संकेत राउत

छोटे कीटों की दुनिया अद्भुत होती है। न जाने कितने सारे लोगों ने कीटों के अध्ययन में अपना जीवन लगा दिया, फिर भी दुनिया के सबसे बड़े जीवसमूह में शुमार कीट वर्ग (class) के बारे में बहुत ही कम जानकारी हमारे पास होगी। कीट समूह में विविधता भी इतनी है कि दुनिया के सारे कीटों का अध्ययन करना भी लगभग नामुमकिन है। लेकिन इनमें से कुछ चुनिन्दा कीट वर्गों का काफी अध्ययन हो चुका है, जैसे कि तितली समूह।
तितली हमारी जीव-सृष्टि का नायाब और महत्वपूर्ण घटक है। डायनोसॉर के समय से तितलियाँ इस धरातल पर मण्डराती रही हैं। परागण की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाने वाली तितली का मानव जीवन के लिए महत्व हम नज़रन्दाज़ नहीं कर सकते। इस नाज़ुक और रंगीन जीव का जीवन भी बेहद दिलचस्प और रंगीन होता है।

हमें यह पता है कि जीव-सृष्टि  के विकास में ज़िन्दा रहने की चुनौतियों का योगदान काफी अहम रहा है। इस धरातल पर ज़िन्दा रहने के लिए जो तरकीबें अपनाई जाती हैं वो कई बार हमें आश्चर्यचकित कर देती हैं। भीमकाय हाथी से लेकर नन्ही चींटी तक अलग-अलग जीव कई सारे दाव खेलकर अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।

तितली के पास भी छद्मावरण (camouflage) और अखाद्य रस जैसे रासायनिक हथियार मौजूद होते हैं| मगर आज हम जिस हथियार की बात करेंगे, उससे काफी कम ही लोग वाकिफ होंगे| यह हथियार है नकल यानी मिमिक्री का। मिमिक्री अनुकूलन का एक विशेष तरीका माना जाता है। जीव जगत में नकल कई सारे रूपों में उभरकर आती है| नकल के तरीके मुख्यतः रक्षात्मक और आक्रमक माने जाते हैं और इनमें काफी विविधता भी पाई जाती है| और तो और सिर्फ पक्षी एवं तितलियाँ ही नहीं बल्कि पेड़-पौधे भी नकल कर लेते हैं| इस लेख में हम मुख्यतः तितली की बेट्सिअन और मुलेरियन मिमिक्री से रूबरू होंगे जिसमें तितली की कुछ प्रजातियाँ अन्य प्रजातियों की तितलियों के रंग धारण करके उनकी लगभग हुबहू नकल करती हैं। लेकिन तितली में इनके अलावा ब्रोवेरिअन और ऑटोमिमिक्री जैसे नकल के अन्य प्रारूप भी देखे गए हैं|
लेकिन ऐसे नकल करने की ज़रूरत भला तितली को क्यों होगी? तो इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं एक और रोचक बात आपको बताना चाहूँगा।

कुछ तितलियाँ ज़हरीली होती हैं
क्या? सच में? हाँ, तितली की कुछ प्रजातियाँ ज़हरीली, मतलब भक्षक के लिए अखाद्य मानी जाती हैं। ऐसी तितलियों का स्वाद बेहद घिनौना होता है। मिसाल के तौर पर अपने आस-पड़ोस में नज़र डालेंगे तो कॉमन रोज़ (Pachliopta aristolochiae), स्ट्राइप्ड टाइगर (Danaus genutia), प्लेन टाइगर (Danaus chrysippus), ब्लू टाइगर (Tirumala limniace) और कॉमन क्रो (Euploea core) जैसी कुछ तितलियों की प्रजातियाँ आप आसानी-से देख सकते हैं। बाग में या घास के मैदानों में और शहर में भी आप इन्हें देख सकते हैं। ज़हरीली तितली की बात सुनकर आपके दिमाग में शायद खलबली मची होगी, तो दिल की बढ़ी हुई धड़कन को शान्त करके पहले ज़हरीली तितलियों के बारे में थोड़ी जानकारी और लेते हैं। चलो, पता लगाते हैं कि ये तितलियाँ ज़हरीली कैसे बन जाती हैं।

कहाँ से आता है तितली में ज़हर?
तितली की हर प्रजाति खास किस्म के पौधे पर अण्डे देती है जिसे तितली की उस प्रजाति का मेज़बान पौधा (होस्ट प्लांट) माना जाता है। अण्डों से बाहर आए तितली के कीटडिम्भ (लार्वा) मेज़बान पौधे की पत्तियाँ खाकर तेज़ी-से बढ़ते हैं। अब यह तो आप जानते ही होंगे कि वनस्पतियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के रसायन पाए जाते हैं। भोजन के साथ लार्वा के शरीर में ये रसायन प्रवेश पा जाते हैं और इन रसायनों के कुछ अंश वयस्क तितली के शरीर में भी बने रहते हैं। यदि किसी मेज़बान पौधे में अल्कलोइड जैसे रसायन मौजूद हों तो उस पौधे पर पले लार्वा से बनी तितली ज़हरीली या अखाद्य बन जाती है। ऐसी तितली का घिनौना स्वाद शिकारी को झकझोर देता है और भक्षक तुरन्त उसे झटककर फेंक देता है।

क्या इनसे डरना चाहिए?
बिलकुल भी नहीं। क्योंकि तितली के अन्दर समाए ये रसायन, तितली को खाने के बाद उसके भक्षक पर असर करते हैं। ऐसी तितली को छूने से या उसे हाथ में पकड़ने से हमें कोई खतरा नहीं होगा, लेकिन हमारे स्पर्श से तितली के नाज़ुक पंखों तथा शरीर को हानि पहुँच सकती है। इसलिए तितली को कभी छूने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और तितली के ज़हरीले होने का सम्बन्ध उसके अखाद्य स्वाद से है, यह ध्यान रखना चाहिए।
इन ज़हरीली तितलियों को न तेज़ गति-से उड़ने की ज़रूरत होती है, और न ही छुपने की। वे चटक रंगों से लैस होकर मन्द गति-से कम ऊँचाई पर उड़ती रहती हैं, बेहिचक अपने चमकदार पंख खोलकर आराम-से फूलों पर बैठती हैं। ज़हरीली तितली की पहचान का एक तरीका यह भी हो सकता है।

चटक रंगों का महत्व
कुदरत चटक रंगों को खतरे की घण्टी के रूप में पेश करती है। चटक रंग के जीव काफी आसानी-से शिकारियों की नज़र में आ जाते हैं लेकिन खतरनाक हथियारों से लैस ये जीव चटक रंग ओढ़े बेखौफ रहते हैं। उन पर हमला करने का जोखिम बहुत ही कम भक्षक उठाते हैं।
तो अब हम वापस लौट आते हैं नकल पर... तितली द्वारा नकल करने के सम्बन्ध में हेनरी वॉल्टर बेट्स और फ्रिट्ज़ मुलर का कार्य बेहद अहम रहा है। तो नकल के इस किस्से को हम इन दोनों जीव विज्ञानियों द्वारा दी गई जानकारी के ज़रिए आगे बढ़ाते हैं।

हेनरी वॉल्टर बेट्स का कार्य
हेनरी वॉल्टर बेट्स ब्राज़ील में अपने कार्य के दौरान संग्रहित तितलियों का निरीक्षण कर रहे थे। काफी बारीकी-से किए गए निरीक्षण के बाद उन्होंने यह पाया कि संग्रह की कुछ तितलियों के रंग और निशानियाँ एक कुल (family) की थीं तो उनकी संरचनात्मक विशेषताएँ (anatomical features) दूसरे कुल की तितलियों जैसी थीं। इसका मतलब यह था कि कुछ तितलियों ने अन्य कुल की तितलियों की बड़ी बारीकी-से नकल उतारी थी।  
अब बेट्स बिलकुल हैरान रह गए कि कैसे एक नन्हे-से जीव ने अपनी संरचनात्मक विशेषताएँ कायम रखते हुए, बिलकुल एक अलग कुल की तितली के भेष को लगभग हूबहू धारण किया होगा। बेट्स ने इसे मिमिक्री का नाम दिया और इस पर और अधिक शोध कर अपने नतीजे सन् 1862 में सबसे साझा कर दिए।


अब यदि यह बदलाव आया है तो उसका कोई-न-कोई फायदा ये तितलियाँ ज़रूर उठा रही होंगी, अन्यथा इस नकल का कोई मतलब नहीं बनता था। एक अवलोकन यह भी था कि ज़्यादातर धीमी गति से उड़ने वाली और चटक रंगों से लैस तितलियों की नकल उतारी गई थी। इस दिशा में शोध करते हुए बेट्स ने पाया कि जिन तितलियों की नकल उतारी गई थी, उन तितलियों के भीतर कुछ अखाद्य पदार्थ मौजूद थे जिसके कारण शिकारी उन तितलियों से परहेज़ करते थे। यानी नकल उतारी गई तितलियों के चटक रंग अखाद्य या ज़हरीले होने की निशानी थी। और इसका फायदा कुछ बिना ज़हर वाली तितलियाँ उनकी नकल उतारकर लेती हैं। ऐसी धोखेबाज़ तितलियाँ ज़हरीली तितलियों के रंग और आदतों को ऐसे अपनाती हैं जैसे कि भेड़िये की खाल में भेड़।

इन नकलखोर तितलियों के लार्वा ज़हरीले रसायनों वाली वनस्पति को मुँह तक नहीं लगाते और शिकारी इन तितलियों को आराम-से खा भी सकते हैं, लेकिन उनपर छितरे हुए अखाद्य तितलियों के रंग शिकारियों को झाँसा देते हैं। बेशक, इस तरकीब का फायदा ये नकलखोर तितलियाँ खूब उठाती होगीं। बेट्स के इस कार्य के सम्मान में इस रूप-परिवर्तन को बेट्सिअन मिमिक्री नाम दिया गया।
एशिया महाद्वीप में एक-दूसरे की करीबी रिश्तेदार Danaines और Euploines कुल की तितलियों की पहचान प्रमुख मॉडल के रूप में की गई जिनकी सबसे ज़्यादा नकल की जाती है, और साथ में स्वेलॉ-टेल कुल की कुछ तितलियाँ भी इनमें जोड़ दी गईं। यह बात भी सामने आई कि मॉडल ग्रुप चुनिन्दा होते हैं और नकल करने वाले ज़्यादा।


अब बेट्सिअन मिमिक्री के कुछ उदाहरण भी देख लेते हैं। कॉमन मोरमोन (Papilio polytes) तितली की मादा, क्रिमसन रोज़ (Atrophaneura hector) और कॉमन रोज़ की नकल करती है। ग्रेट एग-फ्लाई (Hypolimnas bolina) तितली की मादा, कॉमन क्रो के और डेनेड एगफ्लाई (Hypolimnas missipus) की मादा, प्लेन टाइगर तितली के रंग ओढ़ लेती है। ये सारी तितलियाँ हमें अपने आसपास आसानी-से नज़र आ जाती हैं। कॉमन माइम (Papili clytia) की नर-मादा, ब्लू टाइगर और कॉमन क्रो के रूप में दिखाई देती है। लेकिन यह तितली इतने सामान्य रूप से हमें दिखाई नहीं देती। दी गई तस्वीरों की मदद से हम कॉमन माइम की नकल देख सकते हैं।
कॉमन माइम Papiliniodae कुल की है, इसके छ: पैर आप आसानी-से देख सकते हैं लेकिन कॉमन क्रो के सिर्फ चार पैर ही दिखाई दे रहे हैं (चित्र-3)। हम जैसा पहले भी पढ़ चुके हैं, नकल उतारने के बावजूद संरचनात्मक विशेषताएँ कायम रहती हैं। कॉमन क्रो और ब्लू टाइगर, दोनों जिस Nymphalidae कुल में आते हैं, इस कुल की तितलियों को चौपाई तितलियाँ कहा जाता है। इस कुल की तितलियों के आगे के दो पैर इतने छोटे हो गए हैं कि वे मुश्किल से ही दिखाई देते हैं।


एक और बात पर भी गौर फरमाना होगा कि कॉमन मोरमॉन जिन दो तितलियों (क्रिमसन रोज़ और कॉमन रोज़) की नकल करती है, वे उसी के Papiliniodae कुल की हैं। डेनेड एगफ्लाई तितली की मादा प्लेन टाइगर की नकल करती है, ये दोनों एक ही Nymphalidae कुल की तितलियाँ हैं। लेकिन कॉमन माइम Papilionidae कुल की तितली है जो Nymphalidae कुल की तितलियों ब्लू टाइगर और कॉमन क्रो की नकल करती है। यानी तितलियाँ अपने कुल की तितलियों के अलावा अन्य कुल की तितलियों की भी नकल उतारती हैं।    

फ्रिट्ज़ मुलर का कार्य
बेट्स का शोध प्रसिद्ध होने के कुछ ही साल बाद 1879 में मुलर का ध्यान इस बात पर गया कि कुछ अखाद्य तितलियाँ अन्य अखाद्य तितलियों से बेहद मिलती-जुलती दिखाई दे रही हैं। अलग-अलग अखाद्य प्रजाति के नर और मादाओं ने लगभग एक-जैसे रंग धारण किए हैं। इस नकल को मुलेरियन मिमिक्री (Mullerian Mimicry) के नाम से जाना जाता है।
मुलेरियन मिमिक्री के उदाहरण में डार्क ब्लू टाइगर (Tirumala septentrionis), ग्लासी ब्लू टाइगर (Tirumala aglea), ब्लू टाइगर (Tirumala limniace), नीलगिरी टाइगर (Parantica nilgiriensis) के रंग-रूप बहुत हद तक एक-दूसरे से मिलते-जुलते दिखाई देते हैं जो कि Nymphalidae कुल की तितलियाँ हैं। इसी कुल के कॉमन क्रो (Euploea core), ब्राउन किंग (Euploea klugii) और डबल-ब्रांडड क्रो (Euploea sylvester) भी इसके उदाहरण हैं। Papilionidae कुल की कॉमन रोज़, क्रिमसन रोज़ और मालाबार रोज़ (Pachiliopta pandiyana) तितलियों को भी हम उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं जो एक-दूसरे की तरह दिखाई देती हैं। इन सभी तितलियों को अखाद्य माना जाता है।
हमने नकल के कुछ उदाहरण देखे, अब नकल से तितली को क्या लाभ हो सकता है, इस पर थोड़ी बात कर लेते हैं।

नकल और शिकारी
बेट्सिअन मिमिक्री का लाभ बिना ज़हरवाली तितलियों को मिलने का मुख्य कारण अखाद्य तितलियों की अधिक संख्या का होना हो सकता है। जिस तितली की नकल की है, उसकी संख्या ज़्यादा हो तो नौसिखिए शिकारियों द्वारा ज़हरीली तितलियों पर ज़्यादा-से-ज़्यादा हमले, नकल करने वाले को फायदा देंगे। मुलेरियन मिमिक्री में भी दो या उससे ज़्यादा अखाद्य प्रजातियों में हर प्रजाति को एक ही रंग के पैटर्न का फायदा होता है। इस स्थिति में यह होता होगा कि किसी भी प्रजाति की तितली पर शिकारी द्वारा हमला होने पर उस प्रजाति के अखाद्य होने का पता शिकारी को तुरन्त हो जाएगा। शिकारी उस तितली के रंगों के पैटर्न को ध्यान में रखकर, उस पर दुबारा हमला करने से परहेज़ करेगा। मुलेरियन मिमिक्री में नकल का फायदा उन तितलियों को बेशक होता होगा जो संख्या में कम होती हैं क्योंकि इस स्थिति में उन तितलियों पर हमला होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है जो रंग में समान लेकिन संख्या में अधिक होती हैं और नकल करने वाली प्रजाति संख्या में कम होने के बावजूद अपना वजूद बनाए रख पाती हैं। इसे नकारात्मक आवृत्ति पर निर्भर चयन (Negative frequency dependent selection) कहा जाता है।

