पिछले अंक (मार्च-अप्रैल 1996) में विनीता बाल एंव सत्यजित रथ के लेख ‘प्रतिरक्षा तंत्र बनाम सुरक्षा प्रणाली’ में पृष्ठ 28-29 पर दिया गया बॉक्स उस लेख का हिस्सा नहीं था।

इस बॉक्स में निरूपित प्रक्रियाओं में कई त्रुटियां हैं। उन्हें सुधारते हुए प्रतिरक्षा तंत्र के बारे में हमारी आज तक की समझ का संक्षिप्त वर्णन यहां पर दिया जा रहा है।

इस गलती के लिए हमें खेद है। विशेष तौर पर इसलिए भी क्योंकि विनीता बाल और सत्यजित रथ का नाम इस त्रुटिपूर्ण बॉक्स के साथ जुड़ गया।

--संपादक मंडल

1.  कोई श्वेत रक्त कोशिका ‘स्वयं’ यानी ‘उसी जीव की अन्य कोशिकाओं’ को नहीं पहचान सकती। ‘स्वयं’ं को पहचानने वाली सब श्वेत रक्त कोशिकाए अपने विकास (Maturation) के दौरान या तो मर जाती हैं या अक्रियाशील हो जाती है।

2.  जब श्वेत रक्त कोशिकाएं स्वयं को ही नहीं पहचान सकतीं तो उनके द्वारा स्वयं-स्वयं में विभेद कर पाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

अन्य की पहचान:

(क) जब कोई घुसपैठिया शरीर में घुस जाता है तो कोई बीटा-श्वेत रक्त कोशिका उसे पहनाकर एंटीबॉडी को स्त्रीवित करती है जो घुसपैठिए से भिड़कर उसे आक्रमण करने से रोकते हैं।

(ख) अगर घुसपैठिया किसी कोशिका के अंदर छिप जाए तो घुसपैठिए का कोई हिस्सा उस कोशिका के एम. एच. सी. अणु पर चित्र में दिखाए मुताबिक बंध जाता है। जिसे टी-श्वेत रक्त कोशिका अपने ग्राही से पहचान लेती है और क्रियाशील हो उठती है। ऐसा होने पर प्रतिरक्षा तंत्र दो तरह से कदम उठाता है: 

- कुछ पदार्थ स्त्रावित करके घुसपैठिए को मारने के लिए कोशिका को ताकत प्रदान करता है। अथवा,

- उस कोशिका को मार देता है जिससे अंदर का घुसपैठिया भी मर जाता है।