गत 21 जून को सालाना विश्व संगीत दिवस मनाया गया। यह मौका है इस बात को समझने का कि प्राचीन समय से अब तक संगीत और ताल कैसे विकसित हुए। क्योटो विश्वविद्यालय के प्रायमेट रिसर्च इंस्टीट्यूट के युको हटोरी और मसाकी टोमोनागा का अध्ययन बताता है कि जब चिम्पैंजियों के समूह को एक धुन सुनाई जाती थी तो वे लयबद्ध ढंग थिरकने लगते थे! हालांकि, उनके स्वर यंत्र (वोकल कॉर्ड) गायन के लिए विकसित नहीं हुए हैं; वे केवल गुर्रा सकते हैं। लेकिन उक्त अध्ययन दर्शाता है कि हम मनुष्यों को वानरों से मात्र हमारे कई जीन्स और रक्त समूह विरासत में नहीं मिले हैं, बल्कि हमारी लय-ताल की समझ भी मिली है!
तो फिर, हम मनुष्यों ने गाना और वाद्ययंत्र बजाना कब शुरू किया? शोधकर्ताओं ने यह बताया है कि मनुष्यों ने बोलना पुरा-पाषाण युग (जो 25 लाख साल पहले से 10,000 ईसा पूर्व तक माना जाता है) के दौरान शुरू किया, और उसके थोड़े समय बाद ‘गाना’ शुरू किया। मनुष्यों में गाने और बजाने की क्षमता के प्रमाण लगभग 40,000 साल पहले से मिलते हैं; वैज्ञानिकों को लगभग 40,000 साल पुरानी एक बांसुरी मिली है जो जानवर की हड्डी से बनाई गई थी। इसमें ‘सुर’ बजाने के लिए पांच छेद हैं। निम्नलिखित साइट्स पर जाकर इसका पूरा लुत्फ उठाएं:
https://www.science.org/content/article/ancient-flutes-suggest-rich-life-stone-age-europe
https://www.classicfm.com/discover-music/instruments/flute/worlds-oldest-instrument-neanderthal-flute/
https://www.youtube.com/watch?v=6gueZBiRK0Y
राग और ताल
संगीत का वास्तविक लिपिबद्ध रूप युरोप और मध्य पूर्व में संभवत: 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान सूक्त (Hymns) गायन और वादन के लिए हुआ था। इस संगीत लिपि में संकेतों (‘do, re, ma, fa, po, la, ti’) के बीच रिक्त स्थान होते थे। ऐसा माना जाता है कि भारत में वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व) में सुरों (‘सा, रे, गा, मा, प, ध, नी’) का चिह्नाकंन हुआ था। डॉ. जमीला सिद्दीकी लिखती हैं कि हमारे पास ‘सा, रे, गा, मा, प, ध, नी’ सुर थे। आप इन्हें एम. एस. सुब्बलक्ष्मी को राग जगनमोहिनी में ‘सोबिलु सप्तस्वर' गाते हुए और संत त्यागराज द्वारा रचित ‘रूपक ताल’ में सुन सकते हैं। तब से लेकर अब तक हमने ज्यामितीय और शास्त्रीय तरीके से सुरों को व्यवस्थित करके संगीत में काफी प्रगति कर ली है और अपने संगीत के रस को आगे बढ़ाया है।
लेकिन ज़रूरी नहीं है कि आप सिर्फ शास्त्रीय संगीत के कदरदान या श्रोता रहें और सिर्फ एम. एस. सुब्बलक्ष्मी, बिस्मिल्लाह खान, बाख, बीथोवेन या मोज़ार्ट को ही सुनें। आप जैज़, कव्वाली, सुगम और फिल्मी संगीत को भी सुनने का आनंद ले सकते हैं, जैसा कि कई लोग करते हैं। वे भी सप्तक या कुछ सुरों और ताल-संगत के साथ निबद्ध किए गए होते हैं। समूचे देश, यहां तक कि समूची दुनिया में लोग लोकसंगीत को चाव से सुनते हैं। हाल ही में साइंटिफिक अमेरिकन में एलिसन पार्शल की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि दुनिया के अलग-अलग इलाकों में लोकगीत लगभग एक समान हैं और इनके लहजे और तान के कारण लोग इन्हें सुनने का आनंद लेते हैं।
संगीत के लाभ
जब आप संगीत सुनते हैं, तो आपका स्वास्थ्य सुधरता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि संगीत प्रार्थना/भजन है, गायन है या वादन, शास्त्रीय है या पारंपरिक, लोकप्रिय है या फिल्मी गीत है। जॉन्स हॉपकिन्स युनिवर्सिटी की वेबसाइट कहती है कि अगर आप अपने दिमाग को जवां रखना चाहते हैं, तो गाएं-बजाएं या संगीत सुनें। गाना या बजाना सीखने से एकाग्रता, याददाश्त, मूड और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। यह बात स्कूल और कॉलेज जाने वालों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कहते हैं, संगीत सीखना या सुनना बुज़ुर्गों को वृद्धावस्था से जुड़ी समस्याओं से बचने में भी मदद करता है।
भारत में कई संगीत अकादमियां हैं, जो समय-समय पर संगीत उत्सव आयोजित करती हैं। यहां हम स्थापित संगीतकारों और युवा कलाकारों को कर्नाटक, हिंदुस्तानी और पश्चिमी शैलियों में गाते-बजाते सुन सकते हैं। तो इन उत्सवों में जाएं और संगीत का आनंद उठाएं! (स्रोत फीचर्स)
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