हमें, और खासकर छोटे बच्चों को, गुदगुदी का खेल पसंद आता है। लेकिन गुदगुदी, खेल-मनोरंजन या स्तनधारियों के ऐसे ही सकारात्मक व्यवहारों को बहुत कम समझा गया है। इसके विपरीत आक्रामकता या डर जैसे व्यवहारों को समझने के लिए काफी अध्ययन हुए हैं।
हम्बोल्ट विश्वविद्यालय के तंत्रिका विज्ञानी माइकल ब्रेख्त की रुचि यह समझने में थी कि खेल के सुखद अहसास कहां से आते हैं। पूर्व में देखा जा चुका था कि कुछ कृंतकों को मनोरंजन पसंद होता है। और यदि वे अच्छे मूड और अनुकूल महौल में हैं तो गुदगुदी का आनंद लेते हैं, और इंसानों की हंसी के समान उच्च आवृत्ति की आवाज़ें निकालते हैं। न्यूरॉन में प्रकाशित हालिया अध्ययन के मुताबिक शोधकर्ताओं ने चूहों के मस्तिष्क में इस आनंद के लिए ज़िम्मेदार क्षेत्र की पहचान कर ली है।
पूर्व अध्ययन बताते हैं कि चूहों में चेतना और अन्य उच्च श्रेणि के व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार मस्तिष्क का क्षेत्र (कॉर्टेक्स) पूरा नष्ट हो जाने के बाद भी वे खेलकूद जारी रखते हैं। इससे पता चलता है कि डर की तरह खेल (या मनोरंजन) भी नैसर्गिक है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि पेरिएक्वाडक्टल ग्रे (पीएजी) नामक एक संरचना की भी इसमें भूमिका हो सकती है जो ध्वनि, ‘लड़ो-या-भागो’ प्रतिक्रिया और अन्य व्यवहारों में भूमिका निभाती है। जब चूहे एक-दूसरे के साथ लड़ाई-लड़ाई खेलते हैं तो वे भय और आक्रामकता जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। इसलिए ब्रेख्त को लगा कि पीएजी या मस्तिष्क का ऐसा ही कोई क्षेत्र मनोरंजन में भागीदार हो सकता है।
वे अपने पूर्व अध्ययन में देख चुके थे कि चूहे इंसानों की तरह पेचीदा खेल खेल सकते हैं। उनकी टीम कृंतकों को लुका-छिपी खेलना भी सिखा चुकी थी। खेल के शुरू में चूहे को एक बक्से में बंद कर शोधकर्ता कमरे में कहीं छिप गए। फिर रिमोट कंट्रोल की मदद से बक्सा खोलने पर चूहे ने बाहर आकर शोधकर्ता को ‘ढूंढना’ शुरू किया। जब चूहे ने छुपे हुए शोधकर्ता को ढूंढ लिया तो उसे गुदगुदी के रूप में पुरस्कार मिला। चूहों को भी छिपने का अवसर दिया गया था, और देखा गया कि चूहे छिपने की काफी नई-नई जगहें ढूंढ लेते हैं।
अपने अनुमान - खेल में पीएजी की भूमिका - की जांच के लिए ब्रेख्त की टीम ने पहले तो यह सुनिश्चित किया कि चूहे अपने अनुकूल और सहज माहौल में रहें। चूहों को मद्धम रोशनी वाली जगह सुहाती हैं, तेज़ रोशनी वाली और ऊंची जगहों पर वे परेशान होते हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने उनके साथ ‘हाथ पकड़ो’ खेल खेला। जब चूहे उनके हाथ तक पहुंच जाते थे तो शोधकर्ता उनकी पीठ और पेट पर गुदगुदी करते थे। गुदगुदी करने पर चूहे खुश होते थे और ‘खिलखिलाते’ थे। शोधकर्ताओं ने चूहों के मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड लगाकर उनके मस्तिष्क की गतिविधि की निगरानी की। और अल्ट्रासोनिक माइक्रोफोन से उनकी हंसी भी रिकॉर्ड की।
पाया गया कि चूहे मनुष्यों के सुनने की क्षमता से बहुत अधिक आवृति पर ‘हंसते’ हैं। और, जब चूहे हंस रहे थे और खेल में व्यस्त थे तो उनके पीएजी के एक विशिष्ट क्षेत्र में हलचल देखी गई। इसके विपरीत जब चूहों को असहज जगह पर बैठाकर गुदगुदी की तो उन्होंने हंसना बंद कर दिया व उनके पीएजी का सक्रिय हिस्सा शांत हो गया। इससे लगता है कि विनोदभाव के लिए चूहों में पीएजी ज़िम्मेदार है। इसकी पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं ने पीएजी के उस हिस्से की तंत्रिकाओं को एक रसायन की मदद से शांत कर दिया। इसके बाद गुगगुदी करने पर चूहे नहीं हंसे और उनकी इंसानों और खेल में रुचि भी जाती रही। इससे लगता है कि गुदगुदी और खेल में पीएजी की महत्वपूर्ण भूमिका है।
ये नतीजे और भी महत्वपूर्ण इसलिए लगते हैं क्योंकि यह देखा जा चुका है कि जब कुछ चूहों को खेलने से वंचित कर दिया जाए तो वे मायूस हो जाते हैं, रिश्ते बनाने में असफल रहते हैं और तनावपूर्ण स्थितियों में कम लचीले हो जाते हैं। यह भी देखा गया है कि खेल की कमी से मस्तिष्क का विकास भी रुक जाता है।
आगे ब्रेख्त यह देखना चाहते हैं कि पीएजी की खेल के अन्य पहलुओं, जैसे नियमों का पालन करने के व्यवहार में क्या भूमिका है। उनका अवलोकन था कि लुका-छिपी खेल में यदि मनुष्य बार-बार एक ही जगह छिपें या ठीक से छिपने में विफल रहें तो चूहों ने खेल में रुचि खो दी थी। उम्मीद है कि इस काम से सकारात्मक भावनाओं को समझने की दिशा में अधिक काम होगा और चिंता व अवसाद से पीड़ित रोगियों के लिए प्रभावी उपचार विकसित करने में मदद मिलेगी। (स्रोत फीचर्स)