संदर्भ के पहले अंक में सवालीराम से आपका परिचय तो करवा ही दिया था। उसी अंक में सवालीराम ने एक जवाब भी दिया था -- बच्चों द्वारा हवाई जहाज़ के बारे में पूछे गए एक सवाल का। साथ ही हमने आपके सामने भी बच्चों द्वारा पूछे गए कुछ सवाल रखे थे।

उनके जवाब में हमें आपके कुछ खत मिले, जिनमें से एक जवाब इस बार छाप रहे हैं। साथ ही जवाब और सवाल का यह सिलसिला आगे भी जारी रखते हुए........

प्रश्न - मूंगफली के फूल तो पौधे पर लगते हैं - तो फिर मूंगफली ज़मीन में से कैसे निकलती है?

उत्तर - आमतौर पर इस सवाल की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता परन्तु एक बार कोई पूछ बैठे तो ख्याल आता है की कहीं कोई चक्कर ज़रूर है। पहले लगता है कि कहीं मूली, गाजर, आलू... जैसा कोई मामला तो नहीं है - पर सोचने पर तुरन्त समझ में आता है कि मूंगफली है तो बीज ही, उसमें कोई शक नहीं हो सकता। तो फिर यह बीज ज़मीन में कैसे घुस गया? बीज तो फूल से ही बनेगा और ज़मीन के अंदर फूल खिलते हुए तो आज तक नहीं सुना था।

अब देखते हैं कि असल में मामला क्या है। दरअसल मूंगफली का पौधा छोटा-सा झाड़ीनुमा होता है। आमतौर पर ज़मीन से उसकी ऊचाई 25-50 से.मी. के बीच होती है। अन्य पेड़-पौधों की तरह इसमें फूल तो शाखाओं पर ही लगते हैं - और परागण भी वहीं होता है उनका। पर अन्य पौधों से फर्क यहीं से शुरू हो जाता है।

परागण के तुरन्त बाद फूल का डंठल तेज़ी से बढ़ने लगता है और ढीला-सा होकर नीचे की तरफ लटक जाता है। इसी तरह अगले कुछ दिनों में बढ़ते-बढ़ते फूल, जो अब फली-बीज में तब्दील होने लगा होता है, जाकर ज़मीन पर टिक जाता है। बात यहीं नहीं रुकती, उसके बाद वो फली ज़मीन के अंदर घुसनी शुरू हो जाती है। कुछ तरह की मूंगफली में तो फली 2-4 से.मी. घुसकर रुक जाती है परन्तु कुछ में उससे भी अंदर चली जाती है। इसीलिए हम सबके दिमाग में वही चित्र होता है, खेत से मूंगफली उखाड़कर भागने का - उसके फूलों की तरफ कौन ध्यान देता है!

प्रश्नः साबूदाना कैसे बनता है? क्या होता है उसमें?

उत्तरः एक और सवाल जिसके बारे में सुनते ही लगता है कि इसका जवाब तो पता ही होना चाहिए था क्योंकि साबूदाना तो रोज़मर्रा जिंदगी का हिस्सा है। परन्तु फिर भी आमतौर पर जानकारी नहीं होती कि साबूदाना बनता कैसे है - विशेषकर उत्तर भारत में, क्योंकि यह ज्यादातर दक्षिण भारत में ही बनाया जाता है।

हिंदुस्तान में साबूदाना जिस कंद से बनाया जाता है उसे कासावा या टैपियोका कहते हैं। कासावा वैसे तो दक्षिण अमेरिकी पौधा है लेकिन अब भारत में यह तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक में भी खूब उगाया जाता है। केरल में इस पौधे को कप्पा के नाम से पुकारा जाता है।

सामान्यतः साबूदाना कासावा के कंदों से बनाया जाता है। इन कंदों में मुख्य रूप से स्टार्च होता है। कंदों से साबूदाना बनाने की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है। कासावा के कंदों को पानी की टंकियों में डालकर गलाया जाता है और फिर उनमें से मिले स्टार्च को धूप में सुखाया जाता है। जब यह पदार्थ लेईनुमा हो जाए तो मशीनों की सहायता से इसे छन्नियों पर डालकर गोलियां बनाई जाती हैं (जैसे बूंदी बनाई जाती है)। इन गोलियों को नारियल का तेल लगाई गई कड़ाही में भूना जाता है। और अंत में इन गोलियों को गर्म हवा से सुखाया जाता है। अब साबूदाना तैयार है। तैयार साबूदाने को दाने के आकार, चमक, सफेदी के आधार पर अलग-अलग समूहों में बांटा जाता है।

पिछले अंक में सवालीराम ने मनुष्य के वज़न के संबंध में एक सवाल पूछा था। इस सिलसिले में हमें कई खत मिले। उनमें से एक हम इस बार दे रहे हैं -

प्रश्नः मनुष्य जब दूसरे ग्रहों पर जाता है तो वज़न घटता-बढ़ता है। मनुष्य का वास्तव में वज़न कितना होता है और वह किस ग्रह पर होता है।

उत्तरः ग्रहों पर वज़न घटने-बढ़ने की क्रिया जानने से पहले हमें संहति और भार के बारे में जानना जरूरी है। यह भी जानना आवश्यक है। कि वस्तु में भार क्यों होता है।

किसी वस्तु का भार वह बल है जिसके द्वारा वह पृथ्वी की ओर खिंचती है। जबकि द्रव्यमान या संहति किसी वस्तु में पदार्थ की मात्रा का माप है। यों तो ये परिभाषाएं एक जैसी ही प्रतीत होती हैं किंतु भार एवं द्रव्यमान ज्ञात करने के अलग-अलग तरीकों से आपको अंतर पता चल जाएगा।

भार पता करने के लिए वस्तु को ऊर्ध्वाधर लटकाते हैं एवं उस पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पड़ने वाले बल को नाप लेते हैं। यही वस्तु का भार है

दूसरी तरफ द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए हम किसी तुला का प्रयोग करते हैं। जिस पर एक तरफ वस्तु एवं दूसरी तरफ वजन रखकर उससे वस्तु की तुलना करते हैं।

किसी वस्तु का भार पूरी तरह से गुरुत्वाकर्षण बल पर निर्भर करता है। गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ने पर वस्तु का भार बढ़ेगा एवं गुरुत्वाकर्षण बल घटने पर भार घटेगा

जहां तक सवाल है कि मनुष्य का सही वज़न किस ग्रह पर होगा तो वज़न या भार तो गुरूत्वाकर्षण बल के कारण होता है। इसलिए जब विभिन्न ग्रहों पर गुरूत्वाकर्षण बल ही अलग-अलग होगा तो भार भी पृथक-पृथक होगा ही जिसे हम कमानी दार तुला से माप सकते हैं।

जहां तक किसी वस्तु के द्रव्यमान का सवाल है, किसी भी ग्रह पर जाइए उसकी मात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा| द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए हम साधारण तुला (दो पलड़े वाली) का प्रयोग करते हैं जिसमें दोनों ही पलड़ों पर एक जितना गुरुत्व-बल लगने से गुरुत्व-बल का प्रभाव निरस्त हो जाता है। अतः वस्तु का द्रव्यमान चाहे हम कहीं भी, किसी भी ग्रह पर ज्ञात करें उसमें कोई भी अंतर नहीं आएगा।

रामकृपाल सिंह चौहान
सहायक शिक्षक
शास. उ. मा. वि. खहाली, म.प्र.


*किसी भी पदार्थ की संहति या द्रव्यमान (mass, m) पता करने के लिए आमतौर पर एक अन्य तरीका अपनाया जाता है। जिस भी पदार्थ का द्रव्यमान पता करना हो उस पर एक विशेष मात्रा में बल (force, f) लगाया जाता है। उस बल के कारण उस पदार्थ में जो त्वरण (acceleration, a) पैदा होता है उसे नाप लेते हैं। इन दोनो राशियों में से, बल को त्वरण से भाग देने पर उस पदार्थ का द्रव्यमान पता लगाया जा सकता है।

f = ma   या m = f/a

बच्चों के कुछ सवाल, आपके लिए

  1. ओज़ोन की परत किन गैसों से मिलकर बनी है। यह परत सूर्य से आने वाली ऐसी किरणों को कैसे रोकती है जो हमें नुकसान पहुंचा सकती हैं?

अभिषेक अग्रवाल, हरसूद, ज़िला खंडवा, मप्र.

  1. सूर्य का प्रकाश गर्म क्यों होता है, चंद्रमा की रोशनी जैसा ठंडा क्यों नहीं?

बाबूलाल पाटीदार, ग्राम - बोलासा, ज़िला उज्जैन, मप्र.

  1. सेना में भरती के समय पैर में मेहराब क्यों देखी जाती है।

भगवान दास राठौर, मानागांव, हरदा, ज़िला होशगाबाद, मप्र.