लेखक :  रिनचिन
अनुवाद: सुशील जोशी                                                                                                              [Hindi PDF, 323 kB]

गुज़रती ठण्ड है, गर्मी आने में कुछ ही दिन हैं। पेड़ों की पत्तियाँ झड़ गई हैं। कुछ पेड़ों में पत्तियाँ बाकी हालाँकि वे हरी नहीं हैं। जल्दी ही पलाश पर गहरे लाल रंग की बहार आएगी और भूरे जंगल को रंगीन कर देगी। सबरी के गाँव में ठण्ड रंगीन होती है जबकि बारिश पूरी ज़मीन पर हरियाली बिखेर देती है। ठण्ड का सूखापन अपने साथ कई रंग लेकर आता है। घास सूखकर अलग रंग की हो जाती है, पहाड़ियों पर हर तरफ सुनहरा नारंगी-सा गलीचा बिछ जाता है। पेड़ों पर अलग-अलग भूरी रंगत और तरह-तरह के हरे रंग छिटके होते हैं।
इन सारे रंगों के बीच बच्चे पूरी तरह खुश नहीं हैं। उन्हें परीक्षा के लिए पढ़ाई करनी है और गुरुजी सख्त से सख्त होते जा रहे हैं। चने की फसल पक चुकी है और वहाँ उनकी मदद की ज़रूरत है। बहुत काम है। लेकिन उन्हें शंकर की याद आ रही है। कहानी का पेड़ बड़ा हो गया है। मगन और सबरी कई बार वहाँ जाकर छिप जाते हैं। पत्तियाँ उन्हें कहानियाँ सुनाती हैं। लगता है जैसे शंकर लौट आया है। हाँ, एक तरह से लौट ही आया है। उसकी कल्पनाएँ हम सबके अन्दर बसी हैं, और हो सकता है एक दिन वह भी बस जाएगा। हर पत्ती के पास एक कहानी है। सबरी इस राज़ को ज़्यादा दिन राज़ नहीं रख पाई। एक दिन जब चकुली मायूस थी क्योंकि आयती ने उसे डाँटा था, तब सबरी उसे कहानी के पेड़ के पास ले गई थी, इस उम्मीद में कि पत्तियाँ उसे कोई कहानी सुनाकर खुश कर देंगी। चकुली कहानियों पर फिदा हो गई थी और जल्दी ही वह अकेली ही वहाँ जाने लगी।

चकुली तो चकुली थी, वह कोई काम चुपचाप नहीं कर सकती। वह पत्तियों को जवाब देती और फिर उनके साथ खिलखिलाती। एक दिन किसी और बच्चे ने चकुली को पेड़ पर अकेले खिलखिलाते देखा। कौतूहलवश वह भी पेड़ पर चढ़ गई और देखती क्या है कि चकुली वहाँ बैठी पत्तियों से बतिया रही है। चूँकि चकुली नहीं चाहती थी कि सब लोग उसे पागल समझने लगें, इसलिए उसने इस लड़की को कहानी के पेड़ का राज़ बता दिया। मगर उसे यह भी पता था कि सबरी पेड़ की बात को राज़ रखना चाहती है, इसलिए उसने लड़की को कसम दिलाई कि वह किसी से नहीं बताएगी। मगर नदी को बहने से और कहानी को लोगों के बीच फैलने से कौन रोक सकता है, जल्दी ही गाँव के बच्चे-बच्चे को कहानी के पेड़ का पता चल चुका था। और फिर गाँव के सारे बच्चे बार-बार पेड़ के चक्कर लगाने लगे।

जब पेड़ सबका खेल घर बन गया, तो मगन और सबरी को थोड़ी जलन होने लगी। क्यों वे उस पेड़ को सबके साथ साझा करें? वह तो सिर्फ उनका है। किसी और से पहले शंकर उनका दोस्त था। और बाकी लोगों के अपने-अपने ज़्यादा गहरे दोस्त नहीं हैं क्या? शंकर की याद सबसे ज़्यादा तो उन्हीं को सताती थी। तो फिर वे उस पेड़ को बाकी लोगों के साथ क्यों बाँटें?

पेड़ पर एकाधिकार की समाप्ति के कारण उनमें आपस में झगड़ा भी हो गया। मगन ने सबरी को दोष दिया कि वही चकुली को पेड़ पर लेकर गई थी और सबरी ने उसे ओछा शिकायत-खोर कहा था। इस तरह के कई उलाहनों का लेन-देन हुआ और उन्होंने एक-दूसरे से बात करना बन्द कर दिया। आधे दिन तक वे दोनों मैदान के विपरीत छोरों पर भटकते रहे और अपने आप से खेलने की कोशिश करते रहे। एक बार तो सबरी मगन के घर के सामने से निकल गई और मगन की आयती ने उसे पुकारा भी लेकिन सबरी कोई बहाना बनाकर अन्दर नहीं गई क्योंकि उसे पता था कि मगन अन्दर होगा। किन्तु वे इस अबोले को ज़्यादा देर सहन नहीं कर पाए। शंकर के जाने के बाद वे दोनों ही एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। और फिर शंकर अकेले उनका नहीं था, न उसकी कहानियाँ अकेले उनकी थीं, न वह पेड़। और क्या पता पेड़ ने किसकी कहानियाँ सुनाना शु डिग्री कर दिया था। कई कहानियाँ वे नहीं थीं जो सबरी ने वहाँ जमा की थीं, वे तो एकदम अलग और नई थीं। ऐसा लगता था कि पेड़ में कहानियाँ साँस लेती हैं और रोज़ाना बदल जाती हैं। हो सकता है बाकी बच्चे भी अपनी-अपनी कहानियाँ जमा कर रहे हों, खासकर चकुली जिसके पास शंकर के ही समान कहानियाँ बुनने का कुदरती गुण था, सिर्फ थोड़ी छोटी थी वह।

हालाँकि बच्चों के बीच पेड़ की खबर इतनी तेज़ी से फैली थी कि सूखे जंगल की आग भी उतनी तेज़ी से नहीं फैल सकती थी, लेकिन आश्चर्य की बात थी कि यह बात एक भी बड़े व्यक्ति तक नहीं पहुँची थी। किसी माँ-बाप तक नहीं, किसी गुरुजी तक नहीं, मगन की आयती तक को कहानी के पेड़ के बारे में कानों कान खबर नहीं थी, जिन पर मगन और सबरी को इतना भरोसा था कि वे उन्हें हर बात बताते थे। इसलिए कई बार ऐसा होता था कि कोई माँ या पिता अपने बच्चों पर चिल्ला रहे हैं कि वे पेड़ पर बैठे वक्त बरबाद कर रहे हैं जबकि उन्हें घर पर मदद करना चाहिए।

“तुम्हें उस पेड़ में क्या मिलता है, यह तो फलदार पेड़ भी नहीं है, तुम पूरे-पूरे दिन इसकी डालियों पर क्यों लटके रहते हो?” मगर बच्चे भी क्या करते? पेड़ में कुछ नशा था, जितनी कहानियाँ वह सुनाता, आपको और नई-नई कहानियाँ सुनने की इच्छा होती। यदि कहानी बहुत अच्छी होती तो आप यह सोचकर और सुनना चाहते कि अगली शायद और भी अच्छी होगी। यदि कभी श्रोता को कहानी में मज़ा न आता तो वह इस उम्मीद में और सुनना चाहती थी कि शायद अगली बेहतर होगी और उसे खुश कर देगी। तो हर हाल में सुनते जाने की इच्छा होती थी।

फिर एक दिन चकुली हँसते-हँसते पेड़ से गिर पड़ी। “क्या हुआ?” किसी ने पूछा। यह पूछना तो दूर रहा कि उसे कहीं चोट तो नहीं लगी है, सबने उससे वह कहानी सुनाने को कहा जो इतनी मज़ेदार थी कि वह सुनते-सुनते गिर पड़ी थी। सच्चे किस्सागो की तरह चकुली ने भी अपनी चोटों को दरकिनार किया और कहानी... गौरैया की पोंद की कहानी सुनाने बैठ गई। जंगली गौरैया हल्के भूरे रंग की होती है, किसी का ज़्यादा ध्यान नहीं जाता उस पर। मगर, चकुली ने पूछा, “क्या तुमने उसकी पोंद देखी है?”
“पोंद? नहीं। क्यों?”
“लाल होती है।”

“सच?” बच्चों ने आस-पास नज़र दौड़ाई कि कहीं कोई गौरैया नज़र आ जाए ताकि बात साफ हो सके। चकुली सिर्फ किस्सागो नहीं थी, वह कहानी में अपना पुट जोड़ने में भी समर्थ थी। तो बच्चों ने गौरैयों को आसमान में ढूँढ़ा और फिर किसी ने शायद कल्पना के आधार पर जोड़ दिया, “हाँ, पोंद लाल होती है। कितना मज़ेदार है कि पूरा शरीर तो मिट्टी जैसा भूरा होता है मगर फिर चटख लाल पोंद क्यों?” “यही तो कहानी है,” चकुली ही..ही करके हँसते हुए बोली, “लाल पोंद की कहानी।”

किसी समय जब पंखदार बड़े-बड़े परिन्दे धरती पर रहते थे, वे जंगल पर राज करते थे। वे राजा और रानी थे। मगर समय बीतने के साथ उन्होंने जंगल छोड़ दिया और सिर्फ जानवर और छोटे परिन्दे रह गए। और कोई राजा नहीं था, सब जानवर जैसा चाहते, करते थे। मगर जल्दी ही जानवरों को लगा कि परिन्दे जंगल का बहुत ज़्यादा हिस्सा घेरते हैं। वे आकाश में उड़ते हैं और दाना चुगने के लिए ज़मीन पर भी फुदकना चाहते हैं। मगरमच्छ जानवरों से नाराज़ थे। उनके पास शिकार करने को पूरी ज़मीन थी, मगर फिर भी भालू और लोमड़ियाँ पानी में शिकार क्यों करते हैं? और परिन्दे भी? इस तरह से एक झगड़ा शुरू हुआ, इन तीन के बीच। जंगल को कोई कैसे बाँटे? बन्दर तो हर जगह थे, वे उड़ नहीं सकते, मगर जिस ढंग से वे एक से दूसरे पेड़ पर कूद-फांद करते हैं, उसे देखकर तो लगता है कि जैसे उनके पंख हैं। मगरमच्छ पानी में खाते थे और धरती पर सोते थे, परन्तु यदि हिरन बहुत चौकन्ना न हो, तो मौका मिलने पर उसे भी गड़प जाते थे। तो इस सारे गड़बड़-घोटाले के बीच उन्होंने एक नया मुखिया चुनने का फैसला किया। ऐसा कोई जो इन मामलों में फैसला सुना सके। कौन कहाँ जिएगा, किसे कहाँ शिकार की इजाज़त होगी। कोई ऐसा जो सही न्याय दे। अब यह तो एक बड़ी समस्या थी, नहीं? यदि मुखिया कोई चिड़िया हुई तो वह पक्षियों की तरफदारी करेगी, जानवर जानवरों की तरफदारी करेंगे और रेंगने वाले जीव व मछलियाँ अपने कुनबे का पक्ष लेंगे।
तो फिर कौन?

तो उन जानवरों को अलग कर देते हैं, जिनकी तादाद सबसे ज़्यादा है, तो मछलियाँ, बन्दर, लोमड़ियाँ, और हिरन बाहर हो गए। यही हाल गौरैया, मैना और सारे आम परिन्दों का भी हुआ। चील, गिद्ध और मोर बच गए। जानवरों में बाघ अकेला बचा और रेंगने वालों में सिर्फ थूथन वाली मगरमच्छ रही।
तो अब उन्हें इन पांच में से चुनना था।
इतने सारे परिन्दों और रेंगने वाले जीवों को अपने खिलाफ देखकर चील और गिद्ध तो इस होड़ से खुद ही हट गए। उनको लगा कि उनका कोई चांस नहीं है। उन्होंने मोर से कहा कि हम वोट डालेंगे और तुम्हारा जीतना हमारे ऊपर निर्भर होगा।
तो अब लड़ाई तीन के बीच थी, मगर किस आधार पर?

उन सबने सोचा और सोचा। फिर उन्होंने फैसला किया कि सारे उम्मीदवारों को एक महीने का समय दिया जाएगा ताकि वे बाकी सबसे अपील कर सकें। एक महीने बाद चुनाव होगा और जिसे सबसे ज़्यादा वोट मिलेंगे वही मुखिया बनेगा। यानी उसे यह तय करने का अधिकार होगा कि कौन कहाँ रहे।

तो हरेक ने अपने-अपने ढंग से अपील की, बाघ शिकार कर सकता है, उसकी दहाड़ से सारे जीव डरकर थर्राने लगते हैं। मगरमच्छ भी शिकार कर सकती है, और नदी पर उसका अच्छा दबदबा है। बन्दर उसके अच्छे दोस्त भी थे, तो यह मुमकिन था कि वे मगरमच्छ को ही वोट देंगे हालाँकि वे जानवर थे। साँपों को मोर से नफरत थी, न ही वे किसी अन्य पक्षी को पसन्द करते थे, तो वे शायद बाघ को वोट दें। मगर छोटे जानवर सिर्फ मगरमच्छ और बाघ को मज़ा चखाने के लिए मोर को वोट दे सकते हैं क्योंकि मगरमच्छ उन्हें नदी से बाहर रखती है और बाघ उनका शिकार करता है। कौन जीतेगा, यह अन्दाज़ लगाना उतना ही मुश्किल था जितना पेड़ की पत्तियाँ गिनना।

चकुली ने कहानी का पहला भाग नाटकीय ढंग से समाप्त किया। ठीक है, आज के लिए बस हुआ, अब मुझे जाना है। “क्या,” बाकी बच्चे चिल्लाए, “तुम कहानी को ऐसे अधबीच में कैसे छोड़ सकती हो?” “मैं जो चाहे कर सकती हूँ,” चकुली बोली। श्रोताओं में सबरी और मगन की गैर-हाज़री के कारण वह थोड़ी ज़्यादा ही दादागिरी कर रही थी। “और यह भी सोचो कि यह जंगल का सबसे बड़ा चुनाव है, एक दिन में पूरा नहीं हो सकता।” उसने इधर-उधर देखा कि सबरी और मगन तो कहीं आस-पास नहीं हैं। यदि वे इस वक्त आ गए तो उसकी खटिया खड़ी कर देंगे। यह देखकर कि वे नहीं हैं, वह अपनी झोंक में चलती रही।

“मगर रुको, गौरैया की पोंद का इस कहानी से क्या सम्बन्ध है?” किसी ने पूछा।
“उसके लिए तुम्हें पूरी कहानी सुननी पड़ेगी, ना!” चकुली ने अधीरता से कहा, चलो थोड़ी और सुन लो।
चुनाव जीतने में गौरैया मोर की मदद करने वाली थी। कैसे? उसके लिए रंग लाकर। मोर अपनी अत्यन्त सादी टांगों से शर्मिंदा था और उसने सोचा कि चुनाव के बहाने वह इस पुरानी समस्या से छुटकारा पा लेगा। मोर ने कहा कि काश मेरी टांगें रंगीन हो जाएँ, मैं कितना सुन्दर दिखूँगा। मुझे यह अपने लिए कतई नहीं चाहिए, मैं पूरे पक्षी समाज के लिए यह कदम उठा रहा हूँ। मैं सुन्दर बनूँगा ताकि मैं तुम सबके लिए जीत सकूँ। ताकि मैं तुम्हारी सेवा कर सकूँ। बाकी पक्षियों ने इस उदारता को स्वीकार कर लिया। इस महान विचार का मतलब था कि अन्य सबको मोर की सेवा करनी चाहिए ताकि वह आगे चलकर उनकी सेवा कर सके।

आनन-फानन में तय हो गया कि किसी को लाल रंग लाने को रवाना किया जाए। पलाश अच्छा सुझाव था मगर उनके जंगल में उस पर अभी बहार नहीं आई थी। और चूँकि ऋतु बदलने का इन्तज़ार करने के लिए वक्त नहीं था, इसलिए जिस पक्षी को यह काम सौंपा जाता उसे लाल रंग खोजने किसी दूर के जंगल में जाना पड़ता। मगर जाए कौन, अचानक सारे पक्षी खामोश हो गए। और गौरैया चहकी, “मैं जाऊँगी।” और वह रवाना हो गई।

इस बीच बाकी प्रतिस्पर्धी अपना-अपना अभियान शुरू कर चुके थे। बाघ ने दहाड़कर डर पैदा कर दिया, मगरमच्छ इस उम्मीद में खर्राटे लेने लगा कि लोगों को उसका मस्तमौला स्वभाव पसन्द आएगा। मोर ने अपना नृत्य शुरू कर दिया और उसे उम्मीद थी कि सब उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो जाएँगे। और हैरत की बात थी कि कई लोग प्रभावित हो भी गए। लगभग उतने ही जितने बाघ से भयभीत हुए थे। तो ऐसा लग रहा था कि असली टक्कर तो बाघ और मोर के बीच होगी।

बाघ लोगों को डराता रहा और मोर उन्हें रिझाता रहा। इस बीच मगरमच्छ बन्दरों, सारसों के साथ समझौते करती रही, यहाँ तक कि उसने हिरनों से समझौता किया जिनका शिकार बाघ और मगरमच्छ दोनों करते हैं। वे मगरमच्छ का संरक्षण पाकर खुश थे। कम-से-कम पानी पीते समय तो सुरक्षा मिलेगी।

इस तरह महीने भर दिल की बजाय वोट जीतने का यह जश्न चलता रहा। मोर थोड़ा चिन्तित हो रहा था। गौरैया कहाँ है, क्या वह कभी लौटेगी, यदि समय पर रंग नहीं आया तो उसकी हालत पतली हो जाएगी। वह इन्तज़ार करता रहा मगर गौरैया नहीं लौटी। और जैसी कि उम्मीद थी मोर चुनाव हार गया। अचरज की बात तो यह थी कि वह दूसरे नम्बर पर भी नहीं आया। बाघ दूसरे नम्बर पर रहा। मगरमच्छ जीत गई। सब लोग सोच रहे थे कि वह सो रही है मगर वह सुन रही थी। उसने जंगल के बारे में बाघ और मोर से ज़्यादा पता कर लिया था और वे दोनों डराने और रिझाने में इतने मशगूल थे कि इस पर उनका ध्यान ही नहीं गया। नन्हे खरगोश, बेशुमार चींटियाँ, बन्दर, हिरन, मधुमक्खी, ये सब शेर की दहाड़ से इतने भयभीत थे कि उन्होंने मोर को देखा तक नहीं। मगर धूप में सोती विनम्र मगरमच्छ उनकी दोस्त बन गई थी। इसलिए उन्होंने उसी को वोट दिया। कोई नहीं जानता था कि वह अपने वायदे पूरे करेगी या नहीं मगर अभी के लिए वही जंगल की रानी थी।

“क्या कहानी पूरी हो गई?”
“हाँ।”
“अजीब अन्त है।”
“है तो, मगर यह असली अन्त नहीं है।”
“क्यों?”

