किशोर पंवार

कई वर्षों से हायड्रिला का उपयोग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रदर्शित करने के लिया किया जाता रहा है, लेकिन इसका उपयोग श्वसन क्रिया के प्रदर्शन के लिए भी किया जा सकता हैै। क्यों, चौंक गए क्या? यह न कभी पढ़ा होगा, न किया होगा और न ही शिक्षकों ने हमें कभी बताया होगा। हाँ, श्वसन क्रिया के प्रदर्शन के लिए सूखे, गीले, अंकुरित बीज, फूलों और कन्दों का प्रयोग ज़रूर हम करते आए हैं।
तो बात शु डिग्री होती है अप्रैल 2018 के अन्तिम सप्ताह से जब एकलव्य और महाराष्ट्र शासन के ट्राइबल विकास विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला में मुझे  भागीदारी का मौका मिला।

मुझे शिक्षकों के साथ पौधों से जान-पहचान, जड़-पत्ती और बीजों के आपसी सम्बन्धों पर कार्य करना था। इसी बीच एक खाली सत्र के दौरान मैं और भोलेश्वर दुबे कोशिका पर चल रहे प्रशिक्षण सत्र में बैठ गए। इसमें कोशिका की समझ विकसित करने हेतु तरह-तरह के चित्र दिखाए गए तथा शिक्षकों से कोशिका के त्रि-आयामी मॉडल क्ले से बनवाए। कोशिका के त्रि-आयामी प्रादर्श बनाने में उन्हें बड़ा मज़ा आया। और भ्रम भी टूटा कि कोशिकाएँ चपटी ही होती हैं जैसा कि किताबों में छपा रहता है।
कोशिका सम्बन्धी प्रशिक्षण सत्र रुद्राशीष एवं चारू ने करवाए और भोलेश्वर दुबे ने सूक्ष्मदर्शी के उपयोग, रचना और कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। मैं तो गेस्ट आर्टिस्ट था।

कोशिका की रचना समझने की जब बात आती है तो बच्चों को प्याज़ की झिल्ली निकालकर उसमें कोशिकाएँ दिखाई जाती हैं। जब हम एक आदर्श पादप कोशिका की बात करते हैं या फिर किताबों में जो चित्र बने होते हैं उनमें केन्द्रक, रिक्तिका, माइटो-कॉण्ड्रिया, जीव द्रव्य तथा क्लोरोप्लास्ट ज़रूर दिखाया जाता है जो उन्हें जन्तु कोशिका से अलग करता है। परन्तु प्रयोगशाला या कक्षा में  पादप कोशिका दिखाने के लिए हम सबसे आसान तरीका -- प्याज़ की झिल्ली का उपयोग करते हैं। इसमें कोशिका भित्ती, जीवद्रव्य तथा रंगने पर केन्द्रक तो दिखता है पर पादप कोशिका की खास पहचान क्लोरोप्लास्ट नहीं दिखते। रियो की निचली पत्ती की झिल्ली में भी क्लोरोप्लास्ट नहीं दिखाई देते। उसमें कोशिकाओं में हल्का जामुनी रंग भरा दिखाई देता है। हरा तो यहाँ भी नहीं है और आलू की कोशिकाओं में भी नहीं। वहाँ तो स्टार्च के कण भरे हैं।

अत: सुझाव उभरा कि पादप कोशिका की सम्पूर्ण एवं सही समझ बनाने के लिए कहीं से हायड्रिला का पौधा जुगाड़ा जाए ताकि इसकी पत्तियों में क्लोरोप्लास्ट दिखाए जा सकें। चूँकि नासिक में गोदावरी नदी बहती है, अत: मैंने और दुबे जी ने शाम को नदी जाने की योजना बनाई। वहाँ जाकर हमने वहीं पड़ी पानी की एक खाली बॉटल में नदी का पानी भर लिया। पास में तैर रहे हायड्रिला के छोटे-से टुकड़े को बॉटल में डालकर प्रशिक्षण स्थल पर ले आए। बॉटल को सुबह 8:30 बजे देखा तो हायड्रिला की टहनी नीचे पैन्दे में बैठी थी। यह सोचकर बॉटल को पास में ही धूप में रख दिया कि जब ज़रूरत होगी तब इसकी पत्तियाँ निकालकर क्लोरोप्लास्ट दिखा देंगे और हम जड़-पत्ती वाले सत्र में व्यस्त हो गए। एक घण्टे बाद जब पत्तियाँ निकालने के लिए बॉटल को देखा तो पाया कि सुबह हायड्रिला की जो टहनी पैन्दे में बैठी थी, वह तो ऊपर तैर रही है।

एक बात स्पष्ट तौर पर समझ में आ रही थी कि धूप में रखने पर हायड्रिला में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हो रही थी और नीचे लिखी अभिक्रिया के अनुसार बनने वाली ऑक्सीजन इसकी पत्तियों पर छोटे-छोटे बुलबुलों के रूप में चिपकी हुई थी।

प्रकाश संश्लेषण और हायड्रिला
प्रकाश संश्लेषण की इस महत्वपूर्ण क्रिया के प्रदर्शन के लिए हायड्रिला का उपयोग कोई नई बात नहीं है। विज्ञान की प्रारम्भिक कक्षाओं से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं में भी इसका उपयोग किया जाता है। सबसे पुराने एवं तथाकथित आसान प्रदर्शन वाले प्रयोग का नाम है ‘इनवरटेड फनेल एक्सपेरिमेंट’ जो लगभग सभी किताबों में दिया जाता है। इस प्रयोग को धूप में, प्रकाश संश्लेषण की  क्रिया  में ऑक्सीजन निकलने की प्रक्रिया को सिद्ध करने के लिए किया जाता है। इसमें काँच का एक बीकर, काँच की एक कीप, एक परखनली और हायड्रिला की कुछ टहनियाँ लगती हैं।

इस उपकरण को सेट कर जब धूप में या 100 वॉट के बल्ब के पास रखते हैं तो टहनियों के कटे सिरों से निकलने वाले ऑक्सीजन के बुलबुले पानी से भरी कीप के ऊपर उल्टी रखी परखनली में जमा होते रहते हैं। यह उपकरण सरल ज़रूर है परन्तु इसे सेट करना मुश्किल है। पानी से भरी परखनली को कीप के ऊपर रखने के दौरान अधिकांश पानी खाली हो जाता है। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। प्रयोग की शुरुआत में परखनली पानी से सम्पूर्ण भरी होनी चाहिए।

दूसरा तरीका विलमॉट्स बबलर का उपयोग है। काँच का यह उपकरण बाज़ार में तैयार मिलता है। इसमें एक बड़ी काँच की बॉटल के ऊपर एक रबर के कॉर्क में बबलर लगा होता है। बॉटल को पानी से भरकर, बबलर के नीचे वाली नली में हायड्रिला की एक ताज़ी टहनी लगा देते हैं जिसका कटा सिरा नली के ऊपर की तरफ होना चाहिए।

हायड्रिला को लगाकर फिर बबलर को पानी से भरी बड़ी बॉटल में फिट किया जाता है। यह पूरा उपकरण वॉटरटाइट होना चाहिए। अत: इसे भी सेट करना ज़रा मुश्किल होता है। बबलर की नली में कई बार हवा भरी रह जाती है। विलमॉट्स बबलर का उपयोग प्रकाश संश्लेषण में विभिन्न परिस्थितियों में निकलने वाले बुलबुलों को प्रति मिनिट की दर से गिनने में किया जाता है। निकलने वाले बुलबुले ऑक्सीजन के होते हैं।
ये  दोनों  प्रयोग  पुराने  तथा परम्परागत हैं। इन दोनों में काँच का बीकर, परखनली, काँच की कीप या फिर महँगा विलमॉट्स  बबलर चाहिए। इसके अलावा इन्हें सेट करना भी आसान नहीं।

परन्तु यहाँ तो बिना किसी उपकरण  के,  मात्र  एक उपयोग   कर फैंकी गई पानी की बॉटल से इस क्रिया का प्रदर्शन हो रहा है। कमाल तो बस अवलोकन का है जो विज्ञान सीखने की प्रथम सीढ़ी है। पूर्व के उपकरणों  में क्रिया के दौरान हायड्रिला की टहनियाँ या तो कीप की नली में फँसी रहती हैं या विलमॉट्स बबलर की नली में। परन्तु यहाँ तो पौधा पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। अत: धूप में रखने पर थोड़ी ही देर में तैरकर ऊपर आ जाता है।

क्यों तैरता है हायड्रिला?
प्रकाश संश्लेषण के दौरान बनने वाली ऑक्सीजन बुलबुलों के रूप में पत्तियों पर चिपकी रहती है। कुछ ऑक्सीजन खोखले तने में भी भरी होती है और जब ज़्यादा हो जाती है तो कटे हुए हिस्से से थोड़े बड़े बुलबुलों के रूप में लगातार निकलती रहती है। विलमॉट्स बबलर में भी ऐसा ही होता है। पत्तियों और तने पर चिपके इन बुलबुलों के कारण हायड्रिला की टहनी तैरकर ऊपर आ जाती है।
अँधेरे में क्या होगा हायड्रिला का?

धूप में रखने पर तो बोतल में रखी टहनी तैरकर ऊपर आ गई थी। परन्तु यह जानने के लिए कि क्या अँधेरे में रखने पर पुन: टहनी पैन्दे में बैठती है या नहीं, हमने इस बॉटल को उठाकर कमरे के अन्दर एक कोने में रख दिया जहाँ हमारा प्रशिक्षण चल रहा था।  
लगभग एक घण्टे बाद जब हमारा सत्र खत्म हुआ तब बॉटल को देखा तो हायड्रिला जो एक घण्टे पहले तैर रहा था, वह अब नीचे पैन्दे में बैठ चुका था। ध्यान से देखा तो पत्तियों पर पहले जो बुलबुले नज़र आ रहे थे, वे गायब थे। पत्तियों ने उन्हें उगला था और अँधेरे में उन्हें निगल भी लिया।

क्यों डूबा हायड्रिला?
दरअसल, जब हम बॉटल को अँधेरे में रखते हैं तो ऑक्सीजन छोड़ने वाली क्रिया अर्थात् प्रकाश संश्लेषण तो रुक जाता है परन्तु ऑक्सीजन खर्च करने वाली श्वसन प्रक्रिया तो चलती रहती है। अँधेरे में यही हुआ। नतीजतन जो ऑक्सीजन के बुलबुले पत्तियों पर चिपके थे, वे श्वसन क्रिया में खर्च हो जाते हैं। फलस्वरूप जो पौधा गैस की वजह से तैर रहा था, वह फिर धीरे-धीरे नीचे बैठ जाता है। इस क्रिया के तहत -

इन अवलोकनों को देखकर मुझे लगा कि प्रयोगों के दौरान किए जाने वाले सूक्ष्म अवलोकन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। और पानी की एक बॉटल में रखी हायड्रिला की छोटी-सी टहनी से बिना किसी तामझाम के पौधों के अन्दर चलने वाली दो अति महत्वपूर्ण क्रियाओं का प्रदर्शन एक साथ कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है। स्कूल-कॉलेज की लैब के बाहर भी, जब चाहे, तब। प्रशिक्षण के दौरान किए जाने वाले इस तरह के प्रयोग ऐसी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं के महत्व को भी स्पष्ट करते हैं जहाँ एक स्वतंत्र वातावरण में मिलजुलकर सीखने-सिखाने के नए मौके हमें सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं।

एक कदम और
पौधे प्रकाश संश्लेषण में कार्बन डाईऑक्साइड खर्च करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इसका एक सरल रंगीन प्रदर्शन भी किया जा सकता है। इसके लिए आपको ब्रोमोथायमॉल ब्लू नामक रसायन चाहिए होगा। यह एक बढ़िया pH इंडीकेटर यानी सूचक है। इसे पानी में घोलकर एक बहुत ही हल्के नीले रंग का घोल बना लें। इसका pH मान इस समय लगभग 7.6 होता है।

इसे एक बीकर या गिलास में लेकर स्ट्रॉ (नली) से इसमें मुँह से हवा फूँकें। साँस से निकली कार्बन डाईऑक्साइड के इसमें घुलने से घोल का रंग हल्का हरा हो जाता है। इससे इसका pH लगभग 7 हो जाता है। इस हरे घोल को तीन परखनली में बराबर-बराबर मात्रा में भर दें। इसके बाद एक परखनली को ऐसे ही तुलना के लिए कंट्रोल की तरह रखें। बाकी दो में एक समान लम्बाई की हायड्रिला की टहनी डाल दें। इनमें से एक परखनली को धूप में रखें और दूसरी पर एक सिल्वर फॉइल लपेट दें। या ऐसे ही किसी अँधेरी जगह रख दें। दो-तीन घण्टे बाद तीनों परखनली के रंगों की तुलना करें। क्या आप बता सकते हैं कि धूप में रखी टेस्टट्यूब का रंग फिर से नीला क्यों हो जाता है?
हायड्रिला पर किए गए इन प्रयोगों से क्या यह भी सिद्ध होता है कि पेड़-पौधे हों या हमारे जैसे जन्तु, दोनों की श्वसन क्रिया में एक ही गैस खर्च होती है?


किशोर पंवार: शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं। होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से लम्बा जुड़ाव रहा है जिसके तहत बाल वैज्ञानिक के अध्यायों का लेखन और प्रशिक्षण देने का कार्य किया है। एकलव्य द्वारा जीवों के क्रियाकलापों पर आपकी तीन किताबें प्रकाशित। शौकिया फोटोग्राफर, लोक भाषा में विज्ञान लेखन व विज्ञान शिक्षण में रुचि।