कालू राम शर्मा

क्या शुतुरमुर्ग का अण्डा सबसे बड़ी कोशिका है?

हाल  ही  में  एक  स्कूल  में  कक्षा आठवीं के बच्चों व शिक्षकों के साथ कोशिका पर कार्य करने का मौका मिला। उल्लेखनीय है कि माध्यमिक कक्षा के स्तर पर एन.सी.ई.आर.टी. के पाठ्यक्रम में कोशिका का अध्ययन कक्षा आठवीं में शामिल किया गया है। बच्चों के साथ काम करने के पहले दिमाग में यह बात ज़रूर थी कि कोशिका को लेकर बच्चों का कोई पूर्व अनुभव नहीं होता। वैसे जो शिक्षक बिना विज्ञान पढ़े विज्ञान शिक्षण करते हैं उनके साथ भी कमोबेश यही होता है। जब बच्चों से बातचीत की तो पाया कि उन्होंने यह नाम पहली बार ही सुना था। शिक्षकों ने नाम तो सुना था मगर कोशिका के अवलोकन के मौके उन्हें शिक्षक प्रशिक्षण वगैरह में भी नहीं मिल सके।

कोशिका अध्ययन: बुनियादी पहलू
कोशिका अध्ययन के लिए सूक्ष्मदर्शी चाहिए जिसके इस्तेमाल का हुनर अनुभव से ही आता है। दूसरा, सूक्ष्मदर्शी से कोशिका का अवलोकन करना और उन अवलोकनों की व्याख्या करना सचमुच में धैर्य और सूझबूझ की मांग करता है। दरअसल, किसी फूल या पत्ती का अवलोकन करना व उनकी व्याख्या करना अपेक्षाकृत आसान है। सूक्ष्मदर्शी में कोशिका अवलोकन के लिए आपको उपयुक्त सामग्री का चुनाव करना होता है जिसमें कोशिकाएँ आसानी-से दिख सकें। और अगले स्तर पर उन अवलोकनों के ज़रिए कोशिका के बारे में समझना। असल में कोशिका के अवलोकनों के आधार पर ही तो कोशिका के सिद्धान्त को समझने  का  रास्ता  खुलता  है। कोशिकाओं में भी विविधता होती है, इसे स्थापित करने के लिए कोशिश यह होनी चाहिए कि अधिक-से-अधिक कोशिकाओं के दर्शन करने के अवसर मिलें ताकि उस विविधता के बरअक्स कोशिका  सिद्धान्त  की  बातों  को आत्मसात किया जा सके।

बच्चों के साथ कोशिका पर कार्य करते हुए समझ में आया कि कोशिका के बुनियादी पहलुओं को समझना वर्तमान पाठ्यपुस्तक के सहारे सम्भव नहीं है। एक तो हमारे शिक्षा तंत्र में स्थिति  यह  बना  दी  गई  है  कि पाठ्यपुस्तकों में लिखी हुई बातें पत्थर की लकीर-सी मानी जाती हैं। दूसरा, पाठ्यपुस्तक की सीमाएँ होती हैं कि अक्सर अवधारणाओं पर जो कुछ भी सामग्री प्रस्तुत की जाती है वह अपर्याप्त होती है। सच्चाई यह भी है कि पाठ्यपुस्तकें अवधारणाओं का अति सरलीकरण कर देती हैं, जिसके चलते उस अवधारणा की मूल भावना को आत्मसात करना सम्भव नहीं होता।

कक्षा आठवीं के अध्याय का ज़ोर इस बात पर है कि कोशिका जीवन की मूलभूत संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है। साथ ही, सबसे बड़ी कोशिका के रूप में मुर्गी व शुतुरमुर्ग के अण्डे को स्थापित करने की कोशिश की गई है। इन्हें सही अर्थों में समझाने के पहले यह ज़रूरी है कि बच्चों को सूक्ष्मदर्शी के ज़रिए विविध कोशिकाओं का भरपूर अवलोकन करने के मौके मिलें। कोशिका अध्ययन के मायने ही ये हैं कि कोशिकाओं की विविधता को समझना, उन के आकार व साइज़ को समझना और कोशिकाओं में देखे जा सकने वाले अंगकों का अवलोकन करना। कुल मिलाकर कोशिकाओं के अध्ययन व अवलोकन के आधार पर कोशिका सिद्धान्त की समझ बनाना। यह भी समझना कि आखिर कोशिका का अध्ययन हम क्यों करें, इसके अध्ययन से जीव शास्त्र के अध्ययन में क्या मदद मिलती है इत्यादि।

अधूरी उपमाएँ
कोशिका  जैसी  अवधारणा  को समझने के लिए इस्तेमाल की जा रही उपमाओं की सटीक व्याख्या की ज़रूरत होती है। अन्यथा उपमाओं का इस्तेमाल जो अपेक्षित समझ बनाने के लिए किया गया उसके परिणाम उलटे भी हो सकते हैं। दरअसल, उपमाओं के साथ समस्या यह है कि प्रत्येक उपमा की सीमाएँ होती हैं और वास्तविकता को समझने में उसका योगदान भी सीमित ही होता है। विज्ञान में अक्सर मानव की किडनी की तुलना सेम के बीज से की जाती है जो अमूमन बच्चों को कुछ हद तक समझने में मदद करती है। इस उपमा में किडनी से सम्बन्ध जोड़कर समझाने में और कोशिश करनी पड़ती है। जैसे कि किडनी सेम के बीज की साइज़ की नहीं होती और न ही उसी रंग की होती है। पृथ्वी की तुलना सेवफल से की जाती है। इसका अर्थ यह नहीं कि पृथ्वी सेवफल के बराबर है या दोनों तरफ से अन्दर धँसी हुई है।

एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित विज्ञान की कक्षा आठवीं की पुस्तक के अध्याय का ज़ोर इस बात पर है कि कोशिका  जीवन  की  मूलभूत संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है। साथ ही, सबसे बड़ी कोशिका के रूप में मुर्गी व शुतुरमुर्ग के अण्डों के उदाहरण दिए गए हैं।
अध्याय की शुरुआत में ही भूमिका इस तरह की बनाने की कोशिश की गई  है  कि  कोशिका  अंगों  की संरचनात्मक मूलभूत इकाई है। आगे कहा गया है कि ‘कोशिकाओं की तुलना हम ईंटों से कर सकते हैं। जिस प्रकार विभिन्न ईंटों को जोड़कर भवन का निर्माण किया जाता है, उसी प्रकार विभिन्न कोशिकाएँ एक-दूसरे से जुड़कर प्रत्येक सजीव के शरीर का निर्माण करती हैं।’ (पेज 90) साथ में दिया गया चित्र भ्रम को बढ़ाता है। यह संयोग ही है कि प्याज़ की झिल्ली में कोशिकाएँ लगभग आयताकार नज़र आती हैं जिनकी तुलना ईंट से की जा सकती है मगर ध्यान देने की बात है कि अधिकांश कोशिकाएँ ऐसी नहीं होतीं। ईंट की उपमा सिर्फ निर्माण की इकाई तक ठीक है मगर दिया गया चित्र कोशिकाओं को ईंट ही बना देता है।

प्याज़ की झिल्ली के ज़रिए किसी भी सजीव या अंग की ईंट और ईंट से बनी दीवार से तुलना करना कितना सही है, इस पर सोच-विचार करने की ज़रूरत है। अगर किसी तने की आड़ी कटान काटकर देखेंगे तो मामले में पेंच आ जाता है। तने की आड़ी कटान में कोशिकाओं की जमावट ईंट की तरह नहीं होती। ये कोशिकाएँ तो गोल-गोल कंचों की माफिक जमी हुई प्रतीत होती हैं। हालाँकि, तने की कोशिकाएँ गेंद की तरह गोल हैं या चॉक की तरह लम्बी-गोल हैं, इसे समझने के लिए उसी तने की खड़ी कटान काटने की ज़रूरत होती है।  
हमारे शरीर की चमड़ी की कोशिकाएँ क्या ईंट-सी दिखती हैं? वास्तव में, प्याज़ की कोशिकाएँ भी ईंट-सी नहीं दिखाई देतीं। ईंट का आकार तो घनाकार होता है।

बहुकोशिकीय सजीवों की दुनिया से बाहर निकलकर एककोशिकीय सजीवों की बात की जाए तो कोशिका की ईंट से तुलना बेमानी लगने लगती है। एककोशिकीय जीवों की दुनिया विशाल है। जितने बहुकोशिकीय जीव हैं, उससे कहीं अधिक एक कोशिकीय हैं। इनका शरीर बनाम भवन तो एक ही कोशिका (यानी एक ही ईंट) का बना होता है।

