राधेश्याम थवाईत                                                                                                                                     [Hindi PDF, 37kB]

एक प्राथमिक शाला की कक्षा-5 में पर्यावरण अध्ययन का पीरियड चल रहा था। डाइट की छात्राध्यापिका बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर प्रश्नोत्तर लिखवा रहीं थीं। कक्षा में, कक्षा का अवलोकन कर रहे एक आगंतुक भी उपस्थित थे। इसी बीच एक बच्चे ने आगंतुक से एक सवाल किया, “सेवन माने क्या?” आगंतुक महोदय ने तुरन्त जवाब दिया, “सात”।
“वो वाला नहीं, वो वाला,” बच्चे ने ब्लैकबोर्ड की ओर इशारा करते हुए कहा। ब्लैकबोर्ड पर लिखा था, ‘स्वस्थ रहने के लिए फल और दूध का सेवन करना चाहिए।’

इसे पढ़कर आगंतुक को समझ आया कि आखिर बच्चे का प्रश्न क्या है। आगंतुक ने सीधे उत्तर देने की बजाय बच्चों को उत्तर तक पहँुचाने में मदद करना ज़्यादा ठीक समझा।
आगंतुक ने यही प्रश्न उनके पास में बैठे एक अन्य बच्चे से किया, “अच्छा तुम बताओ, सेवन माने क्या?” उस बच्चे ने तपाक से कहा, “शुद्ध।” आगंतुक को उत्तर सुनकर थोड़ा अजीब लगा। उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि आखिर बच्चे ने यही जवाब क्यों दिया। बच्चे का कहना था, “शुद्ध दूध पीने से ही तो हम स्वस्थ रहेंगे ना!”

हर बच्चे के पास अपने शब्द और शब्दों के अपने अर्थ होते हैं। उन्हीं अर्थों के सहारे वे वाक्यों के अर्थ निकालते हैं। यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बच्चे ने अपने शब्द को वाक्य में लगाकर उसे अर्थपूर्ण बनाने की कोशिश की है।
इस बार आगंतुक ने, बच्चे ने जैसा कहा था वैसा ही ब्लैकबोर्ड पर लिख दिया-‘स्वस्थ रहने के लिए फल और दूध का शुद्ध करना चाहिए।’

इस वाक्य को पढ़ते ही दोनों बच्चे एक साथ बोल पड़े, “नहीं, नहीं सर, ये तो गलत हो गया। सेवन का मतलब शुद्ध नहीं होता, कुछ और होता होगा। अब आप बता दो न सर।”
मगर आगंतुक महोदय सीधे जवाब पर कहाँ पहुँचने वाले थे। उन्होंने बच्चों से कहा, “ऐसा तुम लोगों ने ही तो कहा है न, अब खुद ही ठीक करोे?”

अबकी बार बच्चों ने वाक्य के सन्दर्भ में ‘सेवन’ का अर्थ बताया, “सेवन माने खाना-पीना।”
शायद आप सोच रहे होंगे कि एक शब्द का अर्थ बताने के लिए बच्चों के साथ इतनी माथापच्ची करने की क्या ज़रूरत है। दरअसल, यह माथापच्ची न होकर बच्चों के साथ अन्तर्क्रिया का एक उदाहरण है। यदि आप बच्चों के साथ नियमित रूप से इस तरह की बातचीत करते हैं तो निश्चित ही बच्चों में स्वमेव ही शब्दों और वाक्यों के निहितार्थ तक पहुँचने की आदत विकसित होगी और इससे उनका हौसला भी बढ़ेगा।


राधेश्याम थवाईत: छत्तीसगढ़ शैक्षिक सन्दर्भ केन्द्र (एकलव्य फाउण्डेशन), रायपुर में कार्यरत।