सुशील जोशी

हमारे लिए कितना आसान है न लोहे को Fe, हाइड्रोजन को H1 ऑक्सीजन को से O दर्शाया। लेकिन जब वैज्ञानिक रसायन शास्त्र की इस भाषा को खोजने में लगे हुए थे तब सब कुछ इतना आसान नहीं था।

जब किसी एक काम के लिए कोई भाषा विकसित होती है तो धीरे-धीरे एक और प्रक्रिया भी चलती है। वह काम उस भाषा से निर्धारित होने लगता है यानी कि उस भाषा के दायरे में बंधने-सा लगता है। और फिर कई मर्तबा पुरानी भाषा में उस काम की अभिव्यक्ति मुश्किल हो जाती है।

रसायन शास्त्र को उसकी विशिष्ट भाषा 18वीं-19वीं सदी में मिली। यह भाषा थी संकेत, सूत्र व समीकरण की। ऐसा नहीं कि उससे पहले संकेतों का उपयोग न किया जाता रहा हो। किमियागिर यानी अलकेमिस्ट लोग भी विभिन्न तत्वों को दर्शाने के लिए संकेतों का उपयोग करते थे मगर अलकेमी के संकेत और आधुनिक संकेतों में ज़मीन-आसमान का अंतर है।

दरअसल अलकेमी के तत्व ही कुछ और चीज़ थे। आज हम तत्वों का अर्थ और चीज़ थे। आज हम तत्वों का अर्थ भौतिक पदार्थ से लगाते हैं। अलकेमी के लिए तत्व का अर्थ गुणों से था। पारा वास्तव में कोई भौतिक पदार्थ न होकर कई गुणों (जिन्हें उस समय तत्व कहा जाता था) का मिला-जुला रूप था। इन गुणों को एक साथ या अलग-अलग किसी दूसरे पदार्थ में प्रविष्टि कराना ही रासायनिक क्रिया थी। इसलिए जब पारे का संकेत बनाया गया तो इसका मतलब मात्र एक चित्रात्मक प्रस्तुति भर था। ध्यान दीजिए कि से इसकी बनावट का कोई आभास नहीं मिलता। आधुनिक रसायनशास्त्र में हम जिस रूप में संकेतों को समझते हैं उससे इसका कोई संबंध नहीं है।

क्या थे अलकिमिया के संकेत : इन संकेतों से तत्वों के संघटन का कोई अभ्यास नहीं मिलता। ये सिर्फ एक चित्रात्मक प्रस्तुति ही कहे जा सकते हैं।   

आधुनिक संकेत

वास्तव में आधुनिक संकेतों की शुरूआत भी शायद शॉर्टहैंड के नज़रिए से हुई थी। आधुनिक रसायनशास्त्र में संकेत का ज़िक्र हमें सर्वप्रथम गायटन, लेवोज़िए, बर्थोलेट व फोरक्राय की पुस्तक ‘मेथोड-डी-नॉमेनक्लेचर किमीक’ (1787) में मिलता है। इस पुस्तक में पहली बार रासायनिक पदार्थों के नामकरण के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया। पहला सिद्धांत तो यह था कि पदार्थ के नाम उसकी बनावट को दर्शाएंगे। इसके अलावा इस पुस्तक में यह भी सुझाव दिया गया था कि पदार्थ के नाम आमतौर पर ग्रीक व लैटिन मूल्य पर आधारित होंगे। यहां यह बात गौरतलब है कि गायटन पर ‘कार्ल लिनियस’ का बहुत प्रभाव था और शुरूआत में पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं का नामकरण नए सिरे से करने का काम किया था।

इस नामकरण की सबसे प्रमुख बात यह थी कि इसमें सारे नामों का आधार तत्वों के नामों को बनाया गया था। जो भी उस समय सरलतर पदार्थों में विभक्त न किया जा सका हो उसे तत्व माना गया था। अलकिमिया से यह एक प्रमुख अंतर है कि इस नए तरीके में प्रत्येक तत्व का संकेत तो स्वतंत्र होगा मगर उन तत्वों से मिलकर बने यौगिक के संकेत (सूत्र) इन तत्वों के संकेतों से मिलकर बनेंगे।

