बी.एस.पाटील एवं संगीता काले

पॉलिमर हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा हैं। अभी तक इनसे ऊष्मा के, विद्युत के कुचालक तो बनाए जाते ही थे लेकिन अब इनसे विद्युत चालक बनाना भी मुमकिन हो गया है। बहुलक के इस गुण की वजह से आने वाले समय में माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारी परिवर्तन आने की संभावना है। शायद नेनो कम्प्यूटर भी बना सकते हैं।

कार्बन के रेशों में बना कपड़ा। यहां कपड़े का 20 गुना आवर्धित चित्र है।

बहुलक यानी पॉलिम यह शब्द हमने कई बार पढ़ा, सुना है फिर भी ऐसा लगता है कि यह हमारी रोजमर्रा की बोलचाल का हिस्सा नहीं बन सका है। यदि मैं आपसे कहूं कि हम बहुलकों के घेरे में रहते हैं, तो आपको ज़रूर अचरज होगा लेकिन यही हकीकत है। हम जो भोजन करते हैं उसमें मौजूद प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स जैसे हिस्से; हम जो कपड़े पहनते हैं - सूती, रेशमी, ऊनी, टेरीलीन, नायलॉन आदि; प्लास्टिक-रबर की चप्पलों के विविध हिस्से, बिजली के बटन, रेडियो, टी.वी. के केबिनेट इन सबमें बहुलक मौजूद होते हैं।

पिछले कुछ दशकों में पॉलिमर्स पर बहुत शोध हुए हैं और इनका इस्तेमाल भी अंधाधुंध होने लगा है। यह बेजा इस्तेमाल अब पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। समस्या इसलिए है क्योंकि पॉलिमर से बने सामान का विघटन काफी मुश्किल से, बहुत लम्बे समय बाद होता है। इसलिए इनसे बने सामानों के इस्तेमाल पर विविध किस्म की पाबंदियां लगाई जा रही हैं। प्लास्टिक की पतली पॉलिबेग पर तो अनेक शहरों में रोक लगाई जा चुकी है। इन पॉलिबेग की वजह से नालियां बंद हो जाती हैं और गंदे पानी की निकास व्यवस्था को सुचारू चलाए रख पाना असंभव हो जाता है। चारों ओर बिखरी पॉलिबेग न सिर्फ वनस्पतियों के लिए खतरा बन गई हैं, पर साथ ही वे प्राकृतिक सौंदर्य को भी नुकसान पहुंचाती हैं। जमीन-नदी-नालों के मार्फत ये प्लास्टिक समुद्र तक पहुंचकर समुद्री जीवन तक के लिए एक खतरा पैदा कर रहा है।

जेसा चाहागे वेसा बनोगे  
पॉलिमर्स यानी बहुलकों का विकास 20वीं सदी में जितनी तेज़ी से हुआ, उसका एक प्रमुख कारण यह है कि उन पदार्थों में जैसा चाहो वैसा गुण लाया जा सकता है। यानी अलादीन के चिराग की तरह हैं वो। आमतौर पर बहुलकों का एक सामान्य गुण है। - विद्युत कुचालकता। इसी खासियत की वजह से बिजली के तारों के ऊपरी कुचालक खोल, विविध तरह के केबल्स, रेडियो-ट्रांजिस्टर, टीवी, वगैरह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के ऊपरी केबिनेट, रसोई घर में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों के ऊष्मा कुचालक हैंडल, स्कू-ड्रायवर की मुट्ठी वगैरह पॉलिमर्स से ही बनाए जाते हैं।
लेकिन हाल के वर्षों में ऐसा महसूस होने लगा है कि विद्युत कुचालक पॉलिमर्स का क्षेत्र अब विद्युत चालक पॉलिमर्स में तब्दील होने जा रहा है। सन् 2000 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार चालक बहुलक यानी कंडकुटिंग पॉलिमर्स को मिला है। ऐसा लगता है कि इस खोज की वजह से प्लास्टिक युग को एक नई ज़िन्दगी मिली है। इस नोबेल पुरस्कार को पाने वाले हैं - अमेरिकी शोधकर्ता हीगर एवं मेकडरमिट और जापानी वैज्ञानिक शिरकावा। इस खोज की वजह से पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में एक अनूठा नया दरवाज़ा खुल गया है।

किसी भी पदार्थ के भौतिक व रासायनिक गुण उस पदार्थ की आण्विक और परमाण्विक संरचना पर निर्भर करते हैं। पदार्थ किन परमाणुओं से मिलकर बना है, परमाणु आपस में किस तरह जुड़े हैं, अणु किस तरह से आपस में बंधे हुए हैं, अणुओं के बंधन से बनने वाली संरचना सलीके से गुंथी है या नहीं? यानी यह पदार्थ क्रिस्टलीय है या अक्रिस्टलीय है, ऐसी ही कई अन्य बातों के आधार पर पदार्थ के गुणधर्म तय होते हैं। सामान्य पदार्थों के अणुओं का आकार नगण्य होता है जैसे पानी (H20), अमोनिया (NH3), ऑक्सीजन (O2), नाइट्रोजन (N2) आदि। लेकिन पॉलिमर के अणु, (सामान्य पदार्थों के अणुओं की तुलना में) विशालकाय प्रतीत होते हैं। इन दोनों के आकारों को समझना है तो यह कह सकते हैं कि सामान्य अणु यदि माला का मोती है तो पॉलिमर मोतियों की माला। इस माला में मोतियों की किस्म, संरचना, उनकी संख्या आदि से अगर चाहें तो माला के गुणधर्मों में बदलाव करना संभव है। पॉलिमर की चेन संरचना में थोड़ासा परिवर्तन करने मात्र से पदार्थ के गुणों में अंतर दिखाई देने लगते हैं। ऐसे परिवर्तन की संभावना के कारण ही इससे एकदम मुलायम पदार्थ से लेकर अत्यंत कड़े पदार्थ तक, धातुओं की उच्च प्रत्यास्थता (इलास्टिसिटी) वाले पदार्थ से लेकर भुरभुरे पदार्थ तक, आसानी से मोड़े जा सकने वाले पदार्थ, ऊष्मा से नरम पड़ सकने वाले पदार्थ से लेकर ऐसे पदार्थ जिन पर ऊष्मा का कोई प्रभाव न पड़े, आदि बनाए जा सकते हैं। गुब्बारे के आसानी से ताने जा सकने वाले रबर से कारट्रक या हवाई जहाज़ के कठोर टायर तक के पदार्थ इन पॉलिमर से बनाए जा सकते हैं।

चालक पॉलिमर को 'कृत्रिम धातु भी कहा जाता है क्योंकि इन पॉलिमर की चालकता धातुओं की चालकता की तरह मुक्त इलेक्ट्रॉन (Free ElecIrran) की वजह से होती है। जब धातु के परमाणु इकट्ठा होते हैं तब हरेक परमाणु के ये संयोजी इलेक्ट्रॉन उस अकेले परमाणु के नहीं रह जाते बल्कि वे सभी परमाणुओं के लिए उपलब्ध हो जाते हैं। इस वजह से धन आयनों की सुव्यवस्थित संरचना में बहने वाला मुक्त इलेक्ट्रॉन्स का सागर तैयार हो जाता है। ऐसे धातु के टुकड़े में मौजूद सभी मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र के धनात्मक सिरे की ओर प्रवाहित होने लगते हैं यानी उस टुकड़े में से विद्युत बहने लगती है। चालक पॉलिमर में भी बिल्कुल ऐसा ही होता है। धातुओं की तरह पॉलिमर में भी मुक्त इलेक्ट्रॉन और उसकी वजह से प्रवाही इलेक्ट्रॉन की मात्रा ज्यादा होती है। इन पॉलिमर्स का इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरी में होने की अत्यधिक संभावना है। बैटरी का इस्तेमाल वाहनों में या पोर्टेबल उपकरणों में किया जा सकता है।
तांबा विद्युत का अच्छा सुचालक है लेकिन मजबूती के लिहाज से कमजोर है। दूसरी ओर स्टील खासा मजबूत है लेकिन तांबे के मुकाबले विद्युत का कमज़ोर सुचालक है। चालक पॉलिमर में तांबे और लोहे दोनों के गुण होंगे, साथ ही यह बज़न में भी हल्का होगा यह एक और फायदा है। ये बहुलक प्रकाश उत्सर्जित करने वाले डायोड में, फोटोवोल्टिक सेल में और विविध फिल्म ट्रांजिस्टर्स में इस्तेमाल किए जा सकेंगे।

भाग:2
माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में चालक पॉलिमर्स के कई तरह के इस्तेमाल हो सकते हैं। यहां माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स से तात्पर्य इंटीग्रेटड सर्किट बनाने की तकनीक में किए जाने वाले शोध से है। आज के दौर में इस क्षेत्र में सिलिकॉन और जर्मेनियम इन दो अर्द्धचालकों का राज है। इन दिनों कम्प्यूटर के क्षेत्र में कम-से-कम जगह में ज्यादा-से-ज्यादा सर्किट भर देने की मांग उठ रही है। इस मांग को देखते हुए यह महसूस किया जा रहा है कि सिलिकॉन-जर्मेनियम की अपनी सीमाएं हैं इसलिए इन दोनों अर्द्धचालकों के बूते मांग पूरी कर पाना दिन-पर-दिन कठिन होता जाएगा।

कार्बन नेनो नलिकाः लम्बी, पतली परत की खोखली कार्बन की नली जिसे एस. इंजिमा ने 1991 में खोजा। यह नली बनी थी 1.4 नेनोमीटर व्यास वाले , तार के आकार वाले लंबे अणु से। इस नली के विद्युत चालकता, प्रकाश की चालकता, आदि गुणधर्म अणु के आकार लम्बाई, व्यास और अणु पर पड़े ऐंठनों के हिसाब से बदलते हैं। ऐठनों की वजह से अणु में। इलेक्ट्रॉन्स की जमावट बदलती है और उनका धातु से अर्धचालकों में रूपांतरण होता है। परम्परागत चालक धातुओं की अपेक्षा इनका प्रतिरोध और कम होता है।

