सवाल: जब हम परमाणुओं को देख नहीं पाते तो फिर वैज्ञानिक उनके बारे में इतना कैसे जानते हैं?

—सिद्दिका, नौ वर्ष

जवाब: वैसे यह एक अच्छा सवाल है लेकिन इसका जवाब थोड़ा कठिन है। फिर भी मैं इसका सरल तरीके से जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ। हम परमाणुओं के बारे में विविध प्रयोगों की वजह से जानते हैं। कुछ प्रयोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से तो कुछ प्रयोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से परमाणु के बारे में हमारी समझ बढ़ी है।

इन्सान ने परमाणु के बारे में काफी पहले से सोचा था। शुरुआत में तो यह महज़ खयाल था। सोच यह थी कि किसी वस्तु को छोटे-से-छोटे हिस्सों में तोड़ते जाएँ तो क्या होगा। उदाहरण के लिए सेब को लिया जाए और उसे छोटे से और छोटे हिस्सों में तोड़ते जाएँ तो? उस समय कुछ लोगों का विचार था कि सेब को किसी भी सीमा तक छोटा करते जाओ, सेब का बेहद छोटा टुकड़ा भी सेब ही होता है। कुछ अन्य लोग इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उनका मानना था कि सेब को कई बार छोटा करते जाने के बाद एक ऐसा छोटा टुकड़ा होगा जिसे उसका सेबपन खोए बिना और छोटा नहीं किया जा सकता। यानी सेब के बेहद छोटे टुकड़े में सेबपन नहीं होगा।

वैसे यह सभी खयालात ही थे।  जिन्हें दर्शन की भाषा में दार्शनिक तर्क-वितर्क कहा जाता है। लेकिन इन तर्कों को अवधारणाओं के रूप में स्थापित करने का काम 18वीं सदी में शुरू हुआ। इस समय वैज्ञानिकों ने परमाणु की मौजूदगी दर्शाने वाले कुछ विविध प्रयोगों से जानकारी जुटाई, जिस पर हम सिलसिलेवार बात करेंगे।
कई सामान्य अवलोकनों से भी सोच को दिशा मिलती है। जैसे तरल या गैसों का मिश्रण होना। उसके बारे में कुछ वैज्ञानिकों का कहना था कि पदार्थ एक-दूसरे के साथ मिश्रण बना पाते हैं क्योंकि वे छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं, अन्यथा एक पदार्थ, दूसरे पदार्थ में किस तरह मिल सकते हैं।

रसायन विज्ञान में किए गए कुछ अहम प्रयोगों ने परमाणु के सम्बन्ध में पुख्ता नतीजों तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया। इन प्रयोगों में कुछ प्रयोग विविध पदार्थों के विश्लेषण सम्बन्धी थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि सभी शुद्ध पदार्थों का हमेशा एक जैसा संघटन होता है। यहाँ एक जैसे संघटन से हमारा आशय है कि कोई भी पदार्थ एक जैसे तत्वों के, समान अनुपात से मिलकर बना हो। उदाहरण के लिए यदि पानी का विश्लेषण करें तो घटक के रूप में हमेशा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिलते हैं और इनका अनुपात सदैव एक-सा मिलता है। मसलन, यदि 9 ग्राम पानी का विश्लेषण किया जाए तो हमेशा 1 ग्राम हाइड्रोजन और 8 ग्राम ऑक्सीजन मिलते हैं। इसलिए कई वैज्ञानिक यह सोचने लगे कि ऐसा क्यों है। पानी के निर्माण में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को किसी भी अनुपात में क्यों नहीं मिलाया जा सकता। एक निश्चित अनुपात की ज़रूरत क्या है।

ऐसे ही अवलोकन कुछ अन्य पदार्थों के साथ भी थे। इसलिए इसे ‘स्थिर अनुपात का नियम’ कहा गया।
विविध पदार्थों के साथ किए गए प्रयोगों से यह बात भी सामने आई कि जब आप किन्हीं पदार्थों की रासायनिक क्रिया करवाते हैं तब क्रिया से पहले (क्रिया में भाग लेने वाले पदार्थ) और क्रिया के बाद (क्रिया से बने पदार्थ) पदार्थ का वज़न एक जैसा आता है। एक बार फिर वैज्ञानिकों के सामने सवाल था कि ऐसा क्यों है।

प्रयोगशालाओं में किए गए काफी सारे प्रयोगों-शोधकार्यों के बाद कई वैज्ञानिकों ने इन नियमों के बारे में सोचा। उन वैज्ञानिकों में से एक डाल्टन था। उसने ऊपर बताए नियम की व्याख्या के लिए सिद्धान्त दिया (यहाँ दो और नियम भी हैं जिन्हें छोड़ा जा रहा है)। रासायनिक क्रिया के पहले और बाद में पदार्थ का वज़न एक जैसा रहने की व्याख्या डाल्टन ने इस प्रकार की कि रासायनिक क्रिया के दौरान पदार्थ का न तो निर्माण हो रहा है, न पदार्थ नष्ट हो रहा है, इसलिए वज़न एक जैसा है।
तो, डाल्टन ने स्थिर अनुपात के नियम के बारे में क्या कहा? डाल्टन ने फरमाया, अनुपात स्थिर बने रहते हैं क्योंकि सभी पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बने हैं।

