किशोर पंवार[Hindi,PDF 225 KB]

हमें अक्सर लगता है कि जन्तुओं और पौधों के बीच अन्तर्सम्बन्ध पौधों के लिए नुकसानदायी होते हैं। यह सच है कि तरह-तरह के चरने-कुतरने वाले टिड्डों से लेकर ऊँट, बकरी, जिराफ और ज़ेब्रा जैसे शाकाहारी जन्तु पौधों को बहुत हानि पहुँचाते हैं। दूसरी ओर यह भी सत्य है कि तितलियों-पतंगों की इल्लियाँ पत्तों को कुतर-कुतरकर चट कर जाती हैं तो उनके सुन्दर खूबसूरत वयस्क इन्हीं पौधों के फूलों का परागण कर इनके जीवन-चक्र को पूर्ण कर महत्वपूर्ण सहयोग भी करते हैं।
ऐसा ही एक परोपकारी रिश्ता फलों के बीजों के बिखराने का है जिसे कुछ जन्तु बड़े जतन से निभाते हैं। जन्तुओं द्वारा फल-भक्षण से अपना पोषण और फल के बीजों का बिखराव ‘पौधों के प्रजनन जीवविज्ञान’ के कई अद्भुत एवं अनोखे आयाम प्रस्तुत करते हैं।
फल दरअसल, बीजों भरी एक ऐसी ‘पोटली’ है जिसमें कुछ पोषक पदार्थ भी रखे होते हैं, जिसे कई जन्तु खाते हैं। इनमें से कुछ पक्षी एवं स्तनधारी इसका कुछ हिस्सा तो पचा डालते हैं,  परन्तु शेष हिस्सा जिनमें अधिकांशत: बीज ही होते हैं, अक्सर बिना किसी नुकसान के पाचनतंत्र से बाहर निकाल देते हैं। ये पौधे अपने फलों का विज्ञापन उन्हें पकाकर करते हैं जिसके अन्तर्गत उनका रंग व स्वाद बदलते हैं और गन्ध भी बदलती है। पके, रंगीन और सुगन्ध बिखराते फूल फल-भक्षियों को दूर से ही अपने पास बुलाते हैं। लेकिन पके फलों को अन्य हानिकारक जीवों जैसे बैक्टीरिया, कवक और ऐसे जीवों से भी खतरा होता है जो केवल इन्हें खाते हैं परन्तु बीजों को नहीं बिखराते।

जिम्नोस्पर्म जैसे पौधों में फल नहीं होते। अत: इनके बीज फल (अण्डाशय) से ढँके नहीं होते, इसीलिए इस समूह के पौधों को नग्नबीजी या अनावृतबीजी कहा जाता है, जैसे कि चीड़ के पेड़ में। अधिकांश चीड़ों के बीज पंखदार होते हैं और इनका बिखराव हवा के द्वारा ही होता है। परन्तु उत्तरी अमेरिका के कई नर्म लकड़ी वाले चीड़ वृक्षों के बीज बड़े भी होते हैं और पंखहीन भी। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर इनके बीजों को कैसे और कौन बिखराता है। यह ज़िम्मेदारी निभाते हैं कुछ पक्षी जैसे जे (jay) और नटक्रैकर। ये पक्षी चीड़ के शंकुओं से वसायुक्त बीज निकालते हैं और अलग-अलग जगहों पर उन्हें ज़मीन में छिपा देते हैं -- भविष्य के लिए भोजन के स्रोत के रूप में। वैसेे इन पक्षियों में भोजन के भण्डारण का यह गुण अनोखा है, आम तौर पर पक्षी ऐसा नहीं करते। इन पक्षियों का  यह ‘गुप्त बीज भण्डार’ जब उनकी खाने की क्षमता से ज़्यादा हो जाता है तब अतिरिक्त बीज उगने के लिए उपलब्ध होते हैं अर्थात् पेड़ से दूर-दूर तक अंकुरित हो जाते हैं।
चीड़  की  प्रजाति व्हाइटबार्क    पाइन (पाइनस ऐलबिकॉलिस) के बीजों का क्लार्कस् नटक्रैकर    चिड़िया (न्यूसीफ्रेगा कोलम्बिआना) द्वारा शिकार (भक्षण) व बिखराव अन्तर्सम्बन्धों का एक बड़ा ही मज़ेदार उदाहरण  है।  यह अन्तर्सम्बन्ध पारस्परिक (mutualistic) माना जा सकता है क्योंकि यह रिश्ता दोनों के लिए फायदे का है।

