कमलेश चन्द्र जोशी

बच्चों को पढ़कर समझना सिखाने की बात अक्सर की जाती है और इसके लिए शुरुआती कक्षाओं में शिक्षकों से विभिन्न तरह की गतिविधियों की अपेक्षाएँ भी रहती हैं जिसमें कहानी-कविता सुनाना व उन पर बात करना महत्वपूर्ण गतिविधि है। आगे जब बच्चे चौथी-पाँचवीं में पहुँचते हैं तो विस्तारित साक्षरता की बात आती है। इसमें बच्चों का विविध तरह के पाठों (टेक्स्ट) से वास्ता पड़ता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षक को अर्थ-निर्माण के विभिन्न तरीकों को काम में लाना पड़ता है और साक्षरता के उच्चस्तरीय कौशलों के विकास पर भी ध्यान देना होता है, जिनके अन्तर्गत पढ़कर समझना, अर्थ-निर्माण, भाषाई सौन्दर्य, समालोचनात्मक दृष्टिकोण, पर्यावरण बोध, संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति  आदि पहलू भी शामिल हैं। कक्षा में काम करते हुए इन पर ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही साक्षरता का उद्देश्य बच्चों को एक उत्साही पाठक बनाना, बच्चों में पढ़ने की आदत का विकास करना, साहित्यिक अभिरुचि जगाना  तथा  टेक्स्ट  को  समा-लोचनात्मक ढंग से देखने का नज़रिया विकसित करना भी है। वास्तव में पढ़ना-लिखना साथ-साथ चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं और इस पर समग्रता में ही काम होना चाहिए। 

इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर काम करने के लिए ज़रूरी है कक्षा की प्रक्रियाओं में बच्चों के साथ पाठ्य सामग्री पर चर्चा और उन्हें पाठ के साथ पूर्व-ज्ञान व अनुभवों को जोड़ने के मौके देना। अक्सर हम पाठ के मर्म को नहीं पकड़ पाते और न ही ठीक से सोच पाते हैं कि पाठ आखिर क्या कह रहा है। पाठ के किन हिस्सों पर बात करने की ज़रूरत है, क्या बात करनी चाहिए जिससे बच्चों के अनुभव, कल्पनाएँ शामिल हो पाएँ आदि। इसके बरक्स हमारी अधिकांश बातचीत तथ्यात्मक पहलुओं तक ही सीमित हो जाती है जबकि बच्चों को एहसास होना चाहिए कि जो पाठ पढ़ रहे हैं वह हमसे भी कहीं जुड़ा हो सकता है। और इस पाठ में मैं भी कहीं शामिल हूँ।

बच्चों की प्रारम्भिक साक्षरता के कौशलों को सुदृढ़ करने के उद्देेश्य से हम लोगों ने ऊधमसिंह नगर ज़िले में कुछ शिक्षकों के साथ स्कूलों में काम किया जिसके मूल में यह बात थी कि बच्चों का पढ़ना-लिखना उनके लिए एक सार्थक अनुभव बन सके। बच्चे पढ़ने-लिखने में रुचि लें। वे एक अच्छे पाठक बन सकें। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमने शिक्षकों के साथ नियमित रूप से कार्यशालाएँ व अकादमिक चर्चाएँ कीं।
आगे के इस आलेख में हम विस्तारित साक्षरता के नज़रिए से बच्चों के पढ़ना सीखने को कक्षा की चर्चाओं के द्वारा समझने का प्रयास करेंगे और यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि साक्षरता के उच्च स्तरीय कौशलों के विकास को ध्यान में रखते हुए कक्षा में किस तरह के क्रियाकलाप आयोजित किए जा सकते हैं। कक्षा में पढ़ने व लिखने की प्रक्रियाएँ साथ-साथ कैसे चल सकती हैं। और ये बच्चों के पढ़कर समझने से कैसे जुड़ी हुई हैं।

पाठ से अपने अनुभवों को जोड़ना
कक्षा पाँच के बच्चों के साथ उनकी पाठ्य पुस्तक के पाठ ‘शिमला की सैर’ को पढ़ा गया। यह पाठ बच्चों के साइकिल चलाने के अनुभवों और उसी दौरान आसपास की जगहों को किन्हीं अन्य शहरों से जोड़ने पर आधारित है। अधिकांश बच्चे अपने भाई-बहन, पिता, दोस्त आदि की मदद से साइकिल चलाना सीखते हैं। शुरुआत में माता-पिता मना भी करते हैं। इस पाठ के कुछ जानकारीनुमा सवालों के उपरान्त बच्चों के साइकिल सीखने के अनुभवों पर बात हुई जिसमें सभी बच्चे शामिल हुए। सर्वप्रथम बच्चों ने अपने-अपने अनुभव बताए और आगे उन्हें लिखकर अभिव्यक्त भी किया:
सबसे पहले अपनी साइकिल चलाना सीखना चाहता था। मैं जब भी साइकिल चलाने के लिए साइकिल घर ले आता और साइकिल चलाना सीखता और रोज़ एक-न-एक बार गिर जाता था। एक दिन मैं साइकिल चलाते हुए नाली में गिर गया। जब  मैं साइकिल चलाना सीख गया तो मुझे लगा कि मैं अपने भाई को बैठाकर चला लूँगा। तभी मैंने अपने भाई को बुलाया और कहा, ‘आओ हम घूमने चलें।’ तभी घूमने गए और सड़क पर गिर गए।

— निखिल राणा, कक्षा-5, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, टेढ़ाघाट, खटीमा।

जब मैं साइकिल चला रही थी तो मैं गिर गई थी। फिर मुझे थोड़ा- थोड़ा चलाना आ गया था। अब मैं साइकिल चला लेती हूँ। जब मैं शुरु में साइकिल सीख रही थी तो मुझे डर लगा कि मैं गिर न जाऊँ। अब मैं रोज़ साइकिल चलाती हूँ। अब मैं नहीं गिरती हूँ। पहले मैं पूरा पैडल नहीं मार पाती थी, अब मैं पूरा पैडल मार लेती हूँ। जब मेरी साइकिल गायत्री पकड़ी थी, ऐसा लगा कि वो मेरी साइकिल पकड़ी है पर मेरी साइकिल छोड़ दी थी। तो मुझे उसी दिन से साइकिल चलाना आ गया।

— नेहा राणा, कक्षा-5, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, टेढ़ाघाट, खटीमा।

बच्चों के लेखन से स्पष्ट है कि वे पाठ अपने जीवन से जोड़ पा रहे हैं। और मौका देने पर वे अपने अनुभवों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इन पर बच्चों से बात की जाए तो वे अपने अनुभवों को सुधारकर उसे फिर से भी लिख सकते हैं।

परिवेशीय सजगता व संवेदनशीलता
एक प्राथमिक विद्यालय में चौथी कक्षा की भाषा की पाठ्य पुस्तक के पाठ ‘हज़ार बाल्टी पानी’ को बच्चों के साथ पढ़ा गया। इस पाठ में जापान के यूचिको नामक लड़के की कहानी है। वह समुद्र के बाहर चट्टानों में फँस गई व्हेल को बाल्टी से पानी डाल-डालकर बचाने की कोशिश करता है और पानी डालते-डालते पस्त हो जाता है। बाद में उसके दादाजी और गाँव वाले मिलकर उसके काम को पूरा करते हैं। इस कहानी पर बच्चों से हुई चर्चा का एक बिन्दु था कि आप भी अपना अनुभव बताएँ जब आपने मुसीबत में किसी साथी या पशु-पक्षी  की मदद की। इस पर कुछ बच्चों ने अपने अनुभव बताए और इन अनुभवों को लिखा भी। इसके साथ बच्चों से यह भी बात हुई कि उन्हें पाठ के कौन से हिस्से अच्छे लगे और क्यों। कुछ बच्चों के अनुभव निम्न थे:
मेरे दोस्त का नाम अंकित है। एक दिन हम नदी में नहाने गए। वह नदी में कूद गया और डूबने लगा। तब मैंने उसकी जान बचाई।

— सचिन, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, भूड़ महोलिया, खटीमा।

