शुभ्रा मिश्रा

एक स्कूल की कक्षा-7 में मेरा जाना हुआ। जैसे ही बच्चों ने बताया कि विज्ञान में उन्होंने धातु और अधातु पढ़ा है मैंने तुरन्त, बिना समय गँवाए उनकी धातु-अधातु पर समझ टटोलनी शुरु कर दी। हालाँकि, मुझे यह बहुत स्पष्ट नहीं था कि धातु-अधातु की अवधारणा का परिचय मिडिल स्कूल स्तर के बच्चों के साथ कैसे करना चाहिए।
मैंने पूछा, “धातुएँ क्या होती हैं?” इस पर ज़ोर-शोर से बहुत सारे उत्तर मिले। ऐसा लगा कि सब बच्चे धातु के बारे में अच्छे से जानते हैं। मैंने वे सब जवाब बोर्ड पर लिख लिए। 48 छात्रों वाली इस कक्षा में सभी को मौका मिले इसलिए मैंने रणनीति बनाई कि पीछे से एक-एक करके सब बोलेंगे। पीछे के बच्चों से पूछने पर उन्होंने ‘धातु’ शब्द सुने होने से भी इन्कार कर दिया। इस पर आगे के बच्चे एक साथ कहने लगे, “मैम, आप इनसे मत पूछो, ये पढ़ते नहीं हैं।” मैंने पीछे की पंक्ति के बच्चों को आगे बैठा दिया। आगे के बच्चों ने बताया कि जल्दी आने पर भी ये बच्चे पीछे बैठना ही पसन्द करते हैं। बच्चों की बातों से ऐसा लगा जैसे कक्षा में पढ़ने और न पढ़ने वाले बच्चे टैग कर दिए गए हैं। एक ओर, आगे के बच्चों की आवाज़ इतनी तेज़ है कि ऐसा लगता है कि कक्षा का प्रत्येक बच्चा बोल रहा है, वहीं इन पीछे के बच्चों की जैसे आवाज़ ही नहीं है। जब बोर्ड पर सूची बनाई तो 48 बच्चों में से कुल 6 जवाब ही आए (तालिका-1)।

तालिका-1

  धातु अधातु
1 पीटने पर टन-टनाहट की आवाज़ आती है। पीटने पर टन-टनाहट की आवाज़ नहीं आती।
2 मोड़ नहीं सकते हैं। पीटने पर चूर-चूर हो जाती है।
3 तोड़ नहीं सकते हैं। तोड़ सकते हैं।
4 पीटने पर चपटी हो जाती है। सतह खुरदुरी होती है।
5 गर्म करने पर पूरी गर्म हो जाती है। जलाने पर पूरी गर्म नहीं होती।
6 चमकदार होती है। चमकदार नहीं होती है।


बच्चों के जवाब किताबों के वाक्य नहीं थे और न ही तकनीकी शब्दावली जैसे  ऊष्मा  चालकता,  विद्युत  के सुचालक, भंगुरता आदि। वे अपनी भाषा में बता रहे थे जैसे कि ‘तवा’ के उदाहरण में एक लड़के ने कहा कि एक तरफ से गर्म करने पर दूसरे छोर तक गर्मी चली जाती है। उसका मतलब ऊष्मा के सुचालक होने से था लेकिन उसने तकनीकी शब्दावली का प्रयोग नहीं किया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि यह बच्चा एक भौतिक गुण (ऊष्मा सुचालकता) का मतलब जानता है।
बच्चे अधातु के गुणों के बारे में बतलाते हुए सहज नहीं थे। वे अधातु के लिए धातुओं के विपरीत गुण बोल रहे थे। साथ ही, अधातुओं के उदाहरण प्लास्टिक, लकड़ी, चॉक तक ही सीमित रह गए।
ऐसा लगा कि कक्षा में केवल भौतिक गुणों के आधार पर धातुओं और अधातुओं को समझाया गया है। बच्चों के लिए एक या दो गुणों का मेल होना ही किसी वस्तु को धातु या अधातु की श्रेणी में रखने के लिए पर्याप्त था। उन्होंने पढ़ा था कि धातुएँ चमकती हैं, और कठोर होती हैं। इसलिए हीरा जो कि चमकता है और कठोर भी है, उनके लिए धातु था। इसी प्रकार धातुएँ पीटने पर टन-टनाहट की आवाज़ करती हैं इसलिए पीतल भी एक धातु है। अधातु के वर्गीकरण की स्थिति में भी उनके लिए पैमाने यही थे जैसे कि प्लास्टिक, चॉक, लकड़ी से ऊष्मा और विद्युत संचारित नहीं होती और इसलिए ये वस्तुएँ अधातु हैं।