रसायन शास्त्र और प्रयोगशाला: 1825 में जर्मनी के गिएसन विश् वविद्यालय के प्रोफेसर जुस्टस वॉन लेबिग द्वारा स्थापित प्रयोगशाला का 1842 में बनाया गया रेखाचित्र। यह प्रयोगशाला करीब 30 साल तक रसायनज्ञों के लिए एक महत्वपूर्ण जगह बनी रही, जहां वे आकर काम करते थे।

बहरहाल इस पुस्तक के प्रकाशक ने तथा लेवोज़िए के प्रयासों ने रसायनज्ञों का ध्यान मात्रात्मक अध्ययन की  ओर आकृष्ट किया। लेवोज़िए का निम्नलिखित कथन गौरतलब है:

"हम सिर्फ शब्दों के माध्यम से सोचते हैं। भाषा वास्तव में विश्लेषण की विधि होती है। बीजगणित (अलजबरा)...एक भाषा भी है और विश्लेषण की विधि भी है। तर्क की कला दरअसल एक सुव्यवस्थित भाषा से अधिक कुछ नहीं है।"

लेवोज़िए इस बात को भलीभांति समझ चुके थे कि पदार्थों के नाम मात्र छोटे रूप में लिखने के लिए चंद संकेत का इस्तेमाल, और रासायनिक बनावट व क्रियाओं को व्यक्त करने के लिए संकेतों की भाषा के इस्तेमाल में बहुत फर्क है।

डाल्टन के संकेत और विभिन्न तत्वों के परमाणु भार: 1803 में डाल्टन ने अपना प्रसिद्ध परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने विभिन् न तत्वों के लिए संकेत भी बनाए। जो ज्यामितीय आकृतियां अधिक लगते थे। इनके प्रचलन में नहीं आने का एक सबसे बड़ा कारण था, छपाई में दिक्कतें पेश आना।

क्या है यह फर्क?   
यह फर्क अलकेमी और आधुनिक रसायनशास्त्र का फर्क है। आधुतनिक रसायनशास्त्र के संकेतों का विकास परमाणु सिद्धांत तथा पदार्थों की परमाणु अवधारणा के साथ हुआ।

नवीन रसायनशास्त्र में जब आप क्त (या डाल्टन की भाषा में ) लिखते हैं तो यह हाइड्रोजन को लिखने का संक्षिप्त रूप ही नहीं है - इस संकेत से पदार्थ की मात्रा का भी पता चलता है। क्त हाइड्रोजन के परमाणु का प्रतीक है जिसकी मात्रा निश्चित है परन्तु एक परमाणु को तो तौला नहीं जा सकता। लिहाज़ा रसायनशात्रियों ने एक नई अवधारणा को अपनाया जिसे ‘मोल’ कहते हैं।

‘मोल’ का अर्थ है किसी पदार्थ के परमाणुओं या अणुओं (रासायनिक इकाइयों) की एक निश्चित संख्या का वज़न। वह निश्चित संख्या क्या होगी यह तय करना अपनी मर्ज़ी पर है। फिलहाल यह माना जाता है कि 12 ग्राम कार्बन में परमाणुओं की संख्या ही वह निश्चित संख्या है जिसके आधार पर ‘मोल’ परिभाषित किया जाएगा। यदि हाइड्रोजन के 1 ग्राम में उतने ही परमाणु होंगे जितने 12 ग्राम कार्बन में होते हैं तो 1 ग्राम ही हाइड्रोजन का एक मोल 1.007 ग्राम आता है।

किसी भी पदार्थ का संकेत उसके एक मोल का प्रतीक होता है। अर्थात हर पदार्थ का संकेत उसकी रासायनिक इकाइयों (अणु या परमाणु) की निश्चित व बराबर संख्या को दर्शाता है। यानी कि क्त का मतलब हुआ एक मोल हाइड्रोजन या 1.007 ग्राम हाइड्रोजन।

अलकिमिया के संकेतों से बना सूत्र और आधुनिक संकेतों के आधार पर बना वही सूत्र।

बर्ज़ीलियस और डाल्टन

लेबोज़िए, गायटन, फोरक्राय के संकेत तो सामने आ ही चुके थे। डाल्टन ने जब 1804 में अपना परमाणु सिद्धांत पेश किया तो उन्होंने भी परमाणुओं को दर्शाने के लिए संकेतों का इस्तेमाल किया। लेवोज़िए, गायटन, फोरक्राय के संकेत ग्रीक व लैटिन अक्षरों से बने थे जबकि डाल्टन के संकेत ज्यामिति आकृतियां थे।

