हम सभी को आराम की ज़रूरत होती है, लेकिन बहुत अधिक आराम से हमारा शरीर सख्त हो सकता है, अकड़ सकता है। लगातार 10 दिनों तक बिस्तर पर पड़े रहें तो हमारी 14 प्रतिशत तक मांसपेशीय क्षति हो सकती है। लेकिन शीतनिद्रा में जाने वाले प्राणियों की बात ही कुछ और है। शीतनिद्रा के दौरान ग्राउंड गिलहरियां कमज़ोर नहीं पड़तीं - वे अपनी शीतनिद्रा में भोजन के बिना भी मांसपेशियों का निर्माण कर लेती हैं।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि मांसपेशियों के निर्माण में उनकी आंतों में पलने वाले बैक्टीरिया मदद करते हैं। ये बैक्टीरिया उनके शरीर के अपशिष्ट का पुनर्चक्रण करते हैं और मांसपेशी निर्माण का कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। शीतनिद्रा में आंतों के सूक्ष्मजीवों की भूमिका पहली बार दर्शाई गई है।
शीतनिद्रा में ग्राउंड गिलहरी अपनी मांसपेशियों को कैसे बनाए रखती हैं, यह पता लगाने के लिए युनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन के शोधकर्ताओं ने यूरिया नामक अपशिष्ट रसायन की भूमिका की पड़ताल की। नई मांसपेशियां बनाने के लिए शरीर को नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जो आम तौर पर भोजन से मिलती है। पूर्व के अध्ययनों ने बताया है कि शीतनिद्रा में ग्राउंड गिलहरियां यूरिया को रीसायकल करके नाइट्रोजन प्राप्त करती है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि वे ऐसा कैसे करती हैं।
यह समझने के लिए शोधकर्ताओं ने ग्राउंड गिलहरियों में ऐसा यूरिया प्रविष्ट कराया जिसमें नाइट्रोजन का एक समस्थानिक था जिसकी मदद से यह देखा जा सकता था कि वह यूरिया शरीर में कहां-कहां पहुंचा। यह चिंहित नाइट्रोजन गिलहरी के लीवर, आंत और मांसपेशियों में दिखी।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने गिलहरियों की आंत के सूक्ष्मजीव संसार को कमज़ोर करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी। ऐसा करने पर गिलहरियां पहले जितनी मात्रा में यूरिया को प्रोटीन बनाने में उपयोगी नाइट्रोजन में परिवर्तित नहीं कर पाईं। स्वस्थ सूक्ष्मजीव संसार वाली गिलहरियों की तुलना में असंतुलित सूक्ष्मजीव संसार वाली गिलहरियों की आंत, यकृत और मांसपेशियों में कम नाइट्रोजन दिखी। इससे पता चलता है कि शीतनिद्रा के दौरान ग्राउंड गिलहरियां मांसपेशी निर्माण के लिए ज़रूरी नाइट्रोजन पाने के लिए यूरिया पुनर्चक्रित करने वाले आंत के सूक्ष्मजीवों पर निर्भर करती हैं। ये नतीजे साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
जब गिलहरी शीतनिद्रा में जाती है, तो उसकी आंत के सूक्ष्मजीवों को भी नियमित भोजन नहीं मिलता। भोजन का यह अभाव सूक्ष्मजीवों को यूरिया को पुनर्चक्रित करने के लिए उकसाता है। और जैसे-जैसे शीतनिद्रा काल बीतने लगता है सूक्ष्मजीव पुनर्चक्रण में और अधिक कुशल होते जाते हैं। गिलहरी अधिक यूरिया आंत में पहुंचाकर सूक्ष्मजीवों की मदद करती हैं। आंत के सूक्ष्मजीव पुनर्चक्रण के फलस्वरूप बनी नाइट्रोजन की अच्छी-खासी मात्रा तो अपने लिए रख लेते हैं, लेकिन कुछ नाइट्रोजन वे गिलहरी के लिए भी मुक्त करते हैं।
अध्ययन की सह-लेखक फरीबा असादी-पोर्टर बताती हैं कि मनुष्यों की आंत के सूक्ष्मजीव भी यूरिया को रीसायकल कर सकते हैं। हालांकि हम शीतनिद्रा में नहीं जाते हैं लेकिन फिर भी कई लोगों की मांसपेशियां उम्र बढ़ने, किसी बीमारी या कुपोषण के कारण क्षीण होने लगती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि गिलहरियां सूक्ष्मजीव अपशिष्ट रसायनों का पुन: उपयोग कैसे करती हैं, इसकी बेहतर समझ मांसपेशियों की क्षति रोकने में मददगार हो सकती है। बहरहाल इस पर और अधिक अध्ययन की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - March 2022
- कोविड-19 के एंडेमिक होने का मतलब
- टीकों को चकमा देता ओमिक्रॉन
- महामारी से उपजता मेडिकल कचरा
- अंग दाएं-बाएं कैसे जम जाते हैं?
- हींग के आणविक जीव विज्ञान की खोजबीन
- वृद्धावस्था में देखभाल का संकट और विकल्प
- इस वर्ष चीन की जनसंख्या घटना शुरू हो सकती है
- बालासुब्रमण्यम राममूर्ति: भारत में न्यूरोसर्जरी के जनक
- राजेश्वरी चटर्जी: एक प्रेरक व्यक्तित्व
- जेनेटिक अध्ययनों में ‘नस्ल’ शब्द के उपयोग में कमी
- जीवाश्म रिकॉर्ड का झुकाव अमीर देशों की ओर
- अमेज़न के जंगलों में पारा प्रदूषण
- भू-जल में रसायनों का घुलना चिंताजनक
- जलकुंभी: कचरे से कंचन तक की यात्रा
- मनुष्यों में खट्टा स्वाद क्यों विकसित हुआ
- शिशु जानते हैं जूठा खा लेने वाला अपना है
- बर्फ में दबा विशाल मछली प्रजनन क्षेत्र
- मनुष्य निर्मित पहला संकर पशु कुंगा
- हरी रोशनी की मदद से जंतु-संरक्षण
- बच्चों को बचाने के लिए मादा इश्क लड़ाती है
- शीतनिद्रा में गिलहरियां कैसे कमज़ोर नहीं होतीं?
- मस्तिष्क बड़ा होने में मांसाहार की भूमिका
- तेज़ी से पिघलने लगे हैं ग्लेशियर