एस. श्रीनिवासन

आर्किमिडीज का नाम सुनते ही उनको वह किस्सा दिमाग में कौंध जाता है जिसमें उन्हें राजा के सोने के मुकुट में मिलावट है कि नहीं, यह पता करने का तरीका टब में नहाते-नहाते अचानक सुझा और वे उसी हालत में ‘यूरेको, यूरेका, ...' चिल्लाते हुए बाहर को दौड़ लिए। इस लेख में एस. श्रीनिवासन यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि जो भी अन्य जानकारियां उस समय तक उपलब्ध थीं, उनको देखते हुए सोने के मुकुट में मिलावट का पता लगाने के लिए वास्तव में आर्किमिडीज़ को उनके द्वारा खोजे गए ‘वस्तुओं के तैरने-डूबने के सिद्धांत' की जरूरत थी क्या?
इस सवाल की तह में जाते हुए श्रीनिवासन यह भी पाते हैं कि उनके कुछ और भी हमराही रहे हैं जिन्हें यूरेका, यूरेका वाले इस किस्से की तथ्यपरकता पर संशय रहा है। विज्ञान के इतिहास में इस तरह के और भी कई किस्से देखने को मिलते हैं जो अक्सर इतिहास की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, परन्तु किवदन्तियों के रूप में जनमानस में बसे रहते हैं।

आर्किमिडीज का जन्म 287 ईसा पूर्व सिरेक्यूज में हुआ था। वे एक महान वैज्ञानिक और विचारक थे। उन्हें एक महान गणितज्ञ भी कहा जाता है। अपने ज़माने में उन्हें 'उस्ताद' और 'महान रेखा शास्त्री माना जाता था। अपने काम की बदौलत उन्हें जो ख्याति मिली उसकी चमक आज तक फीकी नहीं पड़ी है।
विज्ञान और गणित के इतिहासकार आर्किमिडीज़ को कई सारी वैज्ञानिक खोजों का श्रेय देते हैं। जैसे -
1. वृत का क्षेत्रफल और पाई का मान ज्ञात करना। उन्होंने पाई का मान, उस समय तक किए गए सभी प्रयासों से अधिक सटीकता से ज्ञात किया था।
2. वे डिफ्रेंशियल केल्क्युलस (कलन) विकसित करने के काफी करीब पहुंच चुके थे। और उन्होंने लगभग उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल किया जो आज इंटिगरल केल्क्युलस में अपनाए जाते हैं। यानी परवलय (पैराबोला) और दीर्घवृतों जैसी ज्यामितीय आकृतियों का क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए आर्किमिडीज़ उन्हें छोटे-छोटे अनंत आयतों में बांटकर, उन आयतों के क्षेत्रफल का योग कर लेते थे।
3. पेराबोला यानी परवलय का क्वाड्रेचर ज्ञात करना।
4. गोले की सतह का क्षेत्रफल व उसका आयतन ज्ञात करना। इस समस्या के उनके हैरतअंगेज़ हल का विवरण उनकी पुस्तक ‘ऑन द स्फीयर एण्ड द सिलेंडर' में मिलता है।
5. सरल यांत्रिकी में उनकी महारत।
6. और वह सारा योगदान तो है ही जिसे हम आज जल-स्थैतिकी (हायड्रोस्टैटिक्स) के नाम से जानते हैं।
इन सब के अलावा और भी बहुत सारी उपलब्धियां हैं उनकी।
उनकी इन सारी उपलब्धियों को देखकर राजा के मुकुट और आर्किमिडीज' की प्रचलित कहानियों पर संदेह पैदा होता है। संदेह का कारण यह है कि आर्किमिडीज़ जैसा होशियार व्यक्ति क्यों एक ज्यादा जटिल विधि का इस्तेमाल करेगा, जबकि उस समस्या को सुलझाने के कई आसान तरीके उपलब्ध थे। हां, यह जरूर हो सकता है कि गोले के आयतन और उसकी सतह के क्षेत्रफल की समस्या को सुलझाने के बाद आर्किमिडीज़ ‘यूरेका, यूरेका...' यानी ‘खोज लिया, खोज लिया...' चिल्लाते हुए स्नानागार से निर्वस्त्र बाहर दौड़ पड़ा हो।