मैंने एक कबूतर की जान बचाई। एक कौए ने एक कबूतर को चेप दिया था। मैं कबूतर को अपने घर ले आई। मैंने कबूतर को पट्टी लगाई। फिर एक जाला बनाया। कबूतर को जाले में डाल दिया। कबूतर ठीक होने लगा।  फिर मैंने उसकी पट्टी खोली। कबूतर को उड़ा दिया।

— रिया, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, भूड़ महोलिया, खटीमा।

इसी तरह कक्षा-3 के बच्चों को हमने चकमक में प्रकाशित कहानी ‘बुलबुल और कौआ’ पढ़ने को दी और उस पर चर्चा की। इस कहानी में भी एक चिड़िया के पैर को पतंग के धागे में फँसने व एक कौए द्वारा मदद करने की घटना है। इस कहानी को पढ़ने के उपरान्त बच्चों से बात हुई और उन्होंने अपने जीवन के अनुभव बताए और फिर अपने मन से लिखा। उसमें से एक अनुभव निम्न है:
हम घर जा रहे थे। एक चिड़िया हमारे पास आ गई। चिड़िया को करंट लगा था। हमने चिड़िया को पानी पिलाया तो चिड़िया थोड़ी ठीक हो गई। हम चिड़िया को घर ले आए।  उसे फिर पानी पिलाया और उसे धूप में रख दिया। थोड़ी देर में चिड़िया उड़ गई।

—लकी सागर, कक्षा-3, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सितारगंज द्वितीय।

यहाँ हम देख सकते हैं कि उपरोक्त दोनों कहानियों में जिस तरह से पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील होने की बात की जा रही है बच्चे उसी तरह कहानी को अपने जीवन से जोड़ते हुए अपने अनुभवों को बता रहे हैं और उन्हें लिख भी रहे हैं। कहानी का सन्दर्भ उन्हें इस तरह के मौके दे रहा है। इसमें जहाँ पढ़ने-लिखने पर एक साथ काम करते हुए भाषा शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है वहीं बच्चों में अपने आस-पड़ोस के प्रति एक संवेदनशीलता का एहसास भी हो रहा है।

पाठ के विभिन्न अर्थ
चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकशित पुस्तक ‘अम्मा सबकी प्यारी अम्मा’ कक्षा-4 से लेकर कक्षा-8 तक के बच्चों के साथ अलग-अलग पढ़ी और उस पर उनके साथ चर्चा की। यह किताब अच्छे बाल साहित्य का एक उत्कृष्ट नमूना है और हमें यह लगा कि इसे सभी बच्चों को पढ़ने का मौका ज़रूर मिलना चाहिए और इस पर बातचीत भी करनी चाहिए। कहानी की संरचना पर गौर करें तो देखने को मिलेगा कि इसमें बच्चों के जीवन व बालमन के अनुभवों पर आधारित कई घटनाएँ हैं जो कहीं-न-कहीं आम बच्चों से जुड़ती हैं। इन घटनाओं पर बच्चों से बातचीत के पर्याप्त अवसर हैं। इसमें चाहे रवि को गिलहरी के बच्चे को ढेले मारकर गिराने का दृश्य हो, गिलहरी को पिंजरे में बन्द करने का दृश्य हो, गिलहरी को बार-बार डण्डा मारकर भगाने का दृश्य हो, सोने का बहाना बनाकर गिलहरी को देखने का दृश्य हो या गिलहरी के बच्चे को आम के पेड़ पर छोड़ने का दृश्य हो।

इन सब अंशों पर बच्चों से अच्छी बातचीत होती है। बच्चे अपनी स्मृतियों में जाते हैं और अपने अनुभवों को साझा करते हैं। इन अंशों को पढ़ते हुए वे अपने जीवन के अनुभवों से गुज़रते हैं और उन्हें यह लग सकता है कि इस कहानी में वे भी हो सकते हैं। अच्छा साहित्य पाठक को स्मृतियों में झाँकने का मौका देता है। इस तरह के अनुभवों के जुड़ने को रोज़ेनब्लॉट ‘एस्थेटिक रीडिंग’ कहती हैं जिसमें तथ्यों से हटकर पाठ से जुड़ाव की बात की जाती है। वे कहती हैं कि साहित्य कोई जानकारी देने वाली चीज़ नहीं, एक एहसास की चीज़ है। किसी पाठ में अपने अनुभव जोड़ना हमें यह भी बताता है कि अर्थ केवल पाठ या पाठक के पास नहीं है। यह शिक्षक और बच्चों के बीच अन्तर्क्रिया में निहित है। यह रोज़ेनब्लॉट के पाठक प्रतिक्रिया सिद्धान्त की याद भी दिलाता है। इस तरह की चर्चा के लिए शिक्षक को बच्चों के साथ मेहनत करनी पड़ती है ताकि वे बच्चों को इस तरह सोचने के मौके दे पाएँ।

