किशोर पंवार

फलों की तो पहचान ही हैं, सुंदर, ३' सुगंधित, रंग-बिरंगी पंखुड़ियां। हमारी नज़रें भी उन्हीं फूलों पर ठहरती हैं जिनमें ऐसी आकर्षक पंखुड़ियां हों - जैसे गुलाब, कमल, चम्पा, ग्लेडीयोलस और सूरजमुखी। परंतु घास, बांस और पीपल के फूलों को तो हम फूल मानने से ही इंकार कर देते हैं। क्योंकि हमारी कल्पना में बैठे फूलों की रचना और रंग से वे मेल नहीं खाते। फिर भी वे हैं तो फूल ही।
आखिर एक सामान्य फूल में अंखुड़ियां, पंखुड़ियां, पुंकेसर और स्त्री-केसर ही तो होते हैं। स्त्री-केसर या पुंकेसर जैसे जनन अंगों में से कोई एक अंग हो तो भी हम उसे फूल कहने में नहीं हिचकिचाते - जैसे गिलकी, कडू, करेला या ककड़ी के फूल जो एकलिंगी हैं। परंतु रंगीन पंखुड़ियां न हों तो मामला ज़रा मुश्किल हो जाता है। यानी कुल मिलाकर पंखुड़ियां ही फूल की पहचान हैं।
जी हां, यह सच भी है क्योंकि फूलधारी पौधों के अलावा चीड़, देवदार और विद्या जैसे पेड़ों में भी प्रजनन अंग होते हैं जो कई बार फूलों से भी बड़े होते हैं। उनमें अंखुड़ियों जैसी हरी रचनाएं, पुंकेसर और स्त्री-केसर जैसे महत्वपूर्ण अंग भी होते हैं, या तो साथ-साथ एक ही शंकु (Cone) में या अलग-अलग, परंतु फिर भी इन प्रजनन अंगों को कोई फूल नहीं कहता। न आम जन और न ही विज्ञान।

यानी एक बार फिर यह बात सामने आती है कि फूलों की पहचान तो नरम, नाजुक, सुगंधित व रंगीन पंखुड़ियों से ही होती है। अर्थात फूलों में पंखुडियां होना ज़रूरी है - चाहे बड़ी हों या छोटी, चाहे रंगीन या रंगहीन, सुगंधित हों या गंधहीन।
परंतु हमारे आस-पास कुछ ऐसे भी फूल हैं जिनमें आकर्षण का कारण उनकी पंखुड़ियां नहीं हैं; क्योंकि वे तो बहुत छोटी होती हैं जिन्हें देख पाना ही अत्यन्त मुश्किल होता है। जैसे बॉटल ब्रश के फूल, बबूल के पीले, रेन-ट्री के गुलाबी, केलेन्ड्रा के लाल, जामफल व यूकेलिप्टस के क्रीम कलर के तथा लाजवंती (छुई मुई) के हल्के जामुनी फूल। इन फूलों में सुंदरता व आकर्षण का कारण इनके असंख्य, स्वतंत्र, लंबे व तरह-तरह के रंग लिए हुए पुंकेसर हैं। ये ही इन फूलों को सुंदर बनाते हैं।
ऐसे ही शिरीष के हल्के हरे-पीले पुंकेसर ही इसके फूल को सुंदरता प्रदान करते हैं। अतः इन सब फूलों को हम ‘पुंकेसर फूल' भी कह सकते हैं; इनकी तुलना में जिनकी पंखुड़ियां सुंदर व रंगीन होती हैं वे ‘पंखुड़ी फूल' हुए।

अंखुड़ियां पत्तियां - पंखुड़ियां पुंकेसर 
अधिकांश फूलों में पंखुड़ियों के नीचे मिलने वाली अंखुड़ियां हरे रंग की होती हैं। इनका प्रमुख काम कली की रक्षा करना है। चूंकि ये हरी होती हैं इसलिए पत्तियों की तरह भोजन भी बनाती हैं। रंग रूप में ये उन पौधों की पत्तियों से मिलती हैं जिनके फूलों पर ये लगती हैं, जैसे गुलाब की अंखुड़ियां गुलाब की पत्तियों जैसी ही होती हैं। इनका विकास सामान्य पत्तियों से ही हुआ प्रतीत होता है क्योंकि इनमें पत्तियों की तरह ही तीन या तीन से ज्यादा संवहन तन्तु (Vascular Strand) मिलते हैं।
कुछ फूलों जैसे वॉटर लिली आदि में पंखुड़ियां भी अंखुड़ियों से विकसित हुई लगती हैं। हालांकि अधिकांश फूलों में ये पुंकेसर से विकसित हुई हैं ऐसा प्रतीत होता है - ऐसे पुंकेसरों से जिनके परागकोष समाप्त हो गए, और पत्तियां नए काम के लिए पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गईं। इस मत को इस अवलोकन का समर्थन मिलता है कि अधिकांश फूलों की पंखुड़ियों में पुंकेसरों की तरह केवल एक वेस्कुलर सप्लाई मिलती है। अर्थात एक शिरा होती है।

फूलों की ये पंखुड़ियां अक्सर सुंदर होती हैं, सुगंधित होती हैं और स्वादिष्ट भी। तभी तो कई कीट इन्हें कुतर जाते हैं। इनकी सुंदरता से आकर्षित हो कीट तथा तरह-तरह के पक्षी फूलों की तरफ खिंचे चले आते हैं। एक तरह से पंखुड़ियां फूलों का विज्ञापन विभाग संभालती हैं। और ज़ाहिर है विज्ञापन के लिए दिखावा तो ज़रूरी है ही। जितना ज्यादा दिखावा-छलावा, उतना ही ज्यादा प्रचार प्रसार। यह तो हमने जान ही लिया है कि सुंदर पंखुड़ियों का काम, कीटों ब पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करना है। इसी बात को कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि फूल जितना ज्यादा सुंदर व लुभावना होगा, उस पर मंडराने वालों की संख्या उतनी ही ज्यादा होगी।

सुंदर वस्तु को थोड़ा और सजा दिया जाए, ज़रा और रंगीन बना दिया जाए तो सोने में सुहागा हुआ न। हमारे आस-पास ही कुछ ऐसे फूल भी हैं जिनमें उनकी पंखुड़ियों के पुंकेसरों को प्रकृति ने जरा ज्यादा ही सजाया-संवारा है। फूलों में पाई जाने वाली ये अतिरिक्त रचनाएं सुंदर फूलों की अनुपम छटा में चार चांद लगा देती हैं। विश्वास न हो तो लेख के साथ छपे इन चित्रों को ही देख लें। ये तो केवल कुछ ही उदाहरण हैं, आपके आस-पास तो ऐसे और बहुत से फूल मिलेंगे। वैज्ञानिकों ने इस रचना को नाम दिया है करोना (Corona) - यानी ताज। आइए ऐसे ही कुछ फूलों को देखें और उन में करोना की सुंदरता तथा कलात्मकता का आनंद उठाएं।
कुछ फूलों में फुल के शुरुआती विकास की अवस्था के दौरान पंखुड़ियां आड़ी (समकोण पर) फट जाती हैं;
 
कनेर: कोना देखना हो तो कनेर के फूल को देखें। विशेषरूप से गुलाबी कनेर। इसमें सामान्यतः पांच पंखुड़ियां होती हैं। इनकी आंतरिक सतह पर, फुल के केन्द्र में, प्रत्येक पंखुड़ी के ऊपर जो धागेनुमा रचनाएं लगी होती हैं वे ही इसका करोना है; जो एक चौड़े खुले कप के रूप में नजर आता है।

अमरबेलः एक प्रसिद्ध परजीवी बेल, जिसे हम अमरबेल के नाम से जानते हैं। आमतौर पर हमारा ध्यान भी इस ओर नहीं जाता कि अमरबेल में फूल भी खिलते हैं। इस सुनहरी पीली धागेनुमा बेल पर पत्तियां तो नहीं होती पर समय आने पर ढेर सारे फूल ज़रूर लगते हैं। अमरबेल में खिलने वाले फूल में झालरदार करोना होता है।
 
अकाव: करोना की बात तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक हम अपने आसपास की एक सामान्य जंगली झाड़ी अकाब (आकड़ा) की बात न करें। इसकी दो प्रजातियां हैं। एक छोटी झाड़ी जिसके फूल हल्के जामुनी होते हैं। दूसरी बड़ी झाड़ी जिसमें क्रीम रंग के बड़े फूल लगते हैं। दोनों में पुंकेसरीय ताज पाया जाता है। यहां जामुनी रंग वाले फूल की बात हो रही है। छोटे जामुनी फूल में पांच चौड़ी पंखुड़ियां होती हैं जिसके सिरे थोड़े ज्यादा गहरे रंग के होते हैं। फूल के केन्द्र की ओर जो पांच सीधी खड़ी रचनाएं दिखती है वही इस फूल का करोना है। ये पार्श्वरूप से दबी हुई मांसल खोखली नलिकाएं होती हैं जो पुंकेसरीय नलिका से चिपकी रहती है। इसके नीचे के भाग में पतली नुकीली सींगनुमा संरचना (स्पर) होती है जिससे मकरंद (नेक्टर) स्रावित होता है। फूल के ठीक केन्द्र में सितारेनुमा पंचकोणीय रचना वर्तिकाग्र है।