मुकुट का किस्सा   
ऐसा माना जाता है कि नहाने के टब में घुसते हुए आर्किमिडीज ने वह सिद्धांत खोज निकाला था जिसे आज हम आर्किमिडीज़ का सिद्धांत कहते हैं। उन्होंने देखा कि उनका शरीर पानी के अंदर जितना जाता है, टब में पानी का तल उतना ही बढ़ता जाता है। उसी समय राजा यह पता करने की कोशिश कर रहा था कि उसने सोने का जो मुकुट बनवाया है वह शुद्ध सोने का है या सुनार ने मुकुट में चांदी और उसकी आंखों में धूल झोंकी है। और स्वाभाविक रूप से उसने इस भारी भरकम समस्या को सुलझाने का काम अपने राज्य के सर्वश्रेष्ठ विचारक व वैज्ञानिक को सौंपा। राजा किसी ऐरे-गैरे से तो अपनी समस्या हल करवाने से रहा।
सवाल यह है कि बहु-प्रचलित कहानी के अनुसार आर्किमिडीज ने इस समस्या के हल के लिए ‘आर्किमिडीज के सिद्धांत' का उपयोग कैसे किया। मगर आगे बढ़ने से पहले आइए आर्किमिडीज़ के सिद्धांत पर एक नज़र डाल लें।

आर्किमिडीज़ का सिद्धांत   
आर्किमिडीज़ के सिद्धांत का आधुनिक संस्करण कहता है कि द्रव में पूरी या अधूरी डूबी किसी भी चीज़ पर एक उत्प्लावन बल लगता है और इस बल का परिमाण हटाए गए द्रव के वज़न के बराबर होता है।
इस सिद्धांत का जो आशय है उससे निम्नलिखित परिणाम मिलते हैं।
1. तैरती हुई चीज़ इसलिए तैरती है। क्योंकि उस पर नीचे की ओर लगने वाला बल (यानी उसका वज़न) तथा ऊपर की ओर लगने वाला बल (उत्प्लावन बल) बराबर होते हैं। अर्थात तैरती हुई वस्तु पर लगने वाला उत्प्लावन बल, उस वस्तु के द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है। लिहाजा कोई भी तैरती हुई चीज़ भार-रहित होती है।
2. आंशिक रूप से या पूर्णतः डूबी हुई किसी भी वस्तु का वजन उसके ‘हवाई वजन' से कम होगा।
3. द्रव जितना ज्यादा घना होगा, संपूर्णतः डूबी हुई वस्तु के वजन में कमी उतनी ही अधिक होगी।
4. यदि कोई वस्तु अलग-अलग घनत्व वाले दो द्रवों में तैरती है तो ज्यादा घने द्रव में उसका कम भाग डूबेगा। लैक्टोमीटर वगैरह इसी सिद्धांत पर काम करते हैं।
5. जब कोई वस्तु तैरती है तो वह द्रव को हटाती है; यदि उसका वज़न बढ़ा दिया जाए तो तैरते रहने के लिए उसे पहले से ज्यादा द्रव हटाना पड़ेगा। इसीलिए जब जहाज़ में माल लादा जाता है तो वह थोड़ा और डूब जाता है।
एक तथ्य और... इसका संबंध आर्किमिडीज के सिद्धांत, उत्प्लावन वगैरह से नहीं है। यदि बराबर वजन के दो ठोस टुकड़े लिए जाएं तो अधिक घने पदार्थ (जैसे सोने) से बने टुकड़े का आयतन, कम घने पदार्थ (जैसे चांदी) से बने टुकड़े से कम होगा।

