< Previousक्यों-क्यों? क्ों क्ो में हमकारका इस बकार िका सवकाल थका, “यदद बड़ी संखयका में नबल्लियाँ ितम हो जकाएँ तो कयका होगका, और कयों?” यह सवकाल एि ऐसी स्थिनत िी िल्पिका िरिे िी बकात िरतका है, ज़जसिी सम्काविका िुछ जकािवरों िे ज़लए तो तय थी। तीसरी से लेिर दसवीं िे बच्ों िे िुछ जवकाब हम यहाँ दे रहे हैं। तुम्कारका मि िरे तो तुम भी हमें अपिका जवकाब ज़लि भेजिका... ••••••••• पतका है, एि ददि िेत से इतिे सकारे मोटे-मोटे चूहे नििले। नबलिुल तकारे ज़जतिे। ये बकात सुिते ही सकारी नबल्लियाँ िुश हो गईं। सब नबल्लियाँ चूहों पर झपट्का मकार उन्हें चट िर गईं। लेकिि ओवरडोज़ होिे िे िकारण उििका पेट िरकाब हो गयका और डॉक्टर िकािका भी बीमकार थे इसीज़लए सभी नबल्लियाँ चल बसीं। सभी लोग बह ु त उदकास ह ु ए। लेकिि सुमि िुश थी, क्ोंकि जब उसे िोई मौसी बुलकातका तो उसे नबलिी मौसी वकाली फीज़लंग आती थी। अब वह िुश है क्ोंकि नबलिी तो है ही िहीं! लनशा गुप्ा, दसवीं, बाल भवन रकलकारषी, पर्ना, रबहार •••••••••• नबलिी चूहे मकार िे िका जकाती है। नबलिी घर िका सकारका द ू ध पी जकाती है। हमकारे घर िका िुिसकाि हो जकातका है। नबलिी सभी घर िी मछज़लयाँ चोरी िर िका जकाती है। नबल्लियाँ वफकादकार होती हैं। लकी शमा्ल, पाँिवीं, अवध पषीपुल्स फोरम, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश ••••••••• अगर नबल्लियाँ ि हों तो चूहे अपिका रकाज चलकािे लगेंगे और जहाँ जकाएँगे वहाँ पकाटटी िरेंगे। चूहों िो क्का पतका कि अच्का व िरकाब िपड़का िौि-सका है! वो तो िोई भी िपड़का लेंगे और उसे िुतर िे रि देंगे। नबल्लियाँ िबर ि लें तो चूहका भी डॉि बििर घूमेगका और िेतों िो िष्ट िर देगका और किसकािों िो िूब तंग भी िरेगका। िई लोग िहते हैं कि अगर िकाली नबलिी रकास्का िकाट ले, तो ददि िरकाब जकाएगका। लेकिि ऐसका िुछ िहीं होतका है। अगर ददि िरकाब जकािे वकालका होतका है तो िरकाब ही जकातका है। इसमें सब नबलिी िो फँसका देते हैं। हर् षि त राज, छर्वीं, बाल भवन रकलकारषी, पर्ना, रबहार •••••••••• • नबल्लियाँ ितम हो जकाएँगी तो अगली पीढ़ी नबलिी िो देि िहीं पकाएगी। • चीि में एि िैट मीट फेस्टिवल होतका है। इसिे ज़लए हर सकाल 2 से 3 लकाि नबल्लियाँ मकारी जकाती हैं। यदद नबल्लियाँ ितम हो गईं तो चीि में िैट मीट फेस्टिवल िहीं हो पकाएगका। • हांगिांग में िहीं-िहीं सफेद नबलिी िो भगवकाि मकािते हैं, तो उििे तो भगवकाि ही ितम हो जकाएँगे। • नबल्लियाँ िहीं रहेंगी तो िुत्े-नबलिी िी लड़काई भी ितम हो जकाएगी। • कफर नबलिी पर पोयम बििका भी बन्द हो जकाएगी। • चूहों िका जीवि लम्का हो जकाएगका और उन्ें नबलों में िहीं छुपिका पड़ेगका। • नबलिी और साँप िी लड़काई िहीं हो पकाएगी। • आगे िे लोग नबलिी िी म्काऊँ-म्काऊँ िहीं सुि पकाएँगे। • पज़षियों िी संख्का में वृद्धि होगी क्ोंकि नबलिी पज़षियों िो भी पिड़िर िका जकाती है। अंरकत, सुरेन्द्र कुमार, राहत परवषीन, गौरव, रवकास, रवशाल और ऋरतका, ललनिंग ररसोस्ल सेंर्र, अजषीम प्रेमजषी फाउण्डेशन, जयपुर, राजस्ान •••••••••• नबलिी एि पकालतू जकािवर है लेकिि िभी-िभी वह जंगली भी होती है। अगर नबल्लियाँ िहीं होंगी तो चूहे बह ु त सकारे हो जकाएँगे। वो हमकारी कितकाबें िका लेंगे तो कफर हम स्ूल िहीं जका पकाएँगे। सौरव सरकार, पाँिवीं, लमलनपुर एल पषी स्ूल, माजुलषी, असम जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 10अवध पषीपुल्स फोरम, के बच्े •••••••••• हमकारे घर पर ज़जतिे चूहे हैं नबलली उन्हें मकार देती है और हमकारे घर िका द ू ध भी पी जकाती है। नबलिी िका होिका इसज़लए ज़रूरी है। नबलिी िो मकारिका िहीं चकादहए। पकालतू नबल्लियाँ होती हैं और जंगली भी होती हैं। नबलिी चोरों िो भगकाती है। नबलिी हमकारे घर में ज़रूरी है। हर् षि त रावत, दसवीं, ग्ामर अकादमषी, अवध पषीपुल्स फोरम, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश ••••••••• नबल्लियाँ गकायब होंगी तो िुत्ों िो िकािका िहीं नमलेगका। लोगों िे घर िका द ू ध बचेगका। जो लोग मकािते हैं कि नबलिी अगर रकास्े से नििले तो उििका रकास्का िट जकातका है, उििका यह अन्धनवश्कास ितम हो जकाएगका। नबल्लियाँ िहीं रहेंगी तो चूहे भी बचेंगे और गणेश जी भी िुश होंगे। नबल्लियाँ ितम होंगीं तो भी अच्का है, िहीं होंगी तो भी अच्का है। नबल्लियाँ ितम इसज़लए भी िहीं होिी चकादहए क्ोंकि द ु नियका िका एि जकािवर िम हो जकाएगका। नबल्लियाँ ितम होिी भी चकादहए क्ोंकि वो घर िका द ू ध पी जकाती है। सकजज़यों और सकारे िकािे में भी मुँह डकाल देती हैं। कफर उस िकािे िो फेंििका पड़तका है और हमें पकाप लगतका है। इसीज़लए नबल्लियाँ होिी भी चकादहए और िहीं भी होिी चकादहए। वल्लभषी महाजन, आठवीं, महेश्वर, खरगोन, मध्य प्रदेश ••••••••• अगर सकारी नबल्लियाँ ितम हो जकाएँ तो स्वग्द में हलचल मच जकाएगी। शंिर जी िो एि ददि में लकािों लीटर द ू ध चढ़ेगका। गणेश भगवकाि ददि-रकात पकाटटी िरेंगे। धरती पर भी िोई घणटी िहीं माँगेगका और लोहकार िका रोज़गकार ितम हो जकाएगका। द ु नियका में सबिका ददि अच्का ही बीतेगका क्ोंकि िोई रकास्का िहीं िकाटेगका। जैनुलब्षीन, पहलषी, अवध पषीपल्स फोरम, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश ••••••••• •••••••••• अगर नबल्लियाँ ि हो तो क्का होगका? क्का होगका, घर िका िकािका बच जकाएगका। धरती िका बोझ िम होगका, लेकिि चूहों िो परेशकाि िौि िरेगका? चुदहयका िी चुईं-चुईं बढ़ जकाएगी हमें परेशकाि िर जकाएगी िपड़े हमकारे वो िुतर जकाएगी कफर हम बोलेंगे नबलिी मौसी आजका िका, चूहों िो अपिका कडिर बिका जका िका। सुरप्रया कुमार, बाल भवन रकलकारषी, पर्ना, रबहार •••••••••• अगर एि भी नबलिी िहीं होगी तो कफर चूहों िका रकाज चलेगका। मुझे नबलिी पसन्द िहीं है क्ोंकि वो चूज़ों िो िकाती है। लेकिि अगर नबलिी िहीं रहेगी तो कफर चूहे हमकारका िकािका िका जकाएँगे। हम भूिे रहेंगे और हम इन्सकािों िे ज़लए बह ु त बड़ी समस्का िड़ी हो जकाएगी। गररमा दास, पाँिवीं, नातुन खज्लनपुर एल पषी स्ूल, माजुलषी, असम •••••••••• जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 11िह तीन भाइयों में सबसे छो्ा था। िर-पवरिार, मोहलले- पडोस ने तीनों भाइयों की एक जैसी परिवरश की, पर वपं्ु औरों के जैसा नहीं वनकला। जहाँ दोनों भाइयों ने खलूब शैतावनयाँ कीं, िहीं वपं्ु सी्धा-सरल बना रहा। दोनों भाई बडों की बातें अनसुनी करते, पर वपं्ु सबकी बातें धयान से सुनता। बडे भाई और उनके दोसत एक ही समय में कई- कई खेल खेलते, पर वपं्ु अकेले ही वकसी ना वकसी काम में लगा रहता। और जब िह वकसी काम में लग जाता तो वफर समय भी उसके बीर में नहीं आता। सकूल में वपं्ु जब वगनती समझने की ्धुन में था, तब उसके साथी पहाडे पर छलाँग लगाते हुए जोड-ि्ाि के सिाल कर रहे थे। वपं्ु जब अक्षर और मारिाओं में आिाज़ ढलूँढ रहा था तब बाकी के दोसत, भाई शबदों और िाकयों की वरललाह् में नया शोर रर रहे थे। इस तरह सकूल वपं्ु के साथ दलूर तक नहीं रल पाया। अब वपं्ु ने अपने आसपास की दुवनया को ्धुन लगाकर समझने की कोवशश की। वदककत यह थी वक यह सब समझने के वलए उसके साथ कोई नहीं होता था, वसिाए उसकी माँ के। िह हमेशा माँ के साथ रहता। माँ ओखली में अनाज कू्तीं तो िह मलूसल के ऊपर-नीरे आने-जाने की लय को आँखों से पकडता। माँ िट्ी पीसतीं तो कभी िह पा् पर बैठी रीं्ी को िलूमते देख खुश होता, तो कभी माँ की रलूवडयों के गीत सुनता। िह माँ के कामों में हाथ भी बँ्ाता जैसे, कुएँ से पानी लाना, गोबर के कण्े थोपना और रलूलहा फूँकना। वपं्ु को हर िकत अपने साथ रखने िाली माँ एक वदन अरानक ही उसे अकेला छोडकर बहुत दलूर रली गईं। मुकेश मालवषीय चित्र: शुभम लखेरा रप ं र् ु पेपरषी जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 12भाई जलदी ही बडे हो गए और काम-्धाम में लग गए। एक भाई ने पास के शहर में एक दुकान खोल ली। कुछ वदनों बाद दलूसरा भाई भी उसमें हाथ बँ्ाने लगा। दुकान बडी होती गई। भाइयों की हैवसयत भी बढी और उनका पवरिार भी बडा हो गया। वपं्ु भाइयों और उनके नए पवरिारों से छलू्ता गया। वपं्ु गाँि और िर के काम करने लगा। उसके काम तो बस उसकी मज़मी से रलते। इसवलए वपं्ु के काम की कीमत कभी पैसों में नहीं आँकी जाती। वपं्ु अपने गाँि के वजस िर या खेत में होता, िहीं वकसी ना वकसी की मदद कर रहा होता। वफर एक समय ऐसा आया वजसने वपं्ु को अपने गाँि में ही नहीं, आसपास के पाँर गाँिों में महतिपलूण्ष बना वदया। एक काम ने उस पर भरोसा जताया। इस काम को वपं्ु इतनी वशददत से करता था वक कुछ ही वदनों में िह ‘वपं्ु पेपरी' के नाम से आसपास के पाँर- छह गाँिों में मशहलूर हो गया। इन गाँिों में रोज़ सुबह लोग बेसब्री से उसका रासता देखते, पलूछते रहते वक ‘वपं्ु पेपरी' आया वक नहीं। हुआ यलूँ वक जब वपं्ु के भाइयों की दुकान बडी से और बडी होती गई, तो रात को दुकान बनद करके गाँि िापस आने पर उनको दुकान की वरनता सताती। दुकान की वरनता जब ज़यादा बढ गई तो उनहें वपं्ु का खयाल आया। भाइयों ने वपं्ु को कहा वक अपनी दुकान रात में सलूनी रहती है। तुझे रात में दुकान की रखिाली करनी है। भाइयों ने कहा तो वपं्ु को दुकान को अपना समझने में कोई वदककत भी नहीं हुई। अब िह रोज़ शाम होते ही गाँि से शहर साइवकल से जाता। रात भर चक मक दुकान की रखिाली करता और सुबह होते ही गाँि िापस आ जाता। वपं्ु को इस काम पर बहुत फक्र था। रासते में दो-तीन गाँि और पडते थे। इनसे गुज़रते हुए वपं्ु की गद्षन वज़ममेदारी के अहम से ऊँरी रहती। इन गाँिों में अभी कुछ वदनों से एक-दो नई शुरुआत हो रही थीं। गाँि की आकवसमक ज़रूरतों के वलए यहाँ एक-दो छो्ी दुकानें खुल गई थीं। इन दुकानों पर शहर से पेपर (अखबार) आता था। गाँि के कुछ िरों में भी यह पेपर आना शुरू हुआ था। पर वदककत यह थी वक वकसी गाँि में पाँर-सात पेपर बाँ्ने कौन पेपर िाला आएगा। इसवलए गाँि में यह पेपर कभी दलू्ध बेरने गए दलू्धिाले, तो कभी शहर से आने िाले मास्र जी के हाथों दोपहर तक आता। पेपर पढने की लत गाँि के लोगों को ्धीरे-्धीरे लग रही थी। इ्धर कुछ वदनों से सुबह-शाम गाँि िाले वपं्ु को आते-जाते देख रहे थे। सुबह-सुबह शहर से गाँि की ओर आने िाला िह पहला वयवकत होता। पता नहीं कैसे एक वदन ये पेपर वपं्ु लेकर आ रहा था। इतनी सुबह पहली बार गाँि में पेपर आया था। गाँि िालों ने अपने अनदाज़ में पेपर से ज़यादा वपं्ु का सिागत वकया। वकसी ने अपने िर में उसे राय वपलाई, तो वकसी ने उसके पलूरे पवरिार के हालराल पलूछे। इस तरह कुछ ही वदनों में आसपास के इन गाँिों में वपं्ु का नाम और काम अपना-अपना सा हो गया। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 1312 3 489 7560नषीिे संख्ाओं के कुछ क्म हदए गए हैं। हर क्म में िार-पाँि संखयाएँ हैं। तुम्ें क्म की अगलषी संखया पता करनषी है। हर क्म को बनाने में रकसषी लनयम का उपयोग हुआ है। लनयम का पता लगा लो तो क्म को तुम आगे बढ़ाते जा सकते हो। उदाहरण के ललए 1, 2, 3, 4, 5,... के क्म में अगलषी संखया है 6। इस क्म का लनयम है रक 1 से शुरू करके हर अंक में एक जोड़ना है। इस तरह अगलषी संखया बनतषी है। शुरुआत करते हैं कुछ आसान क्म से। तो बताओ इनकी अगलषी संखया - अक्सर संख्ाओं के रकसषी क्म को देखकर हषी हमें एक अदिाजा लग जाता है रक लनयम क्ा है। पैर्न्ल को पहिानने की हमें छ ु र्पन से एक आदत होतषी है। पहले क्म में पेंलसल से काम करने की शायद जरूरत न पड़षी हो। बस हर संखया में 2 जोड़ते जाओ और अगलषी संखया का पता िल जाता है। यहषी लनयम है - 3+2=5, 5+2=7, 7+2=9, 9+2= 11 जवाब है - 11 संख्ाओं का दूसरा क्म 5 का पहाड़ा है। 5x1, 5x2, 5x3, तो अगलषी संखया होगषी 5x4=20। तषीसरा क्म प्राकृत संखयाओं (नेिुरल नम्बस्ल) के वग्ल से बनता है। 1x1, 2x2, 3x3, 4x4, तो अगलषी संखया होगषी 5x5=25। िौथे क्म से हम थोड़षी मुश्किल में पड़ जाते हैं। क्म अब थोड़ा करठन होते जा रहे हैं और लसफ्ल देखकर इनको पूरा करना मुशश्कल हो सकता है। तो िलो, एक तरषीका सषीखते हैं जजससे यह काम कुछ आसान हो जाए। 3 5 7 9 ? 5 10 15 ? 1 4 9 16 ? 3 5 8 13 21 ? 1 8 27 64 125 ? जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 14तो, पहले क्म के ललए हमारषी ताललका कुछ ऐसषी होगषी - 13579 2222 रडजाइन: इलशता देबनाथ रबस्ास संख्ाओं के तषीसरे क्म को लेने पर ताललका कुछ इस तरह बनतषी है- 14916 357 22 यहाँ जवाब है - 25 क्म 4 व 5 के जवाब तुम्ें पेज 42 पर लमलेंगे। ताललका का इस्ेमाल कर तुम भषी संख्ाओं का अपना कोई क्म बना सकते हो और अपने दोस्तों से उसे पूरा करने को कह सकते हो। हमें ललखकर बताना रक ऐसा करने में मजा आया या नहीं। अब िूँरक आखखरषी लाइन में लसफ्ल 2 है। तो हम कह सकते हैं रक इस लाइन का पाँिवीं संखया भषी 2 हषी होगषी। इसे ललख लो। रफर पहलषी लाइन की अगलषी संखया ललखने के ललए दोनतों लाइनतों की पाँिवीं संखया को आपस में जोड़ लो। तो क्म की अगलषी संखया होगषी - 11 क्म को आगे बढ़ाने के ललए पहले आखखरषी लाइन, रफर दूसरषी लाइन और रफर पहलषी लाइन पूरषी करो। क्ा तुम्ें कुछ ऐसषी ताललका लमलषी? अब दूसरा क्म लेते हैं। इसकी ताललका है – 5101520 555 संख्ाओं के हर क्म के ललए एक ताललका बनाओ। सबसे पहले क्म की सारषी संख्ाएँ ललखो। अब क्म की दो-दो संखयाओं को आपस में घर्ाकर उनका अन्तर अगलषी लाइन में ललख लो। जैसे, पहले क्म में 3 - 1 = 2, 5 - 3 = 2, 7 - 5 = 2...। हमें ताललका को तब तक बढ़ाते रहना है जब तक लाइन की सारषी संख्ाएँ समान ना हो जाएँ, जैसे, 1, 1, 1, या 2, 2, 2, या 3, 3, 3, या... अगलषी संखया जानने के ललए रफर से दोनतों लाइनतों की तषीसरषी संखया को जोड़ लो। इस तरह से हमें जवाब लमलता है - 20 1 4 9 16 25 3 5 7 9 2 2 2 जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 15आइस्कीम के साथ िम्मि भषी खा लो! प्कास्टिि िचरे िी बढ़ती ह ु ई मकात्का से हम िकाफी परेशकाि हैं। िकासिर ज़सफ्द एि बकार इस्ेमकाल होिे वकाले प्कास्टिि से। इििे नविल्प हम ढूँढते आ रहे हैं। इसी िकारण हैदरकाबकाद िे िकारकायणका पीसकापती िे प्कास्टिि िी चम्मच व िाँटों िका एि नविल्प ढूँढ नििकालका है - ज्कार व गेह ू ँ िे आटे से बिे चममच व िाँटे। िकािका िकािे िे बकाद तुम इन्हें भी िका सिते हो। उन्हें यह बकात तब सूझी जब वे 5000 मीटर िी ऊँचकाई पर एि बकार ज्कार िी रोटी िकािे बैठे। रोकटयाँ इतिी सखत हो गई थीं कि उन्ोंिे चम्मच िी तरह उििका इस्ेमकाल कियका। आज िकारकायणकाजी और उििी पतिी िी इस रेज़सपी िे उििो देशभर में लोिकरिय बिका ददयका है। 37 साल बाद बनीं रडस्ो स्ार रूपका नबस्वकास गकाययिका बििका चकाहती थीं लेकिि िई िोज़शशों िे बकावजूद िकािकामयकाब रहीं। 1982 में उििे कपतकाजी छुदट्यों में पररवकार िो ििकाडका ले गए। वहाँ उन्होंिे इत्ेफकाि से उन्ोंिे बांगलका में ‘कडस्ो जैज़’ िे िकाम से गकािों िी एि एलबम बिकाई। ये उस समय िी लोिकरिय कडस्ो शैली में ररिॉद्द ह ु ए ज़जसिे ज़लए बप्ी लहरी और आशका भोंसले जकािे जकाते हैं। कडस्ो जैज़ िी थोड़ी बह ु त नबक्ी ह ु ई। कफर िोलिकातका आिर रूपका उसिे बकारे में भूल भी गईं। हकाल ही में उििे बेटे िे इंटरिेट पर उसे िोजका तो पतका चलका कि उसिी माँ िे वो गकािे यू ट्ूब पर अपलोड हैं और पुरकािका एलबम 500 पकाउण्ड (लगभग रु 45,000) में नबि रहका है। ददलचस्प बकात है कि रूपका िभी िकाइट क्लब िहीं गईं, यहाँ ति कि सलवकार-सकाड़ी िे अलकावका उन्होंिे िभी िोई और ड्ेस भी िहीं पहिी। लेकिि अब वो अपिे उस पुरकािे एलबम िे ज़लए मशह ू र हो गई हैं। यकािी कि िभी भी िुछ भी हो सितका है। तुम भषी जानो कुत्ततों को देखकर इतना प्ार क्तों आता है? िुत्ों िे पकास एि ऐसी चीज़ है ज़जसिे िकारण अक्सर उन्हें देििर हम कपघल जकाते हैं। ये उििे चेहरे िी एि मांसपेशी है। इसिका इस्ेमकाल िर वे अपिी भौंह िो उठकािर आँिें बड़ी िर लेते हैं। इससे उििका चेहरका मकासूम और उदकास ददििे लगतका है और हमें उि पर तरस और प्कार आ जकातका है। इस िोज िे पीछे एि िहकािी है। अमेररिका िे एि शेल्टर (जकािवरों िे आश्रम) में िुछ लोगों िे िुत्ों िे अजिनबयों से बतताव िका एि वीकडयो बिकायका। इसे बकारीिी से देििे पर पतका चलका कि 'पप्ी लुि' िका इस्ेमकाल िरिे वकाले िुततों िे किसी िो पसन्द आिे िी सम्काविका ज़्यकादका होती है। मज़े िी बकात है कि यह ह ु िर िुत्ों िे सबसे िरीबी ररश्ेदकार भेदड़यों में िहीं है। जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 16एक ज़माना था जब दुवनया में सारा उतपादन िर के दायरे में ही होता था – राहे िह खेती-बाडी हो या पशुपालन या वफर कारीगरी। दरअसल खेती करने को वगराती या गृहसती कहते थे (यानी िर रलाना)। तो यह कैसे हुआ वक हम आज िर को उतपादन और काम की जगह नहीं मानते हैं और काम को वसफ्ष दुकानों में, कारखानों में या दफतरों में होते हुए देखते हैं? सषी एन सुब्रह्मण्यम् चित्र: कनक शलश ‘मेरा काम खतम हो गया अब मैं िर जा रहा हलूँ।' ऐसी बातें हम अकसर सुनते हैं। या वफर यह भी सुनते हैं वक मेरी पतनी कोई काम नहीं करती है, वसफ्ष िर सँभालती है। जब हम ऐसी बातें कहते हैं तो हम यह मानकर रलते हैं वक काम िही है वजससे पैसों की कमाई हो। और यह काम आमतौर पर िर के बाहर, दुकान पर, कारखानों में, खेतों में या वफर दफतरों में होता है। इस कारण हम िर में होने िाले उतपादक काम को काम ही नहीं मानते हैं। जैसे, बचरों-बलूढाें या बीमारों की देखभाल, रोज़मरचा के काम जैसे, खाना बनाना, साफ-सफाई, कपडे ्धोना और सुख-दुख में एक-दलूसरे का साथ देना...। ये सब काम तब माना जाता है जब इनहें करने के वलए वकसी को हम िेतन देकर रखते हैं (जैसे नस्ष, रसोईए, ्धोबी िगैरह) या खुद िेतन के वलए इन कामों को करते हैं। जब िर में हम यह सब करते हैं, तो माना ही नहीं जाता है वक यह सब भी काम हैं। यह केिल बोलराल की समसया नहीं है, बडे- बडे अथ्षशासरिी जब राषट्ीय आय की गणना करते हैं तो िे भी िरेललू काम को वगनती में नहीं लेते हैं। िे तो मानते ही नहीं हैं वक िर में कोई उतपादक काम होता है। उनके वलए िर केिल खपत की जगह है, जहाँ लोग अपने कमाए हुए पैसे खर्ष करते हैं। घर में क्ा होता है ? जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 17नागालैण्ड के अंगामषी नागा घरः यहाँ महहलाएँ कपड़े बुनतषी हैं। आज से 50-100 साल पहले तक हम देखते हैं वक देश का अव्धकांश उतपादन खेती-बाडी में होता था। ज़यादातर सामान का उतपादन भी िरेललू कारीगरों विारा होता था। खेती करने िाले वकसान पवरिार वमल-जुलकर िर और खेतों में काम करते थे। इनमें बचरों से लेकर बलूढे और िरेललू जानिर जैसे गाय, बैल, कुत्े, बकरी आवद सभी शावमल होते थे। कुछ काम खेतों में होता था, तो कुछ िर पर। िर के रारों ओर की ज़मीन पर भी सबजी-भाजी, फल आवद उगाए जाते थे और खेती के वलए ज़रूरी खाद तैयार होती थी। रोज़ाना गाय-बैलों ि अनय जानिरों की सेिा भी करनी पडती थी। कुल वमलाकर वकसान का िर ही उतपादन की मलूल इकाई था। िर में वकसान पवरिार का भरण-पोरण होता था, अनाज आवद का उतपादन होता था और पालतलू जानिरों की देखभाल भी होती थी। िर केिल खाने-पीने, मनोरंजन या आराम करने की जगह न होकर उतपादन की इकाई भी था। लगभग यही बात कारीगरी के वलए भी लागलू थी। कारीगर पवरिार के सभी सदसय वमलकर उतपादन के अलग-अलग काम िर पर करते थे, और सामान बेरने का काम भी काफी कुछ िर से ही होता था। समाज में ऐसे बहुत कम लोग थे वजनके पास न खेती थी, न िरेललू कारीगरी, और वजनहें दलूसरों के िर या खेतों में अपनी सेिाएँ देनी पडती थीं। ये दवलत समाज के लोग थे – वजनके िरों में रोज़ाना रलूलहा भी नहीं जलता था। इनहें दलूसरों की जलूठन या बरा-खुरा खाना खाना पडता था। एक तरह से इनका जीिन ‘बडे लोगों’ के िरों से जुडा था। वकसान, कारीगर या दवलत पवरिार ये नहीं सोर सकते थे वक केिल िर के ियसक पुरुर उतपादन का काम करे और मवहलाएँ ि बाकी लोग केिल खाना पकाना या साफ-सफाई का काम करें। भले ही पुरुर हल रलाए, लेवकन मवहला को बीज बोने, रुपाई, वननदाई-गुढाई, क्ाई, खाद फैलाने चित्र: शुभम लखेरा जुलाई 2019 चकमक बाल विज्ान पत्रिका 18चक मक आवद कामों में हाथ बँ्ाना ज़रूरी था। भले पुरुर कुमहार रका रलाए, पर मवहला को वमट्ी लाना, उसे तैयार करना, म्के तैयार करना, पकाना आवद में मदद करना ज़रूरी था। बचरे भी हर तरह के काम करते थे। औद्ोगीकरण के बाद यह सब बदल गया। अब उतपादन बडे-बडे कारखानों में होने लगा, जहाँ पुरुर या मवहला मज़दलूरी के वलए काम करने लगे। वकसानी भी बदलने लगी। पहले जहाँ िर की खपत के वलए उतपादन होता था, अब अव्धकांश उतपादन बेरने के वलए होता है और लागत सब बाज़ार से खरीदी जाती है। बहुत से काम भी मशीनों विारा खेतों में हो जाते हैं, जैसे हािवेस्र से क्ाई। बहुत से देशों में छो्े वकसानों की जगह हज़ारों एकड के बडे-बडे फाम्ष बने वजनमें उतपादन कारखानों जैसा ही होता था। इन सब के रलते िर का सथान उतपादन में कम होता गया। अब िर को केिल रहने ि खाने-पीने की जगह माना जाने लगा। अनाज या सामान के उतपादन में मवहलाओं ि बचरों की या वफर पालतलू जानिरों की भलूवमका भी कम होती गई। अब िर में जो उतपादन होता है, जैसे खाना, वशक्षा, बीमारी में इलाज, साफ-सफाई, कपडे ्धोना आवद, लोगों को काम ही नहीं लगता है। लोग उसी काम को काम मानते हैं वजससे पैसों में आमदनी हो। िर केिल मनुषयों के उतपादन का सथान रह गया। यानी वक िर केिल बचरों के पैदा होने, उनकी परिवरश, बाहर काम करने िाले ियसकों की देखभाल, भोजन आवद की जगह बनकर रह गया। इस सबको िासति में उतपादन मानना रावहए, आवखर िर में पैदा की गई श्रम शवकत को ही तो मज़दलूर बाहर जाकर िेतन के वलए बेरता है। िर के सामान के उतपादन से अलग होने के कई पवरणाम हुए – लोगों का अपने ही काम पर वनयंरिण खतम हो गया, काम के महति को पैसों में ही तोला जाने लगा, िगैरह-िगैरह। इन पर बात कभी और। अमेररका के हजारतों एकड़ के फाम्ल - इन भषीमकाय कोरठयतों में अनाज रखा जाता है कपड़ा लमल में काम करतषी महहला कम्लिारषी एक सवाल तुम्हारे ललए, िुलनन्दा जवाब हम अगले अंक में छापेंगे। तुम्ारे पररवार के सभषी सदस्य बच्े-बूढ़े, अम्मा-बाबा, भाई-बहन, दादा-दादषी आहद पररवार के ललए कुछ न कुछ करते हतोंगे। तुम्ारषी राय में घर पर ये सब जो भषी काम करते हैं, उनके ललए इन्हें रकतने पैसे लमलने िाहहए और क्तों? यह रकम घर से बाहर जाकर कमाकर लाने वाले पैसतों से कम है या ज़ादा? 19Next >