मनुष्य का बच्चा जब मां के गर्भ में एक भ्रूण के रूप में होता है तो वह न तो देख सकता है और न ही बोलता या भाषा समझता है। लेकिन तब भी वह मां और किसी अन्य महिला के आवाज़ के बीच भेद करने की क्षमता रखता है। प्रयोगों से पता चला है कि जब मां बोलती है तब भ्रूण की हृदय दर के तीव्र संकेत प्राप्त होते हैं। मां की आवाज़ से जल्दी संपर्क हो तो इससे ध्वनि के स्रोतों को पहचानने और मां की आवाज़ को वरीयता देने में मदद मिलती है। यह कैसे होता है? जब मां बोलती है, तो उस ध्वनि से जुड़ी गतियां और कंपन मां के शरीर के ज़रिए गर्भ में पल रहे भ्रूण तक पहुंचने लगते हैं। इस प्रकार भ्रूण के लिए वह आवाज़ सबसे ज़्यादा महसूस होने वाली आवाज़ बन जाती है। यह अनुभूति किसी भाषा या उच्चारित शब्द की नहीं बल्कि आवाज़ की होती है। यह भाषा से मुक्त है अर्थात सुर, आवाज़ की पिच, दर, प्रवाह और लहज़े से सम्बंधित है। इन सबको भ्रूण महसूस करता है।
इस तरह आवाज़ और वाणी के स्रोत में भेद कर पाना गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में शुरु होता दिखता है। इस अवस्था में भ्रूण अपनी मां की आवाज़ और किसी अजनबी महिला की आवाज़ में भेद कर पाता है, और मां की आवाज़ की कई विशेषताओं को सीखता है और पहचानता है। इस प्रकार यह आवाज़ श्रव्य चेहरा मानी जा सकती है।
कनाडा स्थित क्वींस युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 143 भ्रूणों पर अध्ययन किया। उन्होंने भ्रूणों की निरंतर हृदय गति को उस समय रिकार्ड किया जब वे एक रिकार्डेड आवाज़ (शिशु बैंबी की कहानी का दो-मिनट का वाचन) सुन रहे थे। इन रिकॉर्डिंग तक में भ्रूण अपनी मां की आवाज़ और अन्य महिलाओं की आवाज़ को अलग कर पहचान पाते हैं। हृदय गति, संकेतों की तीव्रता और अन्य लक्षण स्पष्ट तौर पर अलग थे। यह अध्ययन बताता है कि प्रत्येक भ्रूण न सिर्फ अपनी मां की आवाज़ को पहचान पाता है बल्कि उससे सीखकर अपने दिमाग में मां के एक श्रव्य चेहरे की पहचान भी सहेज लेता है।

स्पष्ट है कि भ्रूण न तो बैंबी को जानता है और न ही भाषा या कहानी को समझता है। यह कोई भाषा की अनुभूति नहीं बल्कि आवाज़ की अनुभूति थी। वे तो इसके सुर, लय और मां की आवाज़ के दूसरे लक्षणों पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जो अजनबी आवाज़ से भिन्न थी। मस्तिष्क के तंत्रिका नेटवर्क का गठन शु डिग्री हो चुका है और स्थापित हो रहा है।
इससे पहले कि हम पूरी तरह मानव-केन्द्रित हो जाएं, यह कहना उचित होगा कि अन्य स्तनधारियों के पास भी आवाज़ पहचानने और उसमें भेद करने की दक्षता है। मैकॉक बंदर भी ऐसा करते हैं। उनके बच्चे भी अपनी मां को दूसरों से अलग पहचान पाते हैं। यूएस के डॉ. इनसले और फ्रांस में सेंट-एटिएन के डॉ. आई. कैरियर ने समुद्री सील के बच्चों पर अध्ययन किया। बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद बच्चे और मांएं प्रजनन काल के दौरान एक-दूसरे के शब्द उच्चारण को न सिर्फ पहचान लेते हैं बल्कि कम से कम चार साल तक इस याददाश्त को बनाए रखने में सक्षम भी होते हैं। सीखने की यह क्षमता जीवन में जल्दी ही, 2-5 दिनों के अंदर ही दिखाई देने लगती है।
हाल ही में स्टेनफोर्ड के डॉ. डीए अबराम और अन्य के पीएनएएस (यूएस) के 31 मई 2016 के अंक में प्रकाशित पर्चे में बताया है कि बच्चों के वातावरण में मां की आवाज़ निरंतर और परिचित उपस्थिति होती है। जब वह मां के गर्भ में भ्रूण के रूप में होता है तब ये आवाज़ और कंपन भ्रूण के विकसित होते श्रवण तंत्र में पहुंचते रहते हैं। यह उद्दीपन भावनात्मक और सामाजिक विकास का निर्देशन करता है - एक मायने में यह इस विकास की फिंगरपिं्रट है।

फ्रेंच अध्ययन में दिखाई देता है कि कैसे सील मछली के बच्चे मां की आवाज़ को जन्म के चार साल बाद तक पकड़े रहते हैं, उसी प्रकार स्टेनफोर्ड समूह ने 7-10 वर्ष की उम्र तक के बच्चों पर यह अध्ययन किया था। जब वे अपनी मां की आवाज़ (मांओं को कोई भी चार निरर्थक शब्दों को दोहराने के लिए कहा गया जिनका न कोई मतलब होता है और न ही कोई संकेत, केवल मज़े के लिए) सुन रहे थे, तब शोधकर्ताओं ने फंक्शनल एमआरआई द्वारा बच्चों के मस्तिष्क की क्रियाविधि को मापा। परिणामों से पता चलता है कि मां की आवाज़, जो भावनात्मक आराम और सामाजिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, का असर मस्तिष्क के कई भागों पर नज़र आता है जिनमें श्रवण, भाषा, पारितोषिक और भावनात्मक विकास से सम्बंधित हिस्से शामिल हैं। बच्चों की सामाजिक दक्षता मस्तिष्क नेटवर्क के इस ताने-बाने से निकटता से जुड़ी होती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह असर बचपन की 10 साल की लंबी अवधि तक बरकरार रहता है।
इस प्रकार से, मां की आवाज़ सुनने और उसे पहचानने का कार्य बच्चे के सामाजिक संचार का तंत्रिका मानचित्र बनाता है। अध्ययन यह भी बताता है कि बच्चों में ऑटिज़्म या एकाग्रता की कमी के केसों में इस मानचित्र में किस तरह के व्यवधान पैदा होते होंगे और इनसे कैसे निपटा जा सकता है।
अंत में एक बड़ा सवाल जो पिता पूछेंगे कि हमारी आवाज़ के बारे में क्या? हम अभी तक यह नहीं जानते हैं लेकिन यह मां की तरह नहीं होता है। प्रारंभिक अध्ययनों से पता चला है कि आवाज़ पहचानना और उसका फिक्स होना होता तो ज़रूर है मगर अभी तक फंक्शनल एमआरआई द्वारा अध्ययन नहीं किया गया है कि मस्तिष्क में क्या बदलाव होते हैं। जब तक ऐसा नहीं किया जाता तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है। (स्रोत फीचर्स)