जे. बी. एस. हाल्डेन

शरीर की व्यवस्थाएं    
कई बार डॉक्टर घुटने के जोड़ पर रबर की हथौड़ी से हल्की चोट कर दर्द या दबाव के अहसास को पता करने की कोशिश करते हैं - दबाव का अहसास पेशियों, सेंसरी न्यूरॉन, मेरुदंड से होता हुआ मस्तिष्क तक पहुंचता है। इस दर्द या दबाव से राहत के लिए संकेत वापस संबंधित पेशी तक पहुंचा दिए जाते हैं। कभी-कभी संकेतों के आदान-प्रदान के दौरान पेशियां गफलत में फंस जाती हैं। कि उन्हें करना क्या है?

जब हम कोहनी के जोड़ को अचानक सीधा करते हैं तो क्या होता है? जैसे गेंद फेंकते समय। सबसे सीधी-सादी बात तो यह होती है कि एक मांसपेशी सिकुड़ती है - कोहनी के जोड़ को सीधा करते समय हमारी ट्राइसेप्स मांसपेशी में संकुचन होता है।

हाथ को मोड़ना :  इस तरह से रोज ही हम हाथ को मोड़ते हैं। हाथ को कोहनी के जोड़ से मोड़ने और सीधा करने में बाइसेप्स पेशी और ट्राइसेप्स पेशी की महत्वपूर्ण भूमिका है। हाथ को मोड़ते समय बाइसेप्स पेशियों में संकुचन होता है और ट्राइसेप्स में फैलाव होता है। यदि मुड़े हुए हाथ को सीधा करना हो तो ट्राइसेप्स पेशियों में संकुचन और बाइसेप्स में फैलाव होता है।

परन्तु बात इतनी-सी ही नहीं है। यदि इतनी ही होती तो इस गति का अंजाम एक जोरदार झटके के रूप में सामने आता। यह झटका इतना जोरदार होता कि कोहनी में मोच आ जाती। हो सकता है कोई हड्डी ही टूटने की नौबत आ जाती। कोहनी को सीधा करने की पूरी किया में एक अन्य मांस पेशी- बाइसेप्स - धीरे-धीरे शिथिल भी होती है। बाइसेप्स कोहनी को मोड़ने वाली मांसपेशी है। यह शिथिल तो होती है, मगर पूरी तरह नहीं। इसीलिए यह गति इतनी झटकेदार नहीं होती। जब हम पूरी तरह विश्राम की स्थिति में होते हैं तब भी हमारी मांसपेशियां कुछ हद तक संकुचन की स्थिति में ही होती हैं। उनको हमारे मेरूरज्जु से आवेग प्राप्त होते रहते हैं--- सिर व कुछ आंतरिक अंगों से संबंधित मांसपेशियों को ये आवेग सीधे मस्तिष्क से मिलते हैं। किसी भी हरकत में मांसपेशियों के एक समूह में संकुचन में वृद्धि के बराबर ही महत्व इस बात का होता है कि किसी अन्य मांसपेशी समूह के संकुचन में कमी आती है। अर्थात सारी शारीरिक स्थितियां और हरकतें दो परस्पर विपरीत प्रक्रियाओं के संतुलन का परिणाम होती हैं। शेरिंग्टन इन परस्पर विरोधी मांसपेशियों को परस्पर विपरीत तंत्रिका संकेत कहते हैं। इस तरह के विपरीत संकेत भेजने के लिए हमें सचेत होकर सोच-विचार नहीं करना पड़ता। हरकत चाहे अनैच्छिक हो या ऐच्छिक (Reflex or Voluntary) हो, यह प्रक्रिया तो होती ही है। इस प्रक्रिया के लिए ज़िम्मेदार तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन) ज्यादातर मेरूरज्जु में होती हैं।

संदेशों की आवाजाही  
इस प्रक्रिया में गड़बड़ भी हो सकती है। हमारे निचले जबड़े को बंद करने वाली मांसपेशियां बहुत शक्तिशाली होती हैं जबकि खोलने वाली पेशियां अपेक्षाकृत दुर्बल होती हैं। जब हम जबड़ा खोलना चाहते हैं, तब हमें न सिर्फ इसे खोलने वाली दुर्बल पेशियों को संकुचित करना पड़ता है बल्कि बंद करने वाली शक्तिशाली पेशियों को ढीला भी करना होता है। किन्तु टिटेनस, स्ट्रायक्नीन विषाक्तता एवं अन्य कुछ स्थितियों में यह क्रिया गड़बड़ हो जाती है। जबड़ा बंद करने वाली मांसपेशियों को सिकुड़ने का संकेत देने वाली तंत्रिका कोशिकाओं को आदेश देने वाले आवेगों को रोकने का काम नहीं हो पाता, ये मांसपेशियां पहले से भी ज्यादा काम करने लगती हैं। जितना ही आप जबड़े को खोलना चाहेंगे, वह उतना ही अधिक भिंचता जाएगा। खोलने व बंद करने वाली दोनों ही पेशियां एक-दूसरे के खिलाफ काम करने लगती हैं। बंद करने वाली पेशियां ज्यादा ताकतवर हैं और वे जीत जाती हैं। टिटेनस में इसी कारण से जबड़ा कसकर बंद हो जाता है।

हर युद्ध अपनी विभीषिका के रूप में कई ऐसे बदकिस्मत मर्द-औरत छोड़ जाता है जिनके तंत्रिका तंत्र विभाजित हो चुके हैं। इन लोगों में यह अध्ययन किया जा सकता है कि एक हिस्से के बगैर दूसरा कैसे काम करता है। यदि मेरूरज्जु पीठ के बीच से कट जाए तो पैर और पेट वाले हिस्से असंवेदी हो जाते हैं, व्यक्ति इन्हें अपनी मर्जी से हिला-डुला नहीं सकता। इन अंगों और दिमाग के बीच संदेशों की आवाजाही नहीं होती। मगर मेरूरज्जु का कटा हुआ हिस्सा अनुवर्ती क्रियाओं (Reflexes) को अंजाम दे सकता है। यदि ऐसे व्यक्ति के तलुए में गुदगुदी की जाए तो वह पैर हट जाता है, हालांकि उस व्यक्ति को इसके बारे में कुछ पता नहीं चलता।

इसी प्रकार से मस्तिष्क का निचला हिस्सा सांस लेने, निगलने और तापमान नियंत्रण जैसे काम करता रह सकता है जबकि ऊपरी हिस्सा अक्रिय हो चुका हो। चोट और बीमारियों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके हम दिमाग के ऊपरी हिस्सों के काम-काज को समझ सकते हैं। ये हिस्से अन्य पशुओं की बनिस्बत इंसानों में ज्यादा विकसित होते हैं। इस तरह के
 
आग से, मोमबत्ती से हाथ जलने का अनुभव हमारे लिए नया नहीं है। जैसे ही हाथ मोमबत्ती की लौ के सम्पर्क में आता है गरमाहट की सूचना सेंसरी न्युरॉन के मार्फत मेरुदंड तक पहुंचा दी जाती है। हाथ की वे मांसपेशियां जो हाथ को पीछे हटाती हैं, उन्हें मेरुदंड हाथ को पीछे खींचने के निर्देश देता है। लेकिन मान लीजिए आप किसी और जोश में हैं और अपना हाथ जलाने पर ही आमादा हैं तो मेरुदंड के निर्देश को निरस्त करने के लिए सेंट्रल नर्व सिस्टम से मोमबत्ती पर हाथ बनाए रखने के आदेश हाथ की मांस पेशियों को प्राप्त होते हैं।
अध्ययनों के परिणाम काफी आश्चर्यजनक रहे हैं। वैसे तो हम उम्मीद करते हैं कि यदि दिमाग का एक हिस्सा नष्ट हो जाए, तो कई मांसपेशियां काम करना बंद कर देंगी। ऐसा होता भी है, मगर कभी-कभी ये मांसपेशियां अतिसक्रिय हो जाती हैं। कुछ लकवे (पक्षाघात ) ऐसे होते हैं जिनमें टांगों की मांसपेशियां स्थाई तौर पर खड़े होने की स्थिति में संकुचित होकर जड़ हो जाती हैं। वास्तव में हुआ यह है कि खड़े होने के साथ जो अनुवर्ती क्रिया सामान्य रूप से होती है, वह बेकाबू हो गई है। मस्तिष्क की कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिनमें मरीज़ स्थिर नहीं रह पाता। वैसे भी बुजुर्ग लोगों में हाथ कांपना तो एक मामूली बात है।