इस बीच बर्ज़ीलियस ने अक्षरों से संकेत बनाए और एक पूरी तालिका प्रकाशित कर दी। डाल्टन को बर्ज़िलियस के संकेत फूटी आंखों नहीं सुहाते थे। 1837 में ब्रिाटिश ऐसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ साईन्स ने सारे ब्रिाटिश रसायनशास्त्रियों को बर्ज़ीलियस के संकेत इस्तेमाल करने के लिए राज़ी कर लिया। इस टिप्पणी करते हुए डाल्टन ने लिखा:

"बर्ज़ीलियस के संकेत डारावने हैं। जितनी देर में रसायन-शास्त्र का कोई युवा विद्यार्थी ये संकेत सीखेगा उतनी देर में वह हिबू भाषा सीख सकता है। ये (बर्ज़ीलियस के) संकेत परमाणुओं की भगदड़ जैसे दिखते हैं। इन्हें किसी क्रम में क्यों नहीं जमाया जा सकता? (ये) विज्ञान में दक्ष व्यक्ति को भ्रमित करेंगे, विद्यार्थियों को निरुत्साहित करेंगे और परमाणु सिद्धांत की सुंदरता व सरलता को नष्ट कर देंगे।”

विज्ञान के इतिहासज्ञ बताते है कि अप्रैल 1837 में इन संकेतों पर काफी गर्मागर्म बहस के बाद ही डाल्टन को पहला दिल का दौरा पड़ा था।

बहरहाल डाल्टन के संकेत चले नहीं। मुख्य समस्या मुद्रकों की ओर से आई। ये संकेत छापने में काफी अतिरिक्त खर्च होता था। परन्तु बर्ज़िलियस के हों या डाल्टन के, संकेतों ने रसायन-शास्त्र के विकास में बहुत योगदान दिया। इनके ज़रिए रसायनज्ञों की आस्था रासायनिक परमाणु में बढ़ी और जटिल रासायनिक क्रियाओं को समझने में मदद मिली। स्वयं बर्ज़िलियस के संकेत भी कई कारणों से काफी पेचीदा होते गए थे। मगर वह कहानी यहां मौजूं नहीं है।

कितनी है यह संख्या?   
वैसे तो इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि एक मोल में रासायनिक इकाइयों की संख्या कितनी है, बशर्ते कि हम हर बार उतनी ही संख्या की बात करें। इसका कारण यह है कि पदार्थ अपनी रासायनिक इकाई के रूप में ही क्रियाएं करते हैं। हमें सिर्फ इतना पता होना चाहिए कि इन रासायनिक इकाइयों के बीच परस्पर क्या अनुपात हैं, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। बहरहाल यदि आप जानना चाहते हैं कि एक मोल में रासायनिक चाहते हैं कि एक मोल में रासायनिक इकाइयों की संख्या कितनी होती है तो वह आंकड़ा 6.022045 X 1023 है। इसे सन्निकटन करके 6.022 X 1023 भी लिखा जाता है। या ‘एवोगेड्रो संख्या’ कहलाती है। (गौरतलब है कि इसकी खोज एवोगेड्रो ने नहीं की थी।) इसका मतलब यह है कि 12 ग्राम कार्बन में, 64 ग्राम तांबे में, 23 ग्राम सोडियम में, 32 ग्राम गंधक में, प्रत्येक में परमाणुओं की संख्या 6.022 X 1023 होगी। C, Cu, Na, संकेत इसी संख्या के प्रतीक हैं।

जब हम संकेतों को मात्र शॉर्टहैंड के रूप में न देखकर मात्रात्मक अभिव्यक्ति के रूप में देखते हैं तो वास्तव में रसायनशास्त्र की भाषा के अंग बनने लगते हैं। तब इनके आधार पर अंग बनने लगते हैं। तब इनके आधार पर पदार्थों की रासायनिक बनावट को दर्शाना (रासायनिक सूत्र) तथा उनकी परस्पर क्रिया को (समीकरण द्वारा) प्रदर्शित करना संभव हो जाता है। परन्तु उससे पहले एक छोट-सा विचलन औ।