व्हाइटबार्क पाइन को    क्लार्कस् नटक्रैकर द्वारा बीजों के  बिखराव  का फायदा कैसे मिलता है? नटक्रैकर के बीज भण्डार में औसतन तीन से पाँच बीज भरे होते हैं। नटक्रैकर इन बीजों को ज़मीन के अन्दर दो सेंटीमीटर की गहराई में सूखी जगह पर रखते हैं ताकि गीलेपन से बीज सड़ न जाएँ। बारिश होने पर जब बीजों पर पानी पड़ता है तो ये बीज अंकुरित हो जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ अयोवा के वैज्ञानिक डयाना एफ टॉमबैक, जिन्होंने 1977 में पहली बार इस अन्तर्सम्बन्ध  का दस्तावेज़ीकरण किया, का कहना है कि ये बीज ऐसी सूक्ष्म जलवायु1 (microclimate) में छिपाए जाते हैं जो चीड़ की वृद्धि के लिए अनुकूल होती है। प्रत्येक वर्ष हर नटक्रैकर पक्षी व्हाइटबार्क पाइन के लगभग 32,000 से 1,00,00 बीज ज़मीन के अन्दर जमा करता है। यह संख्या नटक्रैकर की ऊर्जा सम्बन्धी ज़रूरतों से कई गुना ज़्यादा है। अत: कई बीज भण्डार ऐसे ही रखे रह जाते हैं जो अंकुरित होकर चीड़ की संख्या को न सिर्फ बढ़ाते हैं बल्कि नटक्रैकर की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं को भी सुनिश्चित करते हैं। ऐसा पाया गया है कि बीज भण्डारों से उपजे नए पौधों के जीवित रहने की संख्या भी ज़्यादा होती है क्योंकि उन पौधों को वहाँ पनपने के लिए अनुकूल परिस्थिति मिल जाती है। इस तरह नटक्रैकर चीड़ के बीजों को बर्फीले क्षेत्रों में नई-नई जगहों पर भी फैलाने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

पक्षियों की कई अन्य प्रजातियाँ इस वृक्ष के बीजों को खाती हैं। चूहे, गिलहरियाँ और चिपमंक (chipmunk) भी इसके बीजों का भक्षण करते हैं। परन्तु इनमें से किसी के बीज भण्डार इस चीड़ के अंकुरण को नहीं बढ़ाते जिस तरह नटक्रैकर के बीज भण्डार बढ़ाते हैं।
अत: कहा जा सकता है कि यह क्लार्कस् नटक्रैकर और व्हाइटबार्क चीड़ के बीच सह-विकासीय पारस्परिक सहयोगी सम्बन्धों का नतीजा है जिसमें दोनों प्रजातियों को लाभ होता है --नटक्रैकर को भोजन प्राप्त होता है और चीड़ के बीजों का नए क्षेत्रों में बिखराव। वैसे तो क्लार्कस् नटक्रैकर अन्य शंकुवृक्षों के बीज भी बिखराता है लेकिन यह चीड़ उसके भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। और उत्तर अमेरिका में व्हाइटबार्क पाइन की आबादी के बने  रहने में इस नटक्रैकर की मुख्य भूमिका है।

बीज बिखराव के ऐसे कई और तंत्र बीज खाने वाले जीवों और बीज बनाने वाले पेड़ों के बीच हो सकते हैं। अत: इस तरह के और अध्ययनों की आवश्यकता है ताकि यह पता चले कि कितने परस्पर सहयोगी हैं और कितने शोषणकारी। भारतीय पेड़ों और चिड़ियों के बीच ऐसे सम्बन्धों को खोजे जाने की ज़रूरत ज़्यादा है क्योंकि हमारे देश में ऐसे सम्बन्धों के उदाहरण बहुत कम हैं। मैंने ऑस्ट्रेलियन बबूल के बीजों को जिन पर केसरिया रंग का बीजावरण (ऐरिल) लगा होता है, चीटियों द्वारा चुन-चुनकर पेड़ों से दूर अपने बिलों में ले जाते देखा है। इस पर  और  अधिक  अध्ययन  की आवश्यकता है। क्या पता कोई और नया रोमांचकारी सम्बन्ध अपने खोजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा हो!


किशोर पंवार: होल्कर साइंस कॉलेज, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में रुचि।