ज्योति मिलिन्द मेडपिलवार

पत्तियों को स्टार्च रहित करने के लिए पौधे की कुछ पत्तियों को काले कागज़ से ढँक दिया गया।

कक्षा सातवीं से लेकर कॉलेज तक पुस्तक में विवरण दिया है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में चार घटकों की आवश्यकता होती है। हर कक्षा में मैंने इन प्रयोगों को पढ़ा और रटा लेकिन कभी भी करके नहीं देखा था। अब मैं टीचर हूँ। कई सालों तक मेरे पढ़ाने का तरीका वही था, जिस ढंग से मुझे पढ़ाया गया था।

लेकिन अब शिक्षा के क्षेत्र में तेज़ी से आने वाले बदलाव को अपना रही हूँ। ‘करके सीखो’ वाले मंत्र पर विश्वास कर रही हूँ। इस राह पर चलते-चलते यह जानने लगी हूँ कि पुस्तक में दिए गए तरीके से प्रयोग करना चाहूँ तो बहुत-से प्रयोग सफल नहीं होते। फिर कुछ उलट-फेर करके उपकरणों का विकल्प ढूँढ़कर करो तो उस प्रयोग के सफल होने का मज़ा ही कुछ और है।
ऐसा ही एक प्रयोग और मेरा अनुभव यहाँ आपके साथ साझा कर रही हूँ।

प्रयोग वही है, सालों पुराना - प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य प्रकाश की आवश्यकता। पुस्तक में दिए विवरण को पढ़कर लगा कि करना ही क्या है। गमला दो-तीन दिन तक अँधेरे में रखना है। फिर किसी पत्ती को काले मोटे कागज़ से ढाँककर सूर्य प्रकाश में रखना है। उसके बाद पट्टी बँधी पत्ती की आयोडीन से जाँच करनी है। ऐसा लगा एकदम सरल प्रयोग है, झटपट हो जाएगा। पुस्तक में बताए अनुसार करती गई। पत्ती को कागज़ से ढांकना, यहाँ तक ठीक चला लेकिन प्रयोग को आगे करने में दिक्कतें आने लगीं। इन्हें मैं सिलसिलेवार तरीके से आगे बता रही हूँ।

पत्ती से हरा रंग हटाना
पत्ती से हरा रंग हटाने के लिए एक कटोरी में एल्कोहल लेकर उसमें पत्ती डाली और स्टोव पर पतीली में पानी लेकर, यह कटोरी रखी। यह सब करना कैसे है इस पर पाठ्यपुस्तक कुछ नहीं कहती, किताब में सिर्फ वॉटर बाथ में रखने के लिए कहा गया है। इस प्रकार करने से बार-बार वाष्पीकृत होने के कारण एल्कोहल भी काफी खर्च हो रहा था। मेरे ख्याल से मैंने कम-से-कम 500 मि.ली. एल्कोहल इसमें खर्च किया होगा। मैं यह मानकर चल रही थी कि हरा रंग हटाने की क्रिया 10-15 मिनट में हो जाएगी लेकिन इसमें एक घण्टे से अधिक समय लगा।

इस प्रयोग को किस तरह से किया जाए, मैं इस उधेड़बुन में थी और ऐसे दौर में ‘संदर्भ’ पत्रिका का अंक 78 हाथ लगा। इसमें प्रकाशित कालू राम शर्मा का लेख - ‘पौधों में मण्ड की जाँच’ पढ़ा। इस लेख को पढ़ते ही मेरी एक समस्या हल हो गई। मैंने फ्लास्क में एल्कोहल और पत्ती रखकर फ्लास्क का मुँह गीले कपड़े से बन्द कर दिया। इस बार एल्कोहल की मात्रा बहुत कम लगी। करीब-करीब 50 मि.ली. में ही काम हो गया।

पत्ती की आयोडीन से जाँच
पाठ्यपुस्तक में आगे बताया गया था कि एल्कोहल में उबालने से पत्ती सफेद या भूरे रंग की हो जाती है। उस पर आयोडीन की कुछ बूँदें डालते ही पत्ती का ढँका भाग वैसा ही रहेगा लेकिन खुला हिस्सा काला-नीला होगा। साथ ही, इस प्रकार का चित्र हमारी पाठ्यपुस्तक में भी दिया गया था।

मैंने पत्ती पर आयोडीन की कुछ बूँदें डालीं लेकिन पत्ती के खुले-ढँके किसी भी हिस्से पर यह परिणाम नहीं मिला। फिर मैं सोचने लगी, आयोडीन का घोल सही है या नहीं। इसलिए मुरमुरे के दानों पर आयोडीन की बूँदें डालकर देखीं। मुरमुरे के दाने काले-नीले रंग के हो गए। मैं उलझन में पड़ गई। प्रयोग करते समय कुछ गलती हो गई होगी, या किसी बात की अनदेखी की होगी। यह सोचकर तीन-चार बार प्रयोग को दोहराया। पर यह काले-नीले रंग का परिणाम पत्ती के खुले या ढँके हिस्से पर नहीं दिख रहा था।

मैं सोच रही थी, आखिर इस खुले हिस्से का स्टार्च गया कहाँ। इतने में मेरा ध्यान बीकर पर गया जिसमें मैंने पत्ती को एल्कोहल में उबाला था। बीकर में नीचे कुछ सफेद परत जमा दिख रही थी। मैंने अनुमान लगाया, शायद यह स्टार्च होगा। इसलिए उस एल्कोहल को छन्ने कागज़ से छान लिया। कागज़ को सूखने दिया और बाद में उस पर आयोडीन की बूँदें डालीं तो उस पर गहरे नीले, जामुनी रंग के धब्बे दिखाई देने लगे।

मेरा ख्याल है कि उबलते समय पत्ती के हरे रंग के साथ-साथ स्टार्च भी निकलकर एल्कोहल में आ गया होगा। मैं गलत भी हो सकती हूँ।

प्रयोग के नतीजे नहीं मिल रहे थे तब मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा - यदि पत्ती पर नीला रंग दिखाई दे तब क्या छन्ने कागज़ से मण्ड की जाँच का यह तरीका सही होगा? मेरे इस विचार पर भी आपकी मदद चाहिए।
इस प्रयोग को करते समय मन में अनेक प्रश्न उठे जैसे:

  1. हम यह मानकर चलते हैं कि दो-तीन दिन अँधेरे में रखने से पत्तियों से स्टार्च खत्म हो गया होगा। मैंने यह जानने के लिए अँधेरे में रखे पौधे की पत्ती तोड़कर उसकी जाँच की। पत्ती में मण्ड पाया गया, जिससे इस मान्यता पर सवाल खड़ा हुआ।
  2. पत्ती को एल्कोहल या स्प्रिट के साथ उबालने पर पत्ती सफेद या भूरे रंग की हो जाती है। पत्ती जब जाँच के लिए बाहर निकालकर रखते हैं तो 10 या 15 मिनट के बाद वही पत्ती फिर से थोड़ी-थोड़ी हरे रंग की दिखाई देने लगती है। ऐसा क्यों होता होगा?
    मैं एक विचार रख रही हूँ कि क्या ऐसा सम्भव है कि कुछ हरे रंजक सेल-वॉल में अटक गए हों, वे ही शायद फिर से धीरे-धीरे कोशिका में वापस जाकर फैल जाते होंगे। मेरा यह खयाल सही है या नहीं, इस पर इस विषय के विद्वान ज़रूर रोशनी डालें।
  3. छन्ने कागज़ पर मण्ड की जाँच करते समय पुन: यह प्रश्न उठा कि पत्ती के किस विशिष्ट हिस्से से (खुले हुए या ढँके हुए) यह मण्ड बना होगा। इसका कैसे पता चलेगा?
    तो मैंने इसका हल इस प्रकार ढूँढ़ा।

पत्ती का ढँका हुआ हिस्सा और खुला हुआ हिस्सा काटकर अलग कर दिया। फिर दोनों को अलग-अलग फ्लास्क में एल्कोहल के साथ उबाला। अब उन्हें अलग-अलग छन्ना कागज़ से छान लिया और आयोडीन से जाँच की। इस बार खुले हिस्से की पत्ती को  उबालने में इस्तेमाल किए गए एल्कोहल को छानने में इस्तेमाल हुए छन्ना कागज़ पर नीले-जामुनी रंग मिले। यह परिणाम ढँके हिस्से के साथ नहीं मिले।

अत: पढ़ते समय बहुत ही सरल लगने वाला प्रयोग बिलकुल भी वैसा नहीं हुआ जैसा सोचा था। सब नतीजे देखने पर यह तो लग रहा है कि पुस्तक के विवरण के अनुसार पत्ती की जाँच और उसका परिणाम उस प्रकार नहीं मिल रहा है। पर पुस्तक में दी गई बातों को झुठलाने की हिम्मत भी नहीं हो रही है।


ज्योति मिलिन्द मेडपिलवार: नागपुर महानगर पालिका के विद्यालय में पढ़ाती हैं। गतिविधियों के साथ विज्ञान पढ़ाने में रुचि। सभी फोटो: ज्योति मिलिन्द मेडपिलवार।