असल में, इस बात को समझाने की  ज़रूरत  है  कि  सभी  सजीव कोशिकाओं के बने होते हैं। या कि सारे सजीवों में कोशिका होती है, चाहे फिर वह एककोशिकीय जीव हो। एककोशिकीय सजीवों में एक कोशिका में ही सम्पूर्ण जीवन समाया हुआ है। अर्थात् सजीव होने के लिए कम-से-कम एक कोशिका का होना अपरिहार्य है। बच्चों को अलग-अलग कोशिकाएँ दिखाने का एक प्रमुख मकसद यह है कि चाहे अलग-अलग सजीवों में कोशिकाओं के आकार, प्रकार, साइज़ और यहाँ तक कि अंगकों (सभी अंगक सभी कोशिकाओं में नहीं होने के बावजूद) की उपस्थिति चाहे हो या न हो मगर वह कोशिका से बना होता है। कोशिका सिद्धान्त की यही बात अहम है कि समस्त सजीव कोशिकाओं के बने होते हैं।

इसे समझने के लिए पेड़-पौधों और जन्तुओं जैसे अलग-अलग सजीवों में कोशिका का अवलोकन करवाने की ज़रूरत है। मसलन, प्याज़ की झिल्ली की कोशिका और पत्ती की झिल्ली की कोशिकाओं में काफी फर्क देखा जा सकता है। पत्ती की झिल्ली में कोशिकाएँ अलग-अलग आकार की दिखाई देती हैं। और यहीं से जहाँ एक ओर दो जीवों में कोशिकाओं में विविधता के दर्शन होते हैं, वहीं यह भी समझ में आता है कि पत्ती की झिल्ली का एक छोटा-सा टुकड़ा भी अलग-अलग आकार व साइज़ की कोशिकाएँ लिए होता है। थोड़ा और आगे बढ़कर अगर किसी पौधे के नाज़ुक तने की आड़ी कटान देख पाएँ तो फिर तो विविधता और भी अधिक दिखाई देती है।

हालाँकि, पाठ्यपुस्तक के पात्र पहेली को यह बात समझ में आ जाती है कि “अंग ऊतक के बने होते हैं और ऊतक कोशिकाओं से बने होते हैं। सजीवों की संरचनात्मक इकाई कोशिका है।” लेकिन  हकीकत  में  कोशिका  एक संरचनात्मक इकाई कैसे और क्यों है, यह पहेली हमारे लिए अबूझ ही बनी रहती है।

कोशिका: जीवित इकाइयों के गणतंत्र
इसी  बात  को  एकलव्य  द्वारा प्रकाशित मॉड्यूल जीवन की इकाई - कोशिका एक अलग ही तरीके से देखने की कोशिश करता है। मॉड्यूल में कोशिका सिद्धान्त के बारे में कुछ इस तरह बयाँ किया गया है: “...कोशिका सिद्धान्त का आशय यह है कि सारे सजीव दरअसल कुछ मूलभूत जीवित इकाइयों के गणतंत्र (Republics of living elementary units) हैं।”

यह कोशिका सिद्धान्त का बहुत ही सही कथन है। हम देखेंगे कि गणतंत्र के घटकों के समान कोशिकाएँ दो तरह की भूमिकाएँ निभाती हैं। एक तो उनका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है। वे कई सारे कार्य स्वयं अपने जीवित रहने के लिए करती हैं। दूसरी ओर, वे एक सजीव का हिस्सा भी हैं और इस रूप में वे कुछ क्रिया करती हैं जो पूरे सजीव के जीवन के लिए ज़रूरी हैं। जैसे अपने किसी अंग को ही लें। लीवर की कोशिकाएँ श्वसन करती हैं, पोषक पदार्थों का उपयोग करती हैं और विभाजित भी होती हैं। ये तो वे कार्य हुए जो उनके अपने अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं। मगर इनके साथ ही लीवर की कोशिकाएँ कई सारे एंज़ाइमों का निर्माण करती हैं। ये एंज़ाइम हमारे शरीर में भोजन के पाचन व अन्य कई क्रियाओं के लिए आवश्यक होते हैं।