आगे बच्चों की कल्पनाशीलता व स्मृतियों के नमूने प्रस्तुत हैं:
एक था तोता। वह एक घोंसले में रहता था। उनकी एक अम्मा थी।  एक दिन रणजीत जंगल घूमने गया तो एक तोता अपने घोंसले से बाहर गिर गया था। रणजीत तोते को अपने कन्धे पर रखकर घर ले आया। वह तोते को बहुत प्यार देता था।

— रणजीत कुमार, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सूत मिल, जसपुर।

हम बुआ के घर में थे। बारिश हो रही थी। चिड़िया का बच्चा दरवाज़े में आ गिरा। वह गीला हो गया था।  हमने उसे कम्बल उढ़ाया और अलमारी के ऊपर टोकरी में रख दिया। बारिश रुक गई तो चिड़िया के बच्चे को बाहर लाए, धूप में बिठाया। वह एक चिड़िया को देखकर चिल्ला रहा था। वह उड़कर छत में बैठ गया। हम उसे पकड़कर लाए फिर वह उड़ गया।  वह उड़करचिड़िया के साथ चला गया।  हमने उसे बाय-बाय किया।

— किरन खनका, कक्षा-6, राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खेतलसंडा मुस्ताजर, खटीमा।

एक बार मैं, मेरे भईया और मेरी बहन घूमने जा रहे थे। रास्ते में एक आम का पेड़ था। मेरी छोटी बहन ने बोला, ‘भईया मुझे आम खाना है।’ भईया बोला, ‘ठीक है मैं अभी तोड़कर लाता हूँ।’ जब भईया पेड़ के पास गए तो वहाँ पर एक तोता था। उसे चोट लगी थी। मैंने बोला, ‘भईया इसे हम घर लेकर चलते हैं।’ भईया ने कहा, ‘नहीं हम इसे घर नहीं ले जाएँगे। पता नहीं किसने मारा है और अगर ले भी गए तो मर जाएगा तो?’ मैंने कहा, ‘कोई बात नहीं, तब तक हम इसे अपने पास रखेंगे।’ फिर इसे हम अपने घर ले गए। भईया ने कहा, ‘इसे घर ले आई है तो इसे दवाई लगाओ।’ मैंने बोला, ‘ठीक है लगाती हूँ।’ फिर हमने उसे दवाई लगाई और रात को एक पिंजरे में रख दिया। सुबह हमने देखा उसका घाव थोड़ा-थोड़ा भर गया था। हमने उसे पिंजरे से बाहर निकाला और बाहर लेकर आए। हमने उसे उड़ाने की कोशिश की पर वह थोड़ी दूर जाकर गिर जा रहा था। तभी माँ बोली कि अभी यह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है इसलिए इसे मत उड़ाओ वरना यह गिरेगा तो इसका घाव और बढ़ जाएगा। मम्मी उसे अपने हाथों में लेकर गई और दवा लगाकर उसे पिंजरे में रख दिया और बोली, ‘अब तुम जाकर खेलो’ और फिर हम खेलने चले गए। और जब हम रात को सोने गए तो देखा चिड़िया सो गई है। फिर हम भी सो गए। सुबह जब हमने उसे उड़ाया तो वह उड़ने लगी। हमने उसके साथ खूब खेला और मस्ती की। पाँच-छह दिन बाद हमने उसे छोड़ दिया।

— सुनीता कुमारी, कक्षा-8, राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खिलड़िया, खटीमा।