अभी हम 3 मिमी x 3 मिमी क्षेत्रफल वाली सिलिकॉन चिप पर 3 अरब सर्किट फिट कर पा रहे हैं। यह हमारी मौजूदा तकनीकी सीमा है। जिससे और आगे बढ़ पाना असंभवसा है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं का ध्यान चालक पॉलिमर की ओर गया।
आजकल चिप पर बनाए जाने वाले सर्किट की तुलना में ये पॉलिमर के अणु और भी बहुत छोटे होते हैं, साथ ही उन्हें बनाना ही आसान और किफायती है। लेकिन एक और भी बड़ा फायदा है - वह यह कि पॉलिमर की आण्विक संरचना में घोड़े से फेरबदल करने मात्र से मन । चाहे इलेक्ट्रॉनिक और प्रकाशकीय गुणधर्म प्राप्त किए जा सकते हैं। इसलिए इंटीग्रेटड सर्किट बनाने से पहले ही पॉलिमर की आण्विक संरचना में, ज़रूरत के हिसाब से परिवर्तन किए जा सकते हैं। फिर इस पॉलिमर से ज़रूरत के हिसाब से सर्किट बना सकते हैं। इस तकनीक को आण्विक इंजीनियरिंग (Molecular Engineering) कहा जाता है। इसकी वजह से इंटीग्रेटड सर्किट बनाना काफी आसान होता , साथ ही चिप पर सर्किट की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। सर्किट की संख्या बढ़ाने का अर्थ है चिप की गति बढ़ेगी और पुर्जा की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होगी। माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स

बनावटी नाक   
जब नाक जैसी चीज़ भी बनावटी बनने लगे तो कान खड़े होना स्वाभाविक ही है। हाल ही में नियोट्रॉनिक्स नाम की कंपनी ने एक बनावटी नाक बना डाली जो हमारी असली नाक की तरह खुशबू का अहसास करती है, लेकिन कुछ फर्क तरह से।
इस नाक में संवेदक कोशिकाओं के स्थान पर कार्बनिक पदार्थ पायरोल के बहुलक से बने संबेदक होते हैं। इन पॉलिमर्स की विशेषता यह है कि ये विद्युत के सुचालक होते हैं। इन पर कुछ खास पदार्थ चिपक जाएं तो इनकी चालकता बदल जाती है। इस नाक में 12 संवेदक लगे हैं। जब भी इन संबेदकों पर से कोई खुशबुदार हवा बहेगी तो खुशबू में शामिल विभिन्न पदार्थों की वजह से संवेदकों की चालकता में आए परिवर्तन को रिकॉर्ड कर लिया जाता है और पोलर प्लॉट (एक किस्म के चित्रात्मक प्रस्तुतिकरण) पर खुशबू का चित्र बनाकर उसे पहचान लिया जाता है।
शायद आप जानते ही होंगे कि चाय, कॉफी, शराब आदि उद्योगों में खुशबू का काफी महत्व है।

के नजरिए से एक चालक पॉलिमर है --- कार्बन नेनोट्युब्स कार्बन नेनोट्यूब व्यास और नली पर लगे ऐंठनों से की संरचना चित्र में दिखाए खींचे हुए फुटबॉल की तरह होती है। नेनोट्यूब्स से अचालक, सुचालक, अर्धसन् 1991 में कार्बन की इस आण्विक संरचना (फुटबॉल कार्बन) की खोज की गयी थी।*
कार्बन की यह गोल-बेलनाकार नेनोमीटर व्यास वाली है से भी काफी छोटा नेनो-कम्प्यूटर (1 नेनोमीटर यानी 10 मीटर)।इस नली की लम्बाई, आकार (Shape), व्यास और नली पर लगे एंठानो से अणु के गुणधर्म तय होते है इन नेनोटयूब्स से अचालक सुचालक , अर्धचालक , इलेक्ट्रोनिक पुर्जे बनाये जा सकते है इन पुर्जों का आकार सिर्फ कुछ नेनोमीटर होगा और इन सब पुर्जों को मिलकर आज के लेपटोप से भी काफी छोटा नेनो कंप्यूटर बनाया जा सकेगा।


बी.एस.पाटील: संगमनेर कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्रमुख हैं। विज्ञान लेखन भी करते हैं।
संगीता काले: फर्गुसन कॉलेज, पुणे में इलेक्ट्रॉनिक्स पढ़ाती हैं।
हिन्दी अनुवाद: माधव केलकर।
यह लेख शैक्षणिक संदर्भ (मराठी) अंक 18 से साभार।
*फुटबॉल कार्बन पर और जानकारी के लिए संदर्भ के अंक 18 (जुलाई-अगस्त 1997) में प्रकाशित लेख 'फुटबॉल कार्बन' पढ़िए।