कोशिकाओं से मिलकर सजीव का बनना एक और महत्वपूर्ण बात की ओर संकेत करता है जो जीव विज्ञान में बार-बार सामने आती है। जब कुछ इकाइयों को मिलाकर संगठन का नया स्तर बनता है तो उसमें पाए जाने वाले गुण सिर्फ उन इकाइयों के गुणों का योग नहीं होते। नए संगठन स्तर पर कुछ नए गुण उभरते हैं जो उसकी इकाइयों में नहीं थे। इन्हें एमर्जेंट गुण (emergent properties) कहते हैं और जीवन संगठन में हम इन्हें बार-बार देख सकते हैं।

कोशिका का आकार: मामला जटिल
दरअसल, उच्च शिक्षा के दौरान कोशिका अध्ययन में यह सवाल हमारे सामने  नहीं  रखा  गया  था  कि कोशिकाओं का आकार कैसा होता है।  अधिकांश पाठ्यपुस्तकें भी इस मामले को ठीक तरह से बच्चों व शिक्षकों के समक्ष नहीं रखतीं। जब मैंने बच्चों से बातचीत की कि कोशिकाओं का आकार कैसा होता है तो उन्होंने कहा कि चपटी या ईंट की तरह होती हैं। ऐसा जवाब इसलिए दिया होगा क्योंकि उन्होंने प्याज़ की कोशिकाएँ (या उनकी तस्वीरें) देखी हैं और उन्हें यही बताया गया है कि कोशिकाएँ ईंट की तरह होती हैं जो सजीवों का निर्माण करती हैं।
इसलिए कोशिका के आकार को लेकर गच्चा खाना स्वाभाविक है। कोशिका गेंद की तरह गोल है या तश्तरी की तरह चपटी गोल या बेलनाकार -- सूक्ष्मदर्शी में से देखकर यह तय कर पाना आसान नहीं है। अगर गेंद का सेक्शन काटा जाए तो वह गोल दिखेगा और तश्तरी व बेलन की आड़ी काट भी गोल ही दिखेगी।

कोशिका की समझ:
बाल वैज्ञानिक का एक अध्याय
होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के तहत तैयार की गई बाल वैज्ञानिक कक्षा आठवीं के 1975 के संस्करण में एक अन्य तरह का प्रयास नज़र आता है। एक अध्याय है ‘सूक्ष्मदर्शी में से जीव जगत’। इस अध्याय के शीर्षक के मुताबिक तो सूक्ष्मदर्शी से सूक्ष्म चीज़ों के अवलोकन के हुनर को विकसित करना प्रमुख ध्येय था मगर कोशिका का अवलोकन, कोशिकाओं में विविधता और कोशिका के आकार का मापन व साइज़ पर काफी ज़ोर था। सूक्ष्म एक-कोशिकीय जन्तु व वनस्पति, काई, प्याज़ की झिल्ली के अवलोकन के साथ ही ‘कोशिकाओं में विविधता’ उपशीर्षक से एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री तने की कटानों को काटकर उनके अवलोकन को शामिल किया गया था। यहाँ फोकस इस पर था कि कोशिकाओं के आकार के बारे में बच्चों की समझ बने। ज़ोर यह समझाने पर था कि कोशिका को एक तरफ से देखकर उसके आकार को समझना सम्भव नहीं है। इसलिए हमें आड़ी कटान और खड़ी कटान का सहारा लेना पड़ता है ताकि कोशिका के त्रि-आयामी स्वरूप की समझ बन सके।

दरअसल, हम बात यह कर रहे हैं कि कोशिका जीवन की संरचनात्मक इकाई है, इसके बारे में समझ बनाने के लिए बच्चों के सामने कोशिका के आकार का झरोखा खोलना आवश्यक है। चाहे एक-कोशिकीय जीव हो और चाहे बहुकोशिकीय, वे सब कोशिका नामक  इकाई से बने होते हैं। कोशिकाओं में विविधता की समझ सजीवों की संरचनात्मक इकाई की बात को समझने में मदद करती है। यदि आप देखना चाहें तो एकलव्य की वेबसाइट पर बाल वैज्ञानिक का अध्याय सूक्ष्मदर्शी में से जीव जगत उपलब्ध है।

पक्षियों का अण्डा: एक कोशिका या कोशिकाओं का समूह?
अक्सर सामान्य ज्ञान की किताबों और  यहाँ  तक  कि  विज्ञान  की पाठ्यपुस्तकों में भी बताया जाता है कि शुतुरमुर्ग का अण्डा सबसे बड़ी कोशिका है। प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों के कानों में यह डालना शु डिग्री हो जाता है कि शुतुरमुर्ग का अण्डा सबसे बड़ी कोशिका है।
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित पाठ्यपुस्तक में मुर्गी और शुतुरमुर्ग के अण्डे का उल्लेख है। भारतीय सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए मुर्गी के अण्डे का अवलोकन सम्भव है जिसकी चर्चा पाठ्यपुस्तक के अध्याय में की जाना प्रासंगिक लगती है।

हालाँकि, कोशिका के अध्याय के शुरुआती पात्र के ज़रिए सवाल रखा जाता है कि: मुर्गी का अण्डा आसानी-से दिखाई दे जाता है। क्या यह एकल कोशिका है अथवा कोशिका का समूह? लेकिन जल्द ही इस सवाल की आत्मा का गला घोट दिया जाता है जवाब को परोसकर: मुर्गी का अण्डा एक एकल कोशिका है तथा आकार में बड़ा होने के कारण इसे नग्न आँखों से भी देखा जा सकता है। (पेज 90 एवं 91)
इसके ठीक आगे शुतुरमुर्ग को चर्चा में लाया गया और इसके अण्डे के बारे में जो जानकारी दी गई है वो कुछ इस प्रकार है --

कोशिका की साइज़ उपशीर्षक, क्रियाकलाप 8.2 के तहत बॉक्स के ठीक ऊपर (पेज 93) शुतुरमुर्ग के अण्डे का साइज़ बताया गया है -- 170 mm x 130 mm ज़ाहिर है कि यह साइज़ पूरे अण्डे का है। मुर्गी और शुतुरमुर्ग के अण्डे को सबसे बड़ी कोशिका के रूप में स्थापित करने की कोशिश यहाँ दिखाई देती है। दोनों मामलों में अण्डे को कोशिका मानकर चला जा रहा है जिसमें अण्डे का खोल, अल्ब्यूमिन, योक वगैरह सब कुछ शामिल है। लिहाज़ा, पाठ्यपुस्तक के अनुसार शुतुरमुर्ग का पूरा-का-पूरा अण्डा ही कोशिका की श्रेणी में आता है।
तो क्या पूरा अण्डा एक कोशिका है?

अण्डा एक कोशिका:
शिक्षकों और बच्चों के विचार
कुछ बच्चों के अनुसार पूरे अण्डे से ही चूज़ा बनता है। बच्चों के सामने मुर्गी के अण्डे को खोला और उन्हें योक पर सफेद-सा धब्बा दिखाकर बताया गया कि यही सूक्ष्म धब्बा चूज़े में विकसित होता है। पीला योक विकसित होते भ्रूण को भोजन उपलब्ध कराता है।
एक शिक्षक का विचार था कि पीले योक वाले हिस्से से चूज़ा बनता है। इस पर मैंने उनसे और बातचीत की। उन्होंने बताया कि जब अण्डे में से चूज़ा बाहर निकलता है तो पीला योक नहीं दिखता मगर पारदर्शी द्रव में चूज़ा सना रहता है। यह उनका अवलोकन था।

आइए, इसे और समझते हैं
अण्डा किसी भी जीवधारी के जीवन की एक विशेष अवस्था है। यह सम्पूर्ण जीव तो नहीं मगर इसमें सम्पूर्ण जीवन की कुण्डली मौजूद है। चूँकि अण्डे से जीव का विकास मुर्गी के शरीर से बाहर होना है  इसलिए  इसमें  वे  सब इन्तज़ाम हैं जो विकसित हो रहे भ्रूण के लिए आवश्यक हैं। अगर हम स्तनधारियों की बात करें तो मादा के शरीर में अण्डाणु बनते हैं, वे निषेचन के बाद गर्भाशय  की  दीवार  से चिपककर,  वहीं  पर  विकास प्रारम्भ कर देते हैं और पोषण इत्यादि मादा के शरीर से प्राप्त करते हैं। इसलिए इनके अण्डे में भोजन की मात्रा (योक) नहीं होती है। इसे  एलेसिथल अण्डाणु ( alecithel egg) कहा जाता है। जबकि सरिसर्प और पक्षियों में अण्डे का विकास मादा के शरीर के बाहर होता है। इनमें योक की मात्रा काफी अधिक होती है और बाहरी आवरण कड़ा होता है। ऐसे अण्डों को टिलोलेसिथल (telolecithal egg) कहा जाता है।

