लक्ष्मी यादव

डायरी

श्याम  नगर  बस्ती  में  आदिवासी ओझा गोंड समुदाय के लोग रहते हैंे। ये कई साल पहले, श्याम नगर बस्ती आबाद होने से पूर्व यहाँ आए थे।
ये लोग काम की तलाश में उज्जैन के गाँव व जंगलों से यहाँ आए थे। पहले जहाँ इन्हें काम मिलता था वहीं घर बनाकर रहते थे और काम खत्म होते ही फिर दूसरी जगह चले जाते थे। परिवार बढ़ने पर बच्चों के साथ बार-बार यहाँ-से-वहाँ जाना मुश्किल होता था। इसलिए जब श्याम नगर के पास क्रशर मशीन में इनका काम लगा तो इस समुदाय के लोगों ने यहीं मिट्टी के घर बना लिए और काम बन्द होने के बाद भी यहीं सपरिवार रहने लगे। पहले श्याम नगर बस्ती में बहुत खाली जगह थी। यहाँ जंगल की तरह लगता था। इस बस्ती को इस समुदाय के लोगों ने ही बसाया है। समय के साथ इनका परिवार बड़ा होता गया व अन्य समुदाय के लोग भी यहाँ आकर रहने लगे (समुदाय के बुज़ुर्ग मंगल सिंह जी से व सोनी गोंड से बातचीत के दौरान मैंने यह जाना)।
इस समुदाय में ज़्यादातर लोग मज़दूरी का काम करते हैं व कुछ लोग ड्राइवर हैं। बच्चे और बूढ़े मन्दिरों में भीख माँगने जाते हैं।

बच्चों व शिक्षा की स्थिति
 इस समुदाय के बहुत-से बच्चे सरकारी स्कूल जाते हैं। स्कूल में कुछ सीख न पाने और शिक्षकों द्वारा पिटाई के कारण कई बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं।
बहुत-से बच्चे स्कूल छोड़कर ताश खेलना, काम पर जाना या भीख माँगना शु डिग्री कर देते हैं।
माता-पिता स्वयं मज़दूरी पर जाते हैं इसलिए बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे पाते हैं या कई बार उनका कहना होता है कि हमारी जाति के बच्चे पढ़-लिखकर भी क्या करेंगे, बड़े होकर हमारे बच्चों को मज़दूरी करना  या भीख ही माँगना है।

इस तरह यहाँ के बच्चों की शिक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है। इस स्थिति को देखते हुए मुस्कान संस्था द्वारा तीन साल से बच्चों की शिक्षा हेतु बस्ती सेंटर चलाया जा रहा है जिसमें कभी भी स्कूल नहीं गए बच्चे व स्कूल छोड़ चुके बच्चे आते हैं।

इन बच्चों को पहली से पाँचवीं तक पाठ्यक्रम तैयार कर पढ़ाया जाता है। बच्चों के अन्दर शिक्षा के प्रति रुचि जगाकर उनका स्कूलों में दाखिला भी कराया जाता है। अधिकतर बच्चे स्कूल जाकर भी कुछ सीख नहीं पाते। यह देखते हुए स्कूल के बच्चों के साथ भी सम्पर्क बनाए रखकर एवं लाइब्रेरी की गतिविधियों के माध्यम से उन्हें भी सिखाने का प्रयास किया जाता है।
इसी बस्ती सेंटर में तीन साल काम करते हुए अपनी डायरी के सहारे एक बच्चे का सफर और कहानी साझा कर रही हूँ।

अवलोकन : समीर गोंड
समीर 12 साल का है और पहली कक्षा तक सरकारी स्कूल गया है। समीर जब स्कूल जाता था तो वह स्कूल में लिखने का काम अपने दोस्तों से  करवाता  था।  समीर बताता है कि वह तीन-चार महीने तक ही स्कूल गया। उसने यह भी बताया कि जब  एक  दिन  मैडम  ने इंग्लिश में उसे कुछ लिखने को दिया तो वह कर नहीं पा रहा था। इस वजह से  मैडम ने उसेे बहुत डाँटा और मारा। इसके बाद अगले दिन से उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। फिर कभी इच्छा नहीं हुई, स्कूल जाने की।
समीर अपनी मम्मी और नानी के साथ रहता है। उसका एक छोटा भाई भी है। मम्मी बंगले में काम करती हैं और पापा उनके साथ नहीं रहते हैं।

माह अगस्त, 2016
स्वभाव - समीर कक्षा में बहुत शान्त होकर अपने काम में लगा रहता है - वह कक्षा में भी बच्चों से कम बात करता है। सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर बोलता है व बिलकुल मस्ती नहीं करता। बस एक जगह बैठकर लिखता है व थोड़ी देर भी खाली होने पर पेपर ढूँढ़कर ड्रॉइंग करना उसे पसन्द है।

समीर अगस्त माह से कक्षा में आ रहा है। समीर से जब पहले दिन मैंने उसके पापा का नाम पूछा था तब वह थोड़ी देर चुप हो गया था। कुछ देर बाद समीर ने नाम बताया - सुगन्ध गोंड। मैंने सहज कौतूहलवश पूछा, “तुम्हारे पापा क्या करते हैं?” उसने बताया, “दीदी मेरे पापा हमारे साथ नहीं रहते हैं।” उस समय मुझे लगा कि उसके पापा ने उन्हें छोड़ दिया है, इसलिए मैंने भी समीर से ज़्यादा नहीं पूछा।

माह दिसम्बर, 2016
एक दिन सेंटर की छुट्टी होने के बाद जब समीर और उदय रास्ते में मुझसे आगे-आगे जा रहे थे तभी किसी ने समीर को आवाज़ दी, “सिक्को।” (समीर के घर का नाम)। समीर और  उदय, दोनों मुड़कर उस आवाज़ देने वाले के पास जाने लगे, मैं भी समीर-उदय के सामने थी। उदय ने दूर से ही धीरे-से कहा, “दीदी, समीर के पापा।” मुझे लगा उदय मज़ाक कर रहा है। मैंने कहा, “सच बोलो।” उदय ने कहा, “हाँ दीदी, समीर के ही पापा हैं।”

समीर उदय से बहस करने लगा व  चिड़चिड़ाने  लगा।  समीर  के चिड़चिड़ाने का कारण यह था कि वह मुझे नहीं बताना चाहता था कि उसके पापा कौन हैं। समीर के पापा की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। वे यहाँ-वहाँ घूमते रहते हैं, अकेले में बातें करते, हँसते रहते हैं। सभी लोग उन्हें पागल भी कहते हैं।
समीर के पापा उनके माता-पिता के साथ रहते हैं। समीर को उस दिन बहुत बुरा लगा कि उदय ने मुझे क्यों बताया। समीर 3-4 दिन कक्षा में नहीं आया। उदय ने बताया, “दीदी, वो मुझसे गुस्सा है और उसे अच्छा नहीं लगा।”

मेरे रोज़ सामान्य तरीके से लगातार बुलाने पर वह वापस कक्षा में आने लगा।
फिर मैंने कई बार ध्यान दिया कि वह इसी कारण शायद ज़्यादा शान्त रहता है।
कभी अचानक कोई बच्चा, जैसे उसकी सगी बुआ की लड़की रंजू, किसी को बताती है कि समीर उसका भाई है तब वह उस पर चिल्ला देता है। समीर अपने पिता के रिश्तेदारों से ज़्यादा बात नहीं करता, उन लोगों से दूर रहने की कोशिश करता है।
समीर की मम्मी, समीर व उसके भाई का बहुत ध्यान देती हैं। समीर को उसकी मम्मी कई बार सेंटर से बुलाती रहती हैं -- समय पर दवाई देने के लिए, पैसे देने के लिए, खाना खाने के लिए।

पढ़ाई का स्तर
समीर को अपना नाम लिखना नहीं आता था। उसने धीरे-धीरे अपना नाम लिखना सीखा। वह गणित में अधिक रुचि लेता है। समीर रोज़ ताश खेलता है जिससे उसकी रुपए-पैसों की समझ बहुत पक्की है।
समीर चीज़ों को समझने और सुनने से ज़्यादा लिखना पसन्द करता है। हिन्दी, इंग्लिश, गणित -- सभी विषय में उसे लिखना ज़्यादा पसन्द है।

समीर को ड्रॉइंग करना बहुत पसन्द है। वह थोड़ी देर भी खाली होने पर अपनी कॉपी में ड्रॉइंग करने लगता है। बहुत बार बोलने व ज़ोर देने पर पढ़ाई पर भी ध्यान देता है।
समीर की ड्रॉइंग अन्य बच्चों से बहुत अलग होती है। वह हर ड्रॉइंग में कोई-न-कोई बात स्वयं से बनाता है। सभी बच्चे उसकी ड्रॉइंग बहुत पसन्द करते हैं जिससे वह बहुत खुश होता है।
समीर दिसम्बर माह तक कुछ आवाज़ों को समझने लगा था।

जब मैंने सभी बच्चों को स्वयं से अपने बारे में लिखने को कहा जिसमें उन्हें अपने घर और अपने पूरे दिन के बारे में लिखना था तब समीर ने खुद से पहली बार वाक्य लिखने का प्रयास किया। समीर ने पहला वाक्य अपने पापा के बारे में लिखा -- ‘पापा मारत हैं।
नियमित कक्षा में आने से समीर के स्वभाव में अन्तर आया है। अब वह भी बच्चों से मज़ाक-मस्ती करने लगा है। युवा मीटिंग में जब महेश भैया आते हैं तब समीर हर मीटिंग में बैठने का इच्छुक रहता है।
समीर मीटिंग में बड़े बच्चों से भी मज़ाक करता है। लड़कियों को चिढ़ाता है व बिना किसी झिझक के आत्मविश्वास के साथ अपनी बातों व विचारों को रखता है।

1 फरवरी 2017
पर्यावरण में जब मानव शरीर को पढ़ाया तो समीर ने बहुत रुचि दिखाई व हर बात को ध्यान से सुना। उस समय मैंने फेफड़े व पाचन क्रिया को एक पर्चे द्वारा पढ़ाया जिसमें मानव शरीर के आन्तरिक अंग दिखाए गए थे। तब समीर ने सुनते हुए बीच में पूछा, “दीदी इन्सान पागल कैसे होते हैं? उनके दिमाग में क्या खराब होता है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है?” मैं उस समय उसकी बातों का जवाब नहीं दे पाई। मैंने कहा, “मैं इसके बारे में पढ़कर बताऊँगी।” समीर ने कहा, “हाँ दीदी, आप किसी दिन दिमाग की बीमारियों की किताब लाना।”


लक्ष्मी यादव: पिछले कई सालों से मुस्कान संस्था, भोपाल के साथ जुड़े हुए शिक्षिका की भूमिका निभा रही हैं।
सभी चित्र: शैलेश गुप्ता: आर्किटेक्ट और चित्रकार जो आज भी बचपन को संजोए रखना चाहते हैं। एमआईटीएस, ग्वालियर से आर्किटेक्चर की पढ़ाई। कहानियाँ सुनने और सुनाने का शौक है। भोपाल में रहते हैं।