जिससे फूलों पर पंखुड़ियों के अतिरिक्त एक और चक्र बन जाता है। यही अतिरिक्त चक्र करोना है। फूलों में करोना पंखुड़ी जैसा, शल्क लिए या रोएंनुमा हो सकता है। यह रचना पंखुड़ियों से जुड़ी हुई हो सकती है या अलग भी। इस तरह का करोना 'पंखुड़ीय करोना' कहलाता है। कुछ फूलों में करोना नर प्रजनन अंग पुंकेसर के सहयोग से बनता है, इसे 'पुंकेसरीय
 
कर्णफूलनुमा करोनाः सफेद आकड़े में पंखुड़ियां ज्यादा लंबी, हलकी हरी-सफेद और नीचे की ओर मुड़ी होती हैं। फूल के केन्द्र में ऊपर की ओर उठा हुआ कलात्मक भाग ही इसका करोना है। प्रत्येक करोना के नीचे का हिस्सा प्रतिकेन्द्रित होता है और ऊपरी हिस्सा चपटा। प्रत्येक करोना एक बहुत ही सुंदर कर्ण-फूल जैसी रचना है। इस फूल में सितारेनुमा रचना वर्तिकाग्र है।
 
कौरव-पांडवः इसे आमतौर पर झुमकलता या 'राखी का फूल' कहते हैं। सुंदर चितकबरा एवं सूर्य की किरणों की तरह फैला हुआ जामुनी सफेद करोना, मिलता है। इसमें पांच पंखुड़ियां होती हैं जिनके ऊपरी हिस्से पर किरणों जैसा चक्रीय करोना लगा रहता है। कुछ लोग इसे कौरव-पांडव के नाम से भी जानते हैं। इसमें करोना ढेर सारी संख्या में होते हैं अतः इन्हें कौरव, व पांच पुंकेसरों को पांडव कहा जाता है। इस फूल की सुंदरता, रचना व रंग संयोजन वाकई गजब का है।

हल्दी-कुमकुम का करोना: परंतु सबसे सुंदर व रंगीन करोना तो मिलता है। हल्दी-कुंकू (काका तुंडी) के पौधों में। यह एक सामान्य सुंदर-सा पौधा है जिसे बगीचों में इसके सुंदर फूलों के लिए ही लगाया जाता है। बनस्पति विज्ञानी इसे एस्क्लेपिया कहते हैं। इसके फूल लाल-पीले रंग के होते हैं। इसमें पंखुड़ियां उल्टी छतरी के रूप में और करोना गहरे पीले रंग की पांच अंदर की ओर मुड़ी हुई रचनाओं के रूप में दिखता है। इसका करोना भी पुंकेसरीय है। करोना से एक-एक पीले रंग की सींगनुमा रचना भी निकली होती है जो मकरंद स्रावित कर संग्रह करती है। इसका हिन्दी नाम हल्दी कुंकू, सच में बड़ा सार्थक है।
लेकिन इस सुंदरता के साथ इसमें एक खतरा भी छिपा है, दूधिया रस के रूप में। इसमें केलोट्रोपीन नामक एक पदार्थ होता है जो बहुत जहरीला है। परंतु इसके इस जहर का उपयोग करते हुए, मोनार्क तितलियां अपने अंडे इस पर देती हैं जिससे ज़हर-बुझे यानी जहर लिए लार्वा एवं तितलियां पनपती हैं, जिन्हें शिकारी पक्षी नहीं खाते।
 
करोना' कहते हैं। दोनों ही करोना बहुत सुंदर होते हैं।
जग प्रसिद्ध फूल डेफोडिल में करोना कपनुमा होता है जो फूल के समस्त चक्रों के एकदम बीच में पाया जाता है। यह सुंदर गहरे पीले रंग का होता है। इस पर ही चक्र के रूप में छः पुंकेसर लगे होते हैं। इस कुल के सब फूलों में करोना होता है जो या तो पंखुड़ियों के रंग का या उससे ज्यादा गहरा होता है।
पिछले पृष्ठों पर आपने कनेर, कौरव-पांडव, अकाव, हल्दी-कुमकुम के फूलों के करोना देखे ही हैं। अब जब आपको अकाव या हल्दी-कुंकू का पौधा नज़र आए तो उनके करोना ज़रूर देखें। आस-पास के अन्य फूलों में भी यदि करोना दिखे तो हमें जरूर बताएं।


किशोर पवार: इंदौर के होल्कर साइंस कॉलेज में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं।
सभी फोटोग्राफः के. आर. शर्मा।