किशोर पंवार

पिछले अंक में आपने एक पौधा दस प्रयोग के अन्तर्गत पत्तियों की रचना एवं कार्यप्रणाली को समझने सम्बन्धी पाँच प्रयोग किए थे। इस बार हम पत्तियों के अन्दर उपस्थित कोशिकाओं के व्यवहार एवं प्रजनन से जुड़े कुछ प्रयोग करेंगे। ये प्रयोग कोशिकाओं के जल सम्बन्धों एवं पौधे के जीवन चक्र को समझने में मददगार होंगे। तो चलिए शुरुआत करते हैं इस प्रयोग से।

प्रयोग-6: जलरन्ध्रों को पहचानना
पिछली बार हमने रोहियो की पत्तियों में स्टोमेटा देखे थे। उनसे हवा का आदान-प्रदान होता है और साथ ही पानी वाष्प के रूप में उड़ता रहता है जिसे वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। कुछ पौधों में पानी वाष्प के रूप में उड़ने के साथ ही जल की बूँदों के रूप में भी निकलता है। ऐसे लगभग 300 पौधे पहचाने गए हैं जिनमें यह क्रिया देखी गई है। इसे बिन्दुस्राव (Guttation) कहते हैं। टमाटर एवं गार्डन नास्टरशियम इसके किताबी उदाहरण हैं। हमारा रोहियो भी इसका एक बढ़िया उदाहरण है।

गमले में लगे या ज़मीन पर उग रहे इसके पौधे में बिन्दुस्राव देखने के लिए पौधों को रात में अच्छी तरह पानी दें। और फिर सुबह उठकर इनकी पत्तियों को देखें। बिन्दुस्राव के कारण इनके किनारों पर मोतियों की लड़ियाँ जैसी पानी की बूँदें दिखेंगी। रोहियो की पत्ती पर पानी की प्रत्येक बूँद जलरन्ध्र की स्थिति बताती है। ये जलरन्ध्र पत्तियों के सिरे और किनारे पर स्थित होते हैं जहाँ पानी लाने वाली ज़ाइलम नलिकाओं का अन्त होता है। आप चाहें तो इन जगहों का पतला सेक्शन काटकर जलरन्ध्रों की रचना को माइक्रोस्कोप में देख सकते हैं। बिन्दु-स्रवण अक्सर वर्षा काल में देखा जाता है जब पौधे में पानी के अवशोषण की दर से पानी के वाष्पीकरण की दर कम हो, और हवा में पर्याप्त नमी हो। बिन्दु-स्रवण, दरअसल, पौधों में पाए जाने वाले जड़ दाब (Root pressure) का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

प्रयोग-7: जीवद्रव्य कुंचन की जाँच (Plasmolysis)
कोशिका में भरा जीव द्रव्य (Protoplasm) प्लाज़्मा झिल्ली से घिरा रहता है। प्लाज़्मा झिल्ली एक अर्ध पारगम्य या चयनित रूप से पारगम्य झिल्ली की तरह व्यवहार करती है। यह एक जीवित झिल्ली है। दूसरे शब्दों में यह कोशिका के अन्दर पदार्थों की आवक-जावक को नियंत्रित करती है। आइए इसके इसी गुण की जाँच रोहियो की पत्ती की मदद से करें।
इस प्रयोग के लिए पहले आप लगभग 10 प्रतिशत सान्द्रता का नमक या शक्कर का घोल (100 मिली लीटर पानी में 10 ग्राम शक्कर या नमक) बना लें। अब पत्ती की निचली जामुनी झिल्ली को निकालकर नमक या शक्कर के घोल में 10-15 मिनट रखें। फिर इस झिल्ली की उसी घोल में स्लाइड बनाएँ और उस पर कवर स्लिप रख माइक्रोस्कोप के लो पावर और फिर हाई पावर में देखें।
जब किसी कोशिका को उसके प्रोटोप्लाज़्म की सान्द्रता से ज़्यादा सान्द्र घोल में रखा जाता है तो उस कोशिका से पानी बाहर निकलता है जिसके फलस्वरूप प्रोटोप्लाज़्म सिकुड़ जाता है। प्रोटोप्लाज़्म की यह स्थिति ही प्लाज़्मोलाइसिस कहलाती है। ऐसी कोशिका को प्लाज़्मोलाइज़्ड कहते हैं। यहाँ कोशिका से पानी बाहर निकलना बाह्य परासरण यानी एक्ज़ोऑसमोसिस की क्रिया के कारण होता है। अत: यह प्रयोग कोशिका में बाह्य परासरण भी प्रदर्शित करता है।

प्रयोग-8: डीप्लाज़्मोलाइसिस
प्रयोग - 7 वाली झिल्ली के टुकड़े को शक्कर के घोल से हटाकर, पानी से धोकर पुन: पानी में रख दें। 10-15 मिनट बाद पुन: इसका अवलोकन करें। जो देखें उसका चित्र बनाएँ और जीव द्रव्य कुंचन वाले फोटो से उसकी तुलना करें। क्या सिकुड़ा हुआ रंगीन जीव द्रव्य पुन: पूरी कोशिका में फैल गया है? कोशिका की इस अवस्था को डी-प्लाज़्मोलाइसिस कहा जाता है।
प्लाज़्मोलाइज़्ड कोशिकाओं को जब पुन: पानी में रखते हैं तो वे अपने पर्यावरण से पानी सोखती हैं। यह पानी कोशिका झिल्ली से अन्दर प्रवेश करता है जिससे जीव द्रव्य पुन: फैलता है। कोशिका द्रव्य में झिल्ली से होकर पानी का पुन: प्रवेश एन्डोऑसमोसिस का उदाहरण है।

