< Previousबया के ललए बषीईर्र के ललए मेंढकतों के ललए पक्षी प्रेलमयतों के ललए स्ैग से खाएँगे उड़ते दषीमक साँपतों के ललए िमगादड़ के ललए ये मेरा घर, ये मेरा घर बुनता रहँ इसे हदन भर दजज षि न के ललए बगुले के ललए आलषी रे आलषी, मोर्षी मधुमक्षी आलषी मि गया शोर सारषी नगरषी रे... रेड पाण्ा के ललए नि बललए रसषीला बैम्बू आया जंगल में बोले कुकू रपयू-रपयू रपयू-रपयू सारा जमाना मेरे मुकुर् का दषीवाना एक घर बनाऊँगषी... आ, अब लौर् िलें नहीं, आना तू मेरषी गलषी पहलषी बाररश का मतलब रोहन िक्वतती चछपकललयतों के ललए जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 201. कर्ोरषी में एक िम्मि शैम्ू डालो और धषीरे-धषीरे 2-3 बूँद पानषी लमलाओ। 2. प्ेर् में एक कप दूध डालो। 3. अलग-अलग रंग लो। इनकी कुछ बूँदें दूध में जैसे मनिाहे वैसे डाल लो। 4. अब रुई या पतलषी लकड़षी के र् ु कड़े से शैम्ू के घोल को हलके से छ ू कर रंगतों की बूँदतों के बषीि में रखो। रंग तुम्ें रबखरते हुए नजर आएँगे। 5. सारे रंगतों के रबखरने के बाद प्ेर् में ड्ाइंग शषीर् या कागज को पानषी के ऊपर रख दो। पाँि सैकण्ड में बाहर लनकाल लो और पलर्कर जमषीन पर रख दो। कुछ मजेदार-सा हुआ? दो-तषीन कागज को इस तरह रंगने के बाद तुम देखोगे रक पैर्न्ल बनने कम हो गए हैं। पर कुछ नया रंग तुम्ें दूध में उभरता नजर आ रहा होगा। तो जब तक यह घोल खत्म नहीं होता है तब तक तुम इसमें बार-बार कागज डालते जा सकते हो। अन्त में हर एक कागज में तुम्ें कुछ नया हदखाई देगा। माव्लल्ड लमल्क पेपर जुगाड़ - दूध, मध्यम आकार की प्ेर्, कर्ोरषी, रुई या कोई पतलषी लकड़षी का र् ु कड़ा, शैम्ू, पानषी, कागज, वार्र कलर या पोस्र कलर चक मक जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 21पुराने दोस्त गौरैया सवदयों से हमारे िरों के आसपास फुदकते रहे हैं*। ये वबजली के खमभों, छतों के खपरैल या छत में लगे पंखों में अपने िोंसले बनाते आए हैं। हमारी रसोई, आँगन, खेतों या सडक के आसपास अपना भोजन तलाश करते आए हैं। जब गौरैया िोंसला नहीं बना रहे होते हैं या ननहे बचरों की देखरेख नहीं कर रहे होते हैं, उस समय ये समलूह में रहते हैं। ये बहुत शोर मराते हैं और तरह-तरह की बोवलयों का इसतेमाल कर आपस में बातें करते हैं। ये रीं-रीं करते हैं, रहकते हैं और र्र-प्र भी करते हैं। जब ये परेशान होते हैं या इनहें वकसी खतरे का आभास होता है तो ये तेज़ आिाज़ में वरललाते भी हैं। चूं-चूं करती... नर ि मादा गौरैया के रंगों के पै्न्ष अलग-अलग होते हैं। नर गौरैया का वसर (क्राउन) सले्ी, गद्षन के नीरे का वहससा (वबब) काला और गाल सफेद होते हैं। इनकी पीठ गहरे भलूरे रंग की होती है वजस पर काली ्धावरयाँ होती हैं। मादा गौरेया हलके भलूरे रंग की होती हैं। इनके ना तो सले्ी क्राउन होता है, ना काला वबब और ना ही सफेद गाल। * हम कहते हैं बाज़ वशकार करता है, वगद्ध उडता है, कौआ खाता है और गौरैया फुदकती है, जबवक हर वकसम की वरवडया के नर और मादा दोनों होते हैं। ज़ावहर है वक मादा कौआ खाती है और नर गौरैया फुदकता