इस किताब पर चर्चा में बच्चे बढ़िया-से शरीक हुए और अपने-अपने मन से लिखने का प्रयास भी किया। बच्चों की बातचीत व उनके लेखन से पता चलता है कि एक ही पाठ को बच्चे अलग-अलग तरह से इंटरप्रेट करते हैं। यह भी समझ में आता है कि एक कहानी के कई पाठ बन सकते हैं और सभी पाठ अपनी-अपनी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। हम यह नहीं कह सकते कि यही ठीक है। रणजीत ने कहानी पढ़कर एक नई कहानी बनाने की कोशिश की जबकि बाकी लोगों ने उसमें अपने-अपने अनुभव जोड़े।
बच्चों के साथ इस तरह के कामकाज से इस पारम्परिक समझ को चर्चा के घेरे में लाया जा सकता है कि क्या हर पाठ का एक ही अर्थ है और उसकी ही हमें व्याख्या करनी चाहिए। इसके साथ ही हम यह भी देख सकते हैं कि बच्चों द्वारा अपने अनुभवों को लिखना उनकी अभिव्यक्ति की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही पर साथ ही यह प्रक्रिया बच्चों की पढ़ने-लिखने की समझ को समृद्ध करती है। हम यह देख ही रहे हैं कि दोनों प्रक्रियाएँ एक साथ कैसे चलती रहीं।

कहानी का सार बनाना
एक दिन कक्षा-4 के बच्चों के साथ चकमक में प्रकाशित कहानी ‘बूढ़ी ऊनी नानी’ पढ़ी। प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए यह एक अलग तरह की कहानी थी। इस कहानी पर भी बच्चों से उनके परिवेश के बारे में बात हुई। यह भी बात हुई कि इस कहानी में नानी तो स्वेटर, मोजे आदि बुन रही है, आपकी नानी क्या करती है। उन्होंने कहा कि हमारी नानी तो मज़दूरी करती है, घर पर चारा काटती है, अस्पताल में काम करती है आदि। इसके बाद उनसे कहा गया कि इस कहानी से उन्हें जो समझ में आया उसे अपने शब्दों में लिखने की कोशिश करें।
इसके अन्तर्गत फौजा सिंह ने लिखा:
बूढ़ी नानी ऊन के गोले बना रही थी। बारिश हुई तो नानी को गुदगुदी हुई। ऊन का गोला तितली के ऊपर गिरा तो तितली रंग-बिरंगी हो गई। जब बारिश हुई तो ऊन के गोले गिर पड़े। जब ऊन के गोले सूरज के पास गए तो सूरज ने उसे गरमाहट दी और पकौड़े खिलाए।

— फौजा सिंह, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय विडौरा, सितारगंज।

फौजा ने कहानी को अपने शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कहानी का सार बनाना, उसे अपने शब्दों में लिखना, पढ़कर समझने के उच्च स्तरीय कौशलों में से एक है। इसे हम वायगोत्स्की के ‘ज़ोन ऑफ प्रोक्सिमल डेवलपमेंट’ से जोड़कर देख सकते हैं जिसमें बच्चों के संज्ञानात्मक स्तर पर एक चुनौती प्रस्तुत करने की बात की जाती है और उससे बच्चे जूझने का प्रयास करते हैं। हमारे स्कूलों में  इस तरह के काम करने के मौके कम ही मिलते हैं।

अभिव्यक्ति
कक्षा-4 के बच्चों के साथ ‘हाथी की हिचकी’ नामक किताब पर बातचीत हुई:
आपने चिम्पैंज़ी व ज़ेब्रा देखा है? कहाँ देखा? तो बच्चे बताते हैं - टी.वी. पर। तुम्हें हिचकी आती है तो तुम क्या करते हो? क्या तुम भी सर के बल खड़े हुए हो कभी? आदि। इस चर्चा में बच्चों ने अच्छे से भागीदारी ली। उन्होंने चित्रों को भी ध्यान से देखा और किताब पढ़ने के दौरान बच्चों ने अनुमान लगाने के प्रयास किए - कहानी में शेर क्या करेगा? चूहा क्या करेगा? और हाथी कितना पानी पी जाएगा जिससे उसकी हिचकी रुक जाए? एक बच्चे ने कहा- बीस बाल्टी, एक और बच्चे ने कहा- दस बाल्टी। किसी ने कहा- नदी में जाकर पिएगा। इस तरह की चर्चाएँ होती रहीं। इसके बाद कहानी के अन्त में जब बच्चों से पूछा गया कि उसकी छींक कैसे रुकेगी तो बच्चों ने कहा-सीरप पिलाना पड़ेगा। किसी ने कहा- लौंग वाली चाय देनी पड़ेगी। किसी ने कहा- दवाई-गोली देनी पड़ेगी आदि। इसके बाद बच्चों से बात हुई कि अब हम इस कहानी के आधार पर अपने मन से सोचकर चित्र बनाएँगे और साथ ही चित्र पर अपने मन से लिखने की कोशिश करेंगे।
यह भी देखने को मिला कि कुछ बच्चे इंटरवल के दौरान भी चित्र बना रहे थे और लिख रहे थे। बच्चों ने अलग-अलग तरह के हाथी बनाए। कुछ बच्चों ने छोटा हाथी बनाया और उसे नीले रंग से रंगा। किसी ने बड़ा हाथी बनाया और उसे काले रंग से रंगा और उस पर लिखा - ‘सरकस का हाथी’। निर्मला ने इस किताब को पढ़ने व बातचीत के उपरान्त चूहे का चित्र बनाया और उस चित्र के आधार पर लिखने का प्रयास किया। मोहित ने उस कहानी के ढाँचे को पकड़कर एक नई कहानी बनाई जिसमें पूर्व में पढ़ी हुई कविता की पंक्तियाँ जोड़ दीं।
चूहा बहुत छोटा होता है।

चूहा ने सत्तर किलो दही मँगवाया।
दिन भर रहा दही के अन्दर।
बहुत बड़ा वह दही बड़ा।
फिर दरवाज़े में चूहे ने फिर उसको किया खड़ा।
मौज मनाते गाना गाते।

— निर्मला, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सिसैया, खटीमा।

एक बार शेर को भूख लगी।
चूहा ने कहा तुम केला खा लो तुम्हारी भूक मिट जाएगी।
ज़ेब्रा ने उपाय बताया तुम पानी पी लो तुम्हारी भूक मिट जाएगी।
हाथी ने उपाय दिया तुम बकरी खा लो तुम्हारी भूक मिट जाएगी।

— मोहित सिंह, कक्षा-4, राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सिसैया, खटीमा।

निर्मला के लेख से समझ में आता है कि बच्चे लिखने के दौरान अपनी पूर्व में पढ़ी रचनाओं की घटनाओं, वाक्यों, शब्दों को भी अपने लेखन में उपयोग करते हैं। इससे यह भी समझ में आता है कि पढ़ना-लिखना एक साथ जुड़े हुए हैं और ये साथ-साथ चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं।
मोहित के लेखन में हम देखते हैं कि बच्चे कहानियों की संरचना को बहुत जल्दी पकड़ते हैं और उसका उपयोग करते हुए अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं। बशर्ते हम इसके लिए उन्हें नियमित मौके प्रदान करें।

समालोचनात्मक साक्षरता
एक  दिन  एक  पूर्व-माध्यमिक विद्यालय में कक्षा-8 के बच्चों के साथ मिलकर एकलव्य द्वारा प्रकाशित किताब शहनशाह अकबर को कौन सिखाएगा पढ़ी गई और इस पर बातचीत की गई। यह राजाओं के बारे में एक अलग तरह की कहानी है जिसमें राजा भी सीखना चाहता है। आम तौर पर कहानियों में राजा शक्तिशाली व सब कुछ जानने वाला ही होता है। बच्चों से बातचीत के दौरान कहानी को उनके स्थानीय सन्दर्भ में भी रखा गया। बातचीत के दौरान उनकी इतिहास की किताब से राजा नन्द का सन्दर्भ भी आया। उनके स्थानीय सन्दर्भ में  ग्राम प्रधान, विधायक, अधिकारी आदि के व्यवहार व कामकाज के बारे में भी बात हुई। यह भी बात हुई कि वे इस किताब का कोई नया शीर्षक बताएँ। इस पर बच्चों ने बताया - कुछ न कुछ सीखा, ज्ञानी प्रजा, बुद्धिमान बीरबल, अकबर पढ़ेगा आदि। बातचीत के दौरान बच्चों ने बताया कि वे सोचते थे कि बीरबल को सब समस्याओं के हल पता हैं तभी अकबर उसकी राय माँगते हैं। इस कहानी में उन्होंने देखा कि बीरबल भी आम लोगों से सीखते रहते हैं। इसके उपरान्त बच्चों से बातचीत को अपने शब्दों में लिखने को कहा गया जिसके कुछ नमूने निम्न हैं:

पहले राजाओं के राज्य हुआ करते थे पर अब जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा राज्य चलाए जाते हैं। वही लोग जनता का ध्यान भी रखते हैं। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। बादशाह अकबर एक राजा थे जो जनता का पूरा ध्यान रखते थे। पर कुछ राजा ऐसे भी होते हैं जो अपनी प्रजा का ध्यान नहीं रखते थे और अपनी ही धुन में रहते थे। न उन्हें अपनी प्रजा का ध्यान रहता था, न ही उनके दुख-सुख में वे उनका ध्यान देते थे। ऐसे राजाओं को राजा बनने का कोई हक नहीं है पर इस कहानी में बादशाह अकबर समझ नहीं पाए कि बीरबल उन्हें क्या समझाना चाहते हैं।
जब बादशाह अकबर ने कहा, मुझे कुछ सीखना है तो पूरी प्रजा को दरबार में बुला लिया। दरबार में ऐसे लोग थे जो कुछ-न-कुछ जानते थे पर अकबर दरबार में आए तो वह गुस्से में लाल-पीले हो गए। बादशाह अकबर ने कहा, ‘तुम दरबार में कैसे लोगों को लेकर आए हो? मैंने तुमसे कहा था कि मुझे कुछ सीखना है पर तुम प्रजा के लोगों को लेकर आए हो।’ बीरबल ने कहा, ‘महाराज आपको अपनी प्रजा से कुछ-न-कुछ सीख मिल रही है।’
मैंने सोचा था बीरबल को सब कुछ आता है। बीरबल को भी किसी-न-किसी से सीख मिलती है। राजा का पहला कर्तव्य है कि उसे किसी को देखकर घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि राजा भी एक आम आदमी है। राजा के पास धन है तो वह आदमी भी है। कुछ राजा ऐसे होते हैं जो अपनी प्रजा पर अत्याचार करते हैं। पर राजा को ऐसा नहीं होना चाहिए उसे अपनी प्रजा का ध्यान रखना चाहिए।

— प्रीती कुमारी, कक्षा-8, राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, सडासडिया, खटीमा।

हमें इस कहानी पर बातचीत से यह सीख मिलती है कि हमें किसी से घृणा नहीं करना चाहिए। हमें हर किसी से कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता है। और अपने पैसे व अपनी ताकत का गुमान नहीं होना चाहिए और यह देखना चाहिए कि जनता को क्या परेशानी है। हमें जनता के सामने राजा की तरह नहीं एक साधारण व्यक्ति की तरह से पेश होना आना चाहिए ताकि वो अपनी समस्याएँ बताएँ और हमें कहानी से ये पता चलता है कि हर व्यक्ति कोई सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता क्योंकि हर किसी में कुछ-न-कुछ कमियाँ होती हैं। मैं चाहती हूँ कि जहाँ भी राजाओं के राज हों वे राजा ऐसे हों, अकबर की तरह। और राजाओं की तरह घमण्डी न हों और अपने ओहदे पर गुमान न करें।

— पायल राणा, कक्षा-8, राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, सडासडिया, खटीमा।

प्रीती के लेखन में मिलेगा कि उसने कक्षा में हुई चर्चा को अपने शब्दों में लिखने का प्रयास किया है। उसके लेखन में पाठ को समालोचनात्मक दृष्टि से देखने का प्रयास भी दिखाई पड़ रहा है। यहाँ यह भी सोच सकते हैं कि एक पाठ पर हम बच्चों से क्या-क्या बात कर सकते हैं और यह बात क्यों करनी चाहिए। इसके लिए हमें भाषा शिक्षण के व्यापक सन्दर्भों को ध्यान में रखना पड़ेगा।
इस प्रक्रिया में हम यह भी समझ सकते हैं कि साक्षरता अपने आप में साध्य नहीं है बल्कि पढ़कर समझना, अर्थ-निर्माण,   भाषाई   सौन्दर्य, समालोचनात्मक दृष्टिकोण, पर्यावरण बोध, संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति आदि कौशलों का समूह और सशक्तिकरण का साधन है। इसकी शुरुआत बच्चों के साक्षरता शिक्षण में दिखनी चाहिए। यहाँ पर ल्यूक व फ्रीबॉडी की बात याद आती है। उनका तर्क है, बच्चों को सिर्फ चिन्हों को पहचानना या अर्थ निर्मित करना ही नहीं सिखाया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने जीवन में पाठों का उपयोग करने और उन पाठों की समीक्षा करने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए।

यह भी स्पष्ट है कि अगर बच्चों को मौका मिले तो वे पाठ में अपने अनुभवों को जोड़ते हुए उसके अर्थ बनाते हैं। ये अनुभव किसी दूसरे के अनुभव से कमतर नहीं माने जा सकते। इन सबका महत्व है।
हमने यह भी देखा कि पढ़ी हुई सामग्री बच्चों को लिखने का आधार देती है। लिखने की प्रक्रिया में वे पठन सामग्री की संरचना को पकड़ते हुए खुद सोचकर लिखने का प्रयास करते हैं। बच्चों के लेखन को एक ‘प्रक्रिया’ के रूप में देखने की ज़रूरत है न कि ‘आखिरी उत्पाद’ के रूप में। लेखन पर बच्चों से बातचीत करनी चाहिए और उसे बेहतर करने के लिए सुझाव देने चाहिए। इस प्रक्रिया में एक शिक्षक अच्छे लेखन के नमूने बच्चों को दिखा सकता है और उन पर बातचीत कर सकता है जिससे बच्चों को अच्छे लेखन के विभिन्न पहलू समझ में आएँ।

पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया में अक्सर शिक्षकों से यह बात भी उभरकर आती है कि बच्चे वर्तनी, व्याकरण की गलती करते हैं। उसका क्या करें? हमें लगता है कि बच्चों की अभिव्यक्ति पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। वर्तनी, व्याकरण पर बच्चों से बात की जा सकती है, उन्हें सुझाव दिए जा सकते हैं लेकिन किसी एक शब्द को बार-बार लिखने का अभ्यास कराना उसका सही हल नहीं है। हम यह भी समझ सकते हैं कि बच्चे जितना पढ़ेंगे व लिखेंगे उनकी भाषा उतनी ही समृद्ध होगी।
इन क्रियाकलापों से यह बात स्पष्ट होती है कि हम उच्च प्राथमिक कक्षाओं में प्रारम्भिकसाक्षरता को व्यापक सन्दर्भों में देखने का प्रयास करें और उसके अनुसार काम करें, न कि केवल बच्चों को पाठ से जानकारी प्रदान करें।

इसके अन्तर्गत यह भी सोचना चाहिए कि बच्चों का पढ़ना-लिखना केवल पाठ्य पुस्तकों में ही कैद न हो जाए। बच्चों को बाल साहित्य व अन्य रुचिकर सामग्री पढ़ने के लिए देनी चाहिए।
इसे पढ़ना-लिखना सिखाने के उद्देश्यों में समाहित रूप से देखना चाहिए और इन सबको जोड़ते हुए ही बच्चों के एक पाठक बनने की प्रक्रिया का आकलन करना चाहिए। पढ़ने- लिखने की प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं और एक-दूसरे को समृद्ध करती हैं।


कमलेश चन्द्र जोशी: प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र से लम्बे समय से जुड़े हैं। इन दिनों अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधमसिंह नगर में कार्यरत।
सभी चित्र: हीरा धुर्वे: भोपाल की गंगा नगर बस्ती में रहते हैं। चित्रकला में गहरी रुचि। साथ ही ‘अदर थिएटर’ रंगमंच समूह से जुड़े हुए हैं।