प्रयोग-9: जीवद्रव्य गति
गति जीवों का एक महत्वपूर्ण गुण है। हालाँकि पौधों में यह इतनी स्पष्ट नहीं होती जितनी जन्तुओं में। फिर भी पौधे तरह-तरह की गतियाँ दिखाते हैं जैसे फूलों का खिलना, बन्द होना, पत्तियों का सोना-जागना आदि। कुछ गतियाँ पर्यावरणीय प्रभाव से होती हैं तो कुछ स्वत: यानी अपने आप। स्वत: गति का बढ़िया उदाहरण है सायटो-प्लाज़्मिक स्ट्रीमिंग जिसे रोहियो के पुंकेसरीय रोम की कोशिकाओं में देखा जाता है।
इस गति को देखने के लिए रोहियो के फूल से एक पुंकेसर निकालें। अब इस पुंकेसर को स्लाइड पर रखकर इसका परागकोष निकाल दें। पुंकेसर के तन्तु को सेफ्रेनिन से स्टेन कर पानी में इसकी स्लाइड बनाकर उस पर एक कवरस्लिप रख दें। अब इस स्लाइड को माइक्रोस्कोप के लो पावर में देखें। आपको पुंकेसर के तन्तु पर स्टेमिनल रोम दिखाई देंगे। ये सफेद मोती की माला-सी रचनाएँ हैं। ये मोती एक-एक कोशिका है। अब इनमें से किसी एक कोशिका को हाई पावर में देखें। नीचे से लाइट कम करके इन कोशिकाओं को ध्यान से देखने पर आपको कोशिका का जीवद्रव्य धागों के रूप में घड़ी की दिशा में या विपरीत दिशा में चलता दिखाई देगा। ध्यान रखें, इसे देखने के लिए बहुत धैर्य, अभ्यास एवं सटीक अवलोकन की ज़रूरत होती है।

प्रयोग-10: परागकण एवं उनका विकास
रोहियो के पुंकेसरीय रोम में जीव द्रव्य को घूमते-फिरते आप देख ही चुके हैं, आइए अब इन रोमों से थोड़ा ऊपर चलें। जब फूल से पुंकेसर को निकालकर स्लाइड पर रखते हैं तो हमें पीले रंग के परागकोष दिखते हैं। इन्हीं परागकोषों में परागकण भरे रहते हैं। ऐसे ही एक परागकोष की एक स्लाइड बनाकर देखें। आपको चींटी के अण्डों के आकार के हल्के पीले रंग के परागकण दिखाई देंगे।
परागकण इन फूलों की नर प्रजनन की इकाई हैं। इनका विकास परागकोष में पराग मातृ कोशिका से होता है। एक पराग मातृ कोशिका से चार परागकण बनते हैं। इस प्रक्रिया को माइक्रोस्पोरो-जेनेसिस यानी लघु बीजाणु जनन कहते हैं। परागकण का एक नाम माइक्रोस्पोर भी है।
आइए यह देखें कि एक पराग मातृ कोशिका से चार परागकण कैसे बनते हैं। दरअसल, जब फूल खिलता है तब तक परागकणों का पूर्ण विकास हो चुका होता है, अत: परागकणों का विकास देखना हो तो ऐसी कलियाँ चुननी होंगी जो अभी विकास की अवस्था में हों। इस हेतु रोहियो का एक पुष्पक्रम तोड़ लें। इसके नाव के आकार के जामुनी रंग के दोनों ब्रेक्ट हटाने पर आपको फूलों और कलियों के दो समूह दिखाई देंगे। इसमें से एक समूह को तोड़कर अलग कर लें। अब इसमें से सबसे छोटी कली को निकाल लें। उसे स्लाइड पर रखकर सुइयों की सहायता से इसके अन्दर से परागकोष निकाल लें। इन परागकोष पर एक-दो बूँद सेफ्रेनिन की रखकर इन्हें कुचल दें। अब इस पर कवर स्लिप रखकर इसे माइक्रोस्कोप के लो पावर और फिर हाई पावर में देखें।

आपको पराग कण के विकास की अवस्थाएँ दिखाई देंगी। स्लाइड पर दिखने वाली दो कोशिकाओं और चार-चार कोशिकाओं के समूह को क्रमश: डायड और टेट्राड कहते हैं। दरअसल, ये पराग मातृ कोशिका के विभाजन की विभिन्न अवस्थाएँ हैं जहाँ एक कोशिका से चार कोशिकाएँ बनने के विभिन्न चरण दिखते हैं। (चित्र पिछले पेज पर)
रोहियो के मार्फत हमने पौधे की रचना और कार्य प्रणाली को समझने की कोशिश की। आपने खुद भी महसूस किया होगा कि वनस्पति विज्ञान की कक्षा में रोहियोे कितना उपयोगी हो सकता है। तो अब देर किस बात की है, आप भी मेरी तरह रोहियो को अपना दोस्त बना लीजिए। इसे अपने घर, स्कूल व कॉलेज में उगा लीजिए और तैयार हो जाइए इसके ज़रिए हो सकने वाले प्रयोगों का आनन्द उठाने के लिए। हाँ, एक और बात, रोहियो के साथ ये प्रयोग अभी खत्म नहीं हुए हैं, लेकिन बाकी प्रयोग फिर कभी।


किशोर पंवार: होल्कर साइन्स कॉलेज, इन्दौर में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं। विज्ञान लेखन एवं नवाचार में रुचि।