भी है। यहाँ हम नर और मादा गौरैया दोनों की बात कर रहे हैं, इसवलए हमने वलखा है वक गौरैया फुदकते हैं। फोर्ोग्ाफ: दषीपालषी शुक्ा जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 22फील्ड डायरषी के ललए… बाहर वनकलो और िर से वनकलने का समय ्ायरी में दज्ष कर लो। ढलूँढो, यवद तुमहें एक या एक से ज़यादा गौरैया वदखाई दें तो दज्ष कर लो वक तुमने उनहें कहाँ देखा — सडक पर, वकसी बगीरे में, वकसी अहाते की रारदीिारी पर, कूडे के ढेर पर रुगते हुए — सबसे पहले तुमने उस समलूह को कहाँ देखा? वगनो वक समलूह में वकतनी गौरेया हैं? कुछ देर के वलए धयान से उस समलूह को देखो। तुमहें वकतने नर ि मादा वदखाई वदए? कया तुमहें नर गौरैया की गद्षन के नीरे काला रंग वदखा? अनय जानकावरयों को दज्ष करना भी ज़रूरी है - जैसे जगह, तारीख, गौरैया को ढलूँढने की अपनी सैर शुरू ि खतम करने का समय और अनदाज़न तुमने वकतनी दलूरी तय की। (अगर तुम यह सैर हर हफते करते हो तो इन सब बातों से तुमहें यह पता रल सकता है वक गौरैया उस इलाके का वकस तरह इसतेमाल करते हैं)। िौकन्नषी, अपना लसर ऊँिा रकए हुए अनुवाद: करवता रतवारषी बचिे को िुगगा खखलाते हुए दो नर आक्ामक होते हुए यहद मैं कोई गौरैया नहीं ढ ू ँढ पाऊँ तो? यवद तुमहें कोई गौरैया नहीं वदखे और केिल दलूसरे पक्षी ही नज़र आएँ, तो यह भी बहुत महतिपलूण्ष जानकारी है। कई जगहों पर गौरैया की संखया में तेज़ी-से कमी आ रही है। और इसीवलए, ना केिल यह जानना अचछा है वक िो कहाँ वदखाई देते हैं, बवलक यह जानना भी अचछा है वक िो कहाँ वदखाई नहीं देते। गौरैया की संखया में कमी आने के कई कारण हो सकते हैं — जैसे पहले की तुलना में िर बनाने के वलए जगह की कमी, बडों के वलए कम दाने ि बचरों के वलए कम की्। प्ररतयोचगता एक अन्धविश्िास के अनुसार, गौरैया का उडकर िर में आना (खासतौर पर िर में िोंसला बनाना) एक शुभ संकेत माना जाता है। अपने पवरिार के बुज़ुग्ष लोगों से पलूछो वक कया िे गौरैया के बारे में ऐसी कोई और ्धारणाएँ जानते हैं? यवद तुमहें भी ऐसी वकसी मानयता के बारे में पता रले तो chakmak@eklavya.in पर हमें भेजो और पवक्षयों को पहरानने की एक फील् गाइ् जीतने का मौका पाओ। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 23मुन्नू की मनूँछ ें मेंढकों के मुवखया मुननलू की मलूँछें बडी-बडी थीं। िनी, लमबी, िुँिराली मलूँछों पर ताि देकर मुननलू हँसते रहते। जो उनकी मलूँछों की बढाई करता, उछलकर उसकी पीठ थपथपा देते। कोई मलूँछ को मुननलू की पलूँछ कहता तो उसको बडी-बडी आँखों से िलूरकर ्रा देते। एक बार उनहोंने शहद खाया। शहद उनके हाथों में वरपका रह गया। अरानक वकसी को आता देखकर िो मलूँछों पर ताि देने लगे। िुँिराली मलूँछों पर शहद िाले हाथ फेरते रहने से मलूँछें कडी होती गईं। अपनी जगह खडी हो गईं। अब मौज में आकर िो मलूँछें मरोडने लगे। बढाई करने िाले तो िाहिाही करते थक ही नहीं रहे थे। मरोडते- मरोडते उनकी मलूँछें ही उखड गईं। उस वदन के बाद से आज तक मुननलू की मलूँछें नहीं आईं। चक मक वषीरेन्द्र दुबे चित्र: लनलेश गहलोत जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 24इन्सानयों के आ्पसा् रहने वसाले जसानवर आलेख व चित्र - जजतेश शेल्े व काल ू राम शमा्ल अपने आसपास गली-मोहललों, पाक्ष, बस-रेलिे स्ेशन ि अनय साि्षजवनक सथानों, और तो और अपने िर में भी हम कुछ जनतुओं को पाते हैं। कमरे में टयलूबलाइ् राललू करते ही वछपकली तेज़ी-से उडते हुए की् पर झपट्ा मारती है। रसोईिर में कॉकरोर ि मकखी के दश्षन हो जाते हैं। यहाँ तक वक महानगरों की बडी-बडी इमारतों में और बस स्ेशन, रेलिे स्ेशन जैसी इनसानी भीडभाड िाली जगहों में भी तुमहें कुछ जानिर वमल जाएँगे। ये जानिर मानिीय हरकतों के आदी हैं, लेवकन पालतलू नहीं हैं। तुम जानते ही हो वक गाय, कुत्ा, िोडा, भेड, बकरी, ऊँ्, मुगमी, बत्ख, वबलली, सलूअर आवद पालतलू जानिरों की श्रेणी में आते हैं। ये ऐसे जीि हैं वजनहें इनसानों ने सभयता के विकास के साथ पालतलू बनाया। इनहें पालतलू इसवलए बनाया कयोंवक इनसे दलू्ध, अण्े, बाल िगैरह वमलते हैं। इनहें सिारी के, खेत जोतने के, खुद की सुरक्षा के काम लाया जा सकता है। अपने घर-पररवसार और आ्पसा् पसाए जसाने वसाले जसानवरयों को देखो। इनमें रकतने जसानवर पसालतू हैं और उन्े हमें क्सा-क्सा ममलतसा है? जंगली जानिर, इनसानों से दलूर रहना पसनद करते हैं। पालतलू और जंगली, इन दोनों श्रेवणयों में तुम गहरा फक्ष देख सकते हो। यह फक्ष मानिीय हसतक्षेप के आ्धार पर वकए गए हैं। शेर, तेनदुआ, हाथी, वहरण आवद जीि और तीतर, कठफोडिा जैसे पक्षी केिल जंगलों में ही रहते हैं। इनमें से कुछ जैसे शेर, हाथी आवद सक्षस या वरवडयािर में भी वमल जाते हैं। मगर िहाँ इनहें कैद करके रखा जाता है। इनसानों के आसपास रहने िाले जीिों की एक श्रेणी और है। इस श्रेणी में िो जंगली जीि हैं जो पालतलू तो नहीं कहे जा सकते, मगर इनसानों के करीब, वनक्ता से रह लेते हैं। जनतुओं की ये प्जावतयाँ अिसर का फायदा उठाते हुए इनसानी सभयाताओं के साथ फलती-फूलती गईं और अपना भौगोवलक विसतार भी करती गईं। पालतलू जानिरों की तरह इन जनतुओं से हमें कुछ वमलता नहीं है। बवलक इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो हमें काफी परेशान करते हैं या नुकसान पहुँराते हैं। जैसे वक जलूं, कॉकरोर, िरेललू मकखी, मचछर, रलूहे आवद। गौरैया, मैना, नेिला आवद अनेक जीि भी इस समलूह में शावमल हैं लेवकन ये हमें नुकसान नहीं पहुँराते। इनहें वसनैनथ्ोप कहते हैं। कुछ और वसनैनथ्ोप जीिों की सलूरी बनाकर हमें ज़रूर भेजना। इनमें तुम पेड-पौ्धों को भी जोड सकते हो। रडज ाइन: इ लश ता देबनाथ रब स् ा स जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 25यहाँ कुछ ऐसे हषी जानवरतों की तस्वषीरें प्रस्ुत हैं जो इन्सानतों के आसपास आसानषी से रह लेते हैं। चक मक गौरैया हमारे आसपास हषी बड़े मजे से रहते हैं। भैंस पालतू पशु है। बगुला भैंस के बदन पर पाए जाने वाले कीड़तों को खाता है। शहर में सड़कतों पर सुबह-सुबह कौवे, मैना और गाय! मक्षी से तो हम सभषी पररचित हैं। ये हमारे आसपास लभनलभनातषी रहतषी है। शहरतों में प्रवासषी चिरड़या, रोजषी पेस्र का जमावड़ा! बन्दर कभषी-कभषी हमारे घरतों की छततों पर आ जाते हैं। यह साव्लजलनक और धालम षि क स्लतों पर भषी खूब हदखाई देते हैं। यहाँ इन्ें खाने को लमल जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण तुम भी खोज सकते हो जहाँ जानिरों को पालतलू तो नहीं बनाया जाता पर िे हमारे आसपास वदखते रहते हैं। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 26उस वदन भोजन बडा अचछा रहा। गोपी और बािा ने सोरा वक लोगों के रले जाते ही िे गाना-बजाना शुरू करेंगे। दारोगाजी ने सोरा वक गोपी और बािा के सोते ही िे आग लगिाएँगे। िे बडी कोवशश करने लगे वक िो दोनों सो जाएँ। जब दारोगाजी के हािभाि से उन दोनों को यह सपष् हो गया वक उनके न सोने तक िे िहाँ से जाएँगे नहीं, तो गोपी बािा के साथ वबसतर पर ले्कर खरचा्े भरने लगा। कुछ देर में गोपी और बािा ने देखा वक सब लोग रले गए थे, कोई आिाज़ नहीं आ रही थी। थोडी देर और इनतज़ार के बाद जब लगा वक बागीरा वबलकुल खाली हो गया है, तब दोनों बरामदे में आए और ढोल बजाकर गाना शुरू कर वदया। इसी बीर दारोगाजी ने अपने लोगों से कहा, “तुम सब हर दरिाज़े पर अचछी तरह आग लगाओगे; खबरदार, अचछी तरह आग लगने से पहले कोई िापस मत लौ्ना।” िे खुद सीवढयों पर आग लगाने गए। अचछी-खासी आग लग गई। दारोगाजी सोर ही रहे थे वक अब भाग रलें। ठीक उसी िकत बािा का ढोल बज उठा, गोपी ने गाना शुरू कर वदया। अब दारोगाजी और उनके लोगों के वलए भागना समभि न था, सबको जलकर मरना पडा। इसी बीर आग भडकती देखकर, गोपी और बािा भी अपने जलूते पहन, ढोल और थैला वलए िहाँ से नौ दो गयारह हो गए। उस वदन की आग में दारोगाजी तो जलकर मरे ही थे, उनके साथ आए लोगों में बहुत कम ही बर पाए थे। जब उन लोगों ने जाकर महाराज को इस ि्ना की खबर सुनाई तो उनहें बडी िबराह् हुई। दलूसरे वदन और दो-रार लोग राजसभा में आए और बोले वक िे आग का तमाशा देखने िहाँ गए थे; तब उनहोंने बडा अजीब-सा संगीत सुना और दोनों भलूतों को अपनी आँखों से शलूनय में उड जाते देखा। यह सुनकर राजाजी तो यलूँ काँपने लगे वक उस वदन बेरारे सभा में बैठ न सके। जलदी से महल के अनदर आकर भलूत के ्र से दरिाज़े बनद कर रजाई में वछपकर साँस लेते रहे। वफर एक महीने तक बाहर नहीं वनकले। गोपी गवैया बाघा बजैया * भाग - 5 अभषी तक तुमने पढ़ा - गोपषी और बाघा के गाने-बजाने से परेशान गाँववाले उन्हें गाँव से लनकाल देते हैं। जंगल में दोनतों की मुलाकात होतषी है। महाराज को अपना गाना-बजाना सुनाने लनकले गोपषी-बाघा को रास्ते में भूततों की र्ोलषी लमलतषी है, जो उन्हें एक जादुई थैलषी और दो जोड़षी जादुई जूते ईनाम में देतषी है। जूततों की मदद से दोनतों सषीधे महाराज के कमरे में पहुँि जाते हैं और पकड़े जाने पर कारागार से भाग लनकलते हैं। रफर थैलषी से राजसषी कपड़े मॉंगकर, पहनकर राजबाड़षी पहुँि जाते हैं। जहाँ महाराज दोनतों को दूसरे देश का राजा समझ लेते हैं। लेरकन जब उन्हें समझ आता है रक ये वहषी भूत हैं जो कारागार से भागे हैं, तो वे उन्हें बागानबाड़षी में बदि कर उसषी रात जलाने का लनण्लय लेते हैं। अब आगे... उपेन्द्ररकशोर रायिौधरषी अनुवाद: लाल् ू चित्र: लशवाश्त्मका लाला जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 27इ्धर गोपी और बािा उस आग में से वनकल भाग अपने िर के पास उस जंगल में आकर उतरे, जहाँ िे पहली बार एक-दलूसरे से वमले थे। इतनी ि्नाओं के बाद अपने माता-वपता से वमलने के वलए उनका जी मरलने लगा। जंगल में आते ही बािा बोला, "गोपी भैया, यहाँ हमारी पहली मुलाकात हुई थी न?" गोपी बोला, "हाँ।" बािा बोला, "तो ऐसी जगह आकर वबना गाना-बजाना वकए रले जाना कया ठीक होगा?" गोपी बोला, "ठीक कहा भैया। तो वफर अब देर कयों करें? अभी शुरू कर दो।" यह कहकर िे जी खोलकर गाने लगे। इसी बीर एक आश्रय्षजनक ि्ना हुई। ्ाकुओं का एक वगरोह हालला-नगरी के राजा का खज़ाना ललू्, उसके दो छो्े बचरों को रोरी कर भागकर इस ओर आ रहा था। राजा कई वसपावहयों सवहत उनका जी-जान से पीछा करते हुए भी उनहें पकड नहीं पा रहे थे। गोपी और बािा जब गा रहे थे, उसी िकत िे ्ाकू भी िन में से होकर गुज़र रहे थे। लेवकन िह गाना एक बार सुनने पर उसे अनत तक सुने वबना रले जाने का कोई उपाय न था, इसवलए ्ाकुओं को िहाँ रुकना पडा। सारी रात िह गाना- बजाना भी न रुका और ्ाकू भी िहाँ से वनकल न पाए। सुबह हालला के राजा ने आकर बडी आसानी से उनहें पकड वलया। इसके बाद जब उनहें पता रला वक गोपी और बािा के संगीत के गुण से ही उनहोंने ्ाकुओं को पकडा, वफर तो उनकी सेिा का कोई अनत नहीं रहा। राजकुमारों ने भी कहा, "वपताजी, ऐसा अदभुत संगीत हमने पहले कभी नहीं सुना, इनको साथ ले रलो।" इसवलए राजा ने गोपी और बािा को कहा, "तुम लोग हमारे साथ रलो। तुमहें पाँर सौ रुपये महीने की तनखिाह वमलेगी।" यह सुनकर गोपी ने हाथ जोडकर राजाजी को नमसकार वकया और कहा, "महाराज, कृपया हमें दो वदनों के वलए छुट्ी दें। हम अपने माता-वपता से वमलकर उनकी अनुमवत लेकर आपकी राज्धानी में आ जाएँगे।" राजा बोले, "अचछा, अगले दो वदन हम इस िन में ही आराम करेंगे। तुम लोग अपने माँ-बाप से वमलकर दो वदनों बाद हम से यहीं वमलो।" गोपी को वनकाल भगाने के बाद से उसका वपता उसके वलए बडा ही दुखी था, इसवलए उसे लौ्ते देख उसे बडी खुशी हुई। पर बेरारे बािा के भागय में यह सुख नहीं था। उसके माता-वपता कुछ वदनों पहले मर रुके थे। गाँि के लोगों ने जब उसे वसर पर ढोल लेकर आते देखा तो कहा, "अरे रे! िह साला बािा लौ् आया है, वफर हमें परेशान कर छोडेगा, मारो साले को!" बािा ने नम्रतापलूि्षक कहा, "मैं वसफ्ष अपने माँ-बाप से वमलने आया हलूँ; दो वदन ठहरकर रला जाऊँगा, बजाऊँगा- िजाऊँगा नहीं।" पर यह बात सुने कौन? उनहोंने दाँत पीसकर उसे माँ-बाप की मौत की खबर सुनाई और िे लावठयाँ लेकर उसे मारने आए। िह जी-जान बराकर दौडा। लेवकन उनहोंने पतथर मार-मार उसके पैर तोड वदए, वसर फोड वदया और िह खलून से लथपथ हो गया। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 28चक मक जारी... गोपी अपने िर के आँगन में बैठ अपने वपता के साथ बातरीत कर रहा था, तभी उसने देखा वक बािा पागलों-सा लँगडाते- लँगडाते दौडते हुए आया। उसके कपडे फ्कर रीथडे हो गए थे और खलून से लाल हो गए थे। िह तुरनत दौडकर बािा के पास गया और पलूछा, "यह कया हुआ? तुमहारी ऐसी हालत कैसे हुई?" गोपी को देखते ही बािा खलूब मुसकराया। वफर उसने हाँफते हुए कहा, "भैया, वकसी तरह बरकर आया हलूँ! ज़रा देर और होती तो बेिकूफों ने मेरा ढोलक ही तोड देना था!" गोपी के िर पर गोपी की देखभाल और उसके माँ-बाप के पयार से बािा के दो वदन वजतना हो सके, सुखपलूि्षक ही बीते। दो वदनों बाद गोपी अपने माँ-बाप से विदा लेते हुए कह गया, "तुम लोग तैयार रहना। मुझे वफर छुट्ी वमलते ही मैं तुमहें ले जाऊँगा।" उसके बाद कई महीने बीत गए। गोपी और बािा अब हालला के राजा के िर बडे सुखपलूि्षक रहने लगे। देश-विदेश में उनका नाम फैल रुका था - "ऐसे उसताद कभी नहीं हुए, होंगे भी नहीं!” राजाजी उनको बडा पयार करते। उनके गीत सुने वबना एक वदन भी नहीं रह सकते। अपने सुख-दुःख की बातें सब गोपी को बतलाते। एक वदन गोपी ने देखा वक राजाजी के रेहरे पर बडी उदासी छाई हुई है। िे लगातार वकसी सोर में ्लूबे जा रहे हैं, जैसे िे वकसी बडी विपदा में हों। आवखर उनहोंने गोपी से कहा, "गोपी! बडी मुसीबत में पड गया हलूँ, पता नहीं कया होगा। शुं्ी-नगर का राजा मेरा राजय छीनने आ रहा है।" शुं्ी का राजा िही था, वजसने गोपी और बािा को जलाकर मारना राहा था। उसका नाम सुनते ही गोपी के वदमाग में एक बवढया राल सलूझी। उसने राजाजी से कहा, "महाराज ! आप इसकी वरनता न करें, आप इस गुलाम को हुकम दें, मैं इसे एक मज़ाक बनाकर छो्लूँगा।" राजा ने हँसकर कहा, "गोपी, तुम गिैये-बजैये हो, जंग-लडाई के पास नहीं फ्कते, इसके बारे में तुम कया समझोगे? शुं्ी के राजा की सेना बहुत बडी है, मैं उसका कया वबगाड सकता हलूँ?" गोपी बोला, "महाराज, हुकम हो तो एक बार कोवशश कर सकता हलूँ। कोई नुकसान तो नहीं है।" राजा बोले, "जैसी तुमहारी मज़मी, तुम कर सकते हो।" यह सुनकर गोपी खुशी से फूला न समाया, उसने बािा को बुलाया और सलाह-मशविरा शुरू वकया। गोपी और बािा उस वदन बडी देर तक सोर-विरार करते रहे। बािा जोश से भरपलूर था। िह बोला, "भैया, अब हम दोनों वमलकर कुछ न कुछ करके ही रहेंगे। मुझे बस एक बात का ्र है। अगर अरानक जान बराकर भागने की ज़रूरत हो, तो शायद मैं जलूतों की बात भलूलकर आम लोगों की तरह दौडने लगलूँगा और वफर मुझे बुरी तरह मार पडेगी। याद है, कैसे उस बार हमारे गाँि के बेिकूफों ने मेरा हुवलया ही वबगाड वदया था!" खैर, गोपी के समझाने पर बािा का ्र कम हुआ। दलूसरे वदन से उनहोंने काम शुरू वकया। कुछ वदनों तक िे रोज़ रात को शुं्ी जाते रहे, और राजबाडी के आसपास िलूमकर िहाँ की खबरें इकटठी करते रहे। जंग का जैसा इनतज़ाम उनहोंने देखा, िह बडा भयंकर था; ऐसा इनतज़ाम लेकर अगर हालला में जा पहुँरें, तो बरना मुवश्कल है। राजा के मवनदर में रोज़ ्धलूम्धाम से पलूजा हो रही है। दस वदनों तक इस तरह पलूजा करने के बाद देिता को खुश कर िे हालला- नगर को रिाना होंगे। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 29Next >