यह तो आप जानते है कि कई तत्व ऐसे हैं जो आम परिस्थितियों में परमाणु के रूप में नहीं रहते। मसलन ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, क्लोरीन, नाइट्रोजन, फ्लोरीन, आयोडीन, ब्रोमीन आदि। ये सभी तत्व दो परमाणुओं के मेल से बने अणुओं के रूप में उपस्थित होते हैं। अत: इनका संकेत क्रमश: O, H, CI, N, F, I, Br लिख सही नहीं होगा।

क्योंकि यह इनके रासायनिक संघटन का गलत प्रस्तुतिकरण होगा। अत: इन्हें दर्शाने के लिए किसी तरीके की ज़रूरत थी। बर्ज़ीलियस ने इसके लिए यह तरीका सुझाया कि दो परमाणु दर्शाने के लिए तत्व के संकेत को एक आड़ी रेखा से काट दिया जाए। उदाहरण के लिए H और H या O और θ। परन्तु यह तरीका चला नहीं। इसके बाद सुझाव आया कि परमाणुओं की संख्या दर्शाने के लिए संकेत के ऊपर बिन्दियां लगाई जाएं। जैसे O और O। इस प्रकार लिखने पर पानी का सूत्र:

HO या HO या HO होगा।

तो अब हम सूत्र पर आ जाते हैं। वैसे देखा जाए तो सूत्र भी एक किस्म के संकेत यही है कि सूत्र अणुओं के होते हैं। पहले-पहल पदार्थों के सूत्र लिखते समय तत्वों के बीच अ चिह्य लगाया जाता था क्यों? यह आप ही सोचिए। (बीजगणित के संदर्भ में विचार करेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा) जैसे पानी को H + O या H + O या H + O ग्र्लिखा जाता था। इसमें भी एक नियम यह था (और आज भी है) कि ज़्यादा धनात्मक तत्व को पहले स्थान दिया जाता था

चूंकि आड़ी लाइन वगैरह लगाना मुद्रकों के लिए कठिन था इसलिए एक नई विधि निकाली गई। इस विधि में प्रत्येक तत्व के परमाणुओं की संख्या तत्व के संकेत के तुरंत बाद थोड़े ऊपर ( सुपर-स्क्रिप्ट) लिखी जाती थी। पानी का सूत्र H2O हुआ। आजकल हम इन्हें ऊपर की बजाए थोड़ा नीचे (सब स्क्रिप्ट) लिखते हैं। यह व्यवस्था लीबिग नामक रसानज्ञ ने 1834 में शुरू की थी। अब ज़रा आगे बढते हुए पहले पानी के सूत्र के विकास पर एक नज़र डाल ले:

अब यह देखा जा सकता है कि पानी का सूत्र क्या माएने रखता है। पहला है। दूसरा और तीसरा सूत्र डाल्टन का है जो पानी के रासायनिक संघटन का प्रतीत है। इस सूत्र में हाइड्रोजन का एक परमाणु है और ऑक्सीजन का भी एक परमाणु है। दूसरे शब्दों में पानी के एक अणु में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणुओं की संख्या बराबर है। यह पानी का एक मोल है। 

सूत्रों में छिपे सूत्र

संकेतों को लिखने में रोमन वर्णमाला के अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। तत्व के नाम का पहला अक्षर ही उसका संकेत है। जब दो तत्वों के नाम एक ही अक्षर से शुरू हों तो उनमें से किसी एक तत्व के नाम के पहले दो अक्षर ले लिए जाते हैं। जैसे कार्बन व क्लोरीन क्रमश: C और CI कहलाते हैं। ध्यान देने वाली बात यह हे कि पहला अक्षर कैपिटल और दूसरा छोटा लिखा जाता है। कई तत्वों के नाम और उनके संकेतों में आपको प्रथमाक्षर नहीं मिलेगा। कारण यह है कि इन तत्वों के जिन नामों के आधार पर संकेत बने हैं वे नाम अंग्रेज़ी के नहीं हैं तथा हम उनका उपयोग नहीं करते। जैसे सोडियम, टंगस्टन, पोटेशियम को Na, W, K द्वारा दर्शाया जाता है। ये इनके अन्य भाषाओं के नाम नैट्रियम, वोल्फ्रम और कैलीयम के प्रतीक हैं।

