इमारत की ऊंचाई कैसे नापें    
कुछ समय पहले मुझे एक सहयोगी मित्र ने सूचित किया कि वे अपने एक विद्यार्थी को भौतिक विज्ञान के एक सवाल के जवाब के लिए शून्य अंक देने जा रहे हैं, जबकि छात्र पूरे अंकों का दावा कर रहा था। आखिरकार छात्र और परीक्षक एक निष्पक्ष मध्यस्थ के लिए सहमत हुए और उसके लिए मुझे चुना गया।
मैंने परीक्षा में पूछा गया सवाल पढ़ा, “एक गगनचुंबी इमारत की ऊंचाई बैरोमीटर की मदद से कैसे नापोगे?"
छात्र का जवाब था, "बैरोमीटर को इमारत की छत पर ले जाओ, लम्बी रस्सी से बांधकर उसे जमीन तक लटकाओ। जब वह जमीन को छू जाए तो वापस ऊपर खींच लो, फिर रस्सी की लम्बाई को नापो। रस्सी की लम्बाई इमारत की ऊंचाई दर्शाती है।'' पूरे अंक लेने के लिए छात्र का तर्क सशक्त था क्योंकि उसने पूरा और एकदम सही जवाब दिया था। जबकि दूसरी तरफ, पूरे अंक देने की स्थिति में उसे भौतिक विज्ञान में काफी अच्छे अंक मिल जाते जिससे आभास मिलता कि भौतिकी पर उसकी पकड़ अच्छी है; परन्तु छात्र के इस जवाब से इस बात की पुष्टि कतई नहीं होती थी।

इन हालात में मैंने सुझाव दिया कि विद्यार्थी को एक और मौका दिया जाना चाहिए। मैंने छात्र को इस सवाल का जवाब देने के लिए छ: मिनट का समय दिया, साथ में यह हिदायत भी दी कि इस जवाब में उसकी भौतिकी की समझ भी झलकनी चाहिए। पांच मिनट बीत जाने के बाद भी उसने कुछ नहीं लिखा था। मैंने उससे पूछा कि क्या जवाब बन नहीं पड़ रहा? मगर उसने कहा कि इस सवाल के उसके पास कई सटीक जवाब हैं लेकिन वह सर्वोत्तम जवाब के बारे में सोच रहा है।
अगले ही मिनट में उसने अपना जवाब खत्म किया जो कुछ इस तरह था - "बैरोमीटर को इमारत की छत पर ले जाकर उसे छत से बाहर की ओर करके छोड़ दो ताकि वह जमीन की तरफ गिरने लगे। स्टॉपवॉच की मदद से उसके ज़मीन तक पहुंचने के समय को नाप लो।
उसके बाद X = (1/2) x atके समीकरण को इस्तेमाल करके इमारत की ऊंचाई नाप सकते हैं। इस तरीके को अपनाने पर बैरोमीटर ज़रूर चकनाचूर हो जाएगा।''


यह जवाब सुनने के बाद मैंने अपने सहयोगी से पूछा कि क्या अब वो विद्यार्थी को पूरे अंक देगा? मेरे साथी परीक्षक ने हामी भरते हुए छात्र को इस जवाब के लिए पूरे अंक दे दिए। जब मैं अपने सहयोगी के दफ्तरे से निकल रहा था तो मुझे याद आया कि छात्र ने बताया था कि उसके पास इस सवाल के कई हल और भी हैं। इसलिए मैंने उसे रोककर उनके बारे में पूछा।
उस छात्र ने सहर्ष बताना शुरू किया कि वैरोमीटर की सहायता से इमारत की ऊंचाई ज्ञात करने के और कौन-कौन से तरीके हैं।
अगर धूप खिली हो, तो आप वैरोमीटर को बाहर लेकर आइए। पहले बैरोमीटर की ऊंचाई को माप लें फिर उसे जमीन पर रखते हुए उसकी परछाई की लम्बाई को नाप लेना होगा। ‘इसी तरह इमारत से बन रही परछाई की लम्बाई को भी नाप लें। साधारण अनुपात के नियम को इस्तेमाल करके इमारत की ऊंचाई पता कर सकते हैं।"
मैंने कहा, “बहुत बढिया। अगला तरीका?"
छात्र ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “ऊंचाई नापने का एक एकदम नायाब तरीका भी है। इस तरीके में आप बैरोमीटर को थामकर इमारत की सीढियां चढ़ना शुरू करते हैं। जैसे जैसे आप सीढ़ियां चढ़ेंगे, आप दीवार पर बैरोमीटर की लम्बाई को चिन्हित करते जाते हैं। फिर आप इन चिन्हों की संख्या को गिनकर इमारत की ऊंचाई बैरोमीटर यूनिट (इकाई) में प्राप्त कर सकते हैं!''

अगर आप जटिल और परिष्कृत तरीका अपनाना चाहते हों तो बैरोमीटर को एक छोटी-सी सुतली के छोर से बांध दीजिए; फिर उसे पेंडुलम की भांति झुलाकर g का माने ज़मीन पर और इमारत की छत के स्तर पर निर्धारित कर लीजिए। फिर इन दो g के मान के अंतर के आधार पर आप सिद्धांततः इमारत की ऊंचाई ज्ञात कर सकते हैं।''

“इसी दोलक को आप इमारत की छत पर ले जाकर इतना लटकाओ कि वह लगभग जमीन को छूने लगे। उसे दोलन करवाने पर दोलन के तल में आने वाले परिवर्तन (precession) के आधार पर हम इमारत की ऊंचाई पता कर सकते हैं।''
इस समस्या को हल करने के और बहुत से तरीके हैं परन्तु यह तरीका शायद सर्वोत्तम होगा।'' उसने जारी रखते हुए कहा, “बैरोमीटर को तहखाने में ले जाओ तथा सुपरिटेन्डेंट साहब का दरवाजा खटखटाओ। जब वो जवाब दें तो उनसे कहो ‘जनाब सुपरिटेन्डेंट साहब यह एक बढ़िया बैरोमीटर है। अगर आप इमारत की ऊंचाई बता दें, तो इसे मैं आपको दे दूंगा।''

इतनी चर्चा के बाद मैंने छात्र से पूछा कि क्या वास्तव में उसे इस सवाल का पारम्परिक जवाब नहीं पता? उसने माना कि उसे आता है, पर साथ ही उसने जोड़ा कि वह हाईस्कूल और कॉलेज के अध्यापकों से तंग आ गया है जो यह सिखाने की कोशिश करते हैं कि उसे कैसे सोचना है!
आप भी सोच रहे होंगे कि ये छात्र और मध्यस्थ आखिर हैं कौन? छात्र थे नील्स बोर और मध्यस्थ रदरफोर्ड थे। किसी भी विद्यार्थी के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले ये दोनों नाम अपरिचित न होंगे।


इम चिर-परिचित किस्मे के बहुत मे स्वरूप मौजूद हैं। यहां प्रस्तुत मंस्मरण हमें ईमेल के ज़रिए पवन गुप्ता ने भेजा है।
यह किस्सा शायद कोपेनहेगन विश्वविद्यालय की भौतिकी की स्नातक परीक्षा के दौरान घटा था।
हिन्दी अनुवादः जितेंद्र कुमारः एकलव्य के होशंगाबाद केन्द्र पर कार्यरत हैं।
चित्र: आमोद कारखानिसः आमोद कम्प्युटर इंजीनियर हैं साथ ही शौकिया चित्रकार हैं।