बुढ़ापा आने के साथ कई दिक्कते भी आती हैं जैसे याददाश्त की दिक्कत, मांसपेशियों का शिथिल पड़ना, त्वचा का नाज़ुक और रूखा होना वगैरह। कुछ लोगों को बुढ़ापे में ज़्यादा खुजली होने की समस्या होती है। उनकी त्वचा हल्के से स्पर्श के प्रति भी संवेदनशील हो जाती है। स्वेटर वगैरह के रेशे का हल्का स्पर्श होने पर भी उन्हें उस जगह काफी तेज़ खुजली होती है। इसे एलोक्नेसिस कहते हैं। यह क्यों होता है और इसे कैसे ठीक किया जाए, अब तक इसके बारे में वैज्ञानिक कुछ पता नहीं कर पाए थे।

हाल ही में चूहों पर हुए शोध से एलोक्नेसिस होने के अप्रत्याशित कारण सामने आए हैं। शोध के अनुसार त्वचा में दाब-संवेदना सम्बंधी कोशिकाओं की कमी के चलते ऐसा होता है। और इन कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को तेज़ करके, वृद्धों और युवाओं में जीर्ण एलोक्नेसिस का उपचार किया जा सकता है हालांकि यह प्रयोग अब तक इंसानों पर करके नहीं देखा गया है।

आम तौर पर मच्छर वगैरह के काटने के कारण या शरीर में किसी बाहरी चीज़ के प्रति रोग प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्रिया के कारण खुजली होती है। किंतु जीर्ण खुजली इससे भिन्न है। ये त्वचा पर बहुत हल्के दबाव या रगड़ से होने लगती है। हालत तब और भी बुरी हो जाती है जब खुजली से राहत पाने के लिए त्वचा बार-बार खुजाते हैं। इसके कारण इंफेक्शन समेत कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती हैं।

देखा गया है कि इंसानों की तरह चूहों में भी उम्र के साथ-साथ खुजली की समस्या बढ़ती है। ऐसा क्यों होता है, इसे पता करने के लिए मिसौरी, सेंट लुईस स्थित वाशिंगटन युनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन के एनेस्थिसियोलॉजी शोधकर्ता हांगज़ेन हू और उनके साथियों ने चूहों पर अध्ययन किया। उन्होंने वृद्ध और युवा चूहों की गर्दन के एक हिस्से से बाल हटा दिए। फिर इस हिस्से पर बाल की मोटाई के नायलोन रेशे का स्पर्श कराया। इस हल्के स्पर्श का युवा चूहों पर तो कोई खास असर नहीं पड़ा नहीं किंतु बूढ़े चूहे काफी तेज़ी से खुजाने लगे। वृद्ध और युवा चूहों की त्वचा का अध्ययन करने के बाद पता चला कि बूढ़े चूहों की त्वचा में युवा चूहों के मुकाबले दाब-संवेदना सम्बंधी मर्केल कोशिकाएं कम थी। शोधकर्ताओं ने इसे साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया है।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने आनुवंशिक रूप से तैयार किए गए, कम मर्केल कोशिकाओं वाले, युवा चूहों में देखा कि वे एकदम कम दाब के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। अध्ययन में पाया गया कि हल्के स्पर्श पर इन चूहों में भी खुजली हुई। इससे पता चलता है कि खुजली के लिए मर्केल कोशिकाएं ज़िम्मेदार होती हैं। शोधकर्ताओं ने इन चूहों में मर्केल कोशिकाओं की गतिविधि को बढ़ा कर देखा। इसके लिए उन्होंने क्लोज़ेपाइन एन-ऑक्साइड रसायन का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि मर्केल कोशिकाओं की गतिविधि बढ़ने से चूहों में खुजली की समस्या कम हुई। शोधकर्ताओं का कहना है कि मर्केल कोशिकाओं की गतिविधि बढ़ाने से एलोक्नेसिस की समस्या से राहत मिल सकती है।

अब तक के अध्ययनों से पता चला है कि बुज़ुर्गों और रूखी त्वचा वाले लोगो में मर्केल कोशिकाएं कम होती हैं। क्या खुजली की समस्या से परेशान लोगो में भी मर्केल कोशिकाओं की कमी होती है, इस बात का पता करने के लिए हू और उनके साथी खुजली से पीड़ित लोगों की त्वचा की बायोप्सी का विश्लेषण कर रहे हैं। फिलहाल इससे जुड़े और भी सवालों को सुलझाना बाकी है। (स्रोत फीचर्स)