पक्षियों में अण्डाणु (ओवा) अण्डाशय में बनता है। अण्डाशय में बना प्रत्येक अण्डाणु एक कोशिकीय संरचना है जो विटेलाइन मेम्बरेन से घिरी होती है। जैसे-जैसे अण्डाशय में अण्डाणु का विकास होता जाता है उसमें योक की मात्रा बढ़ती जाती है। मुर्गी के अण्डे को खोलें तो पीला योक विटेलाइन झिल्ली में बँधा हुआ एल्ब्यूमिन में स्थिर होता है। अगर इस पीले योक को ध्यान से देखें तो इस पर एक सफेद  धब्बा-सा  दिखाई  देता  है। दरअसल, यही भ्रूण है जिससे चूज़ा बनता है। यह माना जाता है कि मुर्गी और शुतुरमुर्ग के अण्डे का योक एक कोशिका है।

इस प्रकार यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि शुतुरमुर्ग का अण्डा (यानी योक) सबसे बड़ी कोशिका है। गौरतलब बात यह है कि एल्ब्यूमिन और अण्डे का छिलका इस कोशिका के हिस्से नहीं हैं। लेकिन फिल्म अभी बाकी है।

दिलचस्प बात यह है कि जो निषेचित अण्डा मादा शुतुरमुर्र्ग (व अन्य पक्षी) जनती है वह एक कोशिका वाला नहीं होता। दरअसल, शुतुरमुर्र्ग के शरीर के अन्दर ही निषेचित अण्डे में कोशिका विभाजन प्रारम्भ हो जाता है। सबसे पहले इस एक कोशिकीय भ्रूण में विदलन (क्लिवेज) होता है और भ्रूण दो कोशिकाओं में विभाजित होता है। इसी कड़ी में यह चार कोशिकीय और फिर इसके गुणांक में विभाजित होता है।
जब मुर्गी निषेचित अण्डा जनती है तो यह बहुकोशिकीय होता है। यह ब्लास्टुला अवस्था होती है जो कि बहुकोशिकीय संरचना है। यही व्यवस्था शुतुरमुर्ग और बाकी पक्षियों में भी होती है।

मुर्गी के अनिषेचित अण्डे की कहानी
यह तो हम जानते हैं कि बाज़ार में मिलने वाले अण्डे बिना मुर्गे के मेल के तैयार किए जाते हैं। हालाँकि, पिंजरे में बन्द मादा तोता, मैना इत्यादि भी अनिषेचित अण्डे देती हैं लेकिन इन अण्डों से चूज़े नहीं बनते। शुतुरमुर्ग भी  अनिषेचित  अण्डे  देती  है। अनिषेचित  अण्डों  के  अण्डाणु  में कोशिका विभाजन नहीं होता। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अनिषेचित अण्डा एक कोशिका है। और निषेचित अण्डा बहुकोशिकीय।
अलबत्ता, याद रहे इस अण्डाणु में सामान्य कोशिका से आधे गुणसूत्र ही होते हैं। जब इस अण्डाणु का निषेचन हो जाता है तो इसमें गुणसूत्र उतने ही हो जाते हैं जितने मुर्गे-मुर्गी की कायिक कोशिकाओं में होते हैं।

मुर्गी और अन्य पक्षियों में अण्डे का वह भाग जिसे योक कहा जाता है, वह अण्ड कोशिका (egg cell) है। कोशिका विभाजन उस सूक्ष्म धब्बे में ही होता है जिसे एनिमल पोल (animal pole) कहा जाता है। कोशिकाओं के विभाजन के फलस्वरूप एक आवरण (cap) बनता है जिसमें ऊपरी और निचली परतें क्रमबद्ध होती हैं। इन दोनों परतों के बीच जो गुहा (cavity) होती है यही ब्लास्टोसिल (blastocoel) है जिसमें उस पक्षी का प्रारूप होता है।
तो अगर सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में लिखना ही हो तो कुछ इस तरह से लिखा जाएगा - ‘सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अनिषेचित अण्डे का योक है।’


कालू राम शर्मा: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, खरगोन में कार्यरत। स्कूली शिक्षा पर निरन्तर लेखन। फोटोग्राफी में दिलचस्पी।