इससे स्थिर अनुपात की व्याख्या किस तरह से होती है? डाल्टन का कहना था कि पदार्थ क्रियाओं में परमाणु के रूप में भाग लेते हैं। मसलन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन आपस में क्रिया करते हैं। सम्भव है, हाइड्रोजन का एक परमाणु ऑक्सीजन के एक या दो परमाणुओं से क्रिया करेगा। ये मनमाने ढंग से परस्पर क्रिया नहीं करेंगे। यह सुनिश्चित है कि हाइड्रोजन के X परमाणु, ऑक्सीजन के Y परमाणुओं से ही क्रिया करेंगे। ऑक्सीजन के सभी परमाणु हूबहू एक जैसे होंगे और हाइड्रोजन के सब परमाणु भी हूबहू एक जैसे होंगे। अब यदि वे हर बार आपस में क्रिया किसी निश्चित अनुपात में करते हैं तो उनका वज़न भी स्थिर बना रहेगा।

इसे डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त कहते हैं। परमाणु के बारे में यह पहली बात हमें प्रयोगों से मालूम हुई, लेकिन यह प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं था। वैज्ञानिकों ने कई रासायनिक क्रियाओं को करके इन क्रियाओं की व्याख्या की।

डाल्टन ने परमाणु की अवधारणा पेश की और परमाणु के बारे में बहुत-सी बातें बताईं जो कुछ प्रयोगों के निष्कर्षों पर आधारित थीं, ऐसे प्रयोग जिनमें परमाणु दिखाई नहीं देता था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तर्कों के आधार पर डाल्टन ने परमाणु का अनुमान लगाया लेकिन उसने हमें परमाणु के कई गुणों के बारे में बताया। ऐसा ही एक गुण था कि किसी पदार्थ के सभी परमाणुओं का भार एक जैसा होता है, इसे परमाणु भार कहा जाता है। डाल्टन ने यह भी बताया था कि रासायनिक क्रिया के दौरान परमाणु  टूटते नहीं हैं।

इसके बाद भी सभी लोग परमाणु के अस्तित्व की बात पर यकीन नहीं करते थे। कई वैज्ञानिकों ने पदार्थ में परमाणुओं की गणना सम्बन्धी प्रयोगों को करके देखा। किसी पदार्थ-विशेष के दिए गए भार में परमाणुओं की गणना को विविध विधियों से पता करके तुलना की गई तब जाकर यह निश्चित हुआ कि परमाणु का अस्तित्व है। इस सबके बाद सभी लोग परमाणु के अस्तित्व को मानने लगे।
प्रयोगों की अगली कड़ी में वैज्ञानिक परमाणु को तोड़कर परिणामों को देखने में सक्षम हुए। जब परमाणु टूटता है तो हमें विविध तरह के कण प्राप्त होते हैं। इन कणों के अध्ययन से हमें इनके गुणों के बारे में पता चलता है।

परमाणु के अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण हमें वनस्पति शास्त्री रॉबर्ट ब्राउन बताते हैं। ब्राउन माइक्रोस्कोप से अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने देखा कि स्लाइड पर पराग-कण लगातार यहाँ से वहाँ गतिशील थे। वो इस गतिशीलता का कोई कारण नहीं सोच पाए। इस बेतरतीब (रेंडम) गतिशीलता को ब्राउनियन मूवमेंट कहते हैं। बाद में आइंस्टाइन ने इस गति की व्याख्या की और इससे परमाणु की मौजूदगी भी साबित हुई।
अब, आधुनिक तकनीक यानी इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से   अपेक्षाकृत बड़े अणुओं के फोटोग्राफ ले सकना सम्भव हुआ है।

जैसा कि जवाब के शुरू में कहा था कि परमाणु को अनेक प्रयोगों के नतीजों से इकट्ठा की गई जानकारियों से समझाया जा सका।
क्या, यह तुम्हारे सवाल का जवाब  है? यदि तुम कुछ और जानना चाहती हो तो मुझे लिखो।


यह जवाब सुशील जोशी ने तैयार किया है।

सवालीराम का यह सवाल अल-क़मर स्कूल, चैन्नई की एक छात्रा सिद्दिका द्वारा पूछा गया था। अल-क़मर अकादमी एक इस्लामिक स्कूल है जिसे अनीसा जमाल और हारून जमाल ने शुरू किया है। स्कूल का उद्देश्य है, बच्चों में सीखने का आनन्द बना रहे।