सूत्र लिखते समय उस पदार्थ में उपस्थित तत्वों के नाम लिखते हैं। आमतौर पर नाम ‘ज़्यादा धनात्मक’ से ‘कम धनात्मक’ व ‘ऋणात्मक ’व ‘ज़्यादा ऋणात्मक’ के क्रम में लिखा जाता है। प्रत्येक तत्व के बाद (यानी दाहिनी ओर) थोड़ा नीचे (यानी सबक्रिप्ट के रूप में) लिखे अंक से पता चलता है कि किसी अणु में उस तत्व के कितने परमाणु हैं। यदि कोई अंक नहीं लिखा हो तो मानकर चलते हैं कि उस तत्व का एक ही परमाणु मौजूद है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी सूत्र के बार्इं ओर जब कोई संख्या लिखी जाती है तो वह उस पूरे अणु पर लागु होती है। मान लीजिए सूत्र के बार्इं ओर 2 लिखा है, तो इसका मतलब होगा कि उस पूरे पदार्थ के दो मोल दर्शाए जा रहे हैं।

एक उदाहरण से बात को स्पष्ट करते हैं।
2C6H6O6 

इसका अर्थ होगा कि - उक्त पदाथ्र के अणु में कार्बन के 6, हाइड्रोजन के 6 तथा ऑक्सीजन का एक परमाणु है और इस पदार्थ के दो मोल लिए गए हैं।
अब आप बताइए  व O2 O के अर्थ क्या हैं व इनमें क्या फर्क है?


चौथा सूत्री बर्ज़ीलियस का है। दरअसल बर्ज़ीलिसय का सूत्र परमाणु संख्या नहीं बल्कि आयतनों का अनुपात दर्शाता था। गैलुसेक के प्रयोगों के आधार पर बर्ज़ीलिसय का निष्कर्ष था कि गैसों के समान आयतनों में परमाणुओं की संख्या बराबर होती है। बाद में पता चला कि यह निष्कर्ष गलत था। वास्तविकता यह थी कि गैसों के बराबर आयतनों में अणुओं की संख्या बराबर होती है।

बहरहाल यह तो स्पष्ट ही है कि भाषा व तर्क के लिहाज़ से डाल्टन व बर्ज़ीलिसय एक ही बात कह रहे थे कि पदार्थ का सूत्र उनके रासायनिक संघटन का प्रतीक है। इसमें हमें पता चलता है कि पदार्थ के एक अणु में कौन-कौन से तत्व हैं और न तत्वों का क्या अनुपात है। ये तत्व इसी अनुपात में क्यों हैं यह एक अलग विषय है। इसका संबंध तत्वों की संयोजन क्षमता, इलेक्ट्रॉनिक बनावट आदि से है जो कि फिलहाल हमारा विषय नहीं है।

सूत्रों की बात करने के बाद थोड़ी देर सांस ले लेना ठीक होगा। एक बार जब पदार्थों के सूत्र लिखने की परम्परा चल पड़ी तो इसके दो प्रभाव हुए। पहला प्रभाव तो यह हुआ कि रसायनशास्त्री अब पदार्थों बनावट जानने को बेचैन होने लगे। अब बनावट की बात मात्र नामों के आधार पर नहीं बल्कि आधुनिक अनुपातों के आधार पर होने लगी। आधुनिक रसायन शास्त्र में यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। दूसरा प्रभाव यह हुआ कि पदार्थों की परस्पर क्रियाओं का मात्रात्मक स्वरूप समझने में इससे बहुत मदद मिली। स्टॉईकियोमेट्री नामक शाखा शुरू हुई। रासायनिक क्रियाओं को समीकरण के रूप में दिखाने की प्रथा शुरू हुई।