विज्ञान  शिक्षण  का  उद्देश्य विश्लेषणात्मक सोच को प्रोत्साहित करना भी है, इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने चर्चा में बच्चों के अनुभवों को पूरा स्थान दिया और सवाल-जवाब की प्रक्रिया एवं तर्कसंगत राय विकसित करने को शिक्षण का हिस्सा बनाया।

धातुएँ कठोर और मज़बूत
धातुएँ कठोर और बहुत मज़बूत होती हैं, यह बात बच्चों ने अपने दिमाग में बहुत अच्छे से बिठाई हुई थी। बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने पूछा, “आपने बताया कि सोना धातु है तो क्या वह कठोर है?” इस पर अधिकांश बच्चों का अनुभव था कि सोना मुलायम होता है और इसीलिए गहने बनाते समय कठोरता के लिए उसमें ताँबा मिलाते हैं।
मैंने बच्चों को समझाया, “किसी वस्तु का वर्गीकरण करते समय हमें सभी गुणों को समग्रता से देखना चाहिए। जैसे क्या वह गर्मी (ऊष्मा) और करेंट (विद्युत) को अपने में से गुज़रने देती है, क्या इसे खींच कर तार बनाया जा सकता है, क्या यह टन-टनाहट की आवाज़ करती है आदि। क्या सिर्फ एक शर्त को पूरा कर लेने भर से कोई वस्तु उस श्रेणी में रखी जा सकती है?” मैंने एक उदाहरण से इस बात को और स्पष्ट किया, “मान लो, एक मनुष्य होने की चार शर्तें हैं कि उसकी दो आँखें, एक नाक, दो पैर और दो हाथ होंगे। अब क्या घोड़ा भी मनुष्य है क्योंकि उसकी दो आँखें हैं?” बच्चे बोले, “नहीं, क्योंकि उसके दो हाथ और दो पैर नहीं हैं।” मैंने बोला, “इसी प्रकार केवल ऊष्मा की चालकता, किसी पदार्थ को धातु या अधातु में वर्गीकृत करने के लिए काफी नहीं है।”

सिल्वर, चाँदी व एल्युमिनियम
बच्चों  ने  सिल्वर,  चाँदी  और एल्युमिनियम को अलग-अलग धातु बताया था। इस पर और चर्चा से पता चला कि बच्चे सिल्वर शब्द का प्रयोग एल्युमिनियम के लिए कर रहे थे जबकि एल्युमिनियम शब्द उनके लिए सिर्फ किताब  तक  ही  सीमित  था।  एल्युमिनियम के बारे में पूछने पर वे कुछ बता नहीं पाए। आम तौर पर घरों में एल्युमिनियम के बर्तनों को सिल्वर के बर्तन कहा जाता है शायद इसलिए बच्चों के लिए सिल्वर ही एल्युमिनियम था। वहीं दूसरी ओर, चाँदी और सिल्वर बच्चों की बातों में बार-बार आ रहे थे। इसको स्पष्ट करने के लिए मैंने सवाल किया, “क्या सिल्वर और चाँदी एक ही चीज़ है या अलग-अलग?” जवाब में 48 में से 47 बच्चों ने सिल्वर और चाँदी को अलग-अलग कहा। एक लड़के ने कहा कि एक ही चीज़ है लेकिन उसके पास भी अपनी राय के लिए कोई तर्क नहीं था।
बजाय इसके कि मैं बच्चों को बता देती कि चाँदी को ही अँग्रेज़ी में सिल्वर कहते हैं और दोनों एक ही चीज़ हैं और आप जिसे सिल्वर कह रहे हैं वो दरअसल एल्युमिनियम है, मैंने तर्कों और बातचीत के ज़रिए वहाँ तक पहुँचना उचित समझा। बात को आगे ले जाते हुए मैंने पूछा, “सिल्वर और चाँदी में क्या अन्तर होता है?” इस पर निम्न जवाब आए।

* चाँदी गर्म करने पर पिघल जाती है जबकि सिल्वर गर्म करने पर गर्म होती है।
बच्चों का कहना था कि चाँदी गर्म करने पर पिघल जाती है जबकि सिल्वर गर्म करने पर गर्म होती है। मैंने पूछा, “कभी किसी ने एक जैसे (समान) ताप पर चॉँदी और सिल्वर को गर्म किया है क्या?” किसी ने नहीं किया था लेकिन एक लड़की ने कहा कि उसने सुनार को चाँदी पिघलाते हुए देखा है और सिल्वर के बर्तन तो गर्म हो जाते हैं। मैंने पूछा, “क्या तुमने कभी चाँदी को धीमी आँच पर या मोमबत्ती के पास रखा है?” जवाब था, “नहीं, और हमें कोई ऐसा करने भी नहीं देगा।”
मैंने बच्चों से कहा, “हम इसे करके देख सकते हैं। लगभग बराबर आयतन की चाँदी और सिल्वर की किसी वस्तु को मोमबत्ती से गर्म करें और फिर कोई निष्कर्ष निकालें कि चाँदी, सिल्वर की तरह गर्म होती है कि नहीं।”

* चाँदी महँगी होती है जबकि सिल्वर सस्ती।
बच्चों का कहना था कि चाँदी महँगी होती है जबकि सिल्वर सस्ती। मैंने पूछा, “कोई वस्तु महँगी कब होती है?” बच्चों ने कहा, “जब कम होती है।” इसमें आगे जोड़ते हुए मैंने कहा, “थोड़े ही लोग उसे ले पाएँ इसलिए उसके दाम बढ़ जाते हैं। अगर सिल्वर की मात्रा कम हो जाए तो वह महँगी हो जाएगी।”
* चाँदी वज़न में भारी होती है जबकि सिल्वर हल्की।

बच्चे कह रहे थे कि चाँदी वज़न में भारी होती है जबकि सिल्वर हल्की। यदि घनत्व की दृष्टि से देखें तो बच्चे सही ही कह रहे थे। चाँदी का परमाणु  भार 107.8 है और घनत्व 10.4 ढ़/ड़थ्र्3 है जबकि एल्युमिनियम का परमाणु भार 27 और घनत्व 2.7 ढ़/ड़थ्र्3 है। फिर मैंने सवाल किया, “इसका मतलब तो यह हुआ कि हम लोग भारी धातु के गहने पहनते हैं और हल्की धातु के बर्तन बनाते हैं?”  बच्चे थोड़ा सोच में पड़ गए। बच्चों में यह अवधारणा शायद एल्युमिनियम के ज़्यादा आयतन के बर्तन का वज़न अन्य धातुओं के बर्तन की अपेक्षा कम होने के चलते उत्पन्न हुई।

* चाँदी के गहने बनाते हैं जबकि सिल्वर के बर्तन।
चाँदी और सिल्वर में अन्तर की  ाृंखला में अगला था कि चाँदी के गहने बनाते हैं जबकि सिल्वर के बर्तन। मेरा कहना था, “आखिर हम चाँदी के गहने क्यों बनाते हैं? क्या इसका उल्टा नहीं कर सकते यानी चाँदी के बर्तन बनाओ और सिल्वर के गहने?” बच्चों ने कहा, “हाँ, चाँदी के छोटे-छोटे बर्तन बनाए जाते हैं और लोग उन्हें गिफ्ट भी करते हैं।”
बर्तन बनाना है या गहना उस वस्तु की कीमत भी निर्धारित करती है। कुछ अमीर लोग चाँदी के बर्तनों का प्रयोग करते हैं।
* चाँदी थोड़े समय के बाद काली पड़ जाती है जबकि सिल्वर चमकती रहती है।
बच्चों का कहना था कि चाँदी थोड़े समय के बाद काली पड़ जाती है जबकि सिल्वर चमकती रहती है। और चाँदी को गरम पानी या सुनार के पानी से साफ कर सकते हैं।

यह एक अच्छा बिन्दु था जहाँ दैनिक जीवन के अवलोकन के आधार पर धातुओं की क्रियाशीलता पर एक स्तर की समझ बनाई जा सकती थी। इस पर मैंने पूछा, “क्या सिल्वर के बर्तन बहुत दिनों तक पानी में प्रयोग करने पर भी चमकते रहते हैं?” बच्चों का जवाब था, “नहीं, वो पुराने हो जाते हैं।” मैंने कहा, “वैसे ही चाँदी भी पुरानी हो जाती होगी।” बच्चे चुप रहे। एक लड़का बोला, “चाँदी के बर्तन साफ हो जाते हैं मगर सिल्वर के नहीं। सिल्वर के बर्तन पुराने ही रहते हैं।” मैंने पूछा, “हम में से कितने लोगों ने सिल्वर के बर्तन साफ किए हैं जैसे सुनार चाँदी के करता है?”
लोहे में जंग, ताँबे के बर्तन में हरी परत, एल्युमिनियम में परत, चाँदी का काला होना - के उदाहरण देते हुए उन्हें और अवलोकन करने को कहा।
समय कम था वरना बातचीत के बाद चाँदी और सिल्वर के सन्दर्भ में उभरे कुछ बिन्दुओं (जैसे कि चाँदी और सिल्वर को लगभग एक जैसी स्थिति में गर्म करके देखना कि क्या चाँदी पिघल रही है या चाँदी और सिल्वर को सुनार की तरह साफ करके देखना आदि) को प्रायोगिक स्तर पर करके आज़माते। प्रायोगिक अनुभव देकर बच्चों में धातु-अधातु की बेहतर समझ बनाई जा सकती थी।

बच्चों के साथ मेरा यह एक दिन का ही संवाद था। मैंने इस चर्चा को समेटते हुए स्पष्ट किया कि चाँदी को ही अँग्रेज़ी में सिल्वर कहते हैं और जिसे वे सिल्वर कह रहे हैं वह वास्तव में एल्युमिनियम है और एल्युमिनियम फॉइल का उदाहरण दिया।
आज कक्षाकक्ष में मुख्य बात थी कि बच्चे अपने दैनिक जीवन के उदाहरणों को बेहिचक साझा कर रहे थे जो चर्चा को आगे बढ़ाने में बहुत सहायक साबित हुए। वे न सिर्फ स्वयं के अवलोकन और उससे बनी समझ पर सवाल कर रहे थे, परन्तु साथ ही उसे खारिज करने की कोशिश भी कर रहे थे। वे कॉग्निटिव कॉनफ्लिक्ट की प्रक्रिया से गुज़र रहे थे।  
मुझे कोई जल्दी नहीं थी कि आज धातु और अधातु को बच्चों को समझा कर ही जाऊँ। करीब एक घण्टे की चर्चा में मैंने यह कोशिश की कि जो बच्चे सोच रहे हैं उसको समझूँ, उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के अवलोकनों को कक्षाकक्ष की चर्चा का हिस्सा बनाऊँ और उन्हें उसके उलट उदाहरणों के ज़रिए सवाल करने की प्रक्रिया से गुज़ारूँ। रोज़लिंड ड्राइवर ने अपनी पुस्तक चिल्ड्रन्स आइडियाज़ इन साइंस में बच्चों के विचार कैसे विज्ञान शिक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं पर बातचीत की है। इसके अलावा मैंने अनुभव किया कि जब शिक्षण में बच्चे के अनुभव जोड़े जाते हैं तो बच्चा खुद को कक्षा से जुड़ा हुआ पाता है और फिर खुद भी ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है।

कक्षा में बच्चों के साथ यह बात तो शायद हुई ही नहीं थी कि केवल तत्वों को ही धातु या अधातु कहा जा सकता है। रासायनिक तत्वों के बारे में कक्षा-7 के बच्चे किस हद तक समझ सकते हैं यह भी अपने आप में सवाल है। वैसे, मुझसे कई पढ़े-लिखे लोगों ने भी पूछा कि बताओ चॉक क्या है, लकड़ी क्या है -- धातु या अधातु। रसायन विज्ञान में केवल तत्वों को ही धातु व अधातु की श्रेणी में रख सकते हैं। स्टील और पत्थर को मिश्रण और हीरा तो कार्बन (अधातु) का एक अपरूप माना गया है। चॉक मुख्यत: कैल्शियम कार्बोनेट है और प्लास्टिक एक पॉलीमर (किसी यौगिक का बहुलक)। किसी भी यौगिक या मिश्रण को हम धातु या अधातु में वर्गीकृत नहीं कर सकते।


शुभ्रा मिश्रा: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड में कार्यरत हैं।
सभी चित्र: प्रज्ञा शंकरन: सृष्टि इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी, बैंगलोर से स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं।