे पास घर नहीं है। हमारे पास रहने के लिए केवल वही निवास है जो कम्पनी हमें उस समय तक देती है जब तक मज़दूर वहाँ काम करते हैं।

यह सच है कि बोलीविया कच्चे माल के क्षेत्र में इतना सम्पन्न है, फिर इस देश में इतने सारे गरीब कैसे रहते हैं? और दूसरे देशों (लेटिन अमरीका के भी) की तुलना में यहाँ के लोगों का जीवन स्तर इतना निम्न क्यों है?

वस्तुत: यह मुद्रा के देश से बाहर जाने के कारण है। यहाँ बहुत-से लोग अमीर हो गए हैं लेकिन अपना सारा धन विदेशों में निवेश करते हैं। और हमारी सम्पदा विभिन्न समझौतों के माध्यम से बहुत ही कम मूल्य पर लालची पूँजीपतियों को सौंप दी जाती है, जिससे हमें कोई फायदा नहीं होता।
...बोलीविया की 60 प्रतिशत आय खनन द्वारा होती है। शेष आय तेल एवं अन्य स्रोतों से होती है। सरकारी खदानों में लगभग पैंतीस हज़ार मज़दूर काम करते हैं और निजी खदानों में भी लगभग पैंतीस हज़ार मज़दूर काम करते हैं।

पहले जब खदानें नई थीं तब वे खूब सारा टिन निकालते थे, लेकिन पिछले बीस साल में स्थितियाँ बदली हैं। अब उनमें अधिक टिन नहीं बचा है। अत: उन्होंने ब्लॉक केबिन की व्यवस्था शु डिग्री की है। वे पहाड़ के भीतर डाइनामाइट से विस्फोट करते हैं। खनिक उसके भीतर से सारा पत्थर निकालते हैं। फिर उसमें से अयस्क निकालने के लिए उस पत्थर को मिल में पीसने के लिए भेज दिया जाता है। टनों पत्थर में से बहुत कम टिन निकल पाता है। ब्लॉक में किया जाने वाला यह काम बहुत कठिन और खतरनाक है। वहाँ इतनी धूल होती है कि आप एक मीटर दूरी तक भी नहीं देख सकते। वहाँं बहुत-सी दुर्घटनाएँ होती रहती हैं क्योंकि कई बार मज़दूर सोचते हैं कि सारे डाइनामाइट फट चुके हैं और वहाँ काम के लिए जाते हैं, तो अचानक वहाँ विस्फोट हो जाता है और मज़दूरों के चीथड़े उड़ जाते हैं। इसलिए मैं नहीं चाहती कि मेरे पति ब्लॉक में काम करें, भले ही वहाँ काम करने वाले मज़दूर थोड़ा ज़्यादा कमा लेते हैं।

खदान के कामगार
खनन केन्द्र में बहुत तरह के समूह काम करते हैं। जैसे ‘वेनेरिस्टा’ अथवा ‘वीनर्स’ ऐसे खनिक होते हैं जो अपना काम खुद करते हैं और अपना अयस्क कम्पनियों को बेचते हैं। वेनेरिस्टा समूहों में काम करते हैं। वे टिन की चट्टान तक पहुँचने के लिए एक-डेढ़ मीटर चौड़ा और 15 मीटर गहरा छेद करते हैं। फिर वे रस्सी के सहारे नीचे उतरते हैं और अन्दर छोटी-छोटी सुरंगे बनाते हैं जिसमें वे सरक सकें। फिर चट्टान की दरारों में इकट्ठा अयस्क को तलाशते हैं। वहाँ कोई सुरक्षा नहीं होती। हवा का आवागमन नहीं होता। यह सबसे खराब काम होता है। इनमें ज़्यादातर वे लोग होते हैं जिन्हें कम्पनी सिलिकोसिस (खनिकों को होने वाली एक आम बीमारी) के कारण रिटायर कर देती है। चूँकि रोज़ी-रोटी का कोई ज़रिया नहीं होता अत: ज़िन्दा रहने के लिए वे यह काम करते हैं। कुछ किसान जो पास के गाँव लल्लागुआ से आते हैं, वे वेनेरिस्टा के साथ काम करने लगते हैं। वेनेरिस्टा उन्हें एक दिन में 10 पेसो (बोलीविया की मुद्रा) अथवा आधा डॉलर देते हैं।