एक बार फिर हम लेवोज़िए के ऋणी हैं। उन्होंने ही सर्वप्रथम रासायनिक समीकरण का सूत्र दिया था। दरअसल रसायनशास्त्र को मात्रात्मक रूप देकर परवान चढ़ाने का महत्वपूर्ण काम लेवोज़िए ने ही किया। डाल्टन ने उसे एक सिद्धांत में पिरोया। अलबत्ता रासायनिक समीकरणों के द्वारा रासायनिक क्रियाओं को दर्शाने का तरीका नियमित रूप से 1830 के बाद ही अपनाया गया। परन्तु समीकरण फिर कभी करेंगे क्योंकि उसके लिए थोड़ा और व्याकरण सीखना पड़ेगा।

सूत्र निकालने का तरीका

यदि आपको तत्वों के परमाणु भार पता हैं और यह पता है कि एक तत्व का कितना भार दूसरे तत्व के किसी भार से क्रिया करता है तो आप सूत्र की गणना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मान लिजिए किसी पदार्थ के विश्लेषण से निम्निलिखत तथ्य प्राप्त होते हैं:

सोडियम     18.8 प्रतिशत
क्लोरीन      29.0 प्रतिशत
ऑक्सीजन   52.2 प्रतिशत

इससे यह तो स्पष्ट है कि उसके सूत्र में सोडयम, क्लोरीन तथा ऑक्सीजन के नाम आएंगे। पर अभी यह पता नहीं कि ये किस अनुपात में हैं। अत: हम इनका सूत्र NaXCIYOZ लिख देते हैं। X, Y और Z पता लगाना हैं। X , Y , Z से हमें पता चलेगा कि इस यौगिक के एक अणु में Na, CI व O के कितने-कितने परमाणु हैं। या दूसरे शब्दों में यह पता चलेगा कि एक मोल यौगिक में व के कितने मोल हैं।

चलिए पहले पता लगाते हैं कि NaXCIYOZ का अणु भार यदि 100 होता तो X , Y व Z के मान क्या होते। यह पता लगाने के लिए प्रत्येक तत्व के प्रतिशत वज़न में हम उस तत्व के परमाणु भार का भाग दे देंगे।

X  =  18.8/23

Y  =  29.0/35.5

Z  =  52.0/16

X  =  0.818,             Y  =  0.818,          Z  =  3.27

मतलब यदि NaXCIYOZ का अणुभार 100 है तो उसके एक अणु में Na के 0.818 परमाणु, CI के 0.818 परमाणु तथा O के 3.27 परमाणु होंगे। तो उस पदार्थ का सूत्र होगा। Na0.818 CI0.818 O3.27 यह एक असुविधाजनक सूत्र है। यदि सारी सबक्रिप्ट पूर्णांक में आ जाएं तो अच्छा है। वैसे भी हम जानते हैं कि परमाणु पूरे ही क्रिया करते हैं। यदि पूरे सूत्र मं 0.818 का भाग दे दें तो सूत्र कुछ ऐसा होगा:

Na1CI1O4 
यह उस पदार्थ का सरलतम सूत्र कहलाता है। हमें अब यह पता है कि Na, Cl, O  के परमाणुओं का अनुपात 1:1:4 है। मगर वास्तविक संख्या 1, 1, 4 भी हो सकती है, 2, 2, 8 भी या 3, 3, 12 भी हो सकती है। इनमें से सही संख्या का चयन करने का काम उस यौगिक के अणुभार के आधार पर किया जा सकता है। मगर जब तक अणुभार नहीं मालूम तब तक सरलतम अनुपात सूत्र से ही संतोष करना होगा।

यहां एक मान्यता (या रूढ़ि) और बता देना ज़रूरी है कि जब किसी सूत्र में किसी तत्व की सबक्रिप्ट (यानी परमाणुओं की संख्या) 1 होती है तो उसे नहीं लिखा जाता। 1 से ज़्यादा होने पर उसे लिखा जाता है। इस रूढ़ि के अनुसार Na1CI1O4 को हम NaCIO4 भी लिख सकते हैं। यहद यही इस यौगिक का सही अणु सूत्र हो तो उसका अणुभार कितना होगा?

अर्थात NaCIOका अणु भार 122.5 आएगा। वास्तव में यही इसका वास्तविक अणुभार है। अत: सरलतम सूत्र ही इसका अणु सूत्र भी है। मगर यदि इसका अणुभार 245 होता तो इसका सूत्र Na2CI2O8 हो जाता।


सुशील जोशी - होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।