पकड़ो सुनार को   
सुनार की धोखाधड़ी पकड़ने के लिए आर्किमिडीज को मात्र इतना ही करना था कि वे विवादित मुकुट के बराबर वज़न या बराबर आयतन का शुद्ध सोने का मुकुट लेकर तुलना कर लेता। यदि सुनार ने मुकुट में चांदी (या किसी भी अन्य धातु जिसका घनत्व सोने से कम है) की मिलावट की है तो निम्नलिखित स्थितियां हो सकती हैं।
-- यदि दोनों का वजन बराबर हो तो शुद्ध सोने के मुकुट का आयतन कम होगा। दोनों मुकुटों को पानी (या किसी भी अन्य द्रव) में डुबाकर विस्थापित पानी की मात्रा पता करके दोनों के आयतन की तुलना की जा सकती है।
-- यदि दोनों का आयतन बराबर हो तो मिलावटी मुकुट का वजन कम होगा, यदि सोने में कम घनत्व की कोई धातु मिलाई गई हो।
ध्यान दें कि जांच के इन दोनों ही तरीकों में आर्किमिडीज के सिद्धांत का उपयोग नहीं किया गया है।
परन्तु, एक स्थिति यह भी हो सकती है कि मुकुट में कुछ पोली रचनाएं हों। जैसे हो सकता है कि राजा ने पूरी दुनिया पर अपने साम्राज्य की घोषणा करने के लिए मुकुट पर एक पृथ्वी लगवाई हो, जो अंदर से खोखली हो। इस मामले में भी आर्किमिडीज़ कुछ इस तरह से आगे बढ़ सकता है कि आर्किमिडीज के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं होगा। वह ठीक उसी आकृति का सोने का मुकुट बनवाएगा। इस मुकुट का या तो वज़न सुनार द्वारा बनाए मुकुट के बराबर होगा, या फिर आयतन। उसके बाद प्रक्रिया उपरोक्त दो स्थितियों जैसी ही होगी।
यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। कि यदि सुनार ने मात्र चांदी की मिलावट न करके दो या तीन धातुएं मिला दी होतीं, तो क्या होता। तब वह इन धातुओं को सही मात्रा में मिलाकर मिश्रण का घनत्व सोने के बराबर ला सकता था। जैसे वह सोने में मिलवाट के लिए एक धातु ऐसी ले सकता है जिसका घनत्व सोने से कम है (जैसे चांदी या तांबा), और दूसरी धातु ऐसी ले सकता है जिसका घनत्व सोने से ज्यादा हो, जैसे प्लेटिनम।
ऐसी स्थिति में मुकुट में मिलावट है कि नहीं यह जांचने के लिए, आर्किमिडीज को उस मुकुट को पिघलाकर उसका रासायनिक परीक्षण करवाना पड़ता। वैसे हम यह मानकर चल सकते हैं कि उस जमाने में प्लेटिनम के उपयोग की संभावना न के बराबर है, क्योंकि शायद तब तक प्लेटिनम की खोज ही नहीं हुई थी।

प्रचलित किस्से   
तो मिलावटी मुकुट की समस्या पर लौटें, विशेषकर ऐसे मुकुट के संदर्भ में जिसमें खोखले स्थान नहीं थे। विज्ञान की अधिकांश पाठ्य पुस्तकों और अन्य कहानियों में, हमें इसके हल का आर्किमिडीज द्वारा प्रस्तुत निम्नलिखित में से कोई एक संस्करण मिलता है।
संस्करण 1: ''यदि सुनार ने मुकुट सोने के बजाए चांदी (कम घनत्व की धातु) का बना दिया होता तो मुकुट का वज़न कम होगा (यानी मुकुट का आयतन उतना ही होगा, परन्तु प्रति इकाई आयतन में पदार्थ की मात्रा कम होगी, इसलिए उसकी कुल मात्रा और वज़न कम होंगे)। ऐसे मुकुट को तैराने के लिए उत्प्लावन बल भी कम लगेगा। यदि इस मुकुट को एक ऐसे द्रव में डाला जाए जिसमें शुद्ध सोना डूब जाता है मगर चांदी का मुकुट तैरता रहता है तो सुनार की धोखाधड़ी पकड़ी जाएगी।

संस्करण 2: “कोई भी डूबी हुई वस्तु अपने आयतन के बराबर द्रव हटाती है। इसलिए मुकुट को पानी में डुबाकर उसका एकदम सही आयतन पता किया गया। ठीक इतने ही आयतन का सोने का गुटका आसानी से बनवा लिया गया। अब यदि मुकुट शुद्ध सोने का है तो उसकी संहति (द्रव्यमान) और उसके बराबर आयतन के सोने के गुटके की संहति बराबर होनी चाहिए। यदि उनकी संहति बराबर न हो, तो इसका एक ही कारण हो सकता है कि मुकुट शुद्ध सोने का नहीं है। जब मुकुट और सोने के गुटके को तराजू के दो पलड़ों में रखा गया तो उनकी संहति बराबर नहीं निकली। इस प्रमाण के समक्ष सुनार ने अपना अपराध कबूल कर लिया।
ज़ाहिर है कि संस्करण 2 में तो आर्किमिडीज़ के सिद्धांत का उपयोग ही नहीं हुआ है। संस्करण 1 की दिक्कत यह है कि इसमें मानकर चला गया है कि सुनार इतना बेवकूफ था कि उसने मान लिया कि वह सोने की बजाय शुद्ध चांदी का मुकुट बना देगा और किसी को पता तक नहीं चलेगा।

संस्करण 3: आगे दिया गया पूरा विवरण ‘ए कम्प्लीट कोर्स इन फिजिक्स (खण्ड2)' लेखक भटनागर (पीतांबर पब्लिशिंग, दिल्ली, 2002) से लिया गया है।
“एक मुकुट है जिसका वजन हवा में 0.434 किलोग्राम और पानी में पूरी तरह डुबाए जाने पर 0.406 किलोग्राम है। यह पता करने के लिए कि मुकुट शुद्ध सोने का है या नहीं, हम यह मानकर चलेंगे कि शुद्ध सोने का घनत्व 19.3 ग्राम/घन सेंटीमीटर है। आगे का हल इस प्रकार होगा।
हलः      मुकुट के पदार्थ का धनत्व निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है:
मुकुट का घनत्व
= हवा में मुकुट का वज़न/उसका आयतन ।
= हवा में मुकुट का वज़न/मुकुट द्वारा हटाए गए पानी का आयतन
= हवा में मुकुट का वज़न/(पानी में डालने पर मुकुट के वज़न में कमी/पानी का घनत्व)
= हवा में मुकुट का वजन/पानी में डालने पर मुकुट के वजन में कमी (क्योंकि पानी का घनत्व 1 ग्राम प्रति घन सेमी है)
= 0.434/(0.434-0.406)
= 1 5.5 ग्राम/घन से.मी.
यानी मुकुट शुद्ध सोने का नहीं है।''

टिप्पणीः मुकुट में उपस्थित संदिग्ध पदार्थ का घनत्व पता करने के लिए आर्किमिडीज के सिद्धांत या पानी में डुबाने पर वज़न में कमी वगैरह का सहारा लेने की कोई जरूरत नहीं है। मगर, जैसे कि बाद में चर्चा की गई है, शायद यही तरीका आर्किमिडीज के सिद्धांत के उपयोग के सबसे करीब आता है।

सेंसिटिवीटी (सुग्राहिता) का सवाल  
अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि मुकुटों का वजन बराबर था। इसलिए समस्या यह है कि उनके द्वारा हटाए गए पानी के आयतनों का अंतर पता करना। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, आयतनों में अंतर नापकर सच्चाई का पता करने में आर्किमिडीज़ का सिद्धांत किसी काम नहीं आता है। बहरहाल, यह देखते हैं कि यदि हम सच्चाई का पता करने के लिए आयतनों में अंतर का सहारा लें तो मापन की तकनीक में कितनी सटीकता की जरूरत होगी।
‘ए कम्लीट कोर्स इन फिज़िक्स' के उपरोक्त उदाहरण के संदर्भ में यह सवाल पूछना ज़रूरी है कि पानी में डुबाने पर वजन में आई कमी को किस विधि से नापा गया होगा। हटाए गए पानी का आयतन निकालकर, उसमें पानी के घनत्व का गुणा करके वजन में कमी का पता किया गया होगा? या फिर एक कमानीदार तुला या सादी तराजू के जरिए सीधे ही वजन में कमी निकाली गई होगी?
अगर पहली बाली विधि अपनाई गई हो, तो जैसा कि नीचे की चर्चा से स्पष्ट होगा, यह तरीका मुकुट में मिलावट पता करने के लिए पर्याप्त संवेदनशील नहीं है। दूसरा तरीका ही आर्किमिडीज के सिद्धांत को इस्तेमाल करने का अर्थपूर्ण रास्ता है। परन्तु उसके लिए जरूरी है कि आपके पास संवेदनशील तुला हो जो वज़न में अंतर को नाप सके।

बराबर वज़न रखते हुए आयतन में अंतर मापनाः   
उपरोक्त उदाहरण को ही लेते हैं। इस मुकुट का हवा में वज़न 0.434 किलोग्राम है।
अगर यह मुकुट शुद्ध सोने का हो तो इसका आयतन 0.434/19.3 = 22.48 घन से.मी. होगा।
यदि नकली मुकुट में चांदी मिलाई गई है तो उसका आयतन शुद्ध सोने के मुकुट से अधिक होना चाहिए (चूंकि चांदी का घनत्व 10.5 ग्राम/घन से.मी. है)।
उपरोक्त उदाहरण के अनुसार नकली मुकुट का घनत्व 15.5 ग्राम घन से.मी. है।
इसलिए नकली मुकुट का आयतन 0.4341 5.5 = 27.47 घन से.मी. होगा। यानी शुद्ध सोने से बने मुकुट और राजा के मुकुट के आयतन का अंतर 27.47-22.48 = 4.99 घन से.मी. है।
इस अंतर का पता लगाने का एक तरीका यह है कि एक बड़े से बर्तन में पानी भर कर दोनों मुकुट को उसमें बारी-बारी से डुबोकर यह देखा जाए कि पानी के तल में कितना अंतर आया।
मेरे सिर का व्यास करीब 20 से.मी. है। राजा का मुकुट कम-से- कम इतना चौड़ा तो होगा ही। इस मुकुट को अच्छी तरह पानी में डूबाने के लिए जो बर्तन लगेगा उसका व्याम इससे थोड़ा ज्यादा, यानी लगभग 3) से.मी. तो होना चाहिए। इस व्यास के बर्तन की आड़ी काट का क्षेत्रफल लगभग 700 वर्ग से.मी. होगा। तो इस पात्र में दोनों मुकुटों को एक-एक करके डुबाने पर जो 1.99 घन से.मी. का अंतर आएगा वह पानी के तल की ऊंचाई में कितना अंतर पैदा करेगा? यह अंतर होगा 1.99 घन से.मी. 700 वर्ग मे.मी. = 0.007 सेमी.। इतने कम अंतर के आधार पर मुकुटों के बीच भेद कर पाना असंभव है। (इस बात पर आप बिलकुल आपत्ति कर सकते हैं कि यह क्यों जरूरी है। कि राजा का सिर भी मेरे सिर जितना ही सूजा हुआ है!)

कैरेट मतलब एक बटा चौबीस   
कैरेट शब्द का उपयोग हीरे या अन्य रनों के संदर्भ में अलग ढंग से होता है और सोने के मामले में अलग ढंग से। रत्न के संदर्भ में इसका आशय वज़न से होता है। मिश्र धातुओं के मामले में इसका अर्थ है कि उस मिश्र धातु के 24 भाग में कितने भाग सोना है। यानी कैरेट मूल्य जितना अधिक है, सोने का प्रतिशत उतना ही अधिक है। शुद्ध मोना 24 कैरेट होता है।
मिश्र धातुओं में सोने का अनुपात हमेशा वज़न से बताया जाता है। जैसे 18 कैरेट मोना मतलब 24 ग्राम में से 18 ग्राम सोना यानी पचतहर प्रतिशत सोना है, शेप अन्य धातुएं।

विकल्प के तौर पर एक और तरीका अपनाया जा मकता है जिसमें, एक क्षण के लिए मान लेते हैं कि आप इस काम के लिए 1 से.मी. व्यास का नपनाघट इस्तेमाल करते हैं। ऐसे नपनाघट की आड़ी काट का क्षेत्रफल होगा 1 2.57 वर्ग से.मी.। इस तरीके में आपको एक टोंटीदार (अप्लावी) बर्तन का इस्तेमाल करना होगा। मुकुटों को एक-एक करके अप्लावी बर्तन में डुबाने पर जो पानी निकलेगा उसे नापा जाएगा। दोनों मुकुटों से विस्थापित पानी को इस नपनाघट से मापने पर उनके तल में 4.99 1 2.57 = (0.39 से ,मी, यानी लगभग 4 मिमी का फर्क आएगा। इसे भी उल्लेखनीय नहीं माना जा सकता क्योंकि काफी पानी इतने बड़े अप्लावी बर्तन की दीवार, टोंटी व नपनाघट की दीवार वगैरह से चिपक जाएगा। और अभी तो हमें यह भी पता नहीं कि आर्किमिडीज के ज़माने में ऐसे नपनाघट होते भी थे या नहीं।
यानी आयतन नापकर सुनार को पकड़ने के लिए एक अत्यंत सटीक नपनाघट की जरूरत होगी और आर्किमिडीज के जमाने में ऐसे उम्दा नपनाघट का कोई जिक्र नहीं मिलता।
वज़न में अंतर मापना
दूसरा तरीका यह है कि उस मुकुट के बराबर आयतन को सोने का मुकुट बनाया जाए और उनके वज़न में अंतर ज्ञात किया जाए। इस संदर्भ में सवाल उठेगा कि वज़न को कितनी सटीकता से नापा जा सकता है।
 
उपरोक्त उदाहरण में शुद्ध सोने के मुकुट का वजन 434 ग्राम था। इस वज़न के आधार पर शुद्ध सोने का घनत्व 19.3 ग्राम प्रति घन से.मी. मानते हुए हमने इसका आयतन 22.48 धन से.मी. निकाला था। अब मान लेते हैं कि सुनार ने 18 कैरेट सोने का मुकुट बनाया। अर्थात उसने 75 फीसदी सोना, 16 फीसदी चांदी और 9 फीसदी तांबा लिया। इस तरह के मिश्रण का घनत्व 1 5.5 ग्राम प्रति घन से.मी. होगा। इस मिश्रण के 22.48 घने से.मी. आयतन के मुकुट का वजन 15.5 x 22.48 = 348.4 ग्राम होगा। कोई भी ठीकठाक तराजू 434 ग्राम व 348.4 ग्राम के बीच के इस अंतर को पकड़ लेगी। इसमें आर्किमिडीज़ के सिद्धांत की कोई जरूरत नहीं है।
यदि सुनार 22 कैरेट सोने को उपयोग करता है तो उसका घनत्व 17.7 ग्राम प्रति घन से.मी. होगा। इस मिश्रण के 22.48 घन से.मी. के मुकुट का वजन 398.72 ग्राम यानी शुद्ध सोने के मुकुट से 35.28 ग्राम कम होगा। इसे पकड़ना भी मुश्किल नहीं है।
मगर यदि सुनार ने मात्र 1-1 फीसदी तांबा और चांदी मिलाई है

सोने की मिश्र धातुएं : लाल और गुलाबी सोना   
लाल रंगत वाला सोना बनाना बहुत आसान है। बस, तांबे की मात्रा बढ़ा दीजिए। सोने का अनुपात ठीक रखने के लिए इसमें चांदी का अनुपात कम करना होता है। पहले कई सुनार कीमत कम रखने के लिए चांदी कम करके, तांबा की मात्रा बढ़ा देते थे।
कई लोग मानते हैं कि पुराना सोना लाल होता है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि पुराना सोना नए से बेहतर होता है। ऐसी मान्यताओं के पीछे कोई तार्किक आधार नहीं है।
आमतौर पर लोगों को यह पता नहीं होता कि मात्र दो ऐसे धातुई तत्व हैं जिनका रंग रूपहला यानी सिलवरी नहीं होता। सोना पीला होता है और तांबा लाल होता है। तो इन धातुओं - सोना, चांदी और तांबे का अनुपात घटा-बढ़ाकर मिश्र धातु का रंग गहरे पीले से लेकर गहरे लाल तक बनाया जा सकता है। गहरे पीले रंग के सोने को 'ग्रीन' गोल्ड और लाल रंग के सोने को ‘डीप' गोल्ड कहा जाता है।

 सोने की विभिन्न मिश्र धातुओं में सोने का अनुपात (वज़न से)
सोना   चांदी  तांबा   जस्ता निकल पेलेडियम
9 येलो 37.5 10 45 7.5 ---
9 आइट 37.8 0 40 10.4 11.8
14 येलो 58.5 4 31.2 6.3 ---
14 हाइट 58.5 0.5 27 7 7
18 येलो 75 16 9 --- ---
18 व्हाइट 75 4 4 --- 17
22 येलो  19.7   5.5     2.8     --- ---

तो इस मिश्रण का घनत्व 19.23 ग्राम प्रति घन से.मी. होगा और मुकुट का वज़न 432.29 ग्राम होगा। यह 434 ग्राम के बहुत ही नज़दीक है। इस मामले में मापन की सटीकता बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी। यानी यदि थोड़ीसी मिलावट करे तो सुनार बच निकलेगा, आर्किमिडीज व उसके सिद्धांत के बावजूद!

आर्किमिडीज़ के सिद्धांत से हल   
आपको लगेगा कि शायद मैं समस्या को थोड़ा ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा हूं। इंटरनेट पर खोज के दौरान मुझे और भी ऐसे व्यक्ति मिले हैं जिन्होंने इस समस्या पर विचार किया है और उन्हें औरों के सामने प्रस्तुत किया है। इनमें से एक ने समस्या का ज्यादा यथार्थवादी हल भी पेश किया है।
“धोखाधड़ी को पकड़ने का ज्यादा कल्पनाशील और व्यावहारिक तरीका निम्नानुसार हो सकता है। इसमें आर्किमिडीज के उत्प्लावन के सिद्धांत और उनके लीवर के सिद्धांत दोनों का उपयोग होता है। एक पैमाने के एक छोर पर मुकुट को लटका दें और दूसरे छोर पर उतनी ही मात्रा यानी वजन का सोने का टुकड़ा लटकाकर पैमाने को संतुलित कर लें। अब पैमाने पर संतुलित मुकुट और सोने के टुकड़े को एक बर्तन में भरे पानी में डुबा दें। यदि अब भी पैमाना संतुलित रहता है तो इसका अर्थ होगा कि मुकुट और सोने के टुकड़े का आयतन बराबर है, यानी मुकुट का घनत्व सोने के बराबर है। मगर यदि पैमाना सोने की तरफ झुक जाता है तो मुकुट का आयतन ज्यादा है, यानी इसका घनत्व कम है। 