एक अन्य तरह के मज़दूर ‘लोकेटारिओस’ कहलाते हैं। वे भी कम्पनी को अयस्क बेचते हैं। लेकिन कम्पनी उन्हें फावड़ा, खन्ती अथवा डाइनामाइट कुछ भी नहीं देती। उन्हें सब कुछ खरीदना पड़ता है। कम्पनी उन्हें वे जगहें बताती है जहाँ पहले ही खनन हो चुका है। ऐसी जगह हमेशा कुछ-न-कुछ अयस्क बचा रह जाता है। कम्पनी इन ‘लोके-टारिओस’ को गुणवत्ता के हिसाब से दाम देती है।

कुछ मज़दूर ‘लामेरोस’ होते हैं। वे अयस्क को अलग करने का काम करते हैं। प्लांट में कम्पनी अयस्क को दबाती है। इस प्रक्रिया में उसमें से एक द्रव निकलता है जिसमें टिन के अवशेष होते हैं। यह गाढ़े पानी वाली कीचड़ से भरी नदी में बदल जाता है। लामेरोस इसमें से टिन इकट्ठा करते हैं, साफ करते हैं और इसे कम्पनी को वापस कर देते हैं। कई बार कठिन परिश्रम के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिलता।

जहाँ खनिक रहते हैं
'सिगलो XX' एक खनन शिविर है और यहाँ के सारे मकान कम्पनी के हैं। बहुत से खनिक पास के लल्लागुआ गाँव अथवा पास के अन्य गाँव में रहते हैं।
शिविर में खनिकों के घर पूरी तरह से कर्ज़ पर होते हैं। मकानों की कमी के कारण वे भी हमें तुरन्त नहीं मिलते। अधिकांश खनिक बिना मकान मिले पाँच-दस साल तक काम करते रहते हैं, अत: वे पास के गाँव में किराए का मकान लेकर रहते हैं।

कम्पनी में काम करने के दौरान ही वे उसके मकान में रह सकते हैं। खनिक के मरने या पेशेगत बीमारी के कारण रिटायर होने के बाद उसकी विधवा या पत्नी को घर से निकाल दिया जाता है। उसे कहीं और चले जाने के लिए 90 दिन का समय दिया जाता है।

हमारे घर बहुत छोटे होते हैं। उसमें 5 गुना 5 वर्ग मीटर का कमरा होता है। उसी में रहना, खाना बनाना और सोना सभी करना पड़ता है। उसी में मेरे सात बच्चे सोते, पढ़ते हैं। हम वहीं खाते हैं और बच्चे खेलते हैं। पीछे के एक छोटे कमरे में एक मेज़ थी और एक बिस्तर जिस पर मैं और मेरे पति सोते थे। हमारे पास जो भी थोड़ा-सा सामान था उसे एक के ऊपर एक रखना पड़ता था। कुछ बच्चे बिस्तर पर सोते तो कुछ नीचे।

पहाड़ों में बहुत सर्दी पड़ती है, अत: हम पुआल के बिस्तर बनाते हैं। असली गद्दे तो 800 से 1000 पेसो के मिलते हैं। हम उन्हें खरीद नहीं सकते इसलिए अधिकांश खनिकों के पास पुआल के गद्दे ही हैं। मेरे घर में एक भी असली गद्दा नहीं है। पुआल के गद्दे ज़्यादा दिन नहीं टिकते और आराम दायक भी नहीं होते। पर हम क्या कर सकते हैं। हम इन्हीं गद्दों की इधर-उधर से मरम्मत करते रहते हैं।
कम्पनी हमें दिन में कुछ घण्टे और रात भर बिजली देती है। हमें पीने का पानी भी मिलता है, लेकिन वह घर में नहीं मिलता। मोहल्ले में ही सार्वजनिक नल से पानी लेना पड़ता है।

