अपने पसंदीदा स्क्विड जैसे भोजन के लिए स्कैलोप्ड हैमरहेड शार्क (Sphyrna lewini) समुद्र में 800 मीटर से भी अधिक गहराई तक गोता लगाती हैं। ऊष्णकटिबंध क्षेत्र में रहने वाली इस असमतापी शार्क के लिए 5 डिग्री सेल्सियस ठंडे पानी में गोता लगाना काफी जोखिम भरा हो सकता है। फिर भी ये बिना किसी समस्या के रात में कई बार ठंडे समुद्र गोता लगाती हैं।
साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार शार्क अपनी सांस थामकर इस जोखिम भरे काम को अंजाम देती हैं। टीम का अनुमान है कि यह शार्क गोता लगाते हुए अपने गलफड़ों और मुंह को बंद कर लेती है। ऐसा करते हुए ऑक्सीजन की आपूर्ति तो रुक जाती है लेकिन शरीर की गर्मी समुद्र में जाने से भी बच जाती है।
गौरतलब है कि ट्यूना और लैमनिड शार्क जैसे गहराई में रहने वाले समुद्री जंतु कुछ हद तक शरीर का तापमान संतुलित रख सकते हैं। ये बर्फीले तापमान में ऊष्मा को शरीर के विशिष्ट अंगों की ओर भेज देते हैं। लेकिन स्कैलोप्ड हैमरहेड शार्क में ऐसी कोई विशेषता नहीं है। जिस गहराई में ये गोता लगाती हैं वहां का तापमान मात्र 5 डिग्री सेल्सियस होता है। तापमान में इतनी गिरावट से उनकी दृष्टि और मस्तिष्क के कार्य प्रभावित हो सकते हैं। मांसपेशियों में जकड़न के चलते तैरने और पानी को गलफड़ों में खींचने में परेशानी हो सकती है और मृत्यु तक हो सकती है। 
शार्क की इस अनोखी विशेषता का पता लगाने के लिए मनोआ स्थित हवाई विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानी मार्क रॉयर और उनके दल ने हवाई द्वीप ओहू के तट पर इन जीवों पर कई सेंसर लगाए। इनमें एक त्वरणमापी था जो उनकी गति, पूंछ के हिलने की गति और शरीर की स्थिति की निगरानी करता है। इन सेंसरों ने गहराई और वहां पानी के तापमान के साथ-साथ शार्क के शरीर के आंतरिक तापमान को भी दर्ज किया। लगभग 23 दिन बाद आंकड़े काफी चौंकाने वाले थे। गोता लगाने के बाद शार्क ने पूरे समय शरीर के तापमान को सामान्य से 0.1 डिग्री सेल्सियस के भीतर बनाए रखा। ऊपर लौटते समय अंतिम 300 मीटर में शार्क के शरीर के तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई। टीम के अनुसार सबसे सशक्त व्याख्या यह है कि नीचे जाते समय शार्क मुक्त रूप से गिरी होगी और अपने गलफड़े और मुंह दोनों ही बंद रखे होंगे। इस तकनीक से वे खुद को गर्म रख पाई होंगी। ऊपर पहुंचने के अंतिम चरण के दौरान तापमान में गिरावट का कारण शार्क द्वारा अपने गलफड़ों को फिर से सांस लेने के लिए खोलना रहा होगा। शार्क ने प्रति गोता औसतन 17 मिनट अपनी सांस रोके रखी।
गहरी गोताखोरी के दौरान अपनी सांस रोककर रखने का यह प्रथम उदाहरण है। हालांकि कुछ अन्य वैज्ञानिक इन निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत नहीं है। गोता लगाने के दौरान शार्क के वीडियो फुटेज में गलफड़ों और मुंह बंद होने के प्रमाण देखना ज़रूरी है। फिलहाल शोधकर्ता शार्क के चयापचय की जांच करना चाहते हैं ताकि गहरी गोताखोरी को और बेहतर ढंग से समझा जा सके। (स्रोत फीचर्स)