पिछले अंक में सवालीराम ने पूछा था कि तीरन्दाज़ निशाना साधते समय एक आँख बन्द करके निशाना क्यों साधता है। इस सवाल के दो जवाब पेश कर रहे हैं। पहला जवाब हमारी पाठक चेतना खांबेटे का है। दूसरा जवाब एकलव्य की प्रकाशन टीम के साथी रुद्राशीष ने तैयार किया है।

सवाल: तीरन्दाज़ निशाना साधते समय एक आँख बन्द करके निशाना क्यों साधता है?

जवाब 1: इस सवाल को पढ़ते ही अपने विषय के ज्ञान के आधार पर लगा कि इसका जवाब तो बड़ा ही आसान है। इसे समझाने के लिए हमारी आँखों की द्विनेत्री दृष्टि (binocular vision) और त्रिआयामी (3-D) दृष्टि की जानकारी देना पर्याप्त है। फिर लगा कि लिखने के पहले थोड़ी और पुख्ता जानकारी जुटा लेना चाहिए।
मेरे छह साल के बेटे से जवाब मिला, “एक आँख इसलिए बन्द रखते हैं जिससे तीर या गोली निशाने से टकराकर दूसरी आँख में लग जाएगी तो!” इस अनपेक्षित जवाब के बाद मैंने कहा, “तब तो उसे दोनों ही आँखें बन्द कर लेनी चाहिए।” तो वह बोला, “उसे दिखाई कैसे देगा?” इस चर्चा के बीच मेरे 11 साल के बेटे ने कहा, “उन खिलाड़ियों को कोच एक आँख बन्द करके ही निशाना लगाने की ट्रेनिंग देते होंगे।”
बहरहाल, इन दोनों ने मेरी पड़ताल को भटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फिर मैंने अपने स्कूल के भौतिक शास्त्र के एक साथी और पिस्टल शूटिंग की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी छात्रा से इस बारे में बातचीत की। इन चर्चाओं से मेरे जवाब में कुछ और महत्वपूर्ण कड़ियाँ जुड़ गईं। और आखिर में ‘गूगल महाराज’ से भी मदद ले ही ली और इन सबसे जो समझ पाई हूँ उसे यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।

‘निशाना साधने’ के हुनर को सीखने से पहले हमें आँखों की देखने की प्रक्रिया पर एक ‘नज़र’ डालनी होगी। आँखें प्रकाश के प्रति संवेदनशील  एक महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय (ense organ) है। रीढ़धारी जन्तुओं में आँखों की स्थिति (location) पर गौर करें तो मछलियों से लेकर कुछ स्तनधारी चौपायों में आँखें सिर के अगल-बगल (दोनों ओर) पाई जाती हैं। जिन जानवरों में आँखें सिर के दोनों तरफ यानी चेहरे के अगल-बगल में होती हैं वे दोनों आँखों से अलग-अलग चित्र या नज़ारा देखेंगे और उनका दिमाग एक-एक करके ही उन्हें समझेगा। इसलिए इस तरह की प्रक्रिया को एक-नेत्री दृष्टि (monocular vision) कहा जाता है।
अब बात करते हैं द्विनेत्री दृष्टि के बारे में जो कि बन्दरों, उल्लुओं और हम इन्सानों में पाई जाती है। हमारे चेहरे पर आँखों की स्थिति सामने की ओर होती है जिसके कारण हमें ये द्विनेत्री दृष्टि मिलती है। हमारी दोनों आँखें कुल मिलाकर आधे-गोले (1800) तक के क्षेत्र में देख सकती हैं। दोनों आँखें जो देखती हैं उनके बीच एक बड़ा हिस्सा (लगभग 1200 से 1400) कॉमन होता है। हमारा दिमाग इस हिस्से को एक ही प्रतिबिम्ब के रूप में देखता है। कुल मिलाकर ये कहें कि इसी विशेषता के कारण हमें लम्बाई व चौड़ाई के साथ-साथ गहराई का अन्दाज़ भी मिलता है, इसे ही त्रिआयामी दृष्टि (stereoscopic vision) कहा जाता है। दोनों आँखों से देखने और एक आँख से देखने के फर्क को समझने के लिए एक आसान-सा प्रयोग करके देखते हैं।

अपने दोनों हाथों को फैलाकर तर्जनी उँगली को छोड़कर बाकि मुट्ठी बना लें। अब दोनों ओर से इन तर्जनी उँगलियों को अपने चेहरे के समान्तर ही एक-दूसरे से मिलाइए। आसान है न! अब यही प्रक्रिया एक आँख बन्द करके दोहराइए, क्या हुआ? क्या अब भी उतना ही आसान है (वैसे थोड़ी प्रेक्टिस करने पर इसमें अन्तर पड़ता है क्या?)? किसी अनजानी जगह पर सीढ़ियों को इस्तेमाल करते समय ज़रा एक आँख बन्द करके उतरने की कोशिश करें (ज़रा सम्हलकर!)। क्या कुछ मुश्किल होती है? दोनों आँखों से किसी  भी  जगह  का  एक  सटीक त्रिआयामी चित्र हमारे दिमाग में बन जाता है। जबकि एक आँख से हमें केवल द्विआयामी दृश्य दिखाई देता है। हालाँकि, कुछ समय में हमारा दिमाग (एक आँख बन्द करने के बावजूद) गहराई के बारे में भी हमें सचेत करने लग जाता है। एक और बात स्पष्ट है कि जन्मजात या किसी दुर्घटना के कारण एक आँख के न होने पर भी व्यक्ति व्यवस्थित तरीके से बाहरी दुनिया के साथ तालमेल बना ही लेता है (या कहें कि सीख जाता है)।

वापस लौटते हैं अपने सवाल पर। तो जवाब में एक कारण तो स्पष्ट है कि तीरन्दाज़ी या पिस्टल शूटिंग में अपना ध्यान एक छोटे लक्ष्य पर ही साधना होता है। इसके लिए 3-D दृष्टि की खास ज़रूरत दिखती नहीं। दोनों आँखें खुली होने पर देखने का क्षेत्र फैला होता है जिससे ध्यान केन्द्रित करना और मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए एक आँख बन्द करके अपने पूरे ध्यान से व्यक्ति उस लक्ष्य पर निशाना साधता है।
एक पहलू और भी है। दोनों हाथ समान होते हुए भी हम किसी एक का उपयोग प्रधानता से करते हैं, इसी आधार पर हम right-handed और left-handed कहलाए जाते हैं। इसी तरह माना जाता है कि हर व्यक्ति में दोनों में से एक आँख से ज़्यादा प्रभावी तस्वीर दिमाग को भेजी जाती है या यूँ कहें कि हमारा दिमाग उस आँख के देखने को प्रमुखता देता है क्योंकि यह आँख दूसरी वाली आँख से थोड़ा ज़्यादा विज़ुअल इनपुट देती है। इसे प्रमुख आँख (dominant eye) नाम दिया गया है। ये भी माना जाता है कि कुछ लोगों में दोनों आँखें समान रूप से देखती हैं (प्राकृतिक रूप से या प्रेक्टिस के बाद)। इसे समझने के लिए एक और गतिविधि की जा सकती है। अपने अँगूठे व तर्जनी से एक शून्य की आकृति या दोनों हाथों के अँगूठों व तर्जनियों को मिलाकर एक त्रिकोण बना लीजिए। इस शून्य की आकृति या त्रिकोण को हाथ सीधे रखते हुए अपनी आँखों के सामने ले आएँ। अब इस शून्य की आकृति या त्रिकोण के बीच की जगह में थोड़ी दूर स्थित किसी छोटी चीज़ (जैसे घड़ी या बल्ब) को ठीक बीचोबीच ले आएँ। ऐसा करते समय आपका हाथ या वो वस्तु धुँधली हो सकती है। अब इसी स्थिति में एक-एक करके अपनी दाईं/बाईं आँख बन्द करें (दूसरी खुली रहे!)। क्या किसी एक आँख से वस्तु स्पष्ट है जबकि दूसरी बन्द करने पर वह थोड़ी खिसक या सरक गई? जिस आँख को खुली रखने पर उस वस्तु की स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा, शायद ये आपकी प्रमुख आँख है।

सामान्यत: निशाना साधते समय प्रमुख आँख को खुला रखा जाता है जिससे सटीक निशाना लग सके। लेकिन पूरे खेल के दौरान दूसरी आँख को बन्द रखने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है जिससे आँखों पर अनावश्यक ज़ोर पड़ता है। इससे निपटने के लिए निशानेबाज़ों को एक विशेष चश्मे जैसा ब्लाइंडर दिया जाता है जिसमें एक आँख के ऊपर परदे की आड़ लगा देते हैं जिससे वह खुली रहकर भी परदे के बाहर देख नहीं पाती। वैसे कुछ लोग दोनों आँखें खुली रखकर भी सटीक निशाना साध लेते हैं। ये मामला आदत और अभ्यास से जुड़ा हो सकता है। निशानेबाज़ी के खेलों में सटीक निशाने के लिए कई अन्य कारक भी महत्वपूर्ण हैं जैसे शरीर की ताकत, हाथों और आँखों का समन्वय, एकाग्रता, अभ्यास आदि।
मैंने अपनी ओर से जवाब को साधने की पूरी कोशिश की है। अब आप तय कीजिए कि निशाना ठीक लगा कि नहीं (हाँ! लिखते समय मेरी दोनों आँखें खुली हैं)।

चेतना खांबेटे: केन्द्रिय विद्यालय, क्रमांक-2, इन्दौर में जीवविज्ञान पढ़ाती हैं।


जवाब 2:  एक आँख बन्द कर निशाना साधने के सवाल का जवाब देना मेरे लिए, बैल की आँख में निशाना लगाने से भी कहीं अधिक कठिन काम निकला।
इंटरनेट में इसका जवाब खोजते हुए मैंने पाया कि ज़्यादातर लोग यह आदतन करते हैं। बहुत-से लोग निशाना साधते समय अपनी एक आँख बन्द कर लेते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा सिखाया जाता है। वहीं कुछ लोग ऐसा महसूस करते हैं कि एक आँख बन्द कर निशाना लगाना, दोनों आँखें खोलकर निशाना लगाने से कहीं अधिक आसान और समय बचाऊ है। पर सच तो यह है कि अगर आप दोनों आँखें खुली रखते  हैं तो आपकी सटीकता बढ़ती है। यहाँ तक कि अब तो कुछ ट्रेनर भी यह सलाह देने लगे हैं कि निशाना लगाते समय दोनों आँखें खोलकर रखना कहीं बेहतर है। खास तौर पर तब जब आपका साध्य चलायमान हो यानी कि आपको जिस पर निशाना लगाना है वह अपनी जगह बदलता हो, एक मूविंग टारगेट हो - फिर आप चाहे किसी इन्सान पर निशाना साध रहे हों या किसी जानवर पर या फिर किसी गतिशील वस्तु पर।

हम चीज़ों को कैसे देखते हैं?
होता यह है कि प्रत्येक आँख में रेटिना पर दृश्य की एक तस्वीर यानी  इमेज बनती है। प्रत्येक आँख द्वारा यह (छवि) सूचना दिमाग को भेज दी जाती है। हमारा दिमाग दो अलग-अलग रेटिना द्वारा भेजी गई दो थोड़ी अलग तस्वीरें प्राप्त करता है। अलग इसलिए क्योंकि हमारी दोनों आँखों के बीच थोड़ी दूरी है और इस दूरी की वजह से दोनों के दृश्य में हल्का-सा फर्क आ जाता है। दिमाग इन दो तस्वीरों को मिलाकर एक दृश्य में तब्दील करता है। यह हमें वस्तु या दृश्य को त्रि-आयामी रूप में यानी कि वस्तु की दूरी, गति और उसके स्थान सम्बन्धी  अभिविन्यास  (स्पेशियल ओरियंटेशन) तक को देख पाने की क्षमता प्रदान करता है। और इस तरह बदलते हुए वातावरण में, खास तौर पर गतिशील टारगेट पर, निशानेबाज़ की प्रतिक्रिया की क्षमता और सटीकता बढ़ती है।
लेकिन जब आपका टारगेट एक जगह पर स्थिर हो और उसकी दूरी भी आपको पता हो, जैसा कि शूटिंग प्रतियोगिताओं में अक्सर होता है तब स्थिति बिलकुल ही अलग होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे दिमाग को किसी एक आँख द्वारा भेजी गई सूचना को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति होती है। बिलकुल वैसे ही जैसे हम बाएँ या दाएँ हाथ वाले होते हैं, हम बाईं या दाईं आँख वाले भी होते हैं। हम कह सकते हैं कि अगर तुलना करें तो हमारी एक आँख दूसरे पर डॉमिनेंट होती है या दूसरे से अधिक प्रबल या प्रभावी होती है। ऐसे में हो सकता है कि जब निशानेबाज़ कुछ दूरी पर स्थित स्थिर लक्ष्य को साधते समय अपनी एक आँख बन्द करती है तो वास्तव में वह अपनी गैर-प्रभावी आँख को बन्द कर प्रभावी आँख को प्राथमिकता दे रही है।

एक आँख को बन्द कर लक्ष्य को साधने में जो मुख्य व्यवहारिक समस्या है वह है शारीरिक तकलीफ की। जानबूझकर, बाह्य प्रयासों से लगातार कुछ सेकण्ड के लिए एक आँख को बन्द रखने के लिए हमारी आँखों की मांसपेशियों को कई सारे प्रयास करने पड़ते हैं। इससे खुली आँख से लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने की हमारी क्षमता भी प्रभावित होती है। इसलिए आजकल   ज़्यादातर   प्रोफेशनल निशानेबाज़ या तो दोनों आँखें खोलकर निशाना साधने का अभ्यास करते हैं या फिर नॉन-डॉमिनेंट आँख के सामने कोई अपारदर्शी युक्ति (जैसे काला चश्मा) लगाकर अभ्यास करते हैं।

आप कौन-सी आँख वाले हैं?
कई सारे तरीके हैं जिनसे यह पता लगाया जा सकता है कि आपकी कौन-सी आँख डॉमिनेंट या अधिक प्रभावी है। यह जानने के लिए एक आसान-सा टेस्ट है जिसे पोर्टा टेस्ट कहते हैं। किसी एक हाथ की बाँह को चित्र में दिखाए तरीके से सीधा, लम्बा कीजिए। फिर दोनों आँखों को उस हाथ के अँगूठे के साथ, दूर किसी वस्तु से मिलाइए। अब एक-एक कर आँखों को बन्द कीजिए। आपका अलाइनमेंट बिगड़ रहा होगा और आपका लक्ष्य दाएँ-बाएँ विचलित हो रहा होगा। जिस आँख को खोलने पर लक्ष्य सबसे कम शिफ्ट हो या अपनी जगह से खिसके, वही आपकी प्रभावी आँख है।
तो  यह  कहीं  बेहतर  है  कि निशानेबाज़ी करते समय अपनी प्रभावी आँखों का इस्तेमाल किया जाए। क्यों, सही है न? पर जवाब इतना सीधा नहीं है। दुनिया की तकरीबन 80 प्रतिशत आबादी राइट हैंडेड है यानी वो काम के लिए अपने दाएँ हाथ को प्राथमिकता देती है। वहीं, 65 से 70 प्रतिशत लोगों की दाईं आँख ज़्यादा प्रभावी होती है और 20 से 25 प्रतिशत लोगों की बाईं आँख। अमूमन 1 प्रतिशत लोग ही होंगे जिनकी कोई भी आँख प्रभावी नहीं होती। अब ज़्यादातर दाईं हाथ प्रभावी लोग, दाईं आँख प्रभावी भी होते हैं। लेकिन दाईं हाथ प्रभावी लोगों में से कुछ बाईं आँख प्रभावी भी होते हैं। ऐसे ही कुछ बाईं हाथ प्रभावी लोग दाईं आँख प्रभावी होते हैं। ऐसे लोग क्रॉस-डॉमिनेंट कहलाते हैं।

निशानेबाज़ी प्रशिक्षण के दौरान ये कारक सटीकता को प्रभावित करते हैं। यानी कि अगर आप क्रॉस-डॉमिनेंट हैं तो इस कारण आपका निशाना चूक सकता है। उदाहरण के लिए, एक बायाँ हाथ और दाईं आँख वाला निशानेबाज़ टारगेट को ऊँचाई और बाएँ से मारेगा। एक निशानेबाज़ी प्रशिक्षक के अनुसार, क्रॉस-डॉमिनेंट निशानेबाज़ को तो कोई भी आसानी-से पहचान सकता है क्योंकि वह अपनी बन्दूक उस तरफ करेगा जिस तरफ की आँख प्रभावी है या फिर उसका सिर लक्ष्य के साथ घूमेगा। हालाँकि, इससे भी इतर उदाहरण मिल सकते हैं।

सामान्यतया, ज़्यादातर निशानेबाज़ अपनी प्रभावी आँख और हाथ को निशानेबाज़ी के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह स्वाभाविक भी लगता है और ऐसे में बार-बार दिशा बदलने पर आँखों और सिर का मूवमेंट भी नहीं बदलना पड़ेगा कि एक आँख ढँको या उस आँख पर टेप चिपकाओ। हाँ, यह बात भी सही है कि हममें से हर एक के हाथ और आँखों के प्रभुत्व की मात्रा अलग-अलग होती हैे। और कोई तो दोनों ही आँखों और हाथ से समान रूप से दक्ष हो और दोनों ही हाथों और आँखों का इस्तेमाल कर समान दक्षता से निशानेबाज़ी कर पाता हो।

यह जवाब लिखने से पहले जब मैंने पोर्टा टेस्ट खुद पर आज़माया तो मुझे मालूम चला कि शायद मेरी दाईं आँख अधिक प्रभावी है। आप भी इसे एक बार आज़माकर क्यों नहीं देखते? आज़माइए और पता लगाइए कि आप लेफ्ट, राइट या क्रॉस प्रभावी में से क्या हैं! और हमें लिख भेजिए।


इस जवाब को रुद्राशीष चक्रवर्ती ने तैयार किया है।
रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध रहे हैं। स्वतंत्र अनुवादक हैं।