कमलेश चन्द्र जोशी[Hindi,PDF 537 KB]

शिक्षकों के पेशेवर विकास को ध्यान में रखते हुए हम लोग अक्सर ही प्रशिक्षण व कार्यशालाएँ आयोजित करते रहते हैं। कभी-कभी उनके स्कूल भी जाते हैं परन्तु कक्षा में उनके साथ मिलकर काम करने के मौके कम ही मिल पाते हैं। कक्षा में पढ़ाकर दिखाना भी उनके पेशेवर विकास का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। इस परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हाल ही में एक स्कूल में जाना हुआ। यह योजना बनाई गई कि बच्चों के साथ कविता पर काम किया जाए। इससे पूर्व की प्रक्रियाओं में हमने शिक्षकों के साथ मिलकर स्कूल में भाषा का समृद्ध माहौल बनाने के लिए एक पुस्तकालय स्थापित किया था। साथ ही कक्षाओं में कविताओं-कहानियों के पोस्टर लगवाए। बच्चों के लिए प्रतिदिन अलग से पढ़ने के पीरियड की शुरुआत की। नियमित रूप से अपने मन से लिखने व चित्र बनाने के क्रियाकलाप शुरू करवाए। इस प्रकार कक्षा में बच्चों के लिए आरम्भिक साक्षरता का एक सहज माहौल तैयार करने का प्रयास किया गया।

बच्चों के साथ कविता पर बात करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि कविता में शब्दों का चयन, शब्द संरचना, उसकी लय आदि की तरफ उनका ध्यान आकृष्ट किया जाए। यह भी समझने का प्रयास किया  जाए  कि  बच्चे कविता में अर्थ-निर्माण का प्रयास कैसे करते हैं। बच्चे यह समझ सकें कि कविता बनती कैसे है, उसकी बुनावट क्या है, उन्हें यह एहसास भी करवाया जा सके कि एक कवि किस तरह चीज़ों को एक फर्क ढंग से देखता है आदि।
कविता का चयन
मन में यह बात थी कि शिक्षक तो पाठ्य पुस्तक से बच्चों को कविता पढ़ाते ही हैं। इस बार उनकी पाठ्य पुस्तक से इतर एक नई कविता ली जाए और बच्चों के साथ उस पर बात की जाए। हमें यह एहसास था कि ये बच्चे कुछ किताबें पढ़ते रहे हैं और किताबों पर थोड़ी-बहुत बातचीत करने की आदत भी है तो इनके साथ बातचीत की जा सकती है। इसलिए चकमक पत्रिका के जून 2015 के अंक में प्रकाशित हिन्दी के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी की कविता ‘बादल’ पर बातचीत करने का सोचा। (कविता अगले पेज पर देखिए) कविता इस प्रकार है-

हालाँकि इस कविता को लेकर मन में कुछ सवाल भी उठे कि क्या इस कविता से चौथी-पाँचवीं के बच्चे जुड़ाव बना पाएँगे क्योंकि इसमें कोई सीधी तुकबन्दी नहीं है, न ही सीधा-सीधा वर्णन है। कुछ पंक्तियाँ बच्चों के लिए मुश्किल भी हो सकती हैं। लेकिन मन में कहीं यह ख्याल भी था कि बचपन में हमें भी कहाँ सभी कहानियाँ व कविताएँ समझ में आ जाती थीं। यह ज़रूर होता था कि कविता-कहानी का कोई हिस्सा मन को छू जाता था और आगे उसकी स्मृति मन में बनी रहती। यहाँ वायगोत्सकी की निकटस्थ विकास की परिधि की याद भी स्वाभाविक रूप से आ जाती है। वे बच्चों को समझने के लिए उनके स्तर से एक आगे के स्तर की चुनौती रखने की बात करते हैं। कुछ ऐसी ही बात क्रेशन की इनपुट हाइपोथिसिस में भी आती है।
इस कविता पर बच्चों के साथ बात करने का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि कविता में उनके लिए ठहरकर सोचने की जगह काफी है। कविता में बादल को आश्चर्य से देखने, कल्पना करने के कई पड़ाव हैं जहाँ बादल ऊँट, हाथी व तितली बन जाता है। 
यहाँ सही और गलत की कोई बात नहीं थी। कविता पढ़ाने की योजना बनाते हुए हमारे मन में यह स्पष्ट था कि कविता में कुछ अर्थ ज़रूर है लेकिन पूरा अर्थ कविता में नहीं है। पाठ का अर्थ पाठक के अनुभवों में भी है और जैसे कि रोज़ेनब्लॉट ने कहा है कि पाठ का अर्थ पाठक के साथ अनुक्रिया में है। यहाँ हमें मैक्सिकन कवि ऑक्टावियो पाज़ की यह बात भी याद आई कि कविता में यह मत देखो कि कवि ने क्या कहा है, यह देखो कि कविता क्या कह रही है। यह सब बातें इस पर भी निर्भर थीं कि कक्षा में बच्चों को नियमित बातचीत के कितने मौके मिलते हैं। और उनके साथ कविता-कहानी पर कितना संवाद होता है।

इस सत्र के दौरान चौथी-पाँचवीं के बाईस बच्चों को एक घेरे में बैठाते हुए एक अन्तर्क्रियात्मक कक्षा की कल्पना की गई। बच्चों के साथ हम भी बैठे। सबसे पहले बच्चों से यह बात हुई कि उन्होंने कौन-कौन-सी कविताएँ पढ़ी हैं और कविता में क्या-क्या होता है। बच्चों ने बताया कि उन्होंने ‘पर्वत कहता शीश उठाकर...’ व ‘हम भी काश कबूतर होते...’ आदि कविताएँ पढ़ी हैं। शुरुआत में वे कविता में क्या-क्या होता है इस पर ज़्यादा कुछ नहीं बता पाए। बच्चों से हमने यह चर्चा करने की कोशिश की कि हम कविता पढ़ते हुए कविता में चीज़ों के बारे में नए तरीके से सोचते हैं। कभी-कभी उसे लय में ढालने की कोशिश भी करते हैं। जैसे ‘हम भी काश कबूतर होते...’ कविता में कवि खुद को कबूतर बनकर सोचने की बात कर रहा है और नई-नई तरह से सोच रहा है।

एक कविता पर बातचीत
इसके बाद सभी बच्चों को ‘बादल’ कविता की फोटोप्रति दी गई और कहा गया कि वे सबसे पहले कविता को अपने आप पढ़ें और यह सोचने की कोशिश करें कि उन्हें कविता पढ़कर क्या समझ में आ रहा है। कक्षा में दो-तीन बच्चे कविता को पूरी तरह से नहीं पढ़ पाए इसलिए ज़रूरी लगा कि यह कविता बच्चों को पढ़कर भी सुनाई जाए। कविता सुनाने के बाद उनके साथ चर्चा शु डिग्री हुई-
फौजा सिंह ने बताया, “कविता में बादल है, ऊँट है, हाथी है, तितली है।”
ज्योति ने कहा, “बादल है। रेगिस्तान में गया है।”
उनसे पूछा गया, “कविता में रेगिस्तान किसे कहा गया है?”
पूजा ने बताया, “बादल में पानी होता है।” उसने आगे यह भी जोड़ा, “मेरी मम्मी एक बार बता रही थीं कि जब वे छोटी थीं तो बादल में पानी के साथ छोटी-छोटी मछलियाँ भी गिरी थीं।” उनके सामने यह सवाल रखा गया कि नीला रेगिस्तान किसे कहा गया है और कविता को फिर से थोड़ा ध्यान से पढ़ने को कहा गया।
बादल क्या ऊँट है... नीले रेगिस्तान में... जिसके पेट में पानी हिलता है! तो नीला रेगिस्तान किसे कहा जा रहा है? और उसमें ऊँट के रूप में किसकी कल्पना की गई है?

फिर इन पंक्तियों पर चर्चा हुई-- बादल क्या हाथी है... जो सूँड में भरकर नदी... पानी इधर-उधर उड़ाता है! “शायद आपको पिछली कक्षाओं में पढ़ी कविता ‘जब पानी में जाता हाथी, भर-भर सूण्ड नहाता हाथी’ की याद आती हो।”
आगे प्रिंस ने कहा, “बादल सागर से भरकर पानी ले आता है। बादलों को देखकर हम खुश हो जाते हैं।”
फौजा ने बताया, “बादल ऊँट जैसा बन जाता है। बादल रेगिस्तान की मदद करता है। हमें पानी मिल जाता है। लोगों की जान बच जाती है।”
विक्रम ने कहा, “बादल तितली बन जाता है। समुद्र से पानी पीता है और धरती पर पानी फैलाता है।” फिर उसे रेगिस्तान पर देखी कोई लघु फिल्म की याद आई और कहने लगा, “रेगिस्तान में बन्दर पानी ढूँढ़ता है। वहाँ के लोग पानी के लिए बन्दर को नमक खिला देते हैं और बन्दर प्यास के मारे पानी ढूँढ़ता है। उससे लोगों को भी पानी मिल जाता है।”
किरन ने कहा, “जब बारिश होती है सबका मन खुश हो जाता है।”
आगे बात हुई कविता की इन पंक्तियों पर-- आखिर उसके आते ही... मेरा मन इतना खुश क्यों... हो जाता है... क्या मेरे अन्दर के पानी... और उसके अन्दर के पानी में... कोई नाता है! बच्चों से पूछा गया कि बादल के आने से मन क्यों खुश हो जाता है। ज्योति ने कहा, “बादल के आने से मन इसलिए खुश हो जाता है क्योंकि खेतों को पानी मिल जाता है। पेड़-पौधे बड़े हो जाते हैं और हरियाली आ जाती है।”
मनप्रीत ने कहा, “रेगिस्तान में ऊँटों को पानी मिल जाता है। वे भी खुश हो जाते हैं।”

इसी क्रम में प्रिंस बोला, “पानी बरसने से ऊँट भी भीग जाता होगा, उसे भी खुशी मिलती होगी।”
आगे यह चर्चा हुई कि ‘मेरे और उसके अन्दर के पानी’ से हम क्या समझ रहे हैं। फौजा ने कहा, “बादल के अन्दर पानी है और हमारे अन्दर खून है।” उसने कविता की पंक्ति की अक्षरश: व्याख्या की। हमने प्रयास किया कि बच्चे इन पंक्तियों को सोच और भावना के स्तर पर भी परखें।
फिर इस पंक्ति पर बात हुई कि बादल कुआँ तितली है। इसमें बादल को तितली के रूप में देखा गया है। जैसे तितली फूलों से रस लेती है वैसे ही बादल समुद्र से भाप लेकर अपने अन्दर पानी भरता है और वह पानी पूरी धरती पर फैलाता है जिससे कुएँ, नदी, तालाब -- सब में पानी भर जाता है और वे फूल की तरह खिल जाते हैं।
जब बच्चों से पूछा गया कि कविता कैसे बनती है तो फौजा ने कहा, “कविता सोच के लिखी जाती है। इसमें बादल को ऊँट के रूप में देखा गया है। हाथी की तरह भी देखा गया है। फिर आखिर में कहा गया है कि बादल सारी धरती पर पानी बिखेरता है और लोगों को खुश करता है। पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। नदियों में पानी भर जाता है।”
मैंने बच्चों से कहा कि कविता को ध्यान से पढ़कर सोचते हैं कि कविता कैसे बनी है। “कविता की शुरुआत में कवि ने एक बात पूछी है कि बादल क्या है। फिर उसके बारे में किसी से जोड़कर बताने की कोशिश की है। ऐसा हम हर चार-पाँच पंक्तियों के बाद पाते हैं। यह कविता बनाने का एक तरीका हो सकता है। अन्त में कवि ने कविता को अपने से जोड़ने की कोशिश की है।”

बच्चों की भागीदारी
इस चर्चा में बच्चों ने अपने-अपने अनुभव बताए। उन्हें थोड़ा एहसास था कि यह कविता हमारे आसपास की ही बात है -- बादल के आने से हमारे खेत हरे-भरे हो जाते हैं आदि। कुछ बच्चों ने पंक्तियों को अक्षरश: समझने की कोशिश की। हो सकता है कि कुछ बच्चों को कविता ज़्यादा समझ में न आई हो लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हमें बच्चों को कविता पर बातचीत के मौके देना लगा। बच्चों में समझ बनाने व रुचि जगाने के लिए यह अत्यन्त ज़रूरी है। बच्चों से बातचीत के दौरान यह भी ध्यान रखा गया कि सभी बच्चों की व्याख्या सुनी जाए। उन्हें अर्थ बनाने के मौके दिए जाएँ। इस तरह के मौके देने से बच्चों के सीखने की जीवन्त प्रक्रिया उभरकर आती है, लेकिन इसमें एक शिक्षक से भी सक्रिय भूमिका की अपेक्षा होती है। इस बातचीत के अन्त में बच्चों से कहा गया कि कविता पढ़ने के दौरान जो बातचीत हुई उसे अपनी समझ से लिखने का प्रयास करें और चित्र भी बनाएँ।
फौजा सिंह ने लिखा- जिसने यह कविता बनाई है उसने सोचा कि बादल ऊँट है। वो फिर कहता है कि बादल क्या है, बादल हाथी है। फिर वो कहता है बादल तितली है। बादल एक-दूसरे से टकराते हैं तो रेगिस्तान में पानी बरसता है। फिर जानवर पानी पीते हैं तो वो जाग जाते हैं।
ज्योति कौर ने लिखा- बादल ऊँट है। बादल हाथी है। बादल तितली है। बादल हमारे खेतों को पानी देता है। और बादल का हमसे व बरसात से नाता है।

आर्यन ने लिखा- बादल ऊँट बनकर पानी लेने जाता है। बादल तितली बनकर पानी लेने चला जाता है। बादल हाथी बनकर पानी लेने चला जाता है।
प्रीत सिंह ने लिखा- बादल एक दिन तितली बनकर समुद्र पर गया था और समुद्र से पानी पीकर रेगिस्तान में फैला दिया।
गीता कौर ने लिखा- बादल जब आते हैं तो सब खुश हो जाते हैं। हाथी सोचता है मैं बादल बन जाऊँ और सब पर पानी बरसाऊँ।
कुछ बच्चों ने केवल चित्र ही बनाए। कुछ ने दोनों काम किए। कुछ ने कविता ही उतारने की कोशिश की। परन्तु सभी ने किसी-न-किसी रूप में इस प्रक्रिया में भाग लिया। बच्चों के लेखन में मात्राओं, सामंजस्य (कोहेरेन्स) को लेकर आगे उनसे बात की जा सकती है परन्तु बच्चों को ऐसे मौके देना ज़रूरी है जिससे वे इस तरह से सोचने व लिखने के लिए तैयार हो सकें।
जिस तरह हर बच्चे ने कविता की अपने स्तर पर समझ बनाने की कोशिश की और उसे अपने शब्दों में लिखने का प्रयास भी किया, इससे यह बात पुख्ता हुई कि पढ़ने व लिखने की प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। बच्चों के लेखन से यह बात समझ में आती है कि बच्चों ने कविता को अलग-अलग ढंग से समझने का प्रयास किया।
अन्त में
बच्चों के भाषाई विकास के लिए उन्हें नियमित रूप से अर्थ निर्माण के मौके देना ज़रूरी है। यह समझना भी ज़रूरी है कि यह कौशल बच्चों में धीरे-धीरे ही विकसित होगा और हर बच्चा किसी पाठ का अर्थ अपने अनुभवों एवं पूर्व-ज्ञान के आधार पर ही बनाएगा। परन्तु बच्चों के पूर्व-ज्ञान को जगह देना ज़रूरी है। यह इस तरह की चर्चाओं के द्वारा ही किया जा सकता है जिसमें शिक्षक की सक्रिय भागीदारी की ज़रूरत होगी।

बादल क्या है!

बादल क्या ऊँट है
नीले रेगिस्तान में
जिसके पेट में पानी हिलता है!
बादल क्या हाथी है
जो सूँड में भरकर नदी
पानी इधर-उधर उड़ाता है!
बादल क्या है
आखिर उसके आते ही
मेरा मन इतना खुश क्यों
हो जाता है
क्या मेरे अन्दर के पानी
और उसके अन्दर के पानी में
कोई नाता है!
बादल क्या है
बादल कुआँ तितली है
जो समुद्र का पराग-केसर
चुरा कर ले जाता है
और सारी धरती पर खिलाता है
पानी के फूल!
बादल क्या है!


कमलेश चन्द्र जोशी: प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र से लम्बे समय से जुड़े हैं। इन दिनों अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधमसिंह नगर में कार्यरत।
सभी चित्र: शिवांगी: अम्बेडकर युनिवर्सिटी, दिल्ली से विज़्युअल आर्ट्स में स्नातकोत्तर। लोक कथाओं की चित्रकारी पर शोध कर रही हैं। स्वतंत्र रूप से चित्रकारी करती हैं। दिल्ली में निवास।