"इस विधि को एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए मुकुट का वजन 1000 ग्राम है और इसमें 70 फीसदी सोना और 30 फीसदी चांदी है। इसका आयतन 64.6 धन से.मी. होगा और यह इतना ही पानी हटाएगा। लिहाज़ा पानी में इसका आभासी भार 1000-64.6 = 935.4 ग्राम होगा। दूसरी ओर 1000 ग्राम सोने के गुटके का आयतन मात्र 51.8 घन से.मी. पानी हटाएगा। अतः पानी में इसका आभासी वज़न 1000-51.8 = 948.2 ग्राम होगा। यानी पैमाने के एक छोर पर 935.4 ग्राम तथा दूसरे छोर पर 948.2 ग्राम आभासी वज़न लटके हैं। अंतर 12.8 ग्राम है। आर्किमिडीज के जमाने की तुलाएं इतना अंतर तो आसानी से पहचान लेती होंगी। और इस मामले में पानी के चिपकने वगैरह की समस्या भी आड़े नहीं आएगी।
यह भी गौरतलब है कि यदि मुकुट और सोने के गुटके के वजन बराबर न हों तो भी यह तरीका काम कर जाएगा। करना सिर्फ इतना होगा कि उन्हें पैमाने पर अलग-अलग दूरी पर लटकाकर पहले पैमाना संतुलित कर लिया जाए। फिर पहले की तरह दोनों को पानी में डुबाकर जांच की जा सकती है।''

यदि आयतन/वजन बराबर नहीं हैं तो दोनों मुकुटों के घनत्व पता करने का एकमात्र तरीका यही है कि पानी में डूबाने पर उनकी मात्रा वज़न में हुई कमी को नापा जाए, या परखा जाए।
दरअसल सोने की मिश्र धातुओं के गहनों के उद्योग में शुद्धता पता करने हेतु कोई अधिा दर्जन विधियों का उपयोग किया जाता है। यह विधि उनमें से एक है। अत्यन्त संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक तुलाओं के प्रचलन की वजह से, एकाध प्रतिशत की मिलावट के बारे में भी इस तरीके से पता लगाया जा सकता है - हवा और पानी में गहने को तौलकर, वज़न में कमी पता करके शुद्धता यानी घनत्व जांचने के लिए आर्किमिडीज का सिद्धांत इस्तेमाल किया जा सकता है। | ऐसा लगता है कि आर्किमिडीज़ ने इसी तरीके से मुकुट में मिलावट की बात को पकड़ा होगा, हालांकि वे शायद मिलावट की मात्रा का पता नहीं लगा सके होंगे। उसके लिए उन्हें वास्तव में घनत्व ज्ञात करना पड़ता। पानी में डुबाने पर वजन में कमी यानी आर्किमिडीज के सिद्धांत के उपयोग से घनत्व निकालने का पहला जिक्र हमें छठवीं सदी में मिलता है।

और एक अंतिम बात... । आखिर राजा को शंका क्यों हुई कि मुकुट 24 कैरेट सोने का नहीं है। शायद उसका रंग देखकर। हो सकता है मुकुट के रंग में थोड़ी लाली रही होगी जिसका मतलब है कि उसमें तांबा मिलाया गया था। मगर कोई भी अच्छा सुनार आपको बता देगा कि 24 कैरेट सोने का मुकुट काफी कमजोर होगा। 18 कैरेट सोने का मुकुट कहीं ज्यादा मजबूत होता है।


एस. श्रीनिवासनः वडोदरा में स्थित सहज व लोकोस्ट संस्थाओं की शुरुआत व संचालन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विभिन्न सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों व विज्ञान-गणित शिक्षण में उनकी विशेष रुचि है।
अनुवादः सुशील जोशीः एकलव्य द्वारा प्रकाशित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण में रुचि है।