जल्दी ही वे सब एक-दूसरे से नाराज़ हो जाएँगे और अपना वोट वापिस ले लेंगे, तो फिर से पूरा किस्सा शु डिग्री हो जाएगा।
“लगता है तुमने हमें समाज विज्ञान का पाठ पढ़ा दिया है।” किसी ने शंका जताई।
“ऐसा? तो बढ़िया है, गुरुजी खुश हो जाएँगे कि तुम्हें पहले से इतना पता है।” जवाब देकर चकुली चलने लगी।
“मगर रुको, लाल पोंद का क्या हुआ?”

“ओह वह! जब गौरैया लौटी, तो मोर ने अपनी हार के लिए उसे दोषी ठहराया। उसने गुस्से में रंग को गौरैया पर फेंक दिया और रंग जाकर उसके भागते पिछवाड़े पर चिपक गया। इसलिए उसकी पोंद लाल है। हा, हा, हा!” चकुली हँसते-हँसते घर की ओर दौड़ पड़ी। बाकी बच्चे सोचते रह गए कि चकुली ने उन्हें बुद्धू बनाया या एक मज़ेदार कहानी सुनाई।

अगले दिन तीर सिंह ने आकर चकुली को ललकारा, “तुम्हारी लाल पोंद वाली कहानी झूठी थी, आज पेड़ की एक पत्ती ने मुझे दूसरी कहानी सुनाई।” चकुली ने एक मिनट सोचा और फिर सहजता से जवाब दिया, “तुमने एक अलग कहानी सुनी, इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी कहानी झूठी है। इसका मतलब यही है कि एक ही कहानी को कई तरह से सुनाया जा सकता है। तो चलो तुम्हारी कहानी सुनाओ।”

“एक समय जंगल में एक राजा था, शेर।” चकुली ने फौरन कहा, “हमारे जंगल में शेर नहीं है, सिर्फ बाघ है।” कई बच्चों को तो शेर के बारे में पता तक नहीं था, हालाँकि उन्होंने बाघ के बारे में सुना था। स्कूल जाने वाले बच्चों को ज़रूर पता था क्योंकि तीसरी में शेर के बारे में एक पाठ था। “परन्तु इस कहानी में शेर जंगल का राजा है और हर कहानी वैसी क्यों होगी जैसी हम सोचते हैं?” तीर सिंह ने पूछा। इस पर चकुली खामोश रही।

नए किस्सागो ने फिर से शुरू किया।
तो एक समय पर शेर जंगल का राजा था। वह हर दिन दहाड़ता था। सुबह-सुबह एक बार, और उसकी दहाड़ सुनकर सब जाग जाते थे। विस्मय और डर से।
जागकर वे कहते थे - राजा महान है। जंगल महान है। मुझे अपने जंगल से प्यार है।
सबको यह बात दिन में कम-से-कम एक बार कहनी होती थी या मौका पड़ने पर ज़्यादा बार। कहना ही होता था। सब लोग इसके इतने आदी थे कि वे यह बात उतनी ही सहजता से कहते थे जैसे पेशाब या टट्टी करते हैं।
एक दिन एक नन्ही गौरैया अपने अण्डे से बाहर निकली, और दुनिया को जानने-बूझने की शुरुआत करने लगी। वह जो कुछ देखती उसे अचरज होता था और वह जानना चाहती थी कि ऐसा क्यों होता है। जब वह छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े खाती तो सोचती थी, ‘वह जब उन्हें खाती है तो उन्हें मरना क्यों पड़ता है?’

उसकी माँ ने समझाया, “यह खाद्य  शृंखला का हिस्सा है, तुम उन्हें खाती हो और गिद्ध तुम्हें खाते हैं।”
“ओह!” वह थोड़ी देर खामोश रहकर आकाश को ताकने लगी कि कहीं कोई गिद्ध तो नहीं मण्डरा रहा है।
तो उसने सीखा कि उसे कीड़ों का शिकार करना है और गिद्ध से बचकर रहना है। मगर और कई चीज़ें थीं जिन्हें वह नहीं छेड़ेगी और कई ऐसी चीज़ें थीं जिनसे डरने की ज़रूरत नहीं है। तो इस तरह से वह दुनिया की खोजबीन करने लगी।
फिर उसने शेर को देखा।
“ओह!”
“वह हमारा राजा है,” माँ ने बताया।
“अच्छा? राजा क्या होता है?”
“राजा वह होता है जो हमारे ऊपर राज करता है। और शेर हमारे ऊपर राज करता है और वह राजा है। राजा महान है।”
यह सब उसकी माँ के मुँह से स्वाभाविक रूप से निकला।
नन्ही गौरैया ने उतने ही स्वाभाविक ढंग से पूछा, “क्यों?”

इस एक लफ्ज़ के बाहर निकलते ही पत्तियाँ पेड़ों से टपक गईं, आकाश मूसलाधार रोने लगा, मोर के पैर का रंग उड़ गया, पता नहीं क्या-क्या हो गया। यह एक शब्द जंगल में कभी नहीं पूछा गया था। और अब वह हवा में उड़ने लगा था। इसने कुछ लोगों को सोचने पर विवश कर दिया था...।
राजा महान क्यों है?

लोग उसकी महानता के जितने कारण सोचते, कई लोग उतने ही कारण सोच लेते जिनसे वह महान से कमतर हो जाता था। क्या कुछ और महान नहीं है? जैसे वे चींटियाँ जो इतनी कड़ी मेहनत करती हैं? और वे पेड़ जो चुपचाप बढ़ते रहते हैं और हवा को साफ करते रहते हैं? छोटी-छोटी गौरैया जो उड़ती रहती हैं और मधुमक्खियाँ? अरे, इतनी सारी और चीज़ें हैं जो उतनी ही महान हैं। तो राजा महान क्यों है? यह सवाल हवा में तैरता रहा।
“और लाल पोंद?”

“वह तो ‘क्यों’ पूछने के लिए उसे जो कोड़े पड़े थे, उसकी वजह से हुई थी। लेकिन मज़े की बात यह है कि जब नन्ही गौरैया को कोड़े पड़ रहे थे, तब भी वह अपने आपको यह पूछने से रोक नहीं पाई - हर कोड़े पर पूछती, ‘क्यों’? इसलिए उसकी पोंद लाल से लाल होती गई।”
“तो यह है मेरी कहानी,” तीर सिंह ने कहा, “तुम्हारी कहानी से कितनी अलग है।” यह बात उसने चकुली की आँखों में आँखें डालकर कही थी। माहौल में थोड़ा तनाव आ गया। “तो कौन-सी सच है?” सबने एक साथ पूछा।

“कौन जाने, हम दोनों ने कहानी पेड़ से सुनी है, है कि नहीं?” चकुली ने थोड़ा आत्मविश्वास-पूर्ण ढंग से कहा। लेकिन अन्य लोगों पर उसकी पकड़ थोड़ी ढीली पड़ने लगी थी। सोचने की कोशिश में वह थोड़ी कसमसाई, और बाकी लोग तीर सिंह की ओर झुकने लगे। तब तक सबरी वहाँ पहुँच गई। बच्चों ने उसकी ओर देखा कि वह इस उलझन को सुलझाए।

पूरी कहानी सुनकर सबरी का एक ही सवाल था, “क्या गौरैया की पोंद सचमुच लाल होती है?” और फिर से जाँच करने के लिए सब बच्चे ऊपर की ओर देखने लगे।
उनके सिर के ऊपर पेड़ की पत्तियाँ मुसकुरा रही थीं।
(अक्टूबर 2007)


रिनचिन: बच्चों व बड़ों के लिए कहानी लिखती हैं। भोपाल में रहती हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।