बच्चे मैदान में बिछे चित्रों में से चित्र उठाते गए और एक-एक हिस्सा जुड़ता गया। और यूं बन गई कहानी।

होशंगाबाद ज़िले के एक गांव टुगारिया में बच्चों के साथ कई तरह की गतिविधियां करते हुए हमने चित्रकला का एक सत्र आयोजित किया। रंग बने थे गेरू, मिट्टी, नील आदि को पानी में घोलकर। सभी बच्चे चार-चार, पांच-पांच के समूह में बैठे थे। हमने उन्हें ब्राश और कागज़ दिए। और बातचीत शरू हुई उनसे कि क्या बनाना है:

— “क्या- क्या बनाने वाले हो तुम लोग?”  हमने बच्चों से पूछा।

— “कोई भी चीज़ तो हमें अच्छी लगे?”  बच्चों ने एक साथ कहा।

— “हां।”  हमने भी इसका समर्थन किया। जो तुम्हें अच्छा लगे वही बनाना।

कुछ बच्चे आपस में बातचीत करने लगे कि उन्हें क्या बनाना है। तो कुछ बच्चों ने योजनाएं बनानी शुरू कर दीं।

— “एक सुंदर-सा घर।”

— “हां एक घर, जिसमें एक हैंडपंप भी लगा होगा और लड़की पानी भर रही होगी।”

— “मैं तो एक स्कूल बनाऊंगा।”

— “मैं एक पेड़ बनाऊंगा।”

— “क्या मैं एक रंगोली बना सकती हूं?”  एक लड़की ने हमसे पूछा।

इस तरह बच्चे बातचीत भी कर रहे थे और चित्र भी बनाते जा रहे थे। आधे घंटे के बाद उन्होंने हमें अपने बनाए हुए चित्र दिखाना शुरू किया।

एक बच्चे ने चित्र दिखाते हुए पूछा, “इन चित्रों का क्या करेंगे?”

हमने कहा, “चलो इसके बारे में भी सोचते हैं।”

सभी चित्रों को मैदान में फैला दिया गया। बच्चों ने चित्रों पर पत्थर रखे ताकि हवा से चित्र उड़ न जाएं।

अब सभी बच्चों को एक गोल घेरे में बैठाते हुए हमने कहा, आओ, पहले तो यह देखें कि किस बच्चे ने क्या बनाया है।

एक ने पूछा, “क्या आप लोग इनमें से सबसे अच्छा चित्र चुनेंगे?”

“नहीं, हम तो सिर्फ चित्र ही देख रहे है”  हमने कहा।

फिर हमने सभी चित्रों पर नज़र दौड़ाई। एक चित्र में एक चूहा बना था। एक दूसरे चित्र में दो चूहे बनाए गए थे। हमने इन दोनों चित्रों को एक साथ रख दिया। फिर इसी तरह सभी ऐसे चित्रों को एक साथ रखना शुरू किया जिनमें बनाई चीज़ों में कुछ समानता दिखाई दे रही थी। इस तरह जो समूह बने उनमें मकानों के चित्र, फूलों के चित्र, लड़के-लड़कियां, गाय-हाथी, एक हैंडपंप और एक लड़की तथा एक चिड़िया आदि के चित्र थे।

— “चिड़िया ने क्या किया?” हमने बच्चों से सवाल किया।

— “उड़ गई किसी ने जबाब दिया उस कागज़ को बगल में रखे हुए हमने पूछा, फिर क्या हुआ?”

— “शिकारी आया”  कोई बच्चा बोला। एक बच्चे ने आदमी का एक चित्र उठाया जिसके हाथ में एक जाल भी था। उसने कहा:

—“शिकारी चिड़िया को पकड़ कर ले गया।”

—“फिर शिकारी कहां गया?”  हमने यूं ही पूछ लिया।

— “यहां पहुंच गया।” एक बच्चे ने हैंडपंप का चित्र उठाकर कहा।

— “उसे ज़ोरों से प्यास लगी थी, पानी पीना था।”

एक और बच्चे ने चूहे का चित्र उठाकर आगे कहा,

— “पर इतने में चूहा आ गया। उसने चिड़िया उड़ गई। फिर शिकारी अपना जाल लेकर घर गया।”

एक बच्चे ने एक दूसरे चित्र को उठाया जिसमें एक मकान  और मकान के सामने खड़ी लड़की का चित्र बना हुआ था। अब फिर शिकारी वाली बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा,

—“यह शिकारी की बेटी है।”

— “रात हो गई है, कुछ आवाज़ सुनकर लड़की बाहर आ गई। बाहर हाथी आ गया है। बाहर खड़ा है।”  एक बच्चे ने हाथी का चित्र हाथ में लेकर बात पूरी की।

—“फिर क्या हुआ?” हमने पूछा।

— “ये पंडितजी आ गए।”  यह कहते हुए एक बच्चे ने पंडितजी का चित्र हमें दिखाया।

— “पंडितजी ने हाथी को देखा और हाथी पर बैठकर चले गए।”

—“और शिकारी की लड़की से शादी करने के लिए एक लड़का आ गया।” एक लड़के ने कहा।

—“लेकिन लड़की तो अभी छोटी है।” हमने सबकी ओर देखते हुए अपनी बात कही।

तो.....तो... बच्चे कुछ सोच में पउ गए कि अब कहानी को कैसे आगे बढ़ाया जाए।

एक बच्चे ने फिर से वही चित्र उठाया जिसमें लड़की और मकान बना हुआ था और उसने कहा,

— “अंधेरा हो गया है, बेटी शिकारी का रास्ता देख रही है।”

— “शिकारी तो नहीं गया लेकिन भूत आ गया।”

एक बच्चे ने कहानी के छोर को किसी तरह पकड़ने की कोशिश की। बच्चा जिस चित्र को हाथ में उठाकर बता रहा था उसमें एक मकान बना हुआ था और मकान में एक छोट-सा आदमी दिख रहा था। उस आदमी को बच्चा भूत बता रहा था।

— “भूत अंदर है, लड़की बाहर आ गई है तो भूत भी बाहर आ गया। लड़की ने जल्दी से घर के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया।”

अपनी बात खत्म करके बच्चे ने एक चित्र हाथ में ले लिया।

— “भूत बाहर ही रह गया। और कहानी खत्म हो गई.....कहानी खत्म . . . . ।”

एक बच्चे ने अपना विरोध जताते हुए एक दूसरा चित्र हाथ में लेकर कहा, “कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। गाय भी तो आ गई है।”

बच्चों ने बनाए चित्र तो अब बचे ही नहीं थे फिर कहानी को आगे कैसे बढ़ाया जाए। गाय तो आ गई लेकिन फिर क्या हुआ.......? गाय की तस्वीर से कहानी आगे नहीं बन पा रही थी। इसलिए हमने तय किया कि कहानी अधूरी-सी तो लगती है पर यहां खत्म हो सकती है।

यमुना, ब्राजेश और ज्योति,
(एकलव्य के होशंगाबाद केंन्द्र में कार्यरत)

चकमक क्लब: गांवों-कस्बों में बच्चों द्वारा चलाए जा रहे ऐसे केन्द्र, जहां वे कई तरह की गतिविधियां करते हैं। जैसे पुस्तकालय चलाना, बालमेले आयोजित करना, प्रश्न-मंच प्रतियोगिता आदि। इनके अलावा बच्चे यहां विज्ञान के विभिन्न प्रयोग भी करते हैं।


सवालीराम ने पूछा सवाल

सवाल: बादल क्यों गरजता है?

लीलाम्बर पटेल, पुरषोत्तम चौधरी, संतोष साहू, कक्षा सातवीं,
शास, आ.उच्च.मा.शाला, गोटेगांव, ज़िला नरसिंहपुर