कमलकिशोर कुम्भकार

शीर्षक शायद चौंकाने वाला हो। क्योंकि गुलाब, रजनीगंधा जैसे फूलों की बात समझ में आती है पर मक्का के फूलों में ऐसी क्या खास बात है! वैसे देखा जाए तो मक्का घास समूह का पौधा है और इसके फूल भी कुछ सुखे-सूखे से ही होते हैं। घास । समूह के पौधों के फूल द्विलिंगी भी होते हैं और एकलिंगी भी। मक्के । एकलिंगी फूल मिलते हैं जिसमें नर मादा फूल अलग-अलग होते । पर दोनों तरह के फूल एक ही पौधे पर लगते हैं अतः पौधा द्विलिंगी होता है। इस पौधे के शीर्ष पर ताज के समान 3 से 5 हल्के कत्थई रंग का नर फूलों का समूह होता है। इसे आम बोलचाल में मंजरी या मांजर कहते हैं। इस पूरी मंजरी में खूब सारे नर फूल होते हैं जिनमें पुंकेसर पाए जाते हैं।
 
यहां तक तो आपने देखा ही होगा पर मादा फूलों पर हमारा ध्यान कम हीं जाता है। वास्तव में मक्के के मादा फुल तने के लगभग बीच में एक गठान या जोड़ पर मिलते हैं। ये मादा फूल गठान पर से निकलती एक शाखनुमा रचना पर लगे होते हैं। यहां एक बात गौरतलब है कि मक्के के मादा फूल में प्रमुखतः स्त्रीकेसर हीं पाया जाता है। यह मादा फूलों से लदा मोटा अक्ष। चारों ओर से मांसल पत्तियों से घिरा होता है। इनमें से बाहर की ओर लटकने वाली जो बारीक-बारीक रेशमी धागों जैसी बारीक रचनाएं दिखती हैं, वे कुछ और नहीं बल्कि स्त्रीकेसर की लम्बी-लम्बी वर्तिकाएं हैं। इसी मोटे और मांसल पुष्प अक्ष पर लगे। स्त्रीकेसर के अंडाशय निषेचन के बाद दानों में बदल जाते हैं और हमें दुध भरे दानों से युक्त भुट्टा खाने को मिलता है।

वर्तिका और पराग नली   
वनस्पति जगत में जैसे सबसे बड़ा फुल रिफ्लेशिया में पाया जाता है, वैसे ही मक्के में एक-दो खास बातें केवल मादा फूल में ही मिलती हैं। मसलन सभी फूल वाले पौधों में सबसे लम्बी वर्तिका (Style) मक्के में मिलती है। मक्के की लंबी-लंबी बालनुमा वर्तिका हम सबने देखी ही है। बीजों के निर्माण के पहले परागकण वर्तिकाग्र यानी स्टिग्मा की सतह पर अंकुरित होते हैं, और अपनी पराग नलिका ओवरी (अण्डाशय) में स्थित ओव्यूल तक पहुंचा देते हैं। सो जितनी लम्बी वर्तिका होगी उतनी ही लम्बी पराग नलिका भी बनना चाहिए - तभी नर केन्द्रक, मादा केन्द्रक से मिल पाएगा। यही वजह है कि मक्के में जहां सबसे लम्बी वर्तिका होती है, वहीं सबसे लम्बी पराग नलिका भी इसी पौधे के परागकणों द्वारा बनाई जाती है।

परागण का अनूठा तरीका   
हमने देखा कि इम पौधे के शीर्ष पर नर फूल लगते हैं और तने पर मादा फूल लगे होते हैं। नर फूलों में पराग कण बनने के बाद इनके परागकोष यानी एन्थर हवा में लटकने लगते हैं; और हवा के झोंकों से पराग कण निकलकर हवा में बिखरने लगते हैं। जब नर फूल अपने पराग कणों को हवा में बिखेरने के लिए तैयार हो जाते हैं, उस समय मादा फूल की वर्तिकाएं गुच्छों के रूप में भुट्टों की मांसल पत्तियों से बाहर लटकी होती हैं। हवा में उड़ने वाले पराग कण इन ब्रशनुमा रचनाओं में उलझ जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि मान लीजिए हवा न चल रही हो तो परागण कैसे होगा? यदि हवा बह न रही हो तो भी जब परागकोष से पराग कणों के झुण्ड-के-झुण्ड बाहर निकल कर गिरते हैं, तो खूब सारे पराग कण मादा फूलों की इन बालनुमा वर्तिकाओं में उलझ जाते हैं, और इस तरह परागण का काम सम्पन्न होता है।

बीज या फल    
हो सकता है आप भी मक्के के दाने को बीज मानते हों पर किसी वनस्पति शास्त्री की राय जानकर आप चौंक सकते हैं क्योंकि उसकी निगाह में मक्के का दाना बीज नहीं फल है; ठीक वैसा ही फल जैसे आम, बेर, जामुन आदि। तो आइए देखते हैं। मामला क्या है?
वास्तव में किसी भी फल को देखते हैं तो उसमें सबसे बाहर एक छिलका होता है जिसमें बीज बंद रहते हैं। अन्दर के बीजों का भी अपना छिलका होता है। मसलन मूंगफली में फल का छिलका तोड़कर हम बीज निकालते हैं और इन बीजों का भी अपना एक पतला-सा लाल रंग का छिलका होता है। पर मक्के के दाने में फल का छिलका और बीज का छिलका दोनों आपस में इस तरह घुल-मिल जाते हैं कि इन दोनों को अलग-अलग पहचान पाना उतना आसान नहीं है, जितना अन्य किसी फल में। तो यही कारण है कि वनस्पति शास्त्री मक्के के दानों को बीज नहीं फल कहता है। इस तरह के फल को वैज्ञानिकों ने केरिऑप्सिस नाम दिया है। खैर, मक्के के दानों की तरह चावल और गेहूं का नाम भी आपको फल वाली सूची में ही मिलेगा।


कमलकिशोर कुम्भकारः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं।