क्या इस काम भी आ सकती है स्कूल की प्रयोगशाला?

शिक्षा के क्षेत्र में इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि विज्ञान, पर्यावरण और समाज के बीच जो अंतर्सम्बन्ध हैं। उनकी जानकारी विद्यार्थियों को हो। जो कुछ वे अपनी विज्ञान की कक्षा में करते हैं उसका बाहरी दुनिया से सरोकार है कि नहीं - यदि है तो कितना और कैसे? कक्षा की पढ़ाई का उपयोग पर्यावरण के प्रति एक वैज्ञानिक सोच बनाने में कैसे किया जा सकता है?

इन्हीं विचारों के साथ एकलव्य के पिपरिया केन्द्र ने किशोर भारती संस्था और एन्वायरोटेक लिमिटेड, दिल्ली के साथ मिलकर छिंदवाड़ा ज़िले के पिपरिया खदान क्षेत्र में पानी की जांच पड़ताल का एक कार्यक्रम किया। हिस्सा लिया परासिया, और न्यूटन के हाईस्कूलों व पेंच-वैली महाविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने इस पूरे आयोजन के दो प्रमुख उद्देश्य थेः

  1. पानी की जांच के सरल तरीके विकसित करना।
  2. जांच के इन तरीकों के माध्यम से विद्यार्थियों और शिक्षकों को अपने स्थानीय पर्यावरण की जांच और विश्लेषण के छोटे कार्यक्रम उठाने के लिए प्रेरित करना।

पूरी प्रक्रिया में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जांच के सिद्धांत, उपकरण तथा परिणामों का विश्लेषण हाईस्कूल के विद्यार्थियों की समझ और पहुंच के भीतर हो। ताकि वे अपनी प्रयोगशाला के उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए अपने आसपास के पानी की जांच-परख खुद कर सके।

इस कार्यक्रम के दौरान विकसित तरीकों में से कुछ हम यहां दे रहे हैं:

पानी का पी.एच, पता करनाः
पानी का पी.एच. वह संख्या है जिसे देखते ही पता चल जाता है कि पानी अम्लीय है या क्षारीय। पी.एच. का पैमाना इस तरह से तय किया ... है कि अगर पी.एच. 7 से कम है तो घोल अम्लीय है और अगर सात से ज्यादा तो क्षारीय और अगर किसी घोल का पी.एच. ठीक 7 हो तो पता चल जाता है कि घोल उदासीन है - न अम्लीय, न क्षारीय।


पानी का पी.एच. पता करने का तरीका

आवश्यक रसायनः यूनिवर्सल पी. एच. सूचक घोल।

आवश्यक उपकरणः परखनली, पिपेट, ग्रेजुएट्ड पिपेट, यूनिवर्सल सूचक घोल के साथ दिया हुआ मानक रंग-चार्ट।

विधि :

  1. एक परखनली में ग्रेजुएट्ड पिपेट की सहायता से 5 मि.ली. पानी का नमूना लो।
  2. ग्रेजुएट्ड पिपेट से 0.1 मि.ली. सूचक घोल पानी के नमूने वाली परखनली में डालो। ग्रेजुएट्ड पिपेट न हो तो साधारण पिपेट से 4 बूंद सूचक घोल डालो।
  3. मानक रंग-चार्ट के साथ घोल के रंग का मिलान करके पानी का पी.एच. पता करो

परिणाम

पानी का पीएच. = रंग के अनुसार अनुमानित संख्या।


कोई घोल अम्लीय है या क्षारीय उसका पता मोटे-मोटे तौर पर लिटमस कागज़ या अन्य किसी सूचक से लगाया जा सकता है। लेकिन ज्यादा बारीकी से यह पता करना हो कि अम्ल या क्षार कितना प्रबल है यानी अगर घोल का पी.एच. मान पता करना हो तो यूनिवर्सल सूचक घोल का इस्तेमाल करना पड़ता है। यूनिवर्सल सूचक घोल अर्थात ऐसा घोल जो बहुत से तरह-तरह के सूचकों से मिलकर बना हो।

जिस भी घोल या पानी का पी.एच. पता करना हो उसमें यूनिवर्सल सूचक की चार-पांच बूंद डालने से उसका रंग बदल जाता है। हर यूनिवर्सल सूचक घोल के साथ उसका खास रंग-चार्ट भी मिलता है। यूनिवर्सल सूचक डालने के बाद पानी के नमूने का रंग इस चार्ट से मिलाने पर नमूने का पी.एच. पता चल जाता है।

अगर जांच किए गए पानी का पी.एच. 7 से बहुत कम आता है तो उसमें प्रबल अम्ल मौजूद हैं और अगर सासे बहुत ज्यादा है तो पता चल जाता है कि उसमें प्रबल क्षार हैं।

पानी की अम्लीयता पता करना
पानी की अम्लीयता का अर्थ है। उसमें घुले अम्लों की कुल मात्रा। अक्सर पानी के नमूनों में घुले हुए खनिज अम्लों, कार्बन डाई-ऑक्साइड और कार्बनिक अम्लों के कारण पानी अम्लीय होता है।

खनिज अम्ल काफी प्रबल होते हैं। प्रबल अम्लों का पी.एच. 4.5 से कम ही होता है। मिथाईल ऑरेंज सूचक का इस्तेमाल करके टाइट्रेशन करने से पहले हम इन खनिज अम्लों की मात्रा का पता लगा लेते हैं। (ऐसा कर पाना इसलिए संभव है क्योंकि मिथाईल ऑरेंज सूचक 4.5 पी.एच. पर रंग बदलता है।)


पानी की अम्लीयता पता करने का तरीका

सबसे पहले पानी का पी.एच. पता कर लें। अगर पीएच. का मान 7 से अधिक हो तो पानी क्षारीय है और उसकी अम्लीयता नापने का कोई अर्थ नहीं है

आवश्यक रसायनः

(क) कॉस्टिक सोड़ा का मानक घोल (0.02 N)
(ख) मिथाइल ऑरेंज सूचक घोल - 0.1 ग्राम मिथाइल ऑरेंज सूचक एक लीटर आसुत जल में मिलाएं।
(ग) फिनोफ्थेलीन सूचक घोल - 0.1 ग्राम फिनोफ्थेलीन 60 मि.ली. स्पिरिट में घोलकर आसुत जल मिलाकर कुल आयतन 100 मि.ली. कर लें।

आवश्यक उपकरणः ब्युरेट, पिपेट, टाइट्रेशन फ्लास्क, ड्रॉपर।

विधिः

(1) पहले ब्यूरेट को साफ करके पानी से धोकर उसमें कॉस्टिक सोड़ा का मानक घोल भरकर रीडिंग (क) नोट कर लीजिए।

(2) पिपेट की मदद से नमूने का 20 मि.ली. पानी टाइट्रेशन फ्लास्क में लें। उसमें दो बूंद मिथाइल ऑरेंज सूचक घोल डालिए। अगर घोल गुलाबी हो जाए तो उसे ब्यूरेट में भरे गए कॉस्टिक सोड़ा के घोल से तब तक टाइट्रेट करना होगा जब तक फ्लास्क के घोल का रंग पीला नारंगी न हो जाए। अब ब्यूरेट की रीडिंग(ख) लिख लीजिए।

(3) अब एक अन्य फ्लास्क में 20 मि.ली. के दूसरे पिपेट से नमूने का पानी लो। उसमें दो बूंद फिनोफ्थेलीन सूचक घोल डालो। ब्यूरेट के मानक घोल से तब तक टाइट्रेट करो जब तक फ्लास्क के घोल का रंग गुलाबी न हो जाए। अब रीडिंग (ग) नोट कर लीजिए।

परिणाम

खनिज अम्लता= 50 X (ख - क) मि.ग्रा. प्रति लीटर
संयुक्त अम्लता = 50 x (ग - ख) मिग्रा. प्रति लीटर


कॉस्टिक सोड़ा का घोल

कॉस्टिक सोड़ा का 1 N घोल 40 ग्राम शुष्क कॉस्टिक सोड़ा में पानी मिलाकर 1 लीटर घोल बनाने पर मिलता है। परन्तु शुष्क कॉस्टिक सोड़ा खुला रखने पर बहुत ही जल्दी नमी सोखता है और तुरन्त गीला-सा हो जाता है।