अनुवर्ती क्रियाओं पर नियंत्रण
जब दिमाग के ऊपरी हिस्से ठीक से काम करें तो वे निम्न तीन में से कोई एक भूमिका निभा सकते हैं: वे उन अनुवर्ती क्रियाओं को रोक सकते हैं जो सामान्यतः निचले भाग कर डालते; वे इन क्रियाओं को नियंत्रित ढंग से चलने दे सकते हैं, या वे निचले भाग को दरकिनार करके पेशीय क्रियाओं को अंजाम दे सकते हैं। मगर तब भी कई सारे काम तो मेरूरज्जु द्वारा ही किए जाते हैं - जैसे एक मांसपेशी के खिंचते समय दूसरी को ढीला छोड़ना। हमारे अधिकांश सामान्य क्रियाकलाप तो अनुवर्ती क्रियाएं ही हैं जिन्हें दिमाग के ऊपरी हिस्से के निर्देशन में किया जाता है। यदि आप किसी कुत्ते को गुदगुदी करें तो वह इससे संबंधित अनुवर्ती क्रिया को अपने भरोसे छोड़ देता है मगर यदि कोई कीड़ा उसे परेशान कर रहा हो, तो वह नियंत्रित ढंग से सही जगह खुजा लेगा। जब आप सपाट ज़मीन पर चलते हैं तो ज्यादा चिंता नहीं करते, हर कदम आपके पैरों और टांगों से मिलने वाले तंत्रिका आवेग की अनुवर्ती क्रिया है और आप इसके बारे में सोचते तक नहीं। किन्तु ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर आप प्रत्येक अनुवर्ती क्रिया पर सचेत नियंत्रण रखते हैं।

दिमाग के जिन हिस्सों की गतिविधि के प्रति हम सचेत रहते हैं उनके परस्पर संबंध भी इसी तरह के हैं। पूरी तरह सचेत किसी व्यक्ति के दिमाग की सतह को विद्युत के माध्यम से उत्तेजित किया जा सकता है। इस तरह के उद्दीपन नाना प्रकार की संवेदनाएं उत्पन्न करते हैं और विभिन्न अनैच्छिक हरकतों को जन्म देते हैं। मगर इनसे दर्द कभी पैदा नहीं होता। दर्द तथा क्रोध जैसी आदिम भावनाओं से संबंधित हिस्से दिमाग में अंदर की ओर होते हैं, सतह से काफी दूर। कई मायनों में अच्छे आचरण का मतलब यही होता है कि जब ज़रूरी हो दिमाग के इन हिस्सों की गतिविधि पर काबू रखा जाए और ज़रूरी होने पर उन्हें खुला छोड़ दिया जाए। कई मौके ऐसे होते हैं जब हमें अपनी यौन भावनाओं पर अंकुश लगाना होता है, जबकि कुछ मौकों पर इन्हें खुली छूट देकर हम ठीक ही करते हैं; अन्यथा मानव जाति का सफाया ही हो जाएगा। कई बार हमें अपने गुस्से को काबू में रखना होता है, मगर नियंत्रित क्रोध अन्याय के खिलाफ सबसे सशक्त हथियार भी है।

दिमाग के विभिन्न सचेत हिस्सों का आपसी संबंध लगभग वैसा ही है। जैसा किसी सचेत व अचेत हिस्से का। मसलन, जब कोई तैराक या गायक अपनी सांस पर नियंत्रण करता है। एक सामान्य नियम यह है कि जब तक अनुवर्ती क्रियाएं सुचारू ढंग से चलती रहती हैं, हम उनके प्रति सचेत नहीं होते। जैसे ही दो अनुवर्ती क्रियाओं के बीच कोई तकरार होती है, हम सचेत होकर निर्णय करते हैं। मसलन, आमतौर पर चबाने और निगलने का काम अचेतन ढंग से चलता है मगर कोई कंकड़ आया या कबाब में हड्डी आते ही हम उस पर ध्यान देते हैं। यहां तक कि अत्यंत हुनर वाले काम भी अभ्यास के साथ स्वचालित ढंग से होने लगते हैं। इस ढर्रे में कोई गड़बड़ होने पर ही चेतना और इच्छा की नींद टूटती है।
हम तंत्रिका को भी तभी समझ पाएंगे, जब हम यह समझ लें कि इसके विभिन्न हिस्सों के बीच टकराव न सिर्फ सामान्य है, बल्कि निहायत ज़रूरी भी है।


जे. बी. एस. हाल्लेनः (1 892-1964) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। विकास (Evolution) के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक। उनके निबंधों का एक संकलन 'ऑन बीइंग द राइट साइज़' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत निबंध 'वॉट इज लाइफ' नामक संकलन में लिया गया है।

अनुवादः सुशील जोशी: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम और स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान लेखन एवं अनुवाद भी करते हैं।

भूलभुलैया में मेंढक 
                               

उटाह विश्वविद्यालय के मार्क्स जेकोबसन और उनके सहयोगियों ने तंत्रिका तंत्र को समझने के लिए एक दिलचस्प प्रयोग किया। उन्होंने एक मेंढक की पीठ और पेट की त्वचा से एक-एक चौकोन टुकड़ा

निकाला। अब त्वचा के इन टुकड़ों की आपस में अदला-बदली कर दी। यानी पेट की त्वचा वाला टुकड़ा पीठ पर प्रत्यारोपित (ट्रांसप्लांट) किया गया और पीठ की त्वचा वाला टुकड़ा पेट पर लगा दिया। जब त्वचा के ये दोनों टुकड़े खुद को इस नई परिस्थिति में डालने की कोशिश कर रहे थे उस समय दोनों टुकड़ों के ग्राहियों (रिसेप्टर) ने दिमाग को पहले की तरह संदेश देने का काम भी जारी रखा।
इतना सब कुछ सफलता पूर्वक हो जाने के बाद जेकोबसन और उनके सहयोगियों ने मेंढक के साथ एक नया प्रयोग किया। उन्होंने एक पंख की मदद से मेंढक की पीठ के उस हिस्से को बार-बार गुदगुदाया जहां पेट की त्वचा प्रत्यारोपित की गई थी। हालांकि मेंढक की पीठ को गुदगुदाया जा रहा था लेकिन मेंढक बार-बार पेट पर प्रत्यारोपित त्वचा (जहां पीठ की त्वचा है) वाले हिस्से पर हाथ फेरकर राहत पाने की कोशिश करता रहा।

मेंढक के इस व्यवहार की व्याख्या इस तरह की गई कि प्रत्यारोपण के बाद नई परिस्थिति में ढलते त्वचा के टुकड़ों के साथ उनके ग्राही (रिसेटर) एक्सॉन कै मार्फत दिमाग की ओर पेट की त्वचा के रूप में संदेश भेजते रहे और दिमाग भी उनकी पहचान पेट की त्वचा के रूप में करता रहा। इसलिए जब पीठ पर प्रत्यारोपित त्वचा को पंख से गुदगुदाया गया तो त्वचा के टुकड़े ने जो संदेश दिमाग की ओर भेजे, उसे दिमाग ने पेट की त्वचा से भेजे गए संदेश की तरह लिया। और गुदगुदी से राहत पाने के लिए हाथ को पेट पर फेरने का संदेश दिमाग ने दिया। हाथ पेट के जिस हिस्से पर सहलाने का काम कर रहे थे वहां वास्तव में पीठ की प्रत्यारोपित त्वचा का टुकड़ा था जिस के पास पंख आया ही नहीं था।
मेंढक की यह भूलभुलैया कुछ समय ही चलती है। त्वचा के टुकड़े या कोशिकाएं एक बार नए परिवेश में खुद को व्यवस्थित कर लेते हैं। उसके बाद वे नए समूह के एक हिस्से की तरह काम करते हैं। अपने भूतकालीन समूह को भूला देते हैं।

                                                                                                            - विविध स्रोतों से संकलित