इस तरह, हमारी ज़िन्दगी में बहुत-सी सुविधाएँ नहीं हैं। उदाहरण के लिए, हमारे घर में स्नानागार नहीं होते हैं। हमें सार्वजनिक स्नानागार में नहाना होता है। पूरे कैम्प के ढेर सारे लोगों के लिए 10-12 शॉवर होते हैं। इनमें एक दिन पुरुष नहाते हैं और एक दिन औरतें। शॉवर तभी काम करता है जब तेल होता है क्योंकि तेल से ही पानी गर्म होता है।
यही नहीं केवल कम्पनी के तकनीशियनों के घरों में शौचालय होते हैं। पूरे मोहल्ले में केवल दस सार्वजनिक शौचालय हैं। वे बहुत जल्दी गन्दे हो जाते हैं। और उनमें पानी के नल नहीं हैं। सुबह कम्पनी के कर्मचारी उन्हें साफ करते हैं लेकिन फिर सारा दिन वे गन्दे रहते हैं। पानी नहीं होने पर वे कई दिनों तक गन्दे रहते हैं, फिर भी हमें उन्हें इस्तेमाल करना पड़ता है।

...संख्या में कम होने के कारण इन तकलीफ-देह मकानों को भी पाना आसान नहीं है। इसे पाने के लिए भी प्रतियोगिता होती है। एक खनिक जो दस साल काम कर चुका हो उसे 10 अंक मिलते हैं। अगर उसकी पत्नी और सात बच्चे हों तो उसके अंक 8 कर दिए जाते हैं। अगर वो खदान के भीतर काम करता है तो उसे ज़्यादा अंक मिलते हैं। इसलिए मकान पाने के लिए निश्चित अंक अर्जित करने पड़ते हैं।

कैम्प में अधिकांश मकान उस समय के हैं जब कम्पनी निजी (1952 के पहले) हाथों में थी। खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी सब पहले जैसा ही चलता रहा। बहुत-सी शिकायतों और हड़तालों के बाद हम प्रबन्धन को इस बात के लिए तैयार करा पाए कि वे हमारे मकानों की मरम्मत कर दें जो गिरने की कगार पर हैं। मरम्मत से कुछ खास फायदा नहीं होता, हल्की बारिश होती है और वे फिर गिर जाते हैं।

मकानों की कमी के कारण कुछ लोग उन लोगों के घरों में रहते हैं जिनके पास मकान होते हैं। उन्हें ‘अग्रेगाडोस’ अथवा अति-रिक्त किराएदार कहते हैं। जैसे कि मेरे पास मेरी तीन बहनें आईं थीं, अत: मैंने रसोईघर में बिस्तर लगाकर उनके लिए एक कमरा तैयार किया। रसोई मैंने बाहर छत के नीचे बना ली। हम वर्षों तक इसी स्थिति में रहे। अग्रेगाडोस हमेशा रिश्तेदार ही नहीं होते। वे दोस्त भी हो सकते हैं।

निश्चित रूप से कम्पनी के मज़दूरों को मकान देने के बारे में कानून थे, पर वे किसी के लाभ के नहीं थे। और अन्तत: देश को इतने बड़े पैमाने पर मदद करने के बावजूद खनन मज़दूरों को छोटा-सा घर भी नहीं मिलता है।

खनिक कैसे काम करते हैं?
खदान में दो तरह की कार्य पद्धति और मापदण्ड होते हैं; एक - तकनीशियनों के लिए, दूसरी - खनिकों के लिए।
खदान में काम कभी बन्द नहीं होता। दिन-रात काम चलता रहता है। खनिकों के लिए तीन शिफ्ट में काम होता है। कुछ लोग प्रति माह शिफ्ट बदलते हैं, कुछ हफ्तों में, तो कुछ प्रति सप्ताह। मेरे पति प्रति सप्ताह शिफ्ट बदलते हैं।

जब मज़दूर पहली शिफ्ट में जाते हैं तो हम औरतों को अपने पति का नाश्ता तैयार करने के लिए सुबह चार बजे उठना पड़ता है। दोपहर तीन बजे खदान से बाहर निकलने तक वे कुछ नहीं खाते हैं। खदान के भीतर खाना ले जाने का कोई तरीका नहीं होता, इसकी अनुमति भी नहीं है। और अगर वे ले भी जाएँ तो वह खदान के भीतर खराब हो जाएगा। वहाँ बहुत अधिक धूल और गर्मी होती है। अगर वे वहाँ कुछ खाते हैं तो वह उन्हें नुकसान करेगा। कम्पनी चाहे तो मज़दूरों के लिए भीतर ही साफ-सुथरा खाने का कमरा बना सकती है, लेकिन उसकी इसमें रुचि नहीं है। कम्पनी ऐसी सुविधाएँ केवल तकनीशियनों को ही देती है। उदाहरण के लिए इंजीनियर कम घण्टे काम करते हैं। उनका खाना खदान के भीतर आता है, वे खाना खदान के भीतर खाते हैं। दूसरी ओर मज़दूर सुबह पाँच बजे नाश्ता करके दोपहर तीन बजे तक भूखे रहते हैं। तो, वे इतनी देर बिना कुछ खाए खदानों में कैसे बने रहते हैं? वे कोका की पत्ती साथ ले जाते हैं और उसे चबाते रहते हैं। इसका स्वाद कड़वा होता है, और इसे चबाने से भूख नहीं लगती। खनिक उसे इच्छा-शक्ति को बनाए रखने के लिए चबाते रहते हैं।

खदान में काम करना बहुत ही थकाने वाला होता है। मेरे पति लौटकर आते ही बिना कपड़े बदले तुरन्त सो जाते हैं। वो दो-तीन घण्टे सोते हैं फिर खाना खाते हैं। रात की शिफ्ट ज़्यादा खराब होती है। खनिक रात भर काम करते हैं और लौटकर दिन में सोना पड़ता है। लेकिन चूँकि, हमारे घर छोटे और पास-पास होते हैं, और बच्चों को खेलने की जगह नहीं होती इसलिए मज़दूर सो नहीं पाते। मेरे पति और अन्य मज़दूर रात की शिफ्ट से नफरत करते हैं, लेकिन उन्हें कम्पनी के नियमों का पालन करना पड़ता है वरना उन्हें काम से निकाल दिया जाता है।

...एक खनिक की औसत आयु लगभग 35 साल होती है। इसके बाद वह पूरी तरह खदान की बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। अयस्क निकालने के लिए खदान के भीतर बहुत सारे विस्फोट किए जाते हैं। उसके धूलकण मुँह और नाक के ज़रिए मज़दूरों के फेफड़ों में चले जाते हैं। यह धूल अन्तत: फेफड़ों को नष्ट कर देती है। उनके मुँह काले-बैंगनी हो जाते हैं, वे फेफड़ों के टुकड़े उलटने लगते हैं और मर जाते हैं। यह खदान की परम्परागत बीमारी है, जिसे सिलकोसिस कहते हैं।
...सरकार प्रचार करती है कि खनिकों को मुफ्त आवास, पीने का पानी, बिजली, शिक्षा, सस्ता राशन और अन्य चीज़ें मिलती हैं। कोई ‘सिगलो XX’  आकर वस्तु स्थिति देखे।

...हमें इस दुर्दशा में रखने के लिए कम्पनी हमें बहुत कम वेतन देती है। उदाहरण के लिए मेरे पति खदान के भीतर एक विशेष प्रभाग में काम करते हैं। अब उन्हें एक दिन के 28 पेसो मिलते हैं। यानी प्रतिमाह 840 पेसो। हमें परिवार सब्सिडी के रूप में 347 पेसो, 135 पेसो मँहगाई भत्ता और रात की शिफ्ट के लिए कुछ अतिरिक्त भुगतान होता है। कुल मिलाकर उन्हें 1500 या 1600 पेसो प्रतिमाह मिलता है। कम्पनी उसी में से सामाजिक सुरक्षा फण्ड, राशन का मूल्य, स्कूल बिल्डिंग फंड, एवं अन्य चीज़ों के लिए कटौती करती है। यह सब देखते हुए मेरे पति को कुल 500 से 700 पेसो प्रतिमाह मिलते हैं। हमारे नौ लोगों के परिवार को इसी में गुज़ारा करना पड़ता है। बहुत-से मज़दूर हमसे भी खराब हालात में रहते हैं।

मुनाफा कहाँ जाता है?
हमारे एक नेता ने, जो बाद में मारे गए, एक बार हमें हमारी इस स्थिति का कारण बहुत ही साधारण तरीके से समझाया था। उन्होंने हमसे कहा - ‘सिगलो XX’  में दस हज़ार मज़दूर प्रतिमाह 300-400 टन टिन का उत्पादन करते हैं। फिर उन्होंने कागज़ का टुकड़ा निकाला और कहा - यह प्रतीक है उस उत्पादन का जिसे हम उत्पन्न करते हैं। यह अपने-आप में एक माह में हमारे द्वारा उत्पन्न पूरा मुनाफा है। इसका वितरण कैसे होता है?

फिर उन्होंने उस कागज़ के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में बाँट दिया। इन पाँच में से चार भाग विदेशी पूँजीपतियों के पास चले जाते हैं और बोलीविया के पास केवल एक हिस्सा रह जाता है।

...इस पाँचवें हिस्से में से भी आधा सरकार ट्रांसपोर्ट, कस्टम और निर्यात पर खर्च के तहत रख लेती है। पूँजीपतियों द्वारा मुनाफा कमाने का यह एक और तरीका है। हमारे मामले में, हम ट्रकों से अयस्क पे डिग्री के गुआकी बन्दरगाह ले जाते हैं। यहाँ से अयस्क इंग्लैण्ड के विलियम हार्वे धातु फैक्ट्री ले जाया जाता है। जहाँ से संयुक्त राष्ट्र अमरीका लाया जाता है, जिससे वे अन्य चीज़ें तैयार कर सकें। बाद में बोलीविया समेत अन्य देश उन्हें अमरीका से ऊँचे दाम पर खरीदते हैं। यह सब करते हुए पूँजीपति इस पाँचवें हिस्से में से भी लगभग आधा ले लेते हैं, जो कि हमारा था।

जो आधा बचता है उसमें से भी कुछ हिस्सा सरकार अपने लाभ के लिए, सैन्य बलों के लिए, मंत्रियों के वेतन के लिए और उनकी विदेश यात्राओं के लिए - हड़प लेती है। इन्हीं पैसों को वे विदेशी शहरों में निवेश करते हैं, जिससे अगर वे सत्ता से हट जाते हैं तब भी वे पहले से जमा इस धन के बल पर करोड़पति के तौर पर दूसरे देशों में जा सकें।
जो थोड़ा-बहुत बचता है उसमें से छोटा-सा हिस्सा सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा सेवाओं, स्वास्थ्य, अस्पताल, बिजली, मज़दूरों को दिए जाने वाले राशन पर खर्च किया जाता है। वे इस तरह लगातार हड़पते और लेते जाते हैं।

एक खनिक की पत्नी की दिनचर्या
मेरे दिन की शुरुआत सुबह चार बजे हो जाती है, खासतौर से तब जब मेरे पति की पहली शिफ्ट होती है। मैं उनका नाश्ता तैयार करती हूँ। उसके बाद में साल्टेनास (बोलीविया में बनाई जाने वाली छोटी कचौड़ी जिसमें गोश्त, आलू, काली मिर्च एवं अन्य मसाले भरे जाते हैं) बनाती हूँ। मैं प्रतिदिन 100 साल्टेनास बनाती हूँ और इन्हें सड़कों पर बेचती हूँ, क्योंकि मेरे पति के वेतन में हम अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाते। हम रात में ही आटा गूँधकर रख लेते हैं और सुबह चार बजे बच्चों को खिलाते हुए मैं साल्टेनास बनाती हूँ। बच्चे मेरी मदद करते हैं। वे आलू और गाजर छीलते हैं और आटा गूँधते हैं। फिर स्कूल जाने वाले बच्चे तैयार होते हैं और मैं रात में भिगोए कपड़े धोती हूँ।

आठ बजे मैं साल्टेनास बेचने निकल जाती हूँ। जो बच्चे दोपहर में स्कूल जाते हैं वे मेरी मदद करते हैं। हमें कम्पनी की राशन की दुकान से सामान भी लाना होता है। वहाँ लम्बी लाइन लगती है, सामान लेने के लिए हम ग्यारह बजे तक इन्तज़ार करते हैं। हमें मीट, सब्ज़ी व तेल के लिए लाइन लगानी पड़ती है। एक लाइन के बाद दूसरी लाइन में लगना पड़ता है। ये सब सामान अलग-अलग जगह पर मिलते हैं। साल्टेनास बेचते हुए हम दुकान से सामान लेने के लिए लाइन में लगते हैं। जब मैं सामान लेने जाती हूँ तो बच्चे साल्टेनास बेचते हैं और फिर बच्चे लाइन में लगते हैं तो मैं साल्टेनास बेचती हूँ।

100 साल्टेनास से मुझे औसतन 20 पेसो की आय हो जाती है। मैं भाग्यशाली हूँ क्योंकि लोग मुझे पहचानते हैं और मुझ से खरीदते हैं। मेरी कुछ महिला मित्र प्रतिदिन 5 से 10 पेसो कमा पाती हैं।
मैं और मेरे पति जो कमाते हैं उससे हम केवल खा-पहन ही पाते हैं। खाना बहुत ही महँगा है। कपड़ा और भी महँगा है। मैं यथासम्भव कपड़े खुद सिलती हूँ। हम बने-बनाए कपड़े नहीं खरीदते। हम ऊन खरीदते हैं और बुनते हैं।

इस तरह मैं सुबह 8 से 11 बजे तक साल्टेनास बेचती हूँ। सामान खरीदती हूँ और ‘हाउस वाइव्ज़ कमेटी’ का काम भी करती हूँ। वहाँ सलाह माँगने आई बहनों से बातचीत करती हूँ।
दोपहर को खाना बनाना होता है क्योंकि बच्चे स्कूल से लौट आते हैं। मुझे उनका होमवर्क करवाना होता है। दोपहर में हमें कपड़े धोने होते हैं। हमारे यहाँ कोई लॉण्ड्री नहीं है। हमें पम्प से पानी लाना होता है। फिर अगले दिन की साल्टेनास की तैयारी करनी होती है।

कभी-कभी दोपहर में कमेटी के कुछ ज़रूरी मसले सुलझाने होते हैं। कमेटी का काम प्रतिदिन होता है। वैसे यह पूरी तरह से ऐच्छिक काम है।
जब मेरे पति की सुबह की शिफ्ट होती है तो वह रात के दस बजे सो जाते हैं। दोपहर की शिफ्ट होने पर वे आधी रात तक बाहर रहते हैं। रात की शिफ्ट होने पर वे अगले दिन आते हैं। अत: मुझे उस हिसाब से सेट होना पड़ता है।

ज़्यादातर औरतों को मदद के लिए कुछ-न-कुछ करना पड़ता है। जैसे मैं साल्टेनास बेचती हूँ, कोई सिलाई करती है, कोई बुनाई, तो कोई कालीन-कम्बल बनाती है। कुछ सड़कों पर अन्य सामान बेचती हैं। अगर कोई औरत काम नहीं करती तो उसकी माली हालत बहुत खराब हो जाती है।
मैं सामान्यत: आधी रात को बिस्तर पर जाती हूँ और केवल 4-5 घण्टे ही सोती हूँ। हमें इसकी आदत पड़ गई है।”

कुछ नए तथ्य
डोमितिला द्वारा लिखा गया यह ब्यौरा लगभग 30-40 साल पुराना है। तब से लेकर अब तक बोलीविया में भी कुछ परिवर्तन आए हैं। उन परिवर्तनों को जानने के लिए यहाँ एक और छोटा-सा ब्यौरा पढ़ते हैं - पोटासी शहर की खदान के बारे में।
दो अमरीकी युवा क्रिस और इरिन मोटर सायकल पर दुनिया की सैर पर निकले थे। सन् 2002 में वे बोलीविया पहुँचे। बोलीविया के कई इलाकों में घूमते हुए वे प्रसिद्ध खनन क्षेत्र पोटासी भी गए। पोटासी की खदानों के बारे में उन्होंने अपने अनुभव ‘अल्टीमेट जर्नी डॉट कॉम’ में लिखे हैं। उनके ब्यौरे के कुछ सम्पादित अंश प्रस्तुत हैं।

“... समुद्र सतह से लगभग चार हज़ार मीटर पर स्थित पोटासी शहर किसी समय चाँदी की खदानों के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन अब यहाँ निम्न ग्रेड के चाँदी, टिन, ज़िंक, सीसा के अयस्कों का खनन किया जाता है।
6 जून 2002 को हम पोटासी में थे। हमें खदान की सैर के लिए जाना था। हमारी सैर का प्रबन्ध हो गया था। साढ़े चार घण्टे की यह सैर साढ़े सात डॉलर प्रति व्यक्ति थी। सुबह दस बजे हम रवाना हुए। सबसे पहले उस जगह पहुँचे जहाँ हम खनिकों को बतौर तोहफा देने के लिए कोका की पत्तियाँं, सिगरेट, पानी और अनाज से बना अल्कोहल खरीद सकते थे। हमने वहाँ से ये सब खरीदा। साथ ही खदान में उतरने के लिए लगने वाला ज़रूरी साज-सामान लिया।

मिनी बस ने हमें एक खदान के प्रवेश द्वार पर उतारा। इस पहाड़ी इलाके में लगभग 200 खदानें हैं। यहाँ कोई भी निजी खदान नहीं है, खदानों में खनन छोटी-छोटी सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। समिति में 5 लोग होते हैं।
साजो-सामान के साथ हम खदान के प्रवेश द्वार से आगे बढ़े। द्वार के पास एक छोटा-सा कमरा था। वहाँ खदान और खनिकों के संरक्षक देव की प्रतिमा थी। हमारे गाइड ने संरक्षक देव को कोका की पत्तियों एवं अल्कोहल का भोग चढ़ाया, शायद इससे देव प्रसन्न होते हैं।

खदान की गहराई में जाते-जाते तापमान बढ़ने लगा। चट्टानी सतह पर सरकते हुए, रेंगते हुए नीचे उतरना काफी कठिन था। नीचे खदान की सैर के दौरान हम कई खनिकों के पास से गुज़रे। सभी हमारी कल्पना से कहीं ज़्यादा कठोर परिश्रम कर रहे थे। जिन गाड़ियों में अयस्क ढोया जा रहा था, तीन-चार खनिक मिलकर उन्हें खींच या धकिया रहे थे। खनिकों के लिए डायनामाइट महँगा होने की वजह से (एक डॉलर में एक डायनामाइट की रॉड) खनन का काफी काम खनिक हाथों से गैती-सब्बल जैसे औज़ारों से कर रहे थे। खनिकों की औसत दिहाड़ी साढ़े चार डॉलर है। जब हम खनिकों के एक समूह के पास से गुज़र रहे थे तब हमने उन्हें कोका की पत्तियाँ, सिगरेट और पानी दिया। गाहे-बगाहे सुस्ताते हुए खनिक समूह को हमने अल्कोहल भी दिया। खनिक आठ घण्टे, बिना भोजन अवकाश के, लगातार काम करते हैं। कोका की पत्तियाँ खनिकों की भूख को मारती हैं और काम करने के लिए ताकत देती हैं।

नीचे हवा चट्टानों के महीन कणों और धूल से भरपूर थी। नाक पर कपड़ा रखकर हम साँस ले रहे थे। हमारे एक साथी को अस्थमा था, वो इनहेलर का डोज़ ले रहा था।
सैर पूरी करके, खदान से बाहर निकलते हुए इतनी कठिन परिस्थितियों में काम करने वालों के लिए हमारे दिल में आदर भाव था ...।”

डोमितिला और क्रिस-इरिन के अनुभवों को पढ़ते हुए यह तो समझ में आता है कि खनिकों के हालात में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। 1985 के आस-पास विश्व बाज़ार में टिन की माँग कम होने के साथ बोलीविया में शासन ने भी ज़्यादातर छुटपुट टिन खदानों को अपने नियंत्रण से मुक्त कर दिया। इन खदानों में खनिकों की सहकारी समितियों ने खनन की कोशिश की। हाल के वर्षों में दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों द्वारा मुहैया सस्ते टिन अयस्कों से बोलीविया को कड़ी टक्कर मिली। कम कीमत पर उत्पादन बढ़ाने के लिए बोलीविया ने टिन खनन में कुछ खदानें कॉर्पोरेट सेक्टर के हाथों में सौंप दी हैं।

पोटासी में औपनिवेशकालीन दौर की वास्तुकला भी शहर की भव्यता को बढ़ाती है। यूनेस्को ने इस शहर की अनेक इमारतों को सूचीबद्ध कर उन्हें विश्व विरासत की धरोहर घोषित किया है। पोटासी पर्यटकों का पसन्दीदा शहर है इसलिए यहाँ की खस्ताहाल खदानों और भूख मारकर काम कर रहे खनिकों को सहजता से पर्यटन की वस्तु बना दिया गया है।
हाल के वर्षों में खनिज अयस्कों के उत्पादन में संघर्ष कर रहे बोलीविया में नेचुरल गैस और तेल के भण्डारों की पुष्टि के साथ शासन ने इन भण्डारों का राष्ट्रीकरण कर अपना अधिकार बना लिया है तथा इसके लिए बाज़ार तलाशना शुरू कर दिया है।

मौजूदा दौर में लीथियम धातु की भारी माँग है। रीचार्जेबल बैटरियों में इसका उपयोग होता है। बोलीविया में लीथियम के प्रचुर अयस्क हैं। बोलीविया लीथियम के प्रमुख सप्लायर के रूप में उभरा है।
वैश्वीकरण और निजीकरण के इस दौर में बोलीवियाई अर्थव्यवस्था मिश्रित मॉडल पर चल रही है। कुछ खदानें व उद्योग विदेशी कम्पनियों के लिए खुले हैं तो कुछ देश के पब्लिक सेक्टर के हाथों में हैं।

कुछ सवाल चर्चा के लिए
निम्न सवालों को प्रोजेक्ट की तरह लेते हुए मालूमात कीजिए। इससे बोलीविया की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ समझ सकेंगे।

  1. बोलीविया के पड़ोसी देशों के बारे में पता लगाइए कि वहाँ कौन-कौन-से प्रमुख खनिज अयस्कों को निकाला जाता है? पड़ोसी देशों के साथ बोलीविया के किस तरह के सम्बन्ध थे? बोलीविया की किन देशों के साथ मित्रता थी और किन देशों के साथ उसने युद्ध लड़े?
  2. 1966-67 में चेग्वेरा बोलीविया में सशस्त्र आन्दोलन क्यों चला रहे थे?
  3. अपने आस-पास की किसी खदान का भ्रमण कीजिए और वहाँ की स्थितियों, एवं मज़दूरों के हालात को जानने-समझने का प्रयास कीजिए। 

डोमितिला: अपने जीवन के कई दशक खनिकों के हक और सामाजिक न्याय की लड़ाई में लगाए हैं। अभी 75 बरस की उम्र में भी मोबाइल स्कूल प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। 

माधव केलकर: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध।

मूल किताब: लेट मी स्पीक - डोमितिला बारिओस डि चुन्गारा, मन्थली रिव्यू प्रेस 1978

हिन्दी अनुवाद: सुनो मेरी कहानी: मेरी ज़ुबानी

अनुवाद: शीरी: घुमंतू अनुवादक हैं।

मध्यप्रदेश महिला मंच द्वारा सन् 2011 में प्रकाशित, मूल्य 80 रुपए।

म.प्र. महिला मंच औरतों का एक स्वतंत्र व अनौपचारिक समूह है, जो पिछले 20 वर्षों से महिला मुद्दों पर काम कर रहा है। किशोर बालिका व युवतियों के लिए नाटक, कार्यशालाएँ, स्वास्थ्य सम्बन्ध विषयों पर महिलाओं का प्रशिक्षण और औरतों के प्रति हिंसा के खिलाफ तथ्य आधारित जाँच, केस वर्क और संघर्ष में मंच सक्रिय रहा है।
ई-मेल: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.