नौसिखिए पक्षियों का सीखने का तरीका धोखेबाज़ तितलियों के पक्ष में जाता है। अधिकतर पक्षी खाने के लिए रंगों के पैटर्न से खाद्य और अखाद्य चीज़ों को याद रखते हैं। जिन रंगों की तितली के स्वाद ने शिकारी को एक बार झकझोर दिया हो, उस रंग से मिलती-जुलती किसी भी चीज़ से शिकारी दूर रहना चाहेगा और हो सकता है कि अपने पहले अनुभव की दोबारा-से जाँच करने में शिकारी काफी ज़्यादा समय भी ले। लेकिन नकल कर रही धोखेबाज़ तितलियों की संख्या अधिक होने से बाज़ी पलट सकती है। तब पेट भरने के लिए शिकारी कुछ अखाद्य तितलियाँ खाकर मुँह गंदा करने का खतरा उठा सकता है।

एक और बात जो बेट्सिअन मिमिक्री में उभरकर आती है, वो यह है कि नकल ज़्यादातर मादा ही करती है। क्यों? इसका एक जवाब यह हो सकता है कि समागम के बाद नर का काम लगभग खत्म हो जाता है लेकिन मादा तितली के शरीर में अण्डे होते हैं। तो अण्डों से भरा भारी शरीर लेकर उड़ना और फिर मेज़बान पौधे ढूँढ़कर अण्डे देना आसान काम तो नहीं होगा। इसमें ज़रूर नकल का फायदा मादा को मिलता होगा। लेकिन वहीं दूसरी ओर शिकारियों को झाँसा देने वाले आकर्षक नर मादा के सामने समागम के लिए योग्य उम्मीदवार होने के दावे की ज़ोरदार पेशकश कर सकते हैं।
तो तितलियों की दुनिया जितनी आकर्षक लगती है उतनी ही वह पेचीदा भी है। (शिकारियों के लिए) खाने योग्य तितलियों का दायरा भी काफी बड़ा है और उसमें भी एक ही प्रजाति के अन्दर काफी सारी विविधता देखी जा सकती है। वहीं दूसरी ओर तितलियों को बेट्सिअन मिमिक्री और मुलेरियन मिमिक्री में बाँटना भी आसान काम नहीं है। एक ही मॉडल तितली के बेट्सिअन मिमिक्री और मुलेरियन मिमिक्री के भी उदाहरण हैं। तितली और पतंगे के बीच में भी नकल के कुछ दिलचस्प उदाहरण मिले हैं। नकल आवाज़ की भी होती है। बेट्सिअन मिमिक्री और मुलेरियन मिमिक्री के अलावा भी नकल के अन्य प्रकार हैं। तो अगर आपको लग रहा है कि छलकपट और नकल का यह किस्सा यहीं तक सीमित होगा तो वह एक बड़ी भूल होगी।


संकेत राउत: आप वन्यजीव प्रेमी हैं। जंगली जानवरों के व्यवहार के बारे में विश्लेषण करने और पढ़ने में आनन्द आता है। पक्षी और तितलियाँ रुचि का मुख्य क्षेत्र हैं। स्वैच्छिक रूप से अनेक वन्यजीव अध्ययन में भाग ले चुके हैं। लगभग दो साल से एकलव्य में विज्ञान शिक्षण पर काम कर रहे हैं।
वन्य-जीव विशेषज्ञ प्रवीन काव्ले को उनके द्वारा दी गई महत्वपूर्ण मदद के लिए शुक्रिया।
सन्दर्भ सूची:
1. www.learnaboutbutterflies.com/Survival%Strategies%204.htm
2. news.ncbs.res.in/archivednews/story/butterfly-mimicry-through-eyes-bird-predators
3. https://www.sciencedaily.com/releases/2015/11/151105102943.htm
4. https://www.advancedsciencenews.com/mimicry-butterflies-muse-palette-artist/
5. https://bmcbiol.biomedcentral.com/articles/10.1186/1741-7007-8-122
6. www.mimeticbutterflies.org/mimicrybutterflies.php
7. Book: A Guide to the Butterflies of Western Ghats (India) Milind Bhakare, Hemant Ogale