इसलिए कॉस्टिक सोड़ा का 0.02 N घोल बनाने के लिए अलग प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। 40 ग्राम से ज्यादा शुष्क कॉस्टिक सोड़ा लेकर और फिर उसमें पानी मिलाकर कुल आयतन 1 लीटर कर लिया जाता है। यह है आपका स्टॉक घोल। इसे मानक अम्ल के साथ टाइट्रेट करके इसकी नॉर्मलिटी पता कर ली जाती है। और फिर नॉर्मलिटी के अनुसार स्टॉक घोल में उचित मात्रा में पानी मिलाकर कॉस्टिक सोड़ा का मानक 0.02 N घोल तैयार किया जाता है।

अगर स्टॉक घोल एक नार्मल हो तो उसे 50 गुना तनु करने पर मानक 0.02 N घोल मिलेगा। हर बार प्रयोग के लिए कॉस्टिक सोडा का ताज़ा मानक घोल तैयार किया जाना चाहिए।


मिथाईल ऑरेंज सूचक का इस्तेमाल करके टाइट्रेशन करने पर भी कमजोर कार्बनिक अम्ल तो पानी में बचे ही रहते हैं क्योंकि जब तक प्रबल खनिज अम्ल हैं तब तक वे क्रिया नहीं कर पाते। और फिर मिथाईल ऑरेंज सूचक के रंग बदलने से तो सिर्फ इतना ही पता चलता है कि 4.5 से कम पी.एच. वाले अम्ल उदासीन हो गए हैं। 4.5 और 7.0 के बीच की पी.एच. वाले सब अम्ल तो अभी भी घोल में मौजूद हैं ही। पानी के नमूने की कुल अम्लीयता यानी कि संयुक्त अम्लीयता पता करने के लिए फिनोफ्थेलीन सूचक घोल का इस्तेमाल करना पड़ता है। क्योंकि फिनोफ्थेलीन सूचक 8.3 पी.एच. पर रंग बदलता है इसलिए उसे पानी के नमूने में डाल कर कास्टिक सोडा के घोल से टाइट्रेट करने पर हमें पानी में घुले सब अम्लों की कुल मात्रा पता चल जाती है।

अब अगर सिर्फ कमजोर अम्लों की मात्रा पता लगानी हो तो संयुक्त अम्लीयता में से खनिज अम्लीयता घटाने पर वह भी मिल जाएगी।

अब इन सब प्रक्रियाओं और उनमें इस्तेमाल की गई गणनाओं को समझने की कोशिश करते हैं:

1 इस विधि में हम प्रबल अम्लों और कमजोर अम्लों की अम्लीयता को अलग-अलग जानने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यह जानने से कि पानी के नमूने में प्रबल अम्ल ज्यादा हैं या कमजोर अम्ल, हमें मोटा-मोटा अन्दाज़ लग जाता है कि पानी में कौन-कौन से पदार्थ कम-ज्यादा मात्रा में घुले हैं। ताकि उसके आधार पर हम तय कर सकते हैं कि अब पदार्थों की मात्राएं पता लगाने के लिए हमें पानी के नमूने में किन पदार्थों की खोजबीन करनी चाहिए।

2.  इन जांचों से हमें यह नहीं पता चलता कि पानी में कौन-कौन से पदार्थ घुले हैं और उनकी मात्रा कितनी-कितनी है। हम सिर्फ यह बता सकते हैं कि घुले हुए सब अम्लों के कारण पानी के इस नमूने में कुल इतनी अम्लीयता है।

3.  इन सब गणनाओं में अम्लीयता को कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा के रूप में दिखाया गया है। गणना करके जब हमें पता चलता है कि पानी की अम्लीयता 20 मि.ग्रा. प्रति लीटर है तो उसका अर्थ है कि उस पानी को उदासीन करने के लिए 20 मि.ग्रा. कैल्शियम कार्बोनेट की जरूरत होगी।

4.  इन विधियों की खासियत यह है कि इनमें इस तरह के घोल लिए गए हैं और उनकी मात्रा इतनी तय की गई है कि बिना जटिल गणनाओं के हमें आसानी से अम्लीयता की मात्रा मि.ग्रा. प्रति लीटर में मिल जाती है।

(छिंदवाड़ा क्षेत्र के विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ हुए एक प्रयोग पर आधारित)