—“अभी किस पार्टी के प्रधानमंत्री हैं?”
—“जनता पार्टी के।”
—“नहीं यह तो ठीक नहीं है। पी.वी. नरसिंहराव तो कांग्रेस पार्टी के हैं या सिर्फ जनता पार्टी के या दोनों के?”
—“सिर्फ जनता पार्टी के हैं।”

गौरीशंकर और राजेन्द्र की तुलना में सरला को सरकार के पूरे मुद्दे में ही काफी ज़यादा अरुचि है। ये तीनों बच्चे किसी कक्षा में मौजूद विभिन्नताओं का एक नज़ारा प्रस्तुत करते हैं। संभव है यह लेख पढ़ते हुए आपके मन में आपके शिक्षण अनुभव भी ताज़े हो उठे हों। क्या कुछ सुझाव भी मन में उठते हैं? पाठ् यक्रम पर, पाठ् य-पुस्तकों पर या शिक्षण - विधि पर? अपनी प्रतिक्रियाएं भेजिए ताकि शिक्षण की वास्तविकताओं से सामना करते हुए हम विकल्पों को खोज सकें।


रश्मि पालीवाल - एकलव्य के सामाजिक अध्ययन शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध


कौशलपुर एक काल्पनिक जगह है। इस कहानी में पार्टी और लोग भी काल्पनिक हैं। लेकिन विधायक चुनने का तरीका, नियम तय करने के तरीके, जो इस कहानी में बताए गए हैं, वे सब सही हैं।

कौशलपुर क्षेत्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पांच पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने अपने चुनाव प्रत्याशी या उम्मीदवार तय कर लिए हैं। सबसे ताकतवर पार्टियां हैं मध्य भारत दल और महाकौशल संघ। मध्य भारत दल से चुनाव लड़ रहे हैं, विलासभाई और महाकौशल संघ से रामप्रसादजी। कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं, जो किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं। कौशलपुर क्षेत्र से चुनाव के लिए कुल 8 उम्मीदवार या प्रत्याशी हैं - 5 पार्टियों के और तीन निर्दलीय।

प्रचार

चुनाव 25 सितम्बर को होने वाले हैं। 15-20 दिन पहले ही चुनाव-प्रचार शुरू हो गया - लाउड-स्पीकर, जीप, तांगे, आमसभाएं। हर पार्टी के उम्मीदवार आश्वासन देते हैं। कोई कहता है, “हम महंगाई कर करेंगे।” तो कोई कहता है, “हम ज़मीन दिलवाएंगे।” और तीसरा कहता है, “हम मज़दूरी बढ़वाएंगे।” उम्मीदवार दूसरी पार्टी के सदस्यों की आलोचना भी करते हैं। 24 तारीख तक यह शोरगुल रहा और फिर शांत हो गया।

सोचो कि यह नियम क्यों है कि चुनाव से एक दिन पहले प्रचार-प्रसार बंद होना चाहिए।

कौशलपुर में वोट डले  
25 तारीख को सुबह वोट डलना शुरू हुए और शाम तक डलते रहे। चुनाव केन्द्रों के सामने लोगों क लम्बी कतारें थीं। बड़े-बढ़े, औरतें, आदमी सभी वहां थे। एक व्यक्ति दरवाज़े पर बैठा था। उसके पास लम्बी सूचियां थीं। वोट देने वाले उसके पास पहले जाते। जिसका नाम उस सूची में न होता उसे वह लौटा देता। सूची में जिसका नाम होता उसके नाखून पर एक खास स्याही से निशान लगाया जाता1 वह हस्ताक्षर करके मतपत्र पर अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवार के चिह्न के सामने मुहर लगाता। फिर मतपत्र को मोड़कर मतपेटी में डाल देता।

बीच में एक व्यक्ति से उस अधिकारी की खूब लड़ाई हुई। अधिकारी कह रहा था, “तुम तो अपना वोट डाल चुके हो, फिर से क्यों आए हो?” वोट डालने वाला बार-बार अपने नाखून दिखाता, “जब मेरे नाखून पर निशान ही नहीं तो आप मुझे रोक कैसे सकते हैं? आपने मेरे नाम को सूची में गलती से काटा होगा या कोई फर्ज़ी वोट डाल गया होगा।”  अंत में अधिकारी ने उस से वोट एक लिफाफे में रखकर सीलबंद करके देने को कहा। वोट का लिफाफा अधिकारी ने अपने ही पास रख लिया।

सीलबंद लिफाफे वाले वोटों का क्या होता है - गुरुजी से चर्चा करो।

कौशलपुर में वोट डल ही रहे थे कि पास के रामपुर विधान सभा क्षेत्र से खबर आई कि कई सारे लोगों ने लाठी लेकर 2 केन्द्रों पर धावा बोला। अधिकाररियों को पीटा गया और मतपेटी के ताले खुलवाकर उसमें फर्ज़ी वोट डाले गए। अधिकारियों से फिर ज़बरदस्ती वोट पेटियां सील करवाई गर्इं। जो पुलिस वहां थी उसे भी पीट दिया गया।

इस घटना की जांच की गई। इन दो केन्द्रों पर कड़ी सुरक्षा में फिर से चुनाव करवाने के आदेश दिए गए।

अगले दिन कौशलपुर क्षेत्र के वोटों की गिनती शुरू हुई। शाम तक चुनाव के परिणाम आने लगे। कौशलपुर की सभी वोट पेटियों की जब गिनती खत्म हुई तो पता चला कि रामप्रसाद जी को 42,803 वोट मिले और विलासभाई को 28,156, बाकी 6 प्रत्याशियों को पांच हज़ार से भी कम वोट मिले।

बताओं कौशलपुर का विधायक कौन बना? वह किस पार्टी का था?

मंत्रिमंडल किसका बना  
जब हर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव घोषित हो गए तो पता चला कि कुल 320 विधानसभा क्षेत्रों में से 192 क्षेत्रों में विलासभाई  की पार्टी यानी मध्य भारत दल के प्रत्याशी जीते हैं, 92 महाकौशल संघ के और बाकी 35 विधायक अन्य पार्टियों के हैं, या निर्दलीय हैं। कुल 319 सदस्य विधानसभा में पहुंचे क्योंकि एक क्षेत्र में चुनाव तो रद्द हो गया था।

बताओं मंत्रिमंडल और मुख्यमंत्री किस पार्टी के बने?

हालांकि रामप्रसाद जी कौशलपुर क्षेत्र से विजयी हुए, उसकी पार्टी का मंत्रिमंडल नहीं बना। वे विपक्षी दल के हो गए। एक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव तो रद्द हो गया था, वह 3 महीने बाद फिर से हुआ।

5 सालों में विधानसभा की कई बैठकें हुई। इन बैठकों में राज्य से संबंधित कई बातों पर चर्चा और बहस होती और कई मसले तय किए जाते। जैसे चीज़ पर कितना बिक्रकर लगेगा? माचिस पर अधिक या तेल पर? खेती की ज़मीन पर भी कर लगेगा या नहीं? पंचायतें किस प्रकार से बनाई जाएंगी? और ऐसे ही कई मसले।

इन बैठकों में कई विधायक सरकार से प्रश्न पूछते और संबंधित मंत्री जवाब देते। कोई पूछता “महंगाई  बहुत बढ़ रही है, उसे रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं?”  तो वित्त मंत्री को जवाब देना पड़ता। यदि पूछा जाता “प्रदेश में कितनी प्राथमिक शालाओं की छतें नहीं हैं? आप इसके बारे में क्या कर रहे हैं?” तो शिक्षामंत्री उत्तर देते। कुछ विधायक जवाबों से संतुष्ट हो जाते हैं और कुछ संतुष्ट नहीं होते।

सोचो, मंत्री विधायकों से ऐसे सवाल क्यों नहीं पूछ रहे हैं?

न्यूनतम मज़दूरी का कानून बना:  
एक दिन श्रममंत्री ने विधानसभा में न्यूनतम मज़दूरी का बिल पेश किया। पहले सब विधायकों को बिल की प्रतियां बांटी गर्इं। श्रममंत्री ने बिल को संक्षेप में समझाते हुए कहा, “पिछले कुछ सालों में उत्पादन काफी बढ़ा है। महंगाई भी बढ़ी है। लेकिन मज़दूरों की मज़दूरी इतनी नहीं बढ़ पाई है जितना कि और लोगों की आमदनी बढ़ी है। गई मज़दूर संगठनों ने अपने मालिकों के साथ ये मसले भी उठाए हैं। हड़तालें भी हुई हैं। हड़तालों से उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। मज़दूरों की मांगें भी कुछ हद तक जायज़ हैं। सरकार को जनहित में सोचना है। इन सब चीज़ों को ध्यान में रखते हुए हम यह बिल पेश कर रहे हैं जिसमें उद्योगों में काम करने वाले मज़दूरों की न्यूनतम मज़दूरी 37 रुपए से बढ़ाकर 45 रुपए प्रतिदिन की जा रही है और खेतीहर मज़दूरों की 28 रुपए से 35 रुपए। आप सबको बिल की एक-एक प्रति दी गई है। अब लोग उसे ध्यान से पढ़ लें। इसके बाद हर बिन्दु पर चर्चा होगी।

चित्र में श्रममंत्री को पहचानों।

सब लोगों के सामने मेज़ पर रखे हुए कागज़ क्या हैं? मेज़ पर रखे कागज़ों ज़रूरत पड़ी होगी?

सब विधायकों ने बिल पढ़ा फिर बहस शुरू हुई। कोई बिल के पक्ष में बोलता तो कोई उसके विरुद्ध। महाकौशल संघ के रामप्रसादजी अधिकांश मामलों में कुछ न बोलते थे। पर आज वे खड़े हो गए।

एक और विधायक श्री आकाशमल जी ने कहा:

चर्चा और बहस खूब हुई। जब मत पूछे गए कि क्या इस बिल को पास कर देना चाहिए तो उपस्थित 273 लोगों में से 200 के हाथ उठ गए। बिल को राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए पेश किया गया। राज्यपाल ने हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह से विधानसभा में न्यूनतम मज़दूरी का कानून बना।

क्या तुम्हें लगता है कि यह कानून मज़दूरों और मालिकों की राय के अनुसार बना है? विधानसभा की चर्चा में उनकी राय कैसे पहुंची।

कानून कैसे लागू होगा:

गज़ट नाम की किताब में छपकर यह कानून ज़िलाधीश जैसे सरकारी कर्मचारियों के पास पहुंचा। अब यह देखना उनकी ज़िम्मेदारी हो गई कि हर मज़दूर को उतनी मज़दूरी मिलती है। जितनी विधानसभा में तय की गई है। यदि किसी जगह कम मज़दूरी मिलती तो वहां के मज़दूर उस क्षेत्र के विधायक से बात करते। उस ज़िले के ज़िलाधीश को भी ज्ञापन देते। विधायक विधान सभा में सवाल पूछते। ज़िलाधीश अपनी तरफ से जांच करवाता। इस तरह न्यूनतम मज़दूरी का कानून लागू करने का दबाव बनता।

यह कहानी एकलव्य की सामाजिक अध्ययन शिक्षण कार्यक्रम द्वारा तैयार कक्षा - 7 की किताब से ली गई है।

माध्यमिक शाला के स्तर पर बच्चों द्वारा सरकार की अवधारणा को समझने में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए एकलव्य के सामाजिक अध्ययन कार्यक्रम में इस एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया1 यह कोशिश की गई कि बच्चों के सामने सरकार का ढांचा उसकी तमाम पेचीदगियों एवं जटिलताओं के साथ प्रस्तुत हो।

कक्षा - 7 में रखे गए इस अध्याय से बच्चों की समझ पर कितना असर पड़ा है यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। इसके बारे में और खोजबीन, जांच-पड़ता की ज़रूरत है।