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Srote - November 2017
- आवाज़ पैदा करते हैं, सुनते नहीं ये मेंढक!
- क्या मनुष्य का विकास जारी है?
- शार्क अनुमान से ज़्यादा जीती हैं
- चिम्पैंज़ी में भी अल्ज़ाइमर के लक्षण देखे गए
- हल्का-फुल्का, नज़रें चुराता न्यूट्रिनो
- जेंडर छवियां बहुत कम उम्र में बनने लगती हैं
- पारिजात, हरसिंगार और बाओबाब
- भाप बनकर उड़ते पानी से ऊर्जा
- पुरुषों के लिए प्रजनन-रोधक गोली
- सौर ऊर्जा के दोहन के लिए कृत्रिम पत्ती
- परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम का उपयोग
- अकाल अच्छे कामों का भी
- अब जल्द भरेंगे गहरे घाव
- उच्च शिक्षा संस्थान और स्कूली विज्ञान शिक्षा
- विनम्र कौआ हमारी सोच से ज़्यादा चालाक है
- नेत्रदान की आसान होती तकनीक
- चमगादड़ों को दृष्टिभ्रम
- जीएम फसलों पर संसदीय समिति की रिपोर्ट
- बिटकॉइन के हाथों में जा रहा है बाज़ार
- प्राचीन काल के महान वैज्ञानिक अरस्तू
- कीटों की मदद से कीटों पर नियंत्रण
- ब्रह्मचारी मोर के आंसू और गर्भवती मोरनी
- रक्त कैंसर को थामने में विटामिन सी कारगर
- इन मछलियों को डायबिटीज़ क्यों नहीं होता?
- पूर्वाग्रहों से निपटना आसान नहीं है
- मानव की उत्पत्ति के पदचिन्ह
- स्वकाया प्रवेश उर्फ मिस्टर टॉमकिन्स इनसाइड हिमसेल्फ: एडवेंचर्स इन दी न्यू बायोलॉजी
Srote - November 2021
- नोबेल पुरस्कार: कार्यिकी/चिकित्सा विज्ञान
- नोबेल पुरस्कार: रसायन शास्त्र
- नोबेल पुरस्कार: भौतिक शास्त्र
- सार्स-कोव-2 की प्रयोगशाला-उत्पत्ति की पड़ताल
- दीर्घ कोविड: बड़े पैमाने के अध्ययन की ज़रूरत
- सार्स जैसे वायरस बार-बार आते हैं
- मास्क कैसा हो?
- संकटकाल में एक वैज्ञानिक की दुविधा
- खाद्य पदार्थों का स्टार रेटिंग सोमेश केलकर
- उपेक्षित न हों परंपरागत तिलहन भारत डोगरा
- सूक्ष्मजीव नई हरित क्रांति ला सकते हैं डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन, सुशील चंदानी
- हंसाता है, सोचने को विवश करता है इग्नोबेल पुरस्कार
- बढ़ रही है जुड़वा बच्चों की संख्या
- फिलकॉक्सिया माइनेन्सिस: शिकारी भूमिगत पत्तियां डॉ. किशोर पवार
- चीन विदेशों में कोयला बिजली घर निर्माण नहीं करेगा
- वायु गुणवत्ता के नए दिशानिर्देश
- जलवायु परिवर्तन और जीवाश्म ईंधन
- दूध पीकर घुड़सवार चरवाहे युरोप पहुंचे
- आदिम समुद्री शिकारी एक विशाल ‘तैरता सिर’ था
- डायनासौर आपसी युद्ध में चेहरे पर काटते थे
- वैम्पायर चमगादड़ सहभोज करते हैं
- विष्ठा प्रत्यारोपण से चूहों का दिल जवान होता है
- गिद्धों पर नया खतरा
- भाषा में रंगों के